पाकिस्तान में हिंदुओं की हत्या, हिंदू महिलाओं का बलात्कार, कन्वर्जन और उनकी संपत्ति को तो कब्जाया ही जा रहा है, साथ में अहमदिया मुसलमानों को भी निशाना बनाया जा रहा है। पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों के साथ दोयम दर्जे का बर्ताव होता है। उनकी कब्रें तोड़ने की घटनाएं अक्सर सामने आती हैं। अब उनके खिलाफ फिर से जहर उगला गया है। तहरीक ए लब्बैक के नेता मोहम्मद नईम चट्टा कादरी ने कहा कि प्रेग्नेंट महिला को जान से मार दो, अहमदी पैदा ही नहीं होंगे। कादरी ने अहमदिया समुदाय की गर्भवती महिलाओं के खिलाफ जहर उगला। उसने कहा कि अहमदियों के खिलाफ इतने जोर से नारे लगाओ कि इस समुदाय की गर्भवती महिलाओं के बच्चे उनके पेट में ही मर जाएं। उन्हें पैदा नहीं होना चाहिए। यदि पैदा हो गया तो उसे जिंदा नहीं छोड़ेंगे। ऐसे में एक विमर्श यह खड़ा होता है कि अहमदिया मुसलमानों से इतनी नफरत आखिर क्यों ?
ईशनिंदा के आरोप में कई अहमदिए फांसी पर झूल चुके हैं। पिछले साल एक खबर आई थी कि पेशावर के वाजिद खेल इलाके की एक क्लीनिक में काम करने वाले अब्दुल कादिर की गोली मारकर इसलिए हत्या कर दी गई थी क्योंकि उसके इबादत करने का तरीका स्थानीय कट्टरपंथियों को पसंद नहीं था। इतना ही नहीं, अमेरिका में बसे पाकिस्तानी अहमदिया बिरादरियों को पाकिस्तान टेलिकम्युनिकेशन अथॉरिटी (पीटीए) की ओर नोटिस भेज कर धमकी दी गई थी। नोटिस में कहा गया था कि अहमदियों द्वारा संचालित वेबसाइट से इस्लाम के प्रति भ्रम फैल रहा है। इसलिए ‘ट्रू इस्लाम’ नाम की वेबसाइट 24 घंटे के भीतर बंद नहीं की तो पाकिस्तानी मुद्रा के हिसाब से 50 करोड़ रुपये का जुर्माना देना होगा। इसमें यह भी कहा गया था, ‘‘इस बात पर ध्यान दिया जाए कि अहमदिया या कादियानी ना ही अपने आप को सीधे या परोक्ष रूप से मुसलमान कह सकते हैं, ना ही अपने मजहब को इस्लाम कह सकते हैं।’ हालांकि अहमदियों ने पाकिस्तान सरकार की नोटिस को रद्दी की टोकरी में डाल दिया। इसी साल यह खबर आई कि पाकिस्तान में अहमदियों की कब्रें तोड़ दी गईं।
कट्टरपंथी ज्यादातर हिंदुओं, ईसाइयों एवं सिखों को प्रताड़ित करते रहे। उनकी बहु-बेटियों का अपहरण किया, कन्वर्जन कराया, उनके साथ हिंसात्मक ढंग से पेश आते रहे। इसके साथ उन्होंने देश के शिया एवं अहमदिया समुदाय के विरुद्ध भी मोर्चा खोल रखा है। पाकिस्तान को बनवाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना शिया थे, जबकि पाकिस्तान का खाका तैयार करने वाले तथा भारत के बंटवारा से पहले हिंदुस्थान-पाकिस्तान की सीमा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वालों में से एक चौधरी मोहम्मद जफरुल्ला खान अहमदिया मुसलमान। मगर ‘नबूवत’ एवं ‘नमाज’ के तरीकों की आड़ में इन दोनों कौमों के खिलाफ कट्टरपंथियों एवं जिहादियों ने संघर्ष छेड़ रखा है।
इस वजह से करते हैं नफरत
अहमदियाओं को पाकिस्तान में मुसलमान माना ही नहीं जाता, लेकिन भारत समेत अन्य देशों में इन्हें मुसलमान माना जाता है। इस्लामिक नजरिए से हजरत मोहम्मद आखिरी पैगंबर हैं। अहमदिया इस पंथ के जनक मिर्जा गुलाम अहमद को अपना पैगंबर मानते हैं। शियाओं की तरह अहमदिया के नमाज पढ़ने का तरीका भी सुन्नियों से भिन्न है। इसके चलते अहमदियों को इस्लाम से खारिज कर दिया गया। पाकिस्तान में उनके खिलाफ जिहाद छिड़ा है। वहां 1974 में कानून में संशोधन कर उनसे न केवल मुसलमान होने का अधिकार छीन लिया गया, उन्हें हिंदू, सिख, ईसाई की तरह अल्पसंख्यकों की श्रेणी में डाल दिया गया। कोई अहमदिया किसी को ‘अस्सलाम ओ अलैकुम’ नहीं कह सकता। अहमदिया समुदाय के निदेशक कमर सुलेमान इस पर चिंता जता चुके हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान के संविधान के अनुसार अहमदिया मुसलमान नहीं, जब कि वे कुरान-हदीस सभी मानते हैं। सिर्फ मिर्जा गुलाम अहमद को पैगंबर मानने की उन्हें सजा मिल रही है।
अहमदियों की आबादी करीब 40 लाख
पाकिस्तान में अहमदियों की आबादी करीब 40 लाख है। अधिकतर यह पंजाब के रबवा जिले में रहते हैं। जबकि बड़ी संख्या में अहमदिया भारत के पंजाब, राजस्थान एवं मुंबई में भी हैं। पुरुष एवं महिलाएं खास तरह की टोपी एवं बुर्के पहनने के कारण दूर से पहचाने जा सकते हैं। 1974 में कानून में संशोधन कर अहमदियों को इस्लाम से खारिज करने के बाद से उनका पाकिस्तान से पलायन जारी है। अल्पसंख्यकों के प्रति पाकिस्तान सरकार की गलत नीतियों के चलते अहमदिया समुदाय धीरे-धीरे पाकिस्तान छोड़ रहे हैं।
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