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अल्वा की किताब ने खोले सोनिया के राज

मार्गरेट अल्वा ने अपनी आत्मकथा में राजीव, सोनिया पर कई सनसनीखेज आरोप लगाए थे, अब उन्हें कांग्रेस की ओर से उपराष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाने से क्या यह मान लिया जाए कि सोनिया ने उन्हें माफ कर दिया या एक हारी हुई लड़ाई में उन्हें झोंक कर बदला लिया जा रहा है

मृदुल त्यागी by मृदुल त्यागी
Jul 27, 2022, 08:15 am IST
in भारत
मार्गरेट अल्वा और सोनिया गांधी

मार्गरेट अल्वा और सोनिया गांधी

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80 वर्षीय मार्गरेट अल्वा चार बार राज्यसभा सदस्य रहीं, चार राज्यों की राज्यपाल बनीं, लोकसभा सदस्य रहीं, मंत्री बनीं। अब कांग्रेस ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद के चुनाव की हारी हुई लड़ाई में झोंक दिया है।

क्या राजनीति में अपमान का बदला ऐसे भी लिया जाता है? 80 वर्षीय मार्गरेट अल्वा चार बार राज्यसभा सदस्य रहीं, चार राज्यों की राज्यपाल बनीं, लोकसभा सदस्य रहीं, मंत्री बनीं। अब कांग्रेस ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद के चुनाव की हारी हुई लड़ाई में झोंक दिया है। लोकतंत्र में चुनाव लड़ना अधिकार है, स्वाभाविक है, लेकिन यह देश जिस सोनिया गांधी को जानता है, वे किसी बात को भूलती नहीं हैं तो शायद वे यह बात भी नहीं भूली होंगी कि इन्हीं अल्वा ने उन पर पार्टी में तानाशाही का आरोप लगाने के साथ ही अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले के दलाल क्रिश्चियन मिशेल के परिवार से नजदीकी का आरोप लगाया था।

अगर सोनिया इसे नहीं भूलीं और फिर भी अल्वा कांग्रेस की प्रत्याशी हैं, तो दो ही बातें हो सकती हैं। एक तो यह कि कांग्रेस के पास दमदार चेहरे नहीं रहे। दूसरी यह कि एक निश्चित हार की लड़ाई में सक्रिय राजनीति से सेवानिवृत्त हो चुकीं अल्वा को उतारना, पुराना हिसाब चुकता करना है। एक और संभावना है, जिस पर सोशल मीडिया में बहुत ज्यादा चर्चा है, वह है मार्गरेट अल्वा का कट्टरपंथी ईसाई होना। लोग कह रहे हैं कि इस एक गुण के कारण अल्वा के ‘सात खून भी माफ’ होते रहे हैं।

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जरा अतीत पर गौर करें। बात 2008 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव की है। अल्वा के बेटे को कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया। इस पर वे बहुत नाराज हुईं। उन्होंने आरोप लगाया कि उनके बेटे की एकमात्र अयोग्यता यह थी कि वह उनका बेटा था। उन्होंने खुलकर कहा कि विधानसभा चुनाव में टिकट बेचे गए हैं। पार्टी चुनाव हार गई। अल्वा को कांग्रेस महासचिव पद से बेदखल कर दिया गया। कांग्रेस में इतना कुछ बोलने के बाद आमतौर पर किसी नेता का पुनर्वास नहीं होता, लेकिन अल्वा को 2009 में ही माफी और पुरस्कार मिला। उन्हें उत्तराखंड का राज्यपाल बना दिया गया। अल्वा ने कहा- मेरे पास सोनिया गांधी का फोन आया। मुझे बताया गया कि मुझे उत्तराखंड का राज्यपाल बना दिया गया है। इसके बाद वे उत्तराखंड समेत चार राज्यों की राज्यपाल रहीं।

अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले के बिचौलिए से सोनिया के रिश्ते
राज्यपाल पद पर रहते हुए अल्वा ने अपनी आत्मकथा क्रेज एंड कमिटमेंट लिखी। इसमें उन्होंने कई सनसनीखेज रहस्योद्घाटन किए। उन्होंने दावा किया कि अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले के बिचौलिए क्रिश्चियन मिशेल और उसके पिता वोल्फगेंग मिशेल के साथ सोनिया गांधी के रिश्ते रहे हैं। अगस्ता वेस्टलैंड घोटाला सोनिया गांधी के रिमोट कंट्रोल से चलने वाली यूपीए सरकार के प्रथम कार्यकाल में हुआ था। यह घोटाला 2013-14 में सामने आया। देश के अति विशिष्ट (वीवीआईपी) लोगों के लिए 12 हेलिकॉप्टर की खरीद का यह सौदा 3600 करोड़ रु. का था, जिसमें दस प्रतिशत यानी 360 करोड़ रुपये की दलाली ली गई। इस घोटाले में बिचौलिये की भूमिका निभाने वाले क्रिश्चियन मिशेल को गिरफ्तार किया गया। 2019 में उसने प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ में स्वीकार किया कि वह सोनिया गांधी को जानता है।

अल्वा को प्रत्याशी बनाना उनकी बातों पर मुहर?
अगस्ता वेस्टलैंड सौदे में सीधे-सीधे बिचौलिये से संबंधों का आरोप लगाने वाली अल्वा अब कांग्रेस की ओर से उप राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ रही हैं। अपनी आत्मकथा में अल्वा यहीं नहीं रुकीं। उन्होंने मिशेल के पिता वोल्फगेंग को भी लपेटते हुए 1980 के टैंक घोटाले का उल्लेख किया है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि संजय गांधी ने तत्कालीन मंत्री सीपीएन सिंह के साथ मिलकर पुराने हथियार भारत को बेचने की कोशिश की। अल्वा का दावा है कि उन्होंने इस सौदे का विरोध किया था और इसी वजह से सीपीएन सिंह को रक्षा मंत्रालय से हटना पड़ा था।

1942 में कर्नाटक के मंगलौर में जन्मीं मार्गरेट अल्वा विपक्ष की ओर से उप राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हैं। कांग्रेस और उसके विपक्षी साथियों की अधिकृत उम्मीदवार। राजनीति में किसी व्यक्ति पर अकेले मुहर नहीं लगती। व्यक्ति और विचार अलग नहीं हो सकते। मार्गरेट अल्वा ने कभी अपनी किताब में किए दावों या बयानों को वापस नहीं लिया, ऐसे में यह मानना होगा कि कांग्रेस और सोनिया गांधी उनसे सहमत हैं 

राजीव पर भी लगाए थे आरोप
कांग्रेस की उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार ने राजीव गांधी को भी नहीं बख्शा था। उन्होंने लिखा कि शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद राजीव गांधी इस फैसले को पलटने के रास्ते तलाश रहे थे। तब अल्वा राजीव सरकार में राज्य मंत्री थीं। अल्वा के मुताबिक उन्होंने राजीव गांधी को सलाह दी कि उन्हें मौलवियों के दबाव के आगे नहीं झुकना चाहिए। इस पर राजीव गांधी उन पर चिल्लाए और कहा कि ‘तलाक लो, फिर मेरे पास वापस आओ। मैं तुम्हें बताऊंगा कि कहां जाना है।’ अल्वा ने लिखा कि कांग्रेस को उम्मीद थी कि इस मुद्दे पर राजीव गांधी दृढ़ता दिखाएंगे, लेकिन वह कट्टरपंथियों के सामने झुक गए।

राव-सोनिया तकरार
नरसिंहाराव और सोनिया के बीच तनाव जगजाहिर था। आरोप यहां तक लगे कि राव सोनिया गांधी की जासूसी करवाते थे। इस पर अल्वा ने लिखा कि मुझे इस बात की जानकारी नहीं। हो सकता है, इसीलिए उन्होंने मुझे कैबिनेट मंत्री नहीं बनाया। राव और सोनिया के बीच बात तब और बिगड़ गई, जब बोफर्स केस बंद करने के फैसले के खिलाफ राव सरकार ने अपील में जाने का फैसला किया। अपील का मतलब था कि राजीव गांधी के खिलाफ बोफर्स मामला जिंदा रहे। बकौल अल्वा, तब सोनिया ने उनसे पूछा था कि क्या राव उन्हें जेल भेजना चाहते हैं।

अल्वा को सोनिया की माफी?
अल्वा के गुनाह इतने ही नहीं हैं। कांग्रेस में एक और गुनाह बहुत बड़ा है। नेहरू-गांधी परिवार के अलावा किसी नेता को महान बताना। अल्वा ने अपनी आत्मकथा में यह भी किया। उन्होंने लिखा कि व्यक्तिगत मतभेदों की वजह से सोनिया गांधी ने नरसिंहा राव के देहांत के बाद उनके शव को अंतिम दर्शन के लिए कांग्रेस मुख्यालय में नहीं रखने दिया। तोपगाड़ी पर सवार राव का शव कांग्रेस मुख्यालय लाया गया, लेकिन यहां उनके शव को अंदर लाने के लिए गेट तक नहीं खोला गया। अल्वा ने लिखा है—‘राव के साथ मरणोपरांत जो व्यवहार हुआ, वह दुखद है। वे कांग्रेस
अध्यक्ष थे और उनकी मृत्यु के बाद उन्हें यथोचित सम्मान मिलना चाहिए था।’

इसके बावजूद अल्वा को उप राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाना क्या उनकी इस राय की भी स्वीकारोक्ति है?
इंडिया टुडे को दिए एक साक्षात्कार में मार्गरेट ने सोनिया गांधी पर कांग्रेस पार्टी को मनमाने ढंग से चलाने का भी आरोप लगाया था। उन्होंने साक्षात्कार में बताया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उनसे अक्सर कहते थे कि वह उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल करना चाहते हैं, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

1942 में कर्नाटक के मंगलौर में जन्मीं मार्गरेट अल्वा विपक्ष की ओर से उप राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हैं। कांग्रेस और उसके विपक्षी साथियों की अधिकृत उम्मीदवार। राजनीति में किसी व्यक्ति पर अकेले मुहर नहीं लगती। व्यक्ति और विचार अलग नहीं हो सकते। मार्गरेट अल्वा ने कभी अपनी किताब में किए दावों या बयानों को वापस नहीं लिया, ऐसे में यह मानना होगा कि कांग्रेस और सोनिया गांधी उनसे सहमत हैं।

Topics: अल्वा की किताबसोनिया के राजउप राष्ट्रपति पद
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