नैनीताल जिले के चकुलवा गांव के किशन चंद चड्ढा पपीते की खेती करते थे। उन्होंने अपने पोते को फसल उत्पादन की बारीकियां सिखाई। नतीजा, पोता आज केवल बीज बेचकर ही लाखों रुपये कमा रहा है
दादा ने कृषि वैज्ञानिकों से बीज तैयार करने का तरीका सीख कर अपने फार्म में पपीते की खेती शुरू की। फिर पोते को इसका ज्ञान दिया। आज पोता पपीते का बीज उत्पादन कर उसे देश-विदेश में बेचकर लाखों रुपये कमा रहा है। यह कहानी है उत्तराखंड के नैनीताल जिले के चकुलवा गांव के रहने वाले किसान किशन चंद चड्ढा की।
किशन चंद चड्ढा ने पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. सियाराम से तकनीकी ज्ञान हासिल कर अपने फार्म में हाई ब्रीड पपीते (फार्म सेलेक्शन-1) की पौध तैयार की। पपीते की फसल दो साल में ही तैयार हो जाती है। एक पौधा 4-5 फीट का होता है और इस पर 50 किलो से एक कुंतल तक पपीता देता है।
बौनी प्रजाति का होने के कारण आंधी-तूफान में भी फसल खराब होने का डर नहीं रहता और इसे चादर में लपेट कर या जाल डाल कर पक्षियों से भी सुरक्षित रखा जा सकता है। बाद में 90 वर्षीय किशन चंद ने अपना सारा ज्ञान अपने पोते सिद्धांत चड्ढा को दे दिया। उन्होंने सिद्धांत को पपीते का पौधा लगाने से लेकर फल उत्पादन और बीज उत्पादन तक हर गुर सिखाया।
पपीते के बीज की आफलाइन-आनलाइन बिक्री कर लाखों रुपये कमा रहे हैं। साथ ही, आसपास के गांव के लोगों को भी पपीते की खेती करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं और उन्हें प्रशिक्षण भी दे रहे हैं।
पहले किशन चंद पपीते का नाममात्र का बीज तैयार करते थे, लेकिन 27 वर्षीय सिद्धांत ने नई तकनीक का प्रयोग कर बीज उत्पादन बढ़ाया और इसे नई ऊंचाई दी। खास बात यह है कि पपीते की किस्म विशुद्ध रूप से देसी है। वहीं, बाजार में प्रचलित चीन का लाल पपीता भले ही मीठा होता है, लेकिन काटने के थोड़ी देर बाद ही यह सख्त हो जाता है और इसका स्वाद भी कसैला हो जाता है। सिद्धांत केवल पपीता और बीज का ही उत्पादन नहीं कर रहे, बल्कि पपीते से ‘पपाया कैण्डी’ भी बना रहे हैं।
सिद्धांत पपीते की खेती तो करते ही हैं, पौधों की कतारों के बीच अदरक, प्याज, लहसुन और अरबी जैसी मौसमी फसलें उपजा कर उन्होंने अपनी आमदनी को बढ़ाया है। वे पपीते के बीज की आफलाइन-आनलाइन बिक्री कर लाखों रुपये कमा रहे हैं। साथ ही, आसपास के गांव के लोगों को भी पपीते की खेती करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं और उन्हें प्रशिक्षण भी दे रहे हैं।
सिद्धांत कहते हैं, ‘‘मुझे अपने खेत से बहुत लगाव है। मैं बचपन से ही दादा जी के साथ खेतों में जाया करता था। दादा जी चाहते थे कि मैं उनके इस पुश्तैनी काम को आगे बढ़ाऊं। लेकिन पिताजी की रुचि सेब की खेती करने में थे, जबकि बड़े भाई फूलों की खेती से जुड़ गए थे। दादा जी ने मुझे पपीते की खेती की हर बारीकी समझाई। इसके बाद मैंने उसमें नई तकनीक का समावेश किया। आज हमारा बीज न केवल पूरे देश में जा रहा है, बल्कि नेपाल और भूटान से भी बीज के आर्डर आ रहे हैं। मुझे इस बात से प्रसन्नता और संतोष है कि मेरे दादाजी मुझसे बहुत खुश हैं।’’
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