दिलीप धारूरकर
केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता नारायण राणे के मुंबई में जुहू स्थित घर में अनियमित हिस्सा बताकर उसे तोड़ने का जो आदेश दिया था। उसे उद्धव सरकार ने वापस ले लिया है। उच्च न्यायालय में राज्य सरकार के महाअधिवक्ता के माध्यम से मुंबई नगर निगम ने 21 मार्च का आदेश वापस ले लिया। नारायण राणे को सबक सिखाने के लिए यह आदेश दिया गया था उसे वापस लेने की नौबत आने से उद्धव सरकार की फजीहत हुई है।
नारायण राणे पहले शिवसेना में थे। शिवसेना की सरकार में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे। उद्धव ठाकरे से मतभेद के कारण उन्होंने शिवसेना को त्याग दिया और पहले कांग्रेस में गए और अब भारतीय जनता पार्टी में है। शिवसेना की आलोचना करने वे कभी नहीं चूकते। नारायण राणे की तीखी आलोचना के कारण शिवसेना और उद्धव ठाकरे राणे को सबक सिखाने का बहाना ढूंढते रहते हैं। मुंबई नगर निगम पर शिवसेना की सत्ता रहने से राणे के घर पर कार्रवाई करना शिवसेना के लिए आसान था। इसलिए राणे के बंगले में कथित अनियमितता बताकर कुछ हिस्से को तोड़ने का आदेश 21 मार्च को भेजा गया था। इसके विरोध में राणे ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर इस आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया था।
राणे ने अपने घर में अनियमितताओं को नियमित करने का आवेदन नगर निगम को दिया है। उस पर कोई विचार न करते हुए घर तोड़ने का कार्य न करें। ऐसा राणे का अनुरोध था। राज्य सरकार की ओर से उच्च न्यायालय में महाअधिवक्ता आशुतोष कंभकोणी ने कोर्ट को बताया कि भविष्य में आवश्यकता हो तो कोई कार्रवाई करने के अपने अधिकार को सुरक्षित रखते हुए सरकार ने राणे के घर को ध्वस्त करने का अपना आदेश रद्द किया है। कोर्ट ने यह स्वीकार करते हुए मामले का निस्तारण कर दिया।
मशहूर अभिनेत्री कंगना रनौत ने जब उद्धव ठाकरे की आलोचना की थी तब उनके मुंबई स्थित घर का कुछ हिस्सा तोड़ने की कार्रवाई मुंबई नगर निगम ने की थी। शिवसेना के मुखपत्र सामना में इस कार्रवाई का वर्णन ‘उखाड दिया’ ऐसा शीर्षक दे कर किया गया था। वहीं, अध्याय राणे के विषय में दोहराने का विचार शिवसेना ने किया था। जितने जोर से राणे पर कार्रवाई करने का बहाना सरकार ने ढूंढा था वह फेल होने से सरकार की फजीहत हो गयी है।
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