मनोज ठाकुर
भगवंत मान को 12.30 मिनट पर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी थी। राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित समय पर पहुंच गए, लेकिन भगवंत मान और अरविंद केजरीवाल समय पर नहीं पहुंचे। राज्यपाल करीब 25 मिनट तक इंतजार करते रहे। तब तक वहां उपस्थिति हर कोई कार्यक्रम शुरू होने का इंतजार करता रहा। बाद में बताया गया कि मोहाली में दृश्यता की कमी की वजह से उनका हेलीकॉप्टर मोहाली से उड़ नहीं पाया। इस वजह से देरी हो गई।
आम आदमी पार्टी पंजाब में बदलाव का वायदा करते हुए सत्ता में आयी है। पहली बार चंडीगढ़ से बाहर अमर बलिदानी भगत सिंह के गांव में सीएम ने शपथ ग्रहण समारोह में शपथ ली। जिस तरह से भगवंत मान और उनकी टीम देरी से पहुंची, इसे लेकर उनकी आलोचना हो रही है। पंजाब के वरिष्ठ पत्रकार बलविंदर सिंह जम्मु ने कहा कि तीन लाख लोग और माननीय राज्यपाल नए सीएम का इंतजार करते रहे, सीएम पद पर पर मान की यह अच्छी शुरुआत नहीं मानी जा सकती है। क्योंकि आम आदमी पार्टी की ओर से बार-बार यह दावा किया जाता है कि वह वीआईपी कल्चर के खिलाफ है।
खुद भगवंत मान बार-बार यह बोलते हैं कि आम आदमी पार्टी की जीत पंजाब के आम मतदाता की जीत है। वह यह भी कहते रहे हैं कि अब आम आदमी का राज आ गया है। लेकिन जब इस तरह की बातों को अमलीजामा पहनाने का वक्त आया तो इसमें भगवंत मान पिछड़ते नजर आ रहे हैं। होना तो यह चाहिए था कि मान शपथ ग्रहण समारोह में समय पर पहुंच कर एक उदाहरण पेश करते। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
यह तर्क भी गले नहीं उतर रहा कि मौसम खराब था, क्योंकि आज चंडीगढ़ और मोहाली का मौसम पूरी तरह से साफ है। किसी तरह के बादल नहीं हैं। फिर कैसे मौसम खराब की बात की जा रही है? यह तथ्य सही नहीं है। यह हो सकता है कि भगवंत मान और उनकी टीम मोहाली से खटकड़ कला के लिए समय से निकले ही नहीं। इसलिए देरी से कार्यक्रम में पहुंचे। मान के आलोचकों का कहना है कि यह शपथ ग्रहण समारोह था, कोई पब्लिक मीटिंग या पार्टी की रैली नहीं थी। इसलिए नए सीएम को समय का ध्यान रखना चाहिए था। क्योंकि परंपरा रही है कि शपथ ग्रहण समारोह में सीएम और राज्यपाल एक साथ पहुंचते हैं। राज्यपाल कार्यक्रम शुरू करने की इजाजत देते हैं। कार्यक्रम खत्म करने की इजाजत भी राज्यपाल देते हैं। बदलाव के नाम पर जो परंपरा भगवंत मान चलाने की कोशिश रहे हैं, वह सही नहीं है। पहले ही दिन राज्यपाल की इस तरह से अनदेखी स्वीकारर्य नहीं हो सकती। नए सीएम को इस पर सोचना चाहिए।
सादगी नहीं, यहां तो पूरा तामझाम था
भगवंत मान बात तो बदलाव की कर रहे हैं। यह बदलाव है कहां? खटखड़ कला में उनका शपथ ग्रहण समारोह ही करोड़ों रुपए में आयोजित हुआ। इसके विपरीत यदि वह राजभवन में शपथ लेते तो इस पर मामूली खर्च आना था। इसके बाद भी मान दुहाई दे रहे हैं कि वह बदलाव की राजनीति के लिए आए हैं। अमर बलिदानियों का सम्मान होना चाहिए, इसमें कोई दो राय नहीं। यह सम्मान दिखावे के लिए और आम आदमी को बहकाने के लिए नहीं बल्कि दिल से होना चाहिए। यदि भगवंत मान वास्तव में अपने शपथ ग्रहण समारोह को साधारण बनाना चाहते थे तो उन्हें सादे समारोह में भगत सिंह की प्रतिमा के सामने छोटे से कार्यक्रम में ही शपथ लेनी चाहिए थी। तब माना जाता कि वह बदलाव के लिए यह सब कर रहे हैं। अब तकरीबन दो करोड़ रुपए खर्च कर दस हजार से ज्यादा पुलिकर्मियों के बीच शाही स्टेज पर शपथ ग्रहण आयोजित हुआ।
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