मनोज ठाकुर
कथित आंदोलनकारी किसान अब आमने-सामने आ गए हैं। संयुक्त समाज मोर्चा के नाम से सियासी पार्टी बना कर चुनाव लड़ने वाले किसानों को अब मार्च से अलग करने की कोशिश शुरू हो गई है। दूसरी ओर अपनी जमीन खिसकती देखकर संयुक्त समाज मोर्चा भी सक्रिय हो गया है। मोर्चे में फूट उस वक्त जगजाहिर हुई जब 14 मार्च को दिल्ली में गांधी शांति प्रतिष्ठान में सभी संगठनों के प्रतिनिधियों की बैठक बुलाई गई थी। बैठक में बलबीर सिंह राजेवाल और गुरनाम सिंह चढूनी के लोग जबरन मीटिंग स्थल पर पहुंच गए। जोर-जबरदस्ती करते हुए मीटिंग हॉल पर कब्जा कर एक समानांतर मीटिंग शुरू कर दी। इस वजह से किसान मोर्चा खुले लॉन में अपनी मीटिंग करेंगे। राजेवाला गुट ने इस मीटिंग में भी बाधा डालने की कोशिश की।
राजेवाल गुट ने अब 21 मार्च को लखीमपुर खीरी में राष्ट्रीय बैठक बुलाने का ऐलान किया है। संयुक्त किसान मोर्चा के प्रवक्ता ने बताया कि अब उनका बलबीर सिंह राजेवाल, गुरनाम सिंह चढूनी सहित “संयुक्त समाज मोर्चा” और “संयुक्त संघर्ष पार्टी” बनाने वाले किसान संगठनों और नेताओं से कोई संबंध नहीं है। 21 मार्च की लखीमपुर खीरी की बैठक से किसान मोर्चा अलग है। यदि कोई किसान इस बैठक में हिस्सा लेता है तो संयुक्त किसान मोर्चा अनुशासन की कार्यवाही करेगा।
पंजाब चुनाव में यह स्पष्ट हो गया कि किसान आंदोलन के नाम पर राजनीति कर रहे थे। अब जिस तरह से मोर्चा दो फाड़ हो गया है, इससे स्पष्ट है कि किसानों की आड़ में कुछ लोग किस तरह से बखेड़ा खड़ा कर रहे थे। एक सोची-समझी साजिश के तहत भ्रम फैलाया गया। यह कोशिश केंद्र सरकार को बदनाम करने भर की थी। पंजाब स्टडी सेंटर चंडीगढ़ के प्रोफेसर डाक्टर गुरमीत सिंह का कहना है कि किसानों की आड़ में बहुत बड़ा षड़यंत्र अंजाम दिया गया है। अब इनकी हकीकत सामने आ रही है। किस तरह से किसानों को बहका कर इकट्ठा किया गया। दबाव की राजनीति की कोशिश की गई। लेकिन यूपी चुनाव में यह स्पष्ट हो गया कि खुद को किसान नेता कहने वाले कितने पानी में हैं। उनकी हकीकत तो जनता के सामने आ गई। अब एक बार फिर से किसानों को बहकाने की कोशिश हो रही है। हकीकत तो यह है कि किसान नेताओं के बारे में किसानों को भी पता चल गया है। पंजाब चुनाव में जिस तरह से किसानों ने इन लोगों को जवाब दिया, वह अपने आप में सब कुछ जाहिर कर रहा है। छद्म किसान नेताओं का कोई वजूद था ही नहीं। यह विपक्ष के कार्यकर्ता थे, जो खुद को किसान बता रहे थे। इस तरह के फर्जी आंदोलनजीवियों ने किसानों का कितना नुकसान कर दिया है, यह किसान अब समझ गए हैं।
डॉक्टर गुरनाम सिंह ने बताया कि चढूनी तो हरियाणा में लगातार अपनी सियासी गतिविधियां चला रहे थे। जिसे बार-बार हरियाणा का मतदाता खारिज कर रहा था। फिर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए उन्होंने किसानों की आड़ लेना शुरू किया। पंजाब में भी जिस तरह से राजेवाल समेत चुनाव लड़ने वाली जत्थेबंदियों को जो जवाब दिया गया, इससे पता चल रहा है कि पंजाब में इनका कोई वजूद नहीं है। अब क्योंकि इनकी असलियत जनता के सामने आ गई है,इसलिए वह एक दूसरे पर आरोप लगा कर खुद के लिए आधार तलाश रहे हैं। लेकिन अब किसान इनके बहकावे में आने वाले नहीं हैं। युवा किसान प्रमोद चौहान का कहना है कि इस तरह के संगठन किसी भी तरह से किसानों का भला नहीं कर सकते। यह किसानों के साथ छल करते हैं। इनकी गतिविधियों पर रोक लगनी चाहिए। यह किसान द्रोही है, जिनका मकसद किसानों के कंधे पर चढ़ कर अपनी राजनीति चमकाना भर है। इस तरह के संगठनों पर भी रोक लगनी चाहिए। क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता तो यह फिर से समाज और किसानों को बांटने का काम करेंगे।
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