श्रीनगर के अमीराकदल में बीते रविवार को आतंकियों के ग्रेनेड हमले में घायल 24 लोगों में 19 साल की राफिया नजीर भी शामिल थी, जो करीब 14 घंटे तक अस्पताल में जिंदगी से जंग लड़ती रही और अंत में हमेशा के लिए शांत हो गई। बताते हैं कि राफिया डॉक्टर बनकर लोगों की सेवा करना चाहती थी, लेकिन उसका सपना पूरा हो पाता, उससे पहले ही आतंकियों की कायराना करतूत उसके लिए काल बन गई। घटना के बाद कश्मीर में मातम पसरा रहा। दुनियाभर में लोग विश्व महिला दिवस मनाने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन कश्मीर में हर आंख नम रही। श्रीनगर में लोगों ने रात में राफिया की याद में कैंडल मार्च निकाला और दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की।
जानकारी के अनुसार अमीराकदल और उसके साथ सटे इलाकों में फुटपाथ पर संडे बाजार लगता है, वहां काफी भीड़ होती है। उसी दौरान राफिया अपनी मां और बहन के साथ गनीखान बाजार की तरफ पैदल जा रही थी तभी आतंकियों ने ग्रेनेड से हमला कर दिया। घटना के दौरान एक बुजुर्ग की मौके पर ही मौत हो गई थी। वहीं, राफिया के सिर में ग्रेनेड के छर्रे लगने से वह घायल हो गई थी। बताते हैं कि चोट लगने के बाद भी राफिया को दूसरों की चिंता थी, उसने मां से दूसरों का हाल जाना था। उसने मां से कहा था कि उसके सिर ने दर्द हो रहा है शायद कुछ चोट लग गई है, लेकिन आप घबराइए नहीं, मां को भी लगा था शायद ज्यादा चोट नहीं आई है।
खबरों की मानें तो राफिया के पिता नजीर अहमद का कहना है कि उनकी बेटी पूरे खानदान की उम्मीद थी। वह पढ़ने में काफी अच्छी थी। 12वीं की जम्मू-कश्मीर बोर्ड की परीक्षा में उसने 94 प्रतिशत अंक हासिल किए थे। वह डॉक्टर बनना चाहती थी। राफिया कहती थी कि डॉक्टर बनकर वह लोगों का मुफ्त इलाज करेगी। अपने पिता के कमर के दर्द का इलाज भी वही करेगी। घर की आर्थिक स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है। दो भाई मजदूरी करते हैं। पिता कालीन बुनकर हैं। फिर भी पूरा परिवार उसे पढ़ऩे के लिए प्रेरित करता था।
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