हमारे ऋषियों-मनीषियों ने नदी, पर्वत, वृक्ष, वनस्पति, फल, फूल जैसे प्रकृति के विभिन्न घटकों के संरक्षण के लिए उनके पूजन की जो परंपरा विकसित की, वह उसके पीछे का मनोवैज्ञानिक आधार वाकई बेहद अद्भुत है। प्रकृति के इन तत्वों से जुड़े हमारे विभिन्न पर्व त्योहार वैदिक संस्कृति की दिव्यता और आत्मिक उल्लास के द्योतक हैं। ऐसा ही एक पावन पर्व है "फुलैरा दूज" जो हमारे जीवन के फूलों की महत्ता को अभिव्यक्त करता है। यह पर्व इस बात का शिक्षण देता है कि फूल इस सृष्टि को परमात्मा का ऐसा अनुपम उपहार हैं जो वाह्य प्रकृति ही नहीं वरन हमारी अंतस को भी अपने अनूठे सौंदर्य और मनभावन सुगंध से पवित्र और पावन बना देते हैं।
बसंत पंचमी और होली के बीच फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को मनाया जाने वाला फुलैरा दूज का त्योहार ब्रजभूमि का एक प्रमुख त्योहार है। कृष्णभक्त इस पुष्प पर्व को अत्यंत श्रद्धाभाव से मनाते हैं। वसंत ऋतु में खिलने वाले हर प्रकार के सुंदर और रंग-बिरंगे फूलों से प्रकृति ही नहीं मानव मन का सौंदर्य भी बहुगुणित हो निखर उठता है।
इस पर्व पर जहां एक ओर अलौकिक प्रेम के पावन प्रतीक राधा-कृष्ण की आराधना प्रकृति अपने समूचे श्रृंगार के साथ करती है तो वहीं दूसरी ओर श्रीराधा और मुरली मनोहर के अनुयायी इस दिन नवपल्लवित फूलों से इस दिव्य युगल का प्रतिमा श्रृंगार कर उनके साथ फूलों की होली खेलकर रंगोत्सव का शुभारंभ करते हैं। कहा जाता है कि द्वापर युग में गोकुल की गोपिकाओं ने सर्वप्रथम इसी दिन श्रीराधा-कृष्ण के साथ फूलों की होली खेल कर पुष्पोत्सव मनाया था।
हिन्दू धर्मावलम्बियों की मान्यता है कि इस दिन सच्चे मन से राधा-कृष्ण की पूजा-आराधना करने वाले विवाहित जोड़ों के जीवन में प्रेम और आनंद सदैव बना रहता है। राधा-कृष्ण उनके जीवन में प्रेम और खुशियां बरसाते हैं। श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा-वृंदावन में इस पर्व की रौनक देखते ही बनती है। इन दिन हजारों भक्त ठाकुर व उनकी आह्लादिनी शक्ति के संग होली खेलने के लिए वृंदावन में जुटते हैं और राधा-कृष्ण की प्रतिमा पर पुष्पवर्षा कर गुलाल लगाते हैं और भोग प्रसाद और भजन-कीर्तन के साथ जमकर फूलों की होली खेलते हैं।
ब्रजवासियों का कहना है कि इस दिन कृष्ण भक्त अपने कान्हा पर जितना प्रेम बरसाते हैं, उससे दोगुना प्रेम कान्हा अपने भक्तों पर लुटाते हैं। इस कृष्ण नगरी के श्रीराधारमण, श्रीराधा दामोदर, राधा श्यामसुंदर श्रीराधा बल्लभ, प्रिया बल्लभ कुंज, राधा बिहारी समेत सभी सभी छोटे-बड़े देवालयों में फूलों की होली का आनन्दोत्सव मनाया जाता है, जिनमें लीला पुरुषोत्तम की मनोहारी लीलाओं व नृत्य-संगीत की रौनक देखते ही बनती है।
ब्रजमंडल में ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी फुलैरा दूज को फाल्गुन माह का सबसे शुभ दिन माना जाता है। इस दिन कोई भी शुभ कार्य बिना मुर्हुत विचारे नि:संकोच किया जा सकता है। नए काम की शुरुआत के लिए भी यह दिन बहुत शुभ माना जाता है। खासतौर पर विवाह सम्बंधों के लिए। इस दिन किसी भी मुहूर्त की जरूरत नहीं होती। इसीलिए समूचे ब्रजमंडल में आज भी सबसे अधिक संख्या में विवाह इसी तिथि को संपन्न होते हैं।
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