नरेंद्र सिंह/दिनेश मानसेरा
विश्व वन्यजीव दिवस के अवसर पर वन्य जीव विशेषज्ञ आज ये चिंता कर रहे हैं कि सैकड़ों प्रजातियों के जीव जंतुओं लुप्त हो रहे हैं और इसका सबसे बड़ा कारण इंसान ही है। इंटरनेट और डिजिटल दुनिया में इस दौर में विविध जानकारी तो उपलब्ध है, पर जैव-विविधता के संरक्षण में काम न के बराबर है। इंसान का आलम ये है कि वो अपने आसपास विचरण करने वाली 10 चिड़ियों या तितलियों के नाम तक नहीं जानते। ऐसे में उनके पारितंत्र में योगदान की बात तो बहुत दूर की बात है।
डिजिटल युग यह समझना होगा कि जैव विविधता की क्षति हमारे लिए और इस धरती के लिए एक बहुत बड़ा संभावित खतरा है। वन्यजीव प्रजातियों के निरंतर विलुप्त होने से पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को ही संकट उत्पन्न होता है और उन सभी के कल्याण को भी संकटग्रस्त कर देता है जो उन पर भरोसा करते हैं। फिर भी, यह अपरिहार्य नहीं है। हमारे पास अपनी रणनीति बदलने और संकटग्रस्त प्रजातियों और उनके आवासों को पुनर्स्थापित करने की शक्ति है। "पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिए प्रमुख प्रजातियों को पुनर्प्राप्त करना" विषय के साथ, हम जीवों और पौधों की प्रमुख प्रजातियों के भविष्य को उलटने की दिशा में कार्रवाई को प्रेरित करना चाहते हैं। हम आशावान हैं कि विश्व वन्यजीव दिवस प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने के लक्ष्य के साथ एक स्थायी भविष्य की दिशा सुनिश्चित करने में सहायता करेगा। वैश्विक जैव विविधता का संरक्षण करने और हमारे साझा भविष्य को सुरक्षित करने के लिए आवश्यक राजनीतिक और सामाजिक इच्छाशक्ति पर जोर देकर वन्यजीव संरक्षण में योगदान करने की आशा अवश्य करते हैं।
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर की रेड लिस्ट के अनुसार
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर की रेड लिस्ट के अनुसार, वन्यजीवों और वनस्पतियों की 8,400 से अधिक प्रजातियां गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं, जबकि 30,000 से अधिक को लुप्तप्राय या संकटापन्न समझा जाता है। इन अनुमानों के आधार पर, यह आशंका है कि लगभग दस लाख से अधिक प्रजातियों के विलुप्त होने का संकट है। प्रजातियों की निरंतर क्षति और प्राकृतवासों और पारिस्थितिक तंत्र के क्षरण से पूरी मानवता को ही संकट है, क्योंकि हर जगह लोग भोजन, दवाओं और स्वास्थ्य से लेकर ईंधन, आवास और कपड़ों तक अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वन्यजीवों और जैव विविधता-आधारित संसाधनों पर निर्भर हैं।
विश्व वन्यजीव दिवस पर वन्यजीवों और वनस्पतियों की कुछ सबसे गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण की स्थिति पर ध्यान आकर्षित करने और उनके संरक्षण के लिए समाधानों और उन्हें लागू करने की दिशा में विशेष प्रयास करने की आवश्यकता है। हम अपने आसपास के वन्यजीवों, पक्षियों, तितलियों, कीड़े-मकोड़ों, सरिसर्पो, चमगादड़, गिलहरियों आदि की तथा उनके पर्यावासों की रक्षा करेंगे ताकि सह-अस्तित्व और सुदृढ पारितंत्र बना रह सके। भारत में ही नहीं एशिया से गिद्ध,पंडा, लुप्त हो गए, बाघ, हाथियों, तेंदुए, घड़ियालों पर भी संकट मंडरा रहा है। यहां तक कि हमारे देखते- देखते शहरों से गौरैया भी लुप्त हो रही है। जंगल कट रहे हैं शहरों से पेड़ पौधे गायब हो रहे हैं इसका सीधा असर पर्यावरण संतुलन पर पड़ने लगा है। जरूरत इस बात की है कि हम पहले जंगल बचाएं शहरों में खासकर अपने घरों में पेड़ पौधे लगाएं तभी वन्य जीव संरक्षित रह पाएंगे।
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