डेरा सच्चा सौदा सिरसा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम इंसां के 21 दिनों के लिए जेल से बाहर आने के बाद पंजाब चुनाव में हलचल बढ़ गई है। डेरे की राजनीतिक शाखा पंजाब विधानसभा चुनाव में किस पार्टी को समर्थन देगी, इस पर 18 फरवरी को फैसला लिया जा सकता है। डेरामुखी के एक इशारे से चुनाव की दशा और दिशा बदल सकती है। इसलिए प्रत्याशी ही नहीं, राजनीतिक दलों की जान भी सांसत में है। मालवा की सीटों पर डेरे का खासा प्रभाव है।
पंजाब में डेरा सच्चा सौदा पहले अकाली-भाजपा गठबंधन का समर्थन कर चुका है। हरियाणा में भी 2014 और 2019 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत में डेरा सच्चा सौदा ने बड़ी भूमिका निभाई थी। इस कारण दूसरी पार्टियों को इस बात की चिंता सता रही है कि अगर डेरे ने भाजपा को समर्थन दिया, तो उनका खेल बिगड़ सकता है। डेराप्रेमी पहले से ही कांग्रेस से नाराज हैं, क्योंकि पंजाब की कांग्रेस सरकार ने बेअदबी मामले में डेरामुखी का नाम शामिल किया था। नवजोत सिंह सिद्धू भी बेअदबी को लेकर काफी मुखर रहे हैं। इस बार डेरामुखी के समधी व पूर्व मंत्री हरमिंदर सिंह जस्सी् को कांग्रेस ने तलवंडी साबो से टिकट नहीं दिया, इसलिए वे निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। उन्हें जिताने के लिए डेरा समर्थकों ने पूरी ताकत झोंक दी है। डेरे की ओर कहा गया है कि हर हाल में जस्सी की जीत होनी चाहिए।
पंजाब की 117 में से 56 सीटों पर डेरे का प्रभाव है और उम्मीेदवारों की हार-जीत में डेरा अनुयायियों की बड़ी भूमिका रहती है। तलवंडी साबो में ही डेरा प्रेमियों की संख्याद 40 हजार से अधिक है। इस सीट को डेरा अनुयायियों ने प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है। उनका मानना है कि कांग्रेस ने जस्सीे का टिकट नहीं काटा, बल्कि डेरामुखी को नीचा दिखाने की कोशिश की है।
टिप्पणियाँ