देश की राजनीति में पिछले कुछ दिनों से "हिजाब" सर्वाधिक चर्चा में है। TV डिबेटों से लेकर चूनावी रैलियों तक हिजाब पर बयानबाजियों का दौर जारी है। कर्नाटक के "उडप्पी" में एक सरकारी कॉलेज में अनुशासन को लेकर शुरु हुआ विवाद अब पूरी तरह साम्प्रदायिक रूप में बदल चुका है। उच्चतम न्यायालय ने भले ही पूरे मामले में सुनवाई करने से मना करते हुए यह कह दिया हो कि इसे राष्ट्रीय मुद्दा न बनाए लेकिन सच तो यह है कि पॉलिटिकल माइलेज लेने की उद्देश्य से देश के नेताओं और तथाकथित धर्म के ठेकेदारों द्वारा किए गए गलत बयानबाजियों के कारण पूरा मामला न केवल राष्ट्रीय रह गया है बल्कि इस पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं।
पिछले कुछ वर्षों में मुस्लिम समुदाय से जुड़े हर छोटे मामले को जिस तरह से सांप्रदायिक रंग देने प्रयास किया है वह न केवल देश की आन्तरिक सुरक्षा बल्कि हिंदुस्तान की अंतराष्ट्रीय छवि के लिए भी नुकसानदायक है। CAA, NRC, से लेकर तीन तलाक को खत्म करने के फैसले को हिंदुस्तान के एक तथाकथित बुद्धिजीवी तबके ने मुस्लिम विरोधी बताकर पूरे विश्व में प्रचारित करने का असफल प्रयास किया,उसके बाद अब हिजाब जैसे छोटे मुद्दे पर भी देश मे जिस तरह की ओछी राजनीति हो रही है वह न केवल निन्दनीय है बल्कि सोचनीय भी है कि कैसे एक सरकारी शैक्षणिक संस्थान में ड्रेस कोड के अनुशासन के मामले को साम्प्रदायिक रूप दे दिया गया और पूरे मामले को धार्मिक आजादी से जोड़ दिया गया। देश में मुस्लिम तबके के लोगों को भी ऐसे गुमराह किया जा रहा है कि सरकार देश मे हिजाब पर पाबन्दी लगाना चाहती है।
पूरे देश में जगह -जगह इसको लेकर प्रदर्शन हो रहे,नेताओं के उन्मादी बयान आ रहे पूरे मामले को मुस्लिम धर्म पर चोट बताया जाने लगा है कई जगहों से हिंसा की खबरें भी सामने आई,जिसके बाद यह सवाल उठना लाज़िम है कि " *हिजाब विवाद: धार्मिक स्वतंत्रता पर अवरोध या पॉलिटिकल माइलेज के लिए देश को बदनाम करने वाली डर्टी पॉलिटिक्स"* हालाँकि कर्नाटक में विवाद बढ़ता देख राज्य सरकार ने 5 फरवरी को कर्नाटक एजुकेशन एक्ट 1983 की धारा 133(2) को लागू कर दिया है। इसके मुताबिक, सभी छात्र-छात्राओं को तय ड्रेस कोड पहनकर ही आना होगा. आदेश के मुताबिक, सभी सरकारी स्कूलों में तय ड्रेस कोड का पालन करना होगा. वहीं, निजी स्कूलों के स्टूडेंट्स को भी तय यूनिफॉर्म ही पहनकर आनी होगी. आदेश में ये भी कहा गया है कि अगर किसी स्कूल या कॉलेज में कोई ड्रेस कोड नहीं है तो स्टूडेंट्स ऐसे कपड़े पहनकर नहीं आ सकते जिससे सामुदायिक सौहार्द्र, समानता और शांति व्यवस्था को खतरा हो.
इस कानून को लागू किए जाने के बाद तो बवाल और बढ़ गया देश के एक धड़े ने इसे असंवैधानिक बताते हुए संविधान के अनुच्छेद "25" जिसमें "धार्मिक स्वतंत्रता के अंतर्गत अंतःकरण की स्वतंत्रता निहित है" का उल्लंघन तक करार दे दिया लेकिन शायद वो लोग ये भूल गए कि प्रत्येक मौलिक अधिकारों पर युक्तियुक्त प्रतिबंध आरोपित हैं। देश के प्रत्येक धर्म को मानने वाले लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता है आप अपने घर में, या अपने धार्मिक स्थलों पर उसका उसका पालन करें लेकिन देश के संस्थानों में तो संविधान के अनुरूप ही चलना पड़ेगा।
पूरे मामले को ऐसे समझें – देश में न्यायालय है, न्यायालय के अधिवक्ताओं का ड्रेस कोड होता है,लेकिन कल कोई महिला ये कहे कि मेरे धर्म में बुर्का पहनना,हिजाब पहनना,अनिवार्य है इसलिए मैं इसी ड्रेस में न्यायालय आऊंगी तो क्या यह स्वीकार्य किया जाएगा। बस कुछ ऐसा ही यह मामला है जहाँ क्लास रूम में हिजाब पहनने पर पाबंदी है उसके अलावा कैम्पस के बाहर या अन्यत्र कहीं भी इस पर कोई भी रोक नहीं है। लेकिन इसे प्रचारित ऐसे किया जा रहा है जैसे सरकार मुस्लिम धर्म के लोगों की धार्मिक आजादी पर पाबन्दी लगाने का प्रयास कर रही है।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।
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