आर.के. सिन्हा
अयोध्या में श्री रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण के मसले पर सदियों से विवाद चला आ रहा था। यह तो सब जानते ही हैं। लेकिन यह बात कम ही लोग जानते हैं कि राम मंदिर-बाबरी ढांचा मसले पर उच्चतम न्यायालय में जब सुनवाई शुरू हुई तो प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से कोशिशें होती रहीं कि इस विवाद पर फैसला किसी तरह से टल जाए। यानी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण हो ही नहीं, या फिर इस मामले में विलंब होता रहे। अब, जब अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के काम का श्रीगणेश हो चुका है, तो यह सनसनीखेज रहस्योद्घाटन हो रहा है कि राम मंदिर का निर्माण कुछ तत्वों को पसंद नहीं था। यह खुलासा खुद उस न्यायमूर्ति ने किया है, जो राम मंदिर-बाबरी ढांचा विवाद की सुनवाई कर रही उच्चतम न्यायालय की पीठ के सदस्य होने के साथ-साथ देश की सर्वोच्य अदालत के मुख्य न्यायाधीश भी थे। हम बात कर रहे हैं देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की।
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जब राम मंदिर विवाद पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई चल रही थी, तब मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर उनकी पूर्व कनिष्ठ सहायिका ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगा दिए। ऐसा इसलिए हुआ या करवाया गया ताकि किसी तरह से इस मामले को लटकाया जा सके। यौन उत्पीड़न के आरोप पर न्यायमूर्ति रंजन गोगोई का कहना था कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता गंभीर खतरे में है और यह न्यायपालिका को अस्थिर करने की एक 'बड़ी साजिश' है
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न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की हाल ही में एक किताब छप कर आई है। इसका नाम है ‘जस्टिस फॉर जज।’ इसमें गोगोई बहुत ही साफगोई और निर्भीकता से बताते हैं कि राम जन्मभूमि मामले में मुसलमानों के पक्ष के वकील राजीव धवन बार-बार बेतुकी मांगें करते रहे ताकि केस की सुनवाई किसी भी बहाने टलती रहे। उनका मकसद यह था कि कम से कम न्यायमूर्ति रंजन गोगोई के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद पर रहते हुए इस मसले का कोई फैसला ना आए। जब वे सेवानिवृत्त हो जाएंगे, तब अगले से कैसे निबटा जाए, यह तय किया जाएगा।
प्रतिदिन सुनवाई टालने के लिए बहाने
पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने यह घोषणा कर दी थी कि उच्चतम न्यायालय राम जन्मभूमि विवाद के मामले की हर हफ्ते सोमवार से शुक्रवार तक सुनवाई करेगा। इस फैसले से यह साफ हो गया था कि उच्चतम न्यायालय इस संवेदनशील मामले का फैसला नवंबर 2019 के दूसरे हफ्ते से पहले देना चाहता है। मतलब मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के 17 नवंबर, 2019 को सेवानिवृत्त होने से पहले इस मामले में फैसला देश के सामने आना था। न्यायमूर्ति गोगोई के फैसले का यह भी अर्थ था कि रोजाना सुनवाई करने से उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ के पास 48 दिन का कार्य समय होगा। यह समय पर्याप्त भी था, क्योंकि इस मामले में एक पक्ष निर्मोही अखाड़ा अपनी बहस पूरी कर चुका था। उच्चतम न्यायालय ने भी साफ कर दिया था कि सभी पक्षों की बहस पूरी होने के बाद उन्हें एक और मौका प्रत्युत्तर के लिए मिलेगा।
देखा जाए तो इस फैसले से मामले के सभी पक्षकारों को खुश होना चाहिए था कि चलो, एक लटके हुए मामले में फैसला आ रहा है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राजीव धवन पहले से ही कहने लगे कि वे लगातार पांच दिनों तक जिरह नहीं कर सकेंगे। उन्हें बीच में अवकाश चाहिए। तब उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि वह बुधवार को अवकाश ले सकते हैं। पर उस दिन उनके बदले कोई अन्य वकील आकर जिरह करेगा। उच्चतम न्यायालय हर हालत में तय समय में सुनवाई पूरी करना चाहता था। इसी के चलते उसने अपने रोज के कामकाज के समय को पहले शाम चार बजे और फिर शाम 5 बजे तक के लिए बढ़ा दिया था। हालांकि उच्चतम न्यायालय का काम दिन में आमतौर पर तीन बजे तक समाप्त हो जाता है।
निर्णय को बाधित करने की साजिश
एक बात और। इस तथ्य से सारा देश परिचित है कि जब राम मंदिर विवाद पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई चल रही थी, तब मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर उनकी पूर्व कनिष्ठ सहायिका ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगा दिए। ऐसा इसलिए हुआ या करवाया गया ताकि किसी तरह से इस मामले को लटकाया जा सके। यौन उत्पीड़न के आरोप पर न्यायमूर्ति रंजन गोगोई का कहना था कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता गंभीर खतरे में है और यह न्यायपालिका को अस्थिर करने की एक 'बड़ी साजिश' है। कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला के पीछे कुछ बड़ी ताकतें थीं। कुछ इसे मोटी रकम का खेल भी बताते हैं। आरोप लगाने वाली महिला ने उच्चतम न्यायालय के सभी 22 जजों को एक चिट्ठी भेजी थी, जिसमें न्यायमूर्ति गोगोई पर यौन उत्पीड़न करने, इसके लिए राजी न होने पर नौकरी से हटाने और बाद में उन्हें और उनके परिवार को तरह-तरह से प्रताड़ित करने के आरोप लगाए गए थे। ये सब राम जन्मभूमि विवाद पर फैसले को प्रभावित करने के लिए ही तो हो रहा था।
बहरहाल, 6 अगस्त से 16 अक्तूबर, 2019 तक इस मामले पर 40 दिन सुनवाई के बाद उच्चतम न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। 9 नवंबर, 2019 को उच्चतम न्यायालय ने एक लंबी सुनवाई के बाद अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद पर फैसला सुनाया। 100 साल से ज्यादा समय से चले रहे इस विवाद को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अगुआई में संवैधानिक पीठ ने यह सर्व सम्मत फैसला सुनाया कि विवादित जमीन पर हक हिंदुओं का है। इस तरह देश के इतिहास के सबसे अहम और पांच सदी से ज्यादा पुराने विवाद का अंत हुआ। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुआई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया। इसके तहत अयोध्या की 2.77 एकड़ की पूरी विवादित जमीन राम मंदिर निर्माण के लिए दे दी गई। जानने वाले जानते हैं कि कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व और मात्र कुछ खैरख्वाहों की तरफ से हर संभव कोशिशें होती रहीं कि अदालत का फैसला न आए। इसलिए उच्चतम न्यायालय की कार्यवाही में लगातार व्यवधान डाला जाता रहा।
कांग्रेस के नेता अब दे रहे हिंदुत्व पर ज्ञान
अब उसी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी हिंदू और हिंदुत्व पर ज्ञान दे रहे हैं। देश चाहता है कि अगर वे हिंदू हैं, तो वे इस बात के सबूत तो दें। क्या उनकी माता सोनिया जी ने उनके पिता के कन्वर्जन और नाम परिवर्तन के बाद ही ईसाई रीति से विवाह नहीं किया था? अगर उनके खानदान के लोगों ने हिंदुओं का कोई तीज-त्योहार मनाया हो तो वह बताएं। राहुल गांधी हिंदुओं में विभाजन करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। वे बताएं कि क्या वे अयोध्या में कभी राम मंदिर का दर्शन करने के लिए भी जाएंगे? राहुल गांधी यह जान लें कि जो हिंदू हैं, वे ही हिंदुत्ववादी हैं। जिसके माता-पिता ही हिंदू नहीं, वह कैसे हिंदू हो गया? क्या कांग्रेस ने राम मंदिर का निर्माण कराया? या मंदिर निर्माण में कोई सहयोग किया? यदि नहीं तो उन्हें हिंदू और हिंदुत्व पर बात करने का हक ही क्या है।
(लेखक स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)
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