पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब किये जा रहे निर्माण कार्यों की तर्ज पर अब पाकिस्तान ने भी जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में पड़ने वाले टीथवाल सेक्टर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के नजदीक अवैध तरीके से सड़क का निर्माण शुरू किया है। एलओसी प्रोटोकॉल का उल्लंघन करके किये जा रहे इस निर्माण कार्य पर भारतीय सेना की चिनार कॉर्प्स ने आपत्ति जताते हुए पाकिस्तान को चेतावनी दी है। भारतीय नागरिक भी पिछले तीन दिनों से लगातार लाउडस्पीकर के जरिये सड़क का निर्माण रोकने की चेतावनी दे रहे हैं, लेकिन सड़क का निर्माण बदस्तूर है।
नियंत्रण रेखा पर भारतीय बाड़ और जीरो लाइन के बीच कई गांव हैं। पाकिस्तान ने सीमा पर बाड़ नहीं बनाई है, लेकिन उसके क्षेत्र में भी कई गांव जीरो लाइन के पास हैं। जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में पड़ने वाले टीथवाल सेक्टर में 13 गांव भारतीय बाड़ के सामने हैं। भारतीय सीमा पर बाड़ और जीरो लाइन के बीच की कुल संख्या 60 गांव होने का अनुमान है। राजौरी से बांदीपोरा तक नियंत्रण रेखा से सटे जिलों में कम से कम 10 लाख लोगों की आबादी है। 2005 में कश्मीर में आए भूकंप के बाद पाकिस्तान और भारत ने आधिकारिक तौर पर पांच क्रॉसिंग पॉइंट नौसेरी-टीथवाल, चकोटी-उरी, हाजीपुर-उरी, रावलकोट-पुंछ और तत्तापानी-मेंढर नामित किए। इसके अलावा 2011 में एक अध्यादेश पारित करके व्यापारिक गतिविधियों के लिए चकोठी-सलामाबाद और रावलकोट (टिट्रिनोट)-पुंछ (चक्कन-दा-बाग) बॉर्डर तय किये गए। जम्मू और कश्मीर क्रॉस एलओसी ट्रैवल एंड ट्रेड अथॉरिटी एक्ट, 2016 के अनुसार रावलकोट-पुंछ, चकोठी-उरीक, चिलियाना-टीथवाल, तत्ता पानी-मेंढर, हाजी पीर–सिली कोट क्रॉसिंग पॉइंट सूचीबद्ध किये गए हैं। भारतीय और पाकिस्तानी सेना इन क्रॉसिंग पॉइंट्स का उपयोग फ्लैग मीटिंग और विशेष अवसरों और त्योहारों के दौरान मिठाइयों के आदान-प्रदान के लिए करते हैं। इसमें टीथवाल क्रॉसिंग मुजफ्फराबाद और कुपवाड़ा के बीच नीलम नदी के पार है। यह आमतौर पर केवल गर्मियों के महीनों के दौरान खुली रहती है। अन्य दो क्रॉसिंग केवल लोगों की आवाजाही के लिए हैं। पहली बार 1931 में बना टीथवाल पुल का दो बार पुनर्निर्माण किया गया है।
समझौते के बाद एलओसी पार से गोलीबारी कम हुई
नियंत्रण रेखा ने कश्मीर को दो भागों में विभाजित करके झेलम घाटी मार्ग को बंद कर दिया, जो पाकिस्तानी पंजाब से कश्मीर घाटी के अंदर और बाहर जाने का एकमात्र रास्ता था। इस क्षेत्रीय विभाजन ने कई गांवों को अलग कर दिया और परिवार के सदस्यों को अलग कर दिया। कुछ परिवार एलओसी पर नीलम नदी जैसे स्थानों पर एक-दूसरे को देख सकते थे, लेकिन मिल नहीं पा रहे थे। नियंत्रण रेखा के आसपास कुछ गांवों की महिलाओं ने पाकिस्तान की ओर से होने वाली घुसपैठ और संघर्ष विराम उल्लंघन रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने पाकिस्तानी सेना के शिविरों से संपर्क करके घुसपैठ रोकने पर जोर दिया। भारत से इसी साल फरवरी में हुए एक समझौते के बाद एलओसी पार से गोलीबारी कम हुई है।
घुसपैठ की संख्या में काफी कमी आई
भारतीय सेना के मुताबिक इस साल सीमा पार से होने वाली घुसपैठ की संख्या में काफी कमी आई है। घुसपैठ करने का प्रयास करने वाले आतंकवादियों को भारतीय सुरक्षा बलों की मुठभेड़ में मार गिराया गया है। इस साल अधिक संख्या में घुसपैठ कराने में नाकाम रहने पर बौखलाए पाकिस्तान ने अब टीथवाल सेक्टर एलओसी से 500 मीटर से भी कम दूरी पर पीओके के अपने गांव चिलियान में भौगोलिक स्थान 34°23'20.03"उत्तरी अक्षांश एवं 73°46'3.90"पूर्वी देशांतर पर अवैध तरीके से सड़क का निर्माण शुरू किया है। पाकिस्तान ने इसके साथ ही एलओसी के नजदीक रिटेनिंग वॉल का कुछ निर्माण शुरू कर दिया है। स्पष्ट रूप से एलओसी प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने पर भारतीय सेना की चिनार कॉर्प्स ने पाकिस्तान को निर्माण कार्य रोकने की चेतावनी दी है।
कश्मीर घाटी में सैन्य अभियानों के लिए 15वीं कॉर्प्स पूरी तरह है जिम्मेदार
भारतीय सेना की 15वीं कॉर्प्स को चिनार कॉर्प्स के रूप में भी जाना जाता है। यह कॉर्प्स वर्तमान में श्रीनगर में स्थित है और कश्मीर घाटी में सैन्य अभियानों के लिए जिम्मेदार है। इसने अब तक पाकिस्तान और चीन के साथ सभी सैन्य संघर्षों में भाग लिया है। भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद 1948 में भारतीय सेना के हिस्से के रूप में इसका गठन किया गया था। 1955 में उधमपुर में मुख्यालय बनाकर 15वीं कॉर्प्स के रूप में कई नाम बदले गए। जून, 1972 में जम्मू और कश्मीर के परिचालन नियंत्रण को संभालने के लिए मुख्यालय उत्तरी कमान की स्थापना की गई थी। ऑपरेशन कारगिल विजय के बाद 15वीं कॉर्प्स को कश्मीर घाटी में सैन्य अभियानों के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार बनाया गया है।
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