डॉ चित्तरंजन कुमार
भगवान् शिव देव, दानव और मानव तीनों के आराध्य हैं। वे सर्वस्वीकृत हैं। उनकी उपासना करके रावण सोने की लंका प्राप्त करता है। रामेश्वरम में उन्हीं शिव की आराधना करने के लिए श्रीराम रेत का शिवलिंग बनाते हैं और रावण पर विजय प्राप्त करते हैं। दुख के वक्त आम आदमी भोले भंडारी को याद करता है। श्मशान में विराजने वाले शिव जीवन देने वाले महामृत्युंजय मंत्र के आधार स्तंभ हैं। उनके शरीर पर सिर्फ राख है, फिर भी उनकी मस्ती में कोई कमी नहीं है। विवाह तक में उनके बाराती और साथी भूत-पिशाच हैं। उनके पास अपना कुछ नहीं है। वे साधारण दिखते हैं पर असाधारण हैं। कवियों और देवताओं को लुभाने वाला चंद्रमा उनके मस्तक पर युगों-युगों से टंगा हुआ है। वे चंद्रशेखर हैं। मृत्यु के वक्त जिस गंगा जल की एक-एक बूंद के लिए हर आदमी तरसता है, वह कलकल करके उनके मस्तक से सहज प्रवाहित होती हैं- ‘स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसभदाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा।’
सभी देवों के दो नेत्र हैं, शिव के तीन। बाकी देव हैं, शिव महादेव हैं। करुणामय इतने कि पल में सोने की लंका दान में दे दी। क्रोध इतना कि अपने पुत्र का ही सिर काट लिया। गुस्सैल इतने कि जरा सी बात पर कामदेव को ही भस्म कर दिया। प्रेमी ऐसे कि मृत पत्नी सती की देह को कंधे पर लिये-फिरते रहे। नादान इतने कि भस्मासुर को बिना सोचे-समझे मुंहमांगा वरदान दे दिया, फिर उसी से बचने के लिए भागने लगे। गुणी इतने कि बड़े-बड़े कालवंत, संगीतज्ञ और स्वर सम्राट नटराज की प्रतिमा के आगे शीश नवाते हैं। अवधी में राम कथा लिखने वाले तुलसीदास मौका मिलते ही शिव का वर्णन करने के लिए रुद्राष्टकम रच कर संस्कृत भाषा का चमत्कार दिखाते हैं। जब तुलसी लिखते हैं :-
कलातीतकल्याण कल्पान्तकारीसदा सज्जनानन्ददाता पुरारी॥
चिदानन्दसंदोह मोहापहारीप्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥
तो ऐसा लगता है जैसे अनुप्रास, रूपक, यमक आदि अलंकार हाथ जोड़े शिव की शोभा में खड़े हैं।
सारे देवताओं के हिस्से अमृत आया, शिव के हिस्से विष। वे विष खुद ले लेते हैं, औरों में अमृत बांट देते हैं। वे हलाहल पीकर भी आनंद और मस्ती के देवता बने हुए हैं। हिंदुस्थान के उल्लास का सबसे बड़ा पर्व उनसे ही जुड़ा है। होली में सब शिवमय हो जाता है। बम-बम भोले आज भी मस्ती का पर्याय है। जो वेद नहीं जानता, तप नहीं जानता, पूजा-पद्धति नहीं जानता, वह सिर्फ शिव का नाम जपकर मुक्त हो सकता है। तुलसी याद आते हैं-
‘न जानामि योगं जपं नैव पूजां।
नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं॥’
शिव जी की सरलता
माता पार्वती ऐसे ही भोले-भाले शिव पर आसक्त हैं। कभी-कभी सोचता हूं कि किस कारण से माता पार्वती शिव के प्रति इतनी आसक्त हुई होंगी। जिसके कुल-खानदान का पता नहीं, जिसका कोई घर नहीं, जो बैल की सवारी करता हो, भस्म लपेटे घूमता हो, जिसके खाने में भांग-धतूरा शामिल हो, जिसके बाल बढ़कर जटा बन गए हों, उसपर कोई युवती भला क्यों मोहित होगी! पर सारे धार्मिक ग्रंथों से लेकर कालिदास तक बताते हैं कि वे उन पर बेहद रीझी हुई हैं। शिव को पाने के लिए माता पार्वती ने भोजन छोड़ दिया। जंगल में भोजन मिलता भी कहां। उन्होंने पत्ते खा-खा कर तप किया। कई बार उन्हें पते भी नहीं मिलते। इसी कारण पार्वती का एक नाम परणा है तो दूसरा नाम अपर्णा है। हास्य भाव से सोचता हूं कि दूल्हा बने शिव के गले में माता पार्वती ने विवाह के वक्त वरमाला कैसे डाली होगी। वहां तो एक नाग पहले से ही फूं-फूं करता लिपटा है। भस्म लपेटे और बैल पर बैठे द्वार पूजा के लिए आए दूल्हे को देखकर सास-श्वसुर ने क्या सोचा होगा। जरा आप भी सोचिएगा भोले भंडारी के लिए पार्वती ने इतना कठिन तप क्यों किया होगा? वस्तुत: शिव कुछ नहीं छिपाते, कुछ बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बताते। वे जैसे हैं, जो हैं, वैसे ही सामने आते हैं। शायद यही भोलापन हर लड़की अपने जीवनसाथी से चाहती है। श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, कृष्ण पूर्णावतार हैं, पर हिन्दू युवतियों को पति चाहिए शिव जैसा समर्पित, अद्वितीय प्रेमी।
हिन्दू जीवन पद्धति जितनी सरल है,उतनी ही विरल भी। जितनी आसान है, उतनी ही कठिन भी। सरल इस मायने में कि किसी पत्थर पर प्रेम से जल चढ़ा दीजिए, पूजा हो गई। विरल इस मामले में कि द्वैतवाद, अद्वैतवाद, द्वैताद्वैत आदि के चक्कर में पड़ेंगे तो जीवन गुजर जाएगा, धर्म के मूल तक पहुंच नहीं पाएंगे।
खामोश रहा पर भूला नहीं हिंदू
सदियों तक हिन्दू जीवन पद्धति और पूजा पद्धति पर विदेशी आक्रांताओं के अनगिनत हमले हुए। सोमनाथ से लेकर विश्वनाथ तक न जाने कितने मंदिर तोड़े गए। हिन्दू आस्था को तार-तार करने की कोशिशें की गईं। पर हिन्दू हटे नहीं। मिटे नहीं। विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी डटे रहे।
सोमनाथ मंदिर का विध्वंस करने वाले महमूद गजनवी ने मंदिर की तोड़ी गई मूर्तियों को अफगानिस्तान की जामा मस्जिद की सीढ़ियों में लगवाया। हिन्दू चुप रहे, देखते रहे। पर अपमान का दंश भूले नहीं। सन् 1008 से लेकर 1011 तक के कालखंड का चित्रण करते हुए गजनवी के समकालीन इतिहासकार उतवी ने अपनी किताब ‘तारीखे यामिनी’ में लिखा, ‘नदी का रंग काफिरों के खून से लाल हो गया था।’ महमूद गजनवी अकेला नहीं था, मुहम्मद गोरी, तैमूर से लेकर बाबर और औरंगजेब तक ने यही सब किया। मुहम्मद गोरी के समकालीन इतिहासकार हसन निजामी ने लिखा कि गोरी ने बडेÞ पैमाने पर मूर्ति पूजकों की हत्या की। वामपंथी इतिहासकार भले इन सब पर पैबंद लगाएं पर कोटि-कोटि जनता के मन को आज भी ये बर्बर घटनाएं आहत करती हैं। सदियों तक हिन्दू मन व्यथित रहा, चुप रहा, पर कुछ भूला नहीं।
औरंगजेब है तो शिवाजी भी हैं
काशी विश्वनाथ मंदिर ने विदेशी आक्रांताओं की क्रूरता और विध्वंस का दंश झेला है। आज से तकरीबन 400 साल पहले जो मंदिर औरंगजेब की क्रूरता से छिन्न-भिन्न हो गया था, अब वह नया रूप लेकर गगन मंडल में जगमगा रहा है। 13 दिसंबर, 2021 को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा विश्वनाथ मंदिर तीर्थ धाम का लोकार्पण होते ही महाराजा रणजीत सिंह और इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर का पुण्य स्मरण हो आया। ढाई सौ साल पहले महारानी अहिल्याबाई ने विश्वनाथ मंदिर के संकरे परिवेश को विस्तार देने का अथक प्रयास किया था। महाराजा रणजीत सिंह ने 1000 सेर सोना देकर इसके शिखरों को सोने से मढ़वा दिया था। बावजूद इसके मंदिर का परिवेश संकीर्ण था। लोकार्पण के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी का यह कहना काफी महत्वपूर्ण है कि ‘अगर औरंगजेब है तो शिवाजी भी हैं।’ जब पहली बार महात्मा गांधी काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचे तो इसके आसपास की स्थिति को देखकर उनका मन भी खिन्न हो उठा था। अपनी आत्मकथा ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ में गांधी जी ने विस्तार से इसका वर्णन किया है। गांधी जी लिखते हैं- ‘मैं ज्ञानवापी के पास गया। मैंने वहां ईश्वर को ढूंढा, पर वह नहीं मिला। इससे मन में कुढ़ रहा था। ज्ञानवापी के पास भी गंदगी मिली। कुछ दक्षिणा चढ़ाने की श्रद्धा नहीं थी। इससे मैंने तो सचमुच ही एक पाई चढ़ाई।’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी धन्यवाद के पात्र हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर का जो परिसर पहले 5,000 वर्ग फुट में सिमटा था, आज उसका दायरा बढ़कर 5,25,000 वर्ग फुट से भी ज्यादा हो गया।
पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी जब राम रथ यात्रा लेकर सोमनाथ से चले थे तब कुछ लोग उनपर हंसते थे। आज उनके उत्तराधिकारी विश्वनाथ तक पहुंच गए। सोमनाथ, अयोध्या और आज विश्वनाथ। हिन्दू एकता के कारण ही सदियों से असंभव लगने वाले ये सारे कार्य आज सम्पन्न हुए। सोमनाथ से विश्वनाथ तक बार-बार हिंदू आस्था पर चोट करने की कोशिश की गई। पर बार-बार हिंदू उठ खड़े हुए। मुस्लिम आक्रांताओं ने विध्वंस किया, हमने निर्माण किया। विध्वंस सरल है। एक सड़ी हुई कील और माचिस की तीली भी विध्वंस कर सकती है पर निर्माण बहुत कठिन है। हमने नवनिर्माण करके विध्वंस के सारे दाग धो दिए। विश्वनाथ मंदिर धाम के लोकार्पण का दिन बहुत शुभ है। सबको बधाई। धर्मो रक्षति रक्षित:। हम धर्म की रक्षा करें, धर्म स्वत: हमारी रक्षा करेगा।
(लेखक इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)
टिप्पणियाँ