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राजनीति से पहले राष्ट्रीय सुरक्षा

WEB DESK by WEB DESK
Nov 25, 2021, 12:32 pm IST
in भारत, दिल्ली
देश की रक्षा में सतत सन्नद्ध सीमा सुरक्षा बल के जवान (फाइल चित्र)

देश की रक्षा में सतत सन्नद्ध सीमा सुरक्षा बल के जवान (फाइल चित्र)

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केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से सीमा सुरक्षा बल के अधिकार क्षेत्र में किए गए सकारात्मक सुधार को पंजाब और प. बंगाल की सरकारों द्वारा राजनीतिक चश्मे से देखा जाना निंदनीय है। देश की एकता-अखंडता और स्वाभिमान से जुड़े विषयों को राजनीति से इतर राष्टÑ के वृहत हित के परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए

 प्रो. रसाल सिंह

पंजाब की तर्ज पर पश्चिम बंगाल विधानसभा ने पिछले दिनों एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार की सीमा सुरक्षा बल के क्षेत्राधिकार बढ़ाने संबंधी अधिसूचना को खारिज कर दिया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर उपरोक्त अधिसूचना को वापस लेने की मांग की। उन्होंने स्पष्ट किया कि ऐसा न होने पर उनकी सरकार स्वयं उसे खारिज कर देगी।

ध्यान रहे कि पिछले दिनों पंजाब विधानसभा ने भी एक प्रस्ताव पारित करके 11 अक्तूूबर, 2021 को केन्द्र्रीय गृह मंत्रालय द्वारा इस संदर्भ में जारी अधिसूचना को खारिज कर दिया था। इस अधिसूचना द्वारा सीमावर्ती राज्यों-पंजाब, राजस्थान, गुजरात, असम, पश्चिम बंगाल-में सीमा सुरक्षा बल के क्षेत्राधिकार को एक समान किया गया है। पंजाब और पश्चिम बंगाल की सरकारों द्वारा अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए किया गया यह विरोध रााष्ट्रीय सुरक्षा से समझौते और केंद्र-राज्य संबंधों को तनावपूर्ण बनाने का ही उदाहरण है। विडम्बना ही है कि इन दोनों राज्य सरकारों ने कानून-व्यवस्था को राज्य सूची का विषय बताकर केंद्र्र्र सरकार के इस निर्णय को ‘संघीय ढांचे पर चोट’ बताया है।

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केंद्र सरकार ने अधिसूचना के जरिए सीमा सुरक्षा बल के क्षेत्राधिकार में एकरूपता स्थापित की है। पंजाब, असम, पश्चिम बंगाल, गुजरात और राजस्थान में सीमा सुरक्षा बल के क्षेत्राधिकार को 50 किमी. तक करते हुए एक समान किया गया है; जबकि जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्व के राज्यों में उसे यथावत रखा गया है

ध्यान रहे, 2011 में तत्कालीन संप्रग सरकार में गृह मंत्री पी. चिदम्बरम ने इस आशय का विधेयक संसद में रखा था। क्या तब कांग्रेस पार्टी को यह सुध नहीं थी कि यह विषय राज्य-सूची में है और केंद्र द्वारा ऐसा कोई कदम उठाना ‘संघीय ढांचे को क्षतिग्रस्त’ करेगा! विचारणीय है कि सीमा सुरक्षा बल अधिनियम-1969 को तत्कालीन इंदिरा सरकार ने लागू किया था। क्या तब संघीय ढांचे को ठेस नहीं पहुंची थी? दरअसल, तात्कालिक लाभ के लिए किये जा रहे इस विरोध से मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का छद्म चरित्र उजागर होता है। यह अकारण नहीं है कि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस जैसे विपक्षी दल और उनकी सरकारें ही केंद्र सरकार के इस निर्णय का मुखर विरोध कर रही हैं। विधान सभा में इस प्रकार का प्रस्ताव पारित करना लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं, व्यवस्थाओं और संस्थाओं का दुरुपयोग है। यह अत्यंत दु:खद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य विधायिका और कार्यपालिका केेंद्रीय विधायिका और कार्यपालिका से टकराव पर उतारू हैं।

यह अधिसूचना जारी करने से पहले केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संबंधित राज्य सरकारों से इस विषय पर चर्चा की थी। इसलिए मुख्यमंत्री चन्नी शुरू में खामोश थे। जब आम आदमी पार्टी और अकाली दल जैसे विपक्षी दलों ने उन पर ‘आधे से अधिक पंजाब को मोदी सरकार को देने’और ‘पंजाब के हितों को गिरवी रखने’ जैसे आरोप लगाये, तब उन्होंने इस मुद्दे के ‘राजनीतिकरण’ से घबराकर सर्वदलीय बैठक की और विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर इस अधिसूचना को खारिज करने की चाल चली। पंजाब में इस मुद्दे के राजनीतिकरण का एक कारण उसका ‘आंतरिक सत्ता-संघर्ष’ भी है।

 उधर ममता बनर्जी भला मोदी विरोध का अवसर हाथ से कैसे जाने दे सकती थीं! कांग्रेसियों की देखादेखी वे भी सक्रिय हो गयीं। इससे पहले भी वे एकाधिक अवसरों पर केंद्र सरकार से टकरा चुकी हैं। विधानसभा चुनाव में जीत के बाद तृणमूल कांग्रेस के कारिंदों ने विपक्षी दलों, खासतौर पर भाजपा के कार्यकर्ताओं पर जबर्दस्त हिंसा का कहर बरपाया। सरकार के इशारे पर पुलिस भी तमाशबीन बनी रही।

जब केंद्र ने बंगाल में राजनीतिक हिंसा की सीबीआई जांच की पहल की तो राज्य सरकार ने उस जांच की सामान्य सहमति को खारिज कर दिया। उसकी देखादेखी राजस्थान, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, झारखंड, पंजाब आदि विपक्ष शासित राज्यों ने भी ऐसा ही किया। इसी तरह ममता सरकार ने पेगेसस जासूसी प्रकरण की एकतरफा न्यायिक जांच शुरू करा दी। गौरतलब है कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और ईमानदार पुलिस अधिकारी रहे सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक प्रकाश सिंह ने इस अधिसूचना को आवश्यक और अपरिहार्य कदम बताते हुए विपक्षी दलों द्वारा इसके विरोध को राष्ट्रीय सुरक्षा पर राजनीति करना कहा है।

चौतरफा खतरे और सुरक्षा चिंता
पिछले लगभग दो दशक से भारत में नशाखोरी बढ़ती जा रही है। पंजाब के युवा सबसे बड़ी संख्या में इसकी गिरफ़्त में हैं। ‘उड़ता पंजाब’ जैसी फिल्मों में इस समस्या की भयावहता दर्शायी गयी है। पड़ोसी देश पाकिस्तान और अफगानिस्तान से मादक पदार्थों की तस्करी इसकी बड़ी वजह है। पंजाब तस्करी का सबसे सुगम रास्ता रहा है। हालांकि, जम्मू-कश्मीर, गुजरात, राजस्थान आदि प्रदेश भी ‘रिस्क जोन’ में हैं। 

संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 और 35 ए को निष्प्रभावी किये जाने से जम्मू-कश्मीर का पूर्ण विलय सम्पन्न हो गया है। भारत सरकार की इस निर्णायक पहल से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। अफगानिस्तान में मध्यकालीन मानसिकता वाले तालिबान लड़ाकों के सत्ता कब्जाने से उसके हौसले बुलन्द हैं। पाकिस्तान और तालिबान की निकटता जगजाहिर है।

पाकिस्तान ने मरणासन्न आतंकवाद को फिर से जिलाने के लिए अपनी रणनीति में बदलाव किया है। अब वह सुरक्षा बलों की जगह सामान्य (प्रवासी) नागरिकों  की लक्षित हत्या  द्वारा दहशतगर्दी और अस्थिरता फैलाना चाहता है। इस लक्ष्य को अंजाम देने के लिए उसने मादक पदार्थों, हथियारों और नकली नोटों की तस्करी बढ़ा दी है। तस्करी के लिए वह 50 किमी. तक की क्षमता वाले ड्रोन का प्रयोग कर रहा है।

ये ड्रोन अत्यंत विकसित और अधुनातन चीनी तकनीक से लैस हैं। मादक पदार्थों, हथियारों और नकली नोटों की पाकिस्तान संचालित तस्करी को रोका जाना अत्यंत आवश्यक है। यह तस्करी देश की युवा पीढ़ी के भविष्य और राष्ट्रीय एकता-अखंडता के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। पश्चिम बंगाल और असम जैसे प्रदेशों में म्यांमार और बांग्लादेश से भारी तादाद में घुसपैठ की घटनाएं होती हैं। तस्करी और घुसपैठ को अनेक नेताओं और कई राज्य सरकारों का संरक्षण मिलता रहा है।

पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने विधानसभा में पूर्व वित्त मंत्री बिक्रमजीत सिंह मजीठिया को तस्करों का सरगना अकारण नहीं बताया। पुलिस राज्य सरकार के अधीन होती है इसलिए सीमा पर होने वाली अवैध गतिविधियों को रोकने में उसे राजनीतिक हस्तक्षेप का सामना करना पड़ता है। राजनीतिक संरक्षण में देशी-विदेशी लोग खुला खेल खेलते हैं।  ऐसी स्थिति में सीमा सुरक्षा बल के क्षेत्राधिकार को बढ़ाया जाना अपरिहार्य था। 

केेंद्र सरकार ने अधिसूचना के जरिए सीमा सुरक्षा बल के क्षेत्राधिकार में एकरूपता भी स्थापित की है। पंजाब, असम, पश्चिम बंगाल, गुजरात और राजस्थान में सीमा सुरक्षा बल के क्षेत्राधिकार को 50 किमी तक करते हुए एक समान किया गया है; जबकि जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्व के राज्यों में उसे यथावत रखा गया है। विपक्षी दलों को राजनीतिक रोटियां सेंकने और वोट बैंक साधने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा पर समझौते और संविधान तथा संसद की अवमानना से बाज आना चाहिए। 

(लेखक जम्मू केन्द्रीय विश्वविद्यालय में अधिष्ठाता, छात्र कल्याण हैं)

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