उत्तराखंड में कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति सतह पर आ गयी है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के खिलाफ बने माहौल में कांग्रेस के राज्य प्रभारी देवेन्द्र यादव को यह कहना पड़ा कि हरीश रावत मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं हैं। कांग्रेस चुनाव परिणामों के बाद तय करेगी कि विधायक दल का नेता कौन होगा। कांग्रेस चुनाव संचालन समिति का नेतृत्व कर रहे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के खिलाफ बीजेपी जब से हमलावर हुई है तब से कांग्रेस बैकफुट पर आ गयी है। कांग्रेस हाईकमान ने तय किया था कि मुख्यमंत्री पद के लिए कांग्रेस का कोई घोषित उम्मीदवार नहीं होगा। संभवतः ऐसा कांग्रेस की गुटबाजी समाप्त करने के उद्देश्य से किया गया, किंतु हरीश रावत पहले तो खामोश रहे फिर कहने लगे कि कोई दलित मुख्यमंत्री बन सकता है। उसके बाद वह यह बयान दे बैठे- केदारनाथ जाकर बाबा से सीएम बनने का आशीर्वाद ले आया हूं। उनके इस बयान से कांग्रेस में अन्य दावेदार भड़क गए। हरीश रावत यहीं नहीं रुके, वह कांग्रेस के टिकट बंटवारे में भी अपनी दिल्ली पहुंच की दुहाई देकर पार्टी के भीतर असंतोष पैदा करने लगे।
हरीश रावत के बयानों से खिन्न होकर कांग्रेस के बड़े नेताओं ने राज्य प्राभारी देवेंद्र यादव से शिकायत की। इसके बाद यादव को यह बयान देना पड़ा कि हरीश रावत मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं हैं, चुनाव के बाद कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना जाएगा। राजनीतिक समीक्षक मानते हैं कि हरीश रावत को लेकर कांग्रेस में गुटबाजी बहुत है। ब्राह्मण लॉबी हरीश रावत को नहीं चाहती। नारायण दत्त तिवारी, विजय बहुगुणा और इंदिरा ह्रदयेश को हरीश रावत से परेशानी रही है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष इस समय किशोर उपाध्याय भी हरीश रावत से नाराज बताए जा रहे हैं। बीजेपी नेताओं द्वारा उनके मुस्लिम परस्त होने के प्रचार से भी कांग्रेस बैकफुट पर दिखाई देती है। खबर यह भी है कि हरीश रावत शायद चुनाव न लड़ें और अपने समर्थक विधायकों के दम पर आगे की राजनीति करें।
उत्तराखंड में 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसके लिए चार महीने ही बाकी रह गए हैं। कांग्रेस इस उम्मीद में है कि एक बार बीजेपी एक बार कांग्रेस यहां सरकार बनाती आयी है, लिहाजा अगली सरकार उसकी बन सकती है। लेकिन, गुटबाजी में घिरी कांग्रेस की राह में हरीश रावत ही रोड़ा बन गए। हरीश रावत 2017 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री रहते हुए दो स्थानों पर विधानसभा चुनाव हार गए, जिसके बाद कांग्रेस ने प्रीतम सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। डॉ इंदिरा ह्रदयेश की मृत्यु के बाद कांग्रेस हाईकमान ने प्रीतम सिंह को नेता प्रतिपक्ष बना दिया और हरीश रावत को चुनाव संचालन समिति की बागडोर दे दी। इसी के बाद से कांग्रेस में गुटबाजी बढ़ती चली गयी। हर विधानसभा सीट पर कांग्रेस के तीन से चार धड़े बन गए हैं, जोकि अगले चुनाव में कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाने का काम करेंगे।
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