उत्तराखंड के हिमालय ग्लेशियरों और भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों पर उपग्रह के माध्यम से निगरानी की जाएगी। आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान ने इस बारे में करार किया है। प्रदेश में पिछले कई दशकों से आपदाएं आ रही हैं। बादल फटने, ग्लेशियरों के टूटने और पहाड़ो पर भूस्खलन होने से जान माल का बड़ा नुकसान हुआ है।
आपदा की इन घटनाओं के समय से पूर्व जानकारी मिल जाये इसके लिए सरकार ने उत्तराखंड में दो डाप्लर रडार भी लगाए हैं, जिससे भारी बारिश का अनुमान लगाया जाने लगा है। अक्टूबर माह में हुई भारी बारिश की पूर्व सूचना डाप्लर रडार और उपग्रह के माध्यम से मिल गयी थी। सटीक सूचना के आधार पर राज्य सरकार ने समय रहते एलर्ट मोड पर उचित प्रबंध भी कर लिए थे, जिससे जान माल की बड़ी हानि होने से बच गई। आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने आगे नियमित रूप से ग्लेशियरों की निगरानी करने के लिए भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान के साथ करार किया है। इस करार के तहत आईआईआरएस द्वारा यूएसडीएमए को उपग्रह निगरानी के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा और भविष्य में इसकी निगरानी रखने का काम प्रदेश स्तर पर किया जाएगा।
भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान के प्रमुख डॉ प्रकाश चौहान ने बताया कि हिमालय में ग्लेशियरों और उनकी झीलों में जलवायु परिवर्तन की वजह से बदलाव हो रहे हैं। उत्तराखंड स्तर पर इसकी अलग से निगरानी अब आगे हो सकेगी। साथ ही मौसमी बदलाव होने पर झील टूटने की पूर्व सूचना जैसे विषयों पर सटीक जानकारी से राज्य सरकार और यहां के जनमानस को सचेत किया जा सकेगा। आपदा प्रबंधन मंत्री डॉ धन सिंह रावत ने कहा कि ग्लेशियरों भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों और मौसम में बदलाव की जानकारी साझा होने पर आपदा के नुकसान को कम किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कश्मीर, हिमाचल, लद्दाख में भी ऐसी तकनीक से निगरानी हो रही है।
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