छद्म बौद्धिक फेमिनिस्ट से,
क्योंकि उनके दिमागों में भरी होती है विष्ठा, यौन कुंठा,
रात्रि में विकृत भावों से पी गयी मदिरा की गंदी हंसी!
सोनाली मिश्रा की फेसबुक वॉल से
एक साधारण स्त्री को बचकर रहना चाहिए,
छद्म बौद्धिक फेमिनिस्ट से,
क्योंकि उनके दिमागों में भरी होती है विष्ठा, यौन कुंठा,
रात्रि में विकृत भावों से पी गयी मदिरा की गंदी हंसी!
एक साधारण स्त्री को बचकर रहना चाहिए,
उन औरतों से,
जिनकी सुबह और शाम अमीर बॉयफ्रेंड या अमीर पतियों की गालियों से होती हैं,
वह उनके थप्पड़ों और मुक्कों के निशान को छिपाती हैं,
उन्हीं के दिए पैसे के महंगे मेकअप से!
वह परजीवी औरतें नहीं छोड़ती हैं पति या बॉयफ्रेंड को,
सुविधाओं और नाम के लालच में,
पर वह आ जाती हैं,
उन साधारण स्त्रियों का घर तोड़ने,
जिनकी दुनिया उनके बच्चों की निश्छल मुस्कान है!
जिनकी दुनिया में मित्रता का भाव पवित्र है!
एक साधारण स्त्री को बचकर रहना चाहिए,
उन झूठी औरतों की झूठी कविताओं से,
जिनमें उनका अधूरा यौन आचरण कुलांचें मारता है
और बार-बार काम को विकृत करता है!
वह अपने अधूरे और विकृत यौन आचरण से उपजी परिभाषाओं का प्रैक्टिकल करती हैं,
सच, साधारण स्त्रियों को हर उस मक्कार औरत बचकर रहना चाहिए,
जिनका जीवन वासना की गुफा में भटक रहा है,
और देह के ऊपरी आचरण और आवरण पर ही ठिठकी हैं जो,
जो अधूरी हैं,
और करना चाहती हैं सभी को अधूरा,
जिनमें हैं राक्षसी अट्टाहास
और इस राक्षसी अट्टाहास से वह भयाक्रांत करना चाहती हैं, समस्त निश्छल साधारण स्त्रियों को,
पर भूलती हैं अधूरा ‘वाद’ कभी सफल नहीं होता,
और न ही सफल होती है देह की खोखली गुफाएं,
जिनमें वे भटक रही हैं
हर साधारण स्वतंत्र स्त्री को यौनिक कनीजों से बचना चाहिए,
क्योंकि बदलना चाहती हैं,
समस्त स्वतंत्र सोच को सेक्स स्लेव में, जो वह खुद हैं!
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