धर्म, योग, अध्यात्म और शिक्षा के प्रसार के जरिये लोक कल्याण, गोरक्षपीठ की परंपरा रही है. पीठ के अधीन संचालित दर्जनों शैक्षिक प्रकल्पों की अपनी विशेष ख्याति है. 28 अगस्त को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद गुरु गोरखनाथ विश्वविद्यालय का लोकार्पण करेंगे. राष्ट्रपति, महायोगी गुरु गोरक्षनाथ उत्तर प्रदेश राज्य आयुष विश्वविद्यालय की नींव भी रखेंगे.
स्वतंत्रता और शिक्षा के आंदोलन से गोरखनाथ मंदिर का पुराना नाता रहा है. वर्ष 1885 में गोरक्षपीठ के महंत गोपाल नाथ जी थे. स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के कारण उनकी गिरफ्तारी हो गई. उन्हें छुड़ाने के लिए उनके शिष्य जोधपुर के राजा ने अंग्रेजों से बात की, लेकिन अंग्रेज नहीं माने. उसके बाद तत्कालीन नेपाल नरेश ने हस्तक्षेप किया. उस समय गोरखपुर में गोरखा रेजीमेंट थी. गोरखा रेजीमेंट ने ब्रिटिश हुकूमत को चेतावनी दी कि अगर उन्हें रिहा नहीं किया जाएगा तो विद्रोह कर देंगे. अंग्रेजों को विवश होकर गोपाल नाथ जी को रिहा करना पड़ा.
वर्ष 1922 में तत्कालीन महंत दिग्विजयनाथ जी को चौरीचौरा की घटना के लिए गिरफ्तार किया गया था. उच्च स्तर पर हस्तक्षेप के बाद उन्हें रिहा करना पड़ा था. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं वर्तमान पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ के दादा गुरु महंत दिग्विजयनाथ ने वर्ष 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद का गठन किया था. किराए के एक कमरे में पहली शिक्षण संस्था की स्थापना की. उनके एक शिक्षक को अंग्रेजों ने स्कूल से निकाल दिया था.
यह बात जब दिग्विजयनाथ जी को पता चली तो उन्होंने शिक्षक के सम्मान के लिए महाराणा प्रताप के नाम पर स्कूल खोला, बाद में यही महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज के रूप में विकसित हुआ. आज भी इसमें करीब 5 हजार छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. वर्ष 1949-50 में महाराणा प्रताप डिग्री कालेज की स्थापना की गई.
महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् ने ब्रह्मलीन महन्त दिग्विजयनाथ जी के नाम से दिग्विजयनाथ स्नातकोत्तर महाविद्यालय की स्थापना की. आज गोरखनाथ मंदिर से तकरीबन 50 सामान्य शिक्षा, उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, छात्रावास और चिकित्सा संस्थाएं कार्य कर रही हैं. इन सभी में करीब 50 हजार बच्चे हैं. 5 हजार से अधिक शिक्षक और अन्य कर्मचारी हैं.
*गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना में भी गोरक्षपीठ की महती भूमिका*
गोरखपुर के मौजूदा पंडित दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय की स्थापना के पीछे भी गोरक्षपीठ की महती भूमिका रही है. 15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के बाद गोरखपुर शहर के मानिंद लोग दिग्विजयनाथ जी के पास आए और उन्होंने गोरखपुर में एक विश्वविद्यालय की स्थापना कराने का अनुरोध किया. दिग्विजयनाथ जी इन लोगों को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत से मिले लेकिन पंत जी ने सरकारी खजाना खाली होने की बात की. पंत जी ने कहा कि विश्वविद्यालय वहां खुलेगा जहां लोग 50 लाख रुपए की राशि या उतने की प्रॉपर्टी का सहयोग करेंगे.
उस समय गोरखपुर में दो कॉलेज थे महाराणा प्रताप कॉलेज और सेंट एंड्रयूज कॉलेज. सेंट एंड्रयूज कॉलेज चर्च चलाती थी. यह तय हुआ कि इन दोनों कॉलेजों की संपत्ति 50 लाख रूपये से अधिक की है. इन्हें सरकार को देकर विश्वविद्यालय की स्थापना कराई जा सकती है लेकिन, संविधान के नए नियमों के अनुसार अल्पसंख्यक संस्थानों में हस्तक्षेप का अधिकार सरकार को नहीं रहा, इस नियम के आधार पर चर्च ने सहयोग करने से इंकार कर दिया.
गोरक्षपीठ को जनमानस की शैक्षिक प्रगति की चिंता थी. सो, महंत दिग्विजयनाथ जी ने विश्वविद्यालय बनाने के लिए महाराणा प्रताप महाविद्यालय को दान में दिया. वर्ष 1958 में सरकार और महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के बीच एग्रीमेंट हुआ और फिर विश्वविद्यालय का मार्ग प्रशस्त हुआ था. शिक्षा और स्वतंत्रता के प्रति उसी जुड़ाव को बढ़ाते हुए गुरु गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरक्षपीठ का नया कदम है.
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