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भारत के लिए दुनिया ने फैलाई बांहें

by WEB DESK
May 5, 2021, 12:17 pm IST
in विश्व, दिल्ली
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पिछले साल जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी से त्रस्त थी, तब भारत ने जीवनरक्षक दवाएं देकर मदद की। फिर महामारी का टीका बना लिया तो सबसे पहले जरूरतमंद गरीब देशों और मित्र देशों को मुहैया कराने के साथ शत्रु देशों को भी वैक्सीन देने की पेशकश की। भारत की इसी सहृदयता का परिणाम है कि उसकी एक आवाज पर दुनियाभर के देश मदद के लिए खड़ हो गए हैं

देश में विकराल रूप धारण कर चुकी कोरोना महामारी से निपटने में आवश्यक संसाधनों की कमी के चलते सरकार को विदेशों से सहायता की अपील करनी पड़ी, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। एक दर्जन से भी अधिक देशों और पांच संगठनों ने आगे आकर सहायता की पेशकश की है। कई देशों ने तो तत्काल सहायता उपलब्ध कराना भी शुरू कर दिया है, जबकि अन्य देश और संगठन सहायता के स्वरूप पर विचार कर रहे हैं। इंग्लैंड 140 वेंटिलेटर और 495 आॅक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर तथा दवाएं, जर्मनी 23 आॅक्सीजन जनरेटर प्लांट और टैंकर तथा फ्रांस तरल आॅक्सीजन, टैंकर, कॉन्सेंट्रेटर, वेंटिलेटर तथा इलेक्ट्रिक सिरिंज पंप भेज चुका है। वहीं, सऊदी अरब से 80 मीट्रिक टन तरल आॅक्सीजन और सिंगापुर से 4 क्रायोजनिक टैंकर आ चुके हैं। इसके अलावा, आॅस्ट्रेलिया, जापान और डेनमार्क ने भी आॅक्सीजन तथा वेंटिलेटर देने का वायदा किया है। रूस इन सब के अतिरिक्त स्वनिर्मित स्पूतनिक-श् के 2 करोड़ टीके भेज रहा है।

भारत में दुर्लभ रेमडेसिविर इंजेक्शन भेजने पर पेटेंट के उल्लंघन के डर से रूस उसकी जगह फेवीपीराविर इंजेक्शन भेज रहा है। आयरलैंड, पुर्तगाल, बेल्जियम, रोमानिया, स्वीडन और लग्जमबर्ग ने भी आॅक्सीजन, कॉन्सेंट्रेटर, वेंटिलेटर, रेमडेसिविर, मास्क वगैरह भेजने की घोषणा की है। यहां तक कि चीन और पाकिस्तान ने भी सहायता की पेशकश की है। यूरोपीय संघ, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेरिका-भारत व्यापार परिषद् तथा पाकिस्तान के एधी फाउंडेशन ने भी सहायता का हाथ आगे बढ़ाया है। प्रारंभिक हिचकिचाहट के बाद और घरेलू दबाव के कारण अमेरिका ने भी आॅक्सीजन, टेस्ट किट, कोविशील्ड के लिए कच्चा माल, पीपीई किट, कॉन्सेंट्रेटर भेजने के साथ-साथ भारत के बायो-ई दवा कंपनी की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए सहयोग का प्रस्ताव दिया है। माना जा रहा है की अमेरिका अपने भण्डार में से एक करोड़ कोविशील्ड टीके भी दे सकता है। आशा है कि इन सभी तात्कालिक सहायताओं से महामारी को शीघ्र समाप्त करने में मदद मिलेगी।

दवा देकर जीता दिल
आखिर भारत को इस आपातकाल में इतनी जल्दी सहायता का भरोसा कैसे मिला पाया? इसके कई कारण हैं, लेकिन प्रमुख कारण है भारत की वैक्सीन कूटनीति या ‘मैत्री कूटनीति’। गत वर्ष मार्च-अप्रैल में जब दुनिया को पता चला कि पैरासिटामोल तथा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवाएं प्रभावशाली हैं, तब कई देशों ने भारत से बुखार की दवा मांगी। उस समय भारत ने अमेरिका समेत 120 देशों को पैरासिटामोल की कुल 50 करोड़ गोलियां और 1000 टन कच्चा माल एवं हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन की 8.5 करोड़ गोलियां मुहैया करार्इं। इन देशों में से 40 को तो ये औषधियां सहायता के रूप में दी गर्इं, जबकि बाकी को सस्ती दर पर बेची गर्इं।

भारत के इस प्रयास की दुनियाभर मे भूरि-भूरि सराहना हुई। इसी तरह जब इस वर्ष के प्रारम्भ में कोरोना की दूसरी लहर फैली तो हमने आॅक्सफोर्ड आॅस्ट्राजेनेका के लाइसेंस से भारत में सीरम इंस्टीट्यूट आॅफ इंडिया द्वारा निर्मित कोविशील्ड तथा भारत बायोटेक द्वारा देश में विकसित कोवैक्सीन जरूरतमंद देशों को दिया। इस कदम से जहां एक ओर भारत की साख ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ में विश्वास करने वाले देश के रूप में बढ़ी, वहीं दूसरी ओर दवा के नाम पर चीन की विश्व की अर्थव्यवस्था पर कब्जा करने की तुच्छ नीति को भी धक्का भी लगा। चीन की ‘तुम्हीं ने दर्द दिया है, तुम्हीं दवा देना’ की चाल अधिकांश विश्व समझ गया। भारत ने तो पिछले वर्ष सार्क संगठन के तहत और इस वर्ष भी पकिस्तान को सीधे दवाओं की पेशकश की थी, किन्तु अपनी छुद्र शत्रुवत मानसिकता के कारण पकिस्तान ने दवा लेने से इनकार कर दिया। भारत की इसी सदाशयता का परिणाम है कि आवश्यकता पड़ने पर कई देशों ने तुरंत सहायता का हाथ बढ़ाया।

जांच-परख कर बोलें राजनीतिक दल
हालांकि देश में प्रमुख विपक्षी दल के अलावा अन्य राजनीतिक दलों ने सरकार पर बिना जाने-बूझे यह आरोप लगाना शुरू कर दिया कि ऐसे समय में जब देश में वैक्सीन का उत्पादन मांग से कम है, 6.5 करोड़ वैक्सीन बाहर बेचना एक अपराध है। यह सही है कि जब मांग और आपूर्ति में अंतर अधिक हो तो वस्तु का निर्यात करना सामान्यता अनुचित है, किन्तु यह आलोचना तथ्यों की जांच-परख किए बिना सिर्फ आलोचना के नाम पर की गई। यहां तीन तथ्यों को अच्छी तरह जान लेना आवश्यक है।

पहला, 6.5 करोड़ वैक्सीन बेची नहीं गयी। लगभग 1.07 करोड़ खुराक पड़ोसी देशों बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका, मालदीव, अफगानिस्तान तथा अफ्रीका, लातिन अमेरिका तथा प्रशांत महासागर के कई निर्धन अविकसित देशों को सहायता के रूप में प्रदान की गई जो कि गरीब राष्ट्रों की मदद करने की हमारी विदेश नीति का एक अभिन्न अंग है।

दूसरा, यह कि महामारी से निपटने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के अंतर्गत बनाए गए संगठन ‘गावी’ (ग्लोबल अलायन्स फॉर वैक्सीनेशन एंड इम्यूनाइजेशन) द्वारा वैक्सीन की आपूर्ति के लिए चलाए जा रहे कोवैक्स कार्यक्रम के तहत सभी उत्पादक कंपनियों को गावी से समझौता करना पड़ता है, जिसके तहत उन्हें उत्पादन का एक निश्चित भाग गावी के दिशा-निर्देशो के अनुसार बेचना होता है। सीरम इंस्टीट्यूट आॅफ इंडिया ने (जो देश का प्रमुख वैक्सीन उत्पादक है) इस वर्ष जनवरी में गावी के साथ जो समझौता किया था, उसके मुताबिक 2.8 करोड़ टीके फरवरी, 4 करोड़ टीके मार्च और 5 करोड़ टीके अप्रैल में बेचने थे। आज तक लगभग 2 करोड़ टीके गावी को सीधे तौर पर दिए गए और लगभग 3.57 करोड़ टीके बेचे गए। बाद में घरेलू मांग के कारण शेष टीकों का निर्यात रोक दिया गया। 25 देशों को निर्यात किए गए इन टीकों में बड़ा हिस्सा बांग्लादेश, इंग्लैंड और सऊदी अरब का था। तीसरा तथ्य यह है कि हम कोविशील्ड के लिए कच्चा माल बाहर से मंगाते हैं और यह टीका भारत में इंग्लैंड की कंपनी के साथ समझौते के तहत ही बनता है। अब हम इन देशों से यह तो नहीं कह सकते कि कच्चा माल तो हम आप से लेंगे, लेकिन दवा आपको नहीं देंगे! सऊदी अरब से हमारे संबंधों के कारण हमने उसे टीके बेचे और इसी वजह से उसने हमारी एक ही पुकार पर 80 टन आॅक्सीजन भेज दी।

इसलिए देर से मिली अमेरिकी मदद
अमेरिका से सहायता की स्वीकृति आने में कुछ समय अवश्य लगा जिसके पीछे वैध कारण थे। अन्य कई बड़े व्यापारों की ही भांति दवा के कच्चे माल का व्यापार भी अमेरिका में निजी हाथों में है जो बिना लाभ के व्यापार नहीं करते। इसीलिए अमेरिकी सरकार को अपने युद्ध नीति के तहत यह कच्चा माल भेजने का कार्य करना पड़ा, जिससे अतिरिक्त समय लग गया। अमेरिका को तो देर-सवेर सहायता करनी ही थी, क्योंकि क्वाड शीर्ष सम्मलेन की संयुक्त विज्ञप्ति में भारत को वैक्सीन उत्पादन का केंद्र बनाने की प्रतिबद्धता से अमेरिका भी बंधा था। दूसरे, जब कई बड़े देश और संगठन मदद को आगे आ रहे थे तो विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र होने का दावा करने वाले अमेरिका का चुप रहना भारत को ही नहीं, विश्व को भी एक गलत सन्देश देता। स्वयं अमेरिका में भी सांसदों, गैर सरकारी संगठनों और विभिन्न दबाव समूहों का सरकार पर भारत के पक्ष में दबाव बढ़ता जा रहा था।

जैसा कि ऊपर कहा गया है, भारत की सहायता के लिए कई देशों के आगे आने के अन्य कारण भी थे जो हमारी वैक्सीन कूटनीति ही नहीं, वरन हमारी व्यापक कूटनीति के कारण थे। हाल के वर्षों में भारत की साख एक तेजी से विकसित होते हुए देश, एक बड़े बाजार और सुशिक्षित युवा शक्ति के वृहत्तम भण्डार के रूप में बढ़ी है। अमेरिका, रूस, चीन, जापान, सऊदी अरब से लेकर यूरोप और आॅस्ट्रेलिया तक हमारे यहां व्यापारिक निवेश करने को तैयार हैं। तीसरी बड़ी वजह है भारत की भू-रणनीतिक स्थिति। दुनिया की सभी बड़ी शक्तियां एशिया में संतुलन को अपने पक्ष में बनाए रखना चाहती हैं, इसलिए उन्हें भारत जैसी उभरती शक्ति का साथ चाहिए। चीन के बढ़ते प्रभाव और रूस की आक्रामक नीतियों को रोकने के लिए अमेरिका को भारत की उतनी ही आवश्यकता है जितनी भारत को चीन के प्रतिकार के लिए अमेरिका की। रूस को अपना शस्त्र व्यापार बढ़ाने और अमेरिका को रोकने के लिए भारत का साथ चाहिए तो भारत को चीन के खिलाफ उन्नत रूसी हथियार।

चीन को भी भारत का साथ अमेरिका के विरोध में चाहिए, जो उसकी विस्तारवादी नीतियों के कारण फिलहाल संभव नहीं है। हिन्द महासागर में सबसे लम्बे समुद्र तट वाला हिन्दुस्थान हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ रही सभी देशों की रुचियों के कारण बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। कहते हैं कि मित्र की पहचान संकट के समय ही होती है और ऐसे समय में भारत की मदद करके कौन हमारे मित्रों की सूची में नाम नहीं लिखवाना चाहेगा। जो भी हो, संकट काल में सहायता के लिए इतने हाथ बढ़ना संतोष और आश्वसन देता है। साथ ही, यह उम्मीद भी बंधाता है कि एक-दूसरे का सहयोग कर हम इस महामारी पर शीघ्र ही काबू पा सकेंगे।

‘भारत हिम्मत बनाए रखो’

अबु धाबी नेशनल आॅयल कंपनी के मुख्यायलय से भारत के प्रति एकजुटता का संदेश दिया गया

कोरोना की दूसरी लहर से जूझ रहे भारत का समर्थन करते हुए संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने दुबई स्थित दुनिया की सबसे ऊंची इमारत बुर्ज खलीफा को भारत के राष्ट्रीय ध्वज से प्रज्जवलित किया। 25 अप्रैल को बुर्ज खलीफा के अलावा अबु धाबी नेशनल आॅयल कंपनी के मुख्यालय पर भी भारतीय झंडे को दर्शाया गया। साथ ही, ‘भारत हिम्मत बनाए रखो’ का संदेश भी दिया गया। बुर्ज खलीफा इमारत के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से कोरोना के खिलाफ लड़ाई में एकजुटता दिखाते हुए ट्वीट किया गया, ‘‘मुसीबत की इस घड़ी में भारत और भारत के लोगों को आशा, दुआएं और मदद भेज रहे हैं।’’ #इ४१्नङँं’्रां #र३ं८र३१ङ्मल्लॅकल्ल्िरं यूएई स्थित भारतीय दूतावास ने भी अपने ट्विटर हैंडल पर बुर्ज खलीफा का वीडियो शेयर किया। दूतावास ने लिखा है, ‘‘भारत कोविड-19 से भीषण युद्ध लड़ रहा है। इसके दोस्त यूएई ने इसके लिए दुआएं भेजी हैं। दुबई में मौजूद बुर्ज खलीफा को तिरंगे के रंगों से प्रज्जवलित कर समर्थन दिखाया गया है।’’

अमेरिका में पहली बार निजी क्षेत्र के साथ टास्क फोर्स

अमेरिका ने महामारी से जूझ रहे भारत की मदद के लिए पहली बार पीपीपी मॉडल अपनाया है। यूएस चैंबर आॅफ कॉमर्स ने अमेरिकी रक्षामंत्री एंटनी ब्लिंकेन और देश की विभिन्न क्षेत्रों की 40 कंपनियों के सीईओ के साथ बैठक की और भारत को वित्तीय सहायता, चिकित्सा आपूर्ति, आॅक्सीजन, वैक्सीन और अन्य जीवन रक्षक सहायता उपलब्ध कराने के लिए ‘ग्लोबल टास्क फोर्स’ की घोषणा की। इसके अलावा, भारत की आर्थिक सहायता के लिए 15 से अधिक ‘क्राउडफंडिंग’ कार्यक्रम चल रहे हैं। साथ ही, अमेरिका में रहने वाले भारतीय सीधे पीएम केयर्स फंड में भी पैसे भेज रहे हैं। यूएस चैंबर ने तो मदद के लिए खासतौर से पोर्टल बनाया है, जिसके जरिए अमेरिकी कंपनियां भारत की मदद कर सकेंगी। भारत को त्वरित सहायता उपलब्ध कराने के लिए व्हाइट हाउस चार विभागों गृह विभाग, यूएसएड, पेंटागन और सीडीसी के साथ काम कर रहा है।

सिंगापुर में भारतीय जुटा रहे धन

कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में भारत की सहायता के लिए सिंगापुर के दो व्यापारिक संगठन सिंगापुर इंडियन चैंबर आॅफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (सिक्की) और लिटिल इंडिया शॉपकीपर्स एसोसिएशन (लिशा) ने धन जुटाने के लिए एक अभियान शुरू किया है। इसके लिए लोगों से बढ़-चढ़ कर योगदान करने की अपील की गई है। दोनों संगठनों ने कहा कि भारत की आर्थिक मदद के लिए हमें समुदाय का सहयोग चाहिए। सिक्की के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क के साथ 500 कॉरपोरेट सदस्य हैं, जबकि लिशा सिंगापुर के लगभग सभी छोटे कारोबारियों का प्रतिनिधित्व करता है। इसके अलावा, सिंगापुर के कई अन्य संगठन भी भारत की मदद के लिए आगे आए हैं, जिनमें एचएचएल लाइफकेयर, गिलियड फार्मा जैसी कंपनियां भी शामिल हैं।

कोविड से लड़ाई में सभी साथ
फ्रांस और जर्मनी भी भारत की मदद के लिए आगे आए हैं। दोनों देश भारत में मेडिकल आॅक्सीजन क्षमता बढ़ाने में मदद कर रहे हैं। जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने तो इस अभियान को ‘मिशन सपोर्ट इंडिया’ नाम दिया है। वहीं, आॅस्ट्रेलिया ने भी भारत को हर संभव मदद का भरोसा दिया है। सिंगापुर ने तो आॅक्सीजन कॉन्संट्रेटर और दूसरे चिकित्सा उपकरण भेज भी दिए हैं। इसके अलावा, ईरान के स्वास्थ्य मंत्री सईद नामाकी ने भारत के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को पत्र लिखकर कहा कि उनका देश भारत को तकनीकी सहायता देगा। उन्होंने कहा कि इस मुश्किल वक्त का सामना मिलकर ही किया जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र्र मोदी से टेलीफोन पर बातचीन के बाद जापान ने कहा कि वह भारत को संवेदनशील तकनीक और अन्य साजोसामान की आपूर्ति करेगा।

जितेंद्र्र कुमार त्रिपाठी

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