महामारी के दौरान उत्तर प्रदेश में अव्यवस्था का माहौल बनाने और अफरा-तफरी मचाने के लिए दिल्ली और महाराष्ट्र की सरकारें प्रवासी श्रमिकोें को साजिश के तहत भेज रही हैं, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कुशल नेतृत्व ने उनकी मंशा को पूरा नहीं होने दिया
एक अनुमान के अनुसार मुम्बई और दिल्ली में रहने वाले ज्यादातर प्रवासी कामगार उत्तर प्रदेश के हैं। इन कामगारों के कारण ही दोनों शहरों में हर तरह की गतिविधियां संपन्न होती हैं। लेकिन इस महामारी ने इन मजदूरों को गत वर्ष की तरह इस वर्ष भी अपने घर लौटने के लिए मजबूर किया है। रोजाना मुम्बई और दिल्ली से हजारों श्रमिक उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में पहुंच रहे हैं। इस कारण संक्रमण फैलने का डर तो है, साथ ही इनकी रोजी-रोटी का सवाल भी खड़ा होता है। वास्तव में कहा जा रहा है कि इन श्रमिकों को दिल्ली और महाराष्टÑ की सरकारें ही भेज रही हैं। ये दोनों सरकारें यह नहीं चाहती हैं कि लॉकडाउन के दौरान उनके यहां कोई प्रवासी मजदूर रहे। यही कारण है कि लॉकडाउन के दौरान इन श्रमिकों के लिए सरकार की ओर से कोई सुविधा मुहैया नहीं कराई गई और ये श्रमिक अपने प्रदेश लौटने के लिए मजबूर हुए। महामारी के दौरान इतने लोगों का उत्तर प्रदेश आना एक बड़ी समस्या बन सकती है। इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार इन श्रमिकों के लिए हर तरह से चौकन्नी है। स्वयं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इनकी चिंता कर रहे हैं। कोरोना से पीड़ित होते हुए भी योगी आदित्यनाथ प्रतिदिन टीम-11 की वर्चुअल बैठक करते हैं। कोरोना महामारी के कार्यों की समीक्षा और आवश्यक दिशा-निर्देश देते हैं। यही कारण है कि इन श्रमिकों के स्वास्थ्य की जांच और उनके क्वारंटाइन की व्यवस्था बहुत ही सुचारू से की जा रही है। यही नहीं, जो श्रमिक स्वस्थ हैं, उन्हें उनके गंतव्य स्थान तक पहुंचाया भी जा रहा है।
पिछले दिनों दिल्ली में लॉकडाउन की घोषणा हुई, तो रातों-रात एक से डेढ़ लाख प्रवासी श्रमिकों का आगमन हुआ। हमने बसें लगार्इं, व्यवस्था की। सभी का टेस्ट कराया और आवश्यकतानुसार क्वारंटाइन किया। ये सभी कार्य त्वरित ढंग से किए गए।
— योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश
पिछले साल भी ऐसी ही स्थिति उत्पन्न करने की कोशिश हुई थी। उल्लेखनीय है कि 2020 के मार्च माह के अंतिम सप्ताह में संपूर्ण लॉकडाउन किया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों से निवेदन किया था कि जो जहां हैं, वहीं रहें। उनके लिए सारी व्यवस्था की जाएगी। लेकिन प्रधानमंत्री को बदनाम करने के लिए उस समय भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और महाराष्टÑ के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने उत्तर प्रदेश के प्रवासी कामगारों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया था। एक साजिश के तह दिल्ली में अफवाह फैलाई गई थी कि प्रवासी कामगारों के लिए बसें चलाई जा रही हैं। इसके बाद तो दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले प्रवासी मजदूर अपने गांव जाने के लिए निकल पड़े। संपूर्ण लॉकडाउन के बावजूद न जाने किसके आदेश पर दिल्ली परिवहन निगम की बसें इन श्रमिकों को दिल्ली की सीमा के बाहर उत्तर प्रदेश में छोड़ने लगीं। परिणामस्वरूप दिल्ली के आंनद विहार के पास उत्तर प्रदेश में एक साथ लाखों श्रमिक जमा हो गए। तब इन श्रमिकों को उनके घरों तक पहुंचाने का जिम्मा योगी आदित्यनाथ ने संभाला था। रात में ही राज्य सड़क परिवहन निगम के अधिकारियों को जगा कर बैठक की गई। तुरंत निर्णय लिया गया कि बसों को आनंद विहार भेजकर उन सभी लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाया जाए। इसके बाद पूरे प्रदेश से बसें आनंद विहार भेजी गर्इं और श्रमिकों को उनके गंतव्य तक पहुंचाया गया। बसों के संचालन पर नजर रखने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पूरी रात जगे रहे थे।
इसी तरह मुम्बई में भी एक अफवाह के जरिए श्रमिकों को भगाया गया। पहले अफवाह फैलाई गई कि उत्तर प्रदेश और बिहार के लिए रेलगाड़ियां चलने वाली हैं। फिर जब श्रमिक मुम्बई के विभिन्न रेलवे स्टेशनों पर जमा हो गए तो महाराष्ट् सरकार ने केंद्र सरकार से रेलगाड़ी चलाने की मांग की। ऐसा हुआ भी, और श्रमिकों को भेज दिया गया। इनमें से अधिकतर उत्तर प्रदेश के ही थे। इन श्रमिकों के लिए भी उत्तर प्रदेश सरकार ने सारी व्यवस्थाएं की थीं। इस कारण प्रदेश में किसी तरह की अव्यवस्था नहीं फैली थी और केजरीवाल और ठाकरे जिस संकट में उत्तर प्रदेश को धकेलना चाहते थे, वह संकट नहीं आ पाया।
इस बार भी इन दोनों सरकारों ने कुछ ऐसी ही मंशा के साथ उत्तर प्रदेश के श्रमिकों को भागने के लिए मजबूर किया। अबकी बार जैसे ही यह सूचना मिली कि दिल्ली में लॉकडाउन के बाद प्रवासी कामगार उत्तर प्रदेश की सीमा पर लाकर छोड़ दिए गए हैं, उत्तर प्रदेश सरकार सजग हो गई। सरकार ने त्वरित कार्रवाई कर सभी कामगारों को उनके गंतव्य स्थल तक पहुंचाया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं, ‘‘पिछले दिनों दिल्ली में लॉकडाउन की घोषणा हुई, तो रातों-रात एक से डेढ़ लाख प्रवासी श्रमिकों का आगमन हुआ। हमने बसें लगार्इं, व्यवस्था की। सभी का टेस्ट कराया और आवश्यकतानुसार क्वारंटाइन किया। ये सभी कार्य त्वरित ढंग से किए गए।’’ उन्होंने यह भी कहा, ‘‘वर्तमान स्थिति की समीक्षा करते हुए हमें यहां की व्यापक आबादी, जनसांख्यकीय विविधता को भी दृष्टिगत रखना होगा। इस बार की लहर पिछली बार की तुलना में लगभग तीस गुना अधिक संक्रामक है। इस तथ्य को समझते हुए राज्य सरकार द्वारा मरीजों के बेहतर इलाज के लिए सभी जरूरी इंतजाम किए जा रहे हैं।’’
गत वर्ष 25,00,000 प्रवासी कामगार उत्तर प्रदेश लौटे थे। 15,00,000 से अधिक कामगारों की ‘स्किल मैपिंग’ की गई थी। गत वर्ष मई माह में पाञ्चजन्य द्वारा आयोजित एक वेबिनार में योगी आदित्यनाथ ने कहा था, ‘‘उत्तर प्रदेश के श्रमिकों ने दूसरे प्रदेशों को अपने श्रम से चमकाया मगर कुछ प्रदेशों में उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं हुआ। हम अपने लोगों को ऐसे दर-दर भटकने के लिए नहीं छोड़ सकते।’’
इन श्रमिकों की मदद के लिए योजनाएं बनाई गर्इं। मार्च, 2020 में श्रम विभाग में पंजीकृत 20,37,000 श्रमिकों को भरण-पोषण के लिए 1,000 रु. सीधे उनके खाते में भेजे गए। इस प्रकार सरकार ने करीब 203 करोड़ रुपए के व्यय का वहन किया। लॉकडाउन हो जाने के बाद फैक्ट्रियों में कार्यरत श्रमिकों के भरण-पोषण के लिए 2,163 इकाइयों ने अपने परिसरों में व्यवस्था की। लॉकडाउन अवधि में ही 3,541 इकाइयों द्वारा श्रमिकों को भुगतान किया गया। करीब 1,425 इकाइयों को चालू रखा गया। लॉकडाउन में कोरोना वायरस से बचाव करते हुए करीब 12,000 ईंट भट्ठों का कार्य चालू रखा गया। इसकी वजह से उत्तर प्रदेश से पलायन नहीं हुआ। इस बार जब संक्रमण बढ़ा तो उत्तर प्रदेश सरकार ने लॉकडाउन नहीं लगाया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘‘इस महामारी के दौर में हमें आजीविका और लोगों की जान दोनों को बचाना है।’’
यही कारण है कि लगभग 23 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में वैसी स्थिति नहीं है, जैसी कि दिल्ली, महाराष्ट् जैसे राज्यों में है। महामारी की इतनी व्यापकता है कि इसमें कुछ न कुछ त्रुटियां तो रहेंगी ही, लेकिन प्रदेश सरकार की कर्तव्यनिष्ठा पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
सुनील राय राष्ट्र
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