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सोशल मीडिया : चैनल देख विद्वान बनने वालों का नहींं इलाज

by
Mar 5, 2018, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Mar 2018 11:32:06

 
‘2019 में मोदी को वोट नहीं दूंगा’ की धमकी देने वालों को सारी समस्या इन पांच सालों में ही नजर आ रही है। उन्हें भरोसा है कि 65 साल से घुमाई जा रही जादू की छड़ी घुमाकर कोई उनके दुख-दर्द दूर कर देगा। कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनने का कार्यक्रम ढंग से आयोजित कर नहीं सकती और मुकाबला मैनेजमेंट गुरु मोदी से करना चाहती है

संदीप कुमार देव

मैं मध्यमवर्ग से आता हूं। टैक्स देता हूं और बजट से खुश हूं। जिन्हें एक योजना की भी सही जानकारी नहीं है, वे भी प्रवचन देने चले आते हैं! बार-बार कोशिश करता हूं कि इन्हें टालूं। कहता हूं कि मुझे कुछ पता नहीं, पर नहीं… विद्वता झाड़नी है। अपना प्रवचन बंद ही नहीं करते! आप खुश नहीं हैं तो मोदी एप पर जाइए। उनके ट्विटर हैंडल पर जाइए। फेसबुक वॉल पर जाइए और अपनी झुंझलाहट निकालिए। वैसे भी, न्यूज चैनल देख कर विद्वान बनने वालों का इलाज किसी के पास नहीं है! और हां, बार-बार ‘2019 में मोदी को वोट नहीं दूंगा’ की धमकी मुझे मत दीजिए। इटालियन मैया के बेटे, किसी शहरी नक्सली या ममता, माया, मुलायम, लालू या किसी बकैत को चुन लीजिएगा। वे 65 साल से घुमाई जा रही जादुई छड़ी फिर से घुमाएंगे और आपका सब दुख-दर्द दूर हो जाएगा! अक्ल के अंधों को सारी समस्या इन 5 साल में ही नजर आ रही है!
असल बात यह है कि तुम सब इस तलाश में थे कि मोदी आएंगे और सबका बेड़ा पार लगा देंगे, भाजपा की सरकार बनते ही कहीं सेट हो जाएंगे, कोई ठेका-टेंडर मिल जाएगा! यही करना था तो कांग्रेस क्या बुरी थी, जो आम लोगों ने मोदी को चुना? तुम्हारा घर भरने के लिए हमने मोदी को वोट नहीं दिया था! जो अपने परिवार को लाभ नहीं पहुंचाता; हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के नाम पर अपने बेटे-बेटी, रिश्तेदारों, पहचान वालों को सेट करने में जुटे लोग और उनके चमचे उस व्यक्ति को क्या समझ पाएंगे? 2019 में इटालियन मैया का लल्ला आए या नरेंद्र मोदी, मुझे तो कलम घिसकर ही घर चलाना है, इसलिए मुझे धमकाने की कोशिश मत कीजिए। मेरा वोट मोदी को पहले भी था और 2019 में भी दूंगा! मेरी समझ से पांच साल चली यह सरकार 70 साल की किसी भी सरकार से बेहतरीन है। मेरे साथ रहना है तो रहिए या मेरे दोस्तों की सूची से विदा हो जाइए! वैसे भी, आजकल कुंठितों को छांट-छांट कर निकाल रहा हूं। मैं कोई चुनाव नहीं लड़ने जा रहा कि फॉलोअर की संख्या देखकर पगलाऊं? विवेकानंद ने 100 ऊर्जावान युवाओं को साथ लाने के लिए कहा था, मैं भी उन 100 के लिए मेहनत कर रहा हूं, जिन्हें जोड़ कर औपनिवेशिक-वामपंथी कहानी को हमेशा के लिए बदल सकूं!     (फेसबुक वॉल से)

पार्टी गड्ढे में नेता मालामाल
संदीप कुमार देव

कांग्रेस अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने का कार्यक्रम भी ढंग से आयोजित नहीं कर सकती और मुकाबला मैनेजमेंट गुरु मोदी से करना चाहती है। ऐसे बड़े कार्यक्रमों में अनुशासन की जरूरत होती है। इसमें मिनट दर मिनट के कार्यक्रम तय होते हैं। नॉनसेन्स से बचा जाता है, दक्षता का ध्यान रखा जाता है। कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी समस्या ‘चमचई’ है, बाकी पार्टियों में भी होती है, किंतु कांग्रेस में ठेठ है। शीर्ष नेतृत्व ने असुरक्षा के भय से इसे खूब प्रोत्साहित भी किया है। यही वजह है कि पार्टी गड्ढे में जा पहुंची है, जबकि नेता करोड़ों-अरबों की आसामी बने हुए हैं। … और पार्टी के पास दफ्तरों को चलाने तथा कर्मचारियों को देने के लिए पैसे नहीं हैं। चमचई के नाम पर और कितना खाओगे? कभी आंसू बहाते हो, कभी तस्वीरों को लड्डू खिलाते हो, कभी पटाखे चलाते हो तो कभी सेल्फी खिंचाते हो।  लेकिन काम नहीं करना चाहते। सब के सब पार्टी में राष्ट्रीय स्तर के नेता बने हुए हैं। सभी को राष्ट्रीय मुद्दों पर बोलना आता है। सबको स्वतंत्रता संग्राम में गांधी परिवार का योगदान याद है, लेकिन किसी को भी जनता के बीच जाकर, उनकी समस्याओं की सुध लेना याद नहीं रहता। सोनिया गांधी भाषण देती हैं तो उनकी कमजोर हिंदी और तार-तार होती है, जबकि कार्यकर्ता बाहर पटाखे चलाते हैं। क्या यही है 132 साल पुरानी पार्टी का अनुशासन? क्या ऐसे ही कारनामों से मोदी को पराजित कर सत्ता में आने के ख्वाब देख रहे हो? कांग्रेस को अपने तौर-तरीके बदलने होंगे। कांग्रेसी आज भी 70-80 के दशक वाली टेंट और तिरपाल की राजनीति कर रहे हैं, जबकि मोदी ने इसका पूर्ण रूप से डिजिटलीकरण कर दिया है। कांग्रेसियो! अगर वाकई सत्ता के इर्द-गिर्द भी आना है तो पहले इनसान बनना सीखो। सच बोलना सीखो। चमचई छोड़ काम करना सीखो। सवाल-जवाब करना सीखो। अपने नेता और पार्टी को उसकी कमियां बताना सीखो। वरना, ऐसे ही पीढ़ी दर पीढ़ी गांधियों की ताजपोशी करते रहोगे।     (फेसबुक वॉल से)

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