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संगठित शक्ति के बिना कोई योजना सफल नहीं हो सकतीपाञ्चजन्य

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Dec 25, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 25 Dec 2017 12:36:22

वर्ष: 14  अंक: 1226 सितम्बर ,1960

ऐसी अनुशासित अजेय शक्ति उत्पन्न करना ही रा.स्व.संघ का कार्य
राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक पूज्य श्री गुरुजी उत्तर प्रदेश का दौरा कर रहे हैं। स्थान-स्थान पर आपने जो भाषण दिए, उनको संक्षप्ति रूप में यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।-संपादक
अपना हिन्दू समाज अनेक संकटों से घिरा हुआ है। चतुर्दिक व्याप्त परिस्थितियों का लोग अपने ढंग से विश्लेषण करते हैं और किसी-किसी को अपने विश्लेषण की यथार्थता का अभिमान भी है। ऐसा होते हुए भी समाज में बढ़ता हुआ विच्छेद अपने सम्मुख है। लोग कहते हैं,‘देश की  एकता चाहिए, समाज का स्थान सर्वोपरि हो,’ परन्तु प्रत्यक्ष व्यवहार में इस प्रकार बोलने वालों में अपने दल का, पद का और कभी-कभी राजनीतिक पक्षोपक्ष का स्वार्थ निहित होने के कारण यह सब केवल शब्द मात्र रह जाता है। इस कारण दिनोंदिन विच्छेद बढ़ता ही जा रहा है।
भारत से पृथक हैं!
दक्षिण के कुछ लोग इस विच्छेद भाव के कारण ही आज अपने को भारत से अलग समझते हैं। उनकी धारणा है कि उत्तर भारत के लोगों ने बलपूर्वक हम पर अपना साम्राज्य थोपा है। छोटे-बड़े सभी का कभी व्यक्त, कभी अव्यक्त रूप से इन्हें समर्थन भी मिल जाता है। एक बार विच्छेद का भाव उत्पन्न होने और उसे समर्थन मिलने के बाद अपनी मांग के समर्थन में कितने हास्यास्पद तर्क उपस्थित किए जाते हैं, इसका उदाहरण भारत के मानचित्र में ऊपर उत्तर है, नीचे दक्षिण। इसी को प्रचार का साधन बनाकर यह कहा जाता है कि उत्तर के लोग दक्षिण के सिर पर बैठे हैं। यदि यही सत्य है तो सबसे उत्तर में बैठे हिमालय के भार से हम सबको अब तक समाप्त हो जाना चाहिए था। इस प्रकार लोगों की भोली भावनाओं को भड़काया जाता है।
सर्वत्र संघर्ष है
यदि भिन्न-भिन्न प्रांतों का विचार करें तो सर्वत्र जाति, पंथ सम्प्रदाय, भाषा-भाषी गुट और सबसे बढ़कर तो राजनीतिक दलों के परस्पर स्वार्थ पर आधारित संघर्ष ही दृष्टिगत होते हैं। इन संघर्षों में समाज का क्या होगा? यह सोचने का अवकाश किसी को भी नहीं है। उदाहरण के लिए केरल है। एक वर्ष पूर्व वहां साम्यवादी यथार्थत: रूसवादी मंत्रिमंडल था।
राष्ट्र घटना चक्र
नहरी पानी विवाद पर समझौता या भारत का आत्मसमर्पण-उत्तर प्रदेश, आंध्र और मैसूर में कांग्रेस का सिरदर्द बढ़ा-असम में मुस्लिम मुख्यमंत्री को प्रतिष्ठित करने का षड्यंत्र-श्री कृपलानी पुन: कांग्रेस में जाएंगे? रामलीला-बमकांड
पांच सौ विशिष्ट एवं प्रतिष्ठित व्यक्तियों के सम्मुख सजे हुए भव्य पंडाल में जिस नहरी-पानी करार पर प्रधानमंत्री श्री नेहरू ने करांची में दस्तखत किए हैं, उसके कारण अकारण ही भारत पर 83 करोड़ रु. का एक नया भार आ गया है।  नहरी पानी के विषय में हाफिज मुहम्मद इब्राहीम के सिंचाई मंत्री होते ही भारत पाकिस्तान के बीच समझौता होना आश्चर्यजनक बात समझी जाती है। पिछले बारह साल से चले आ रहे विचार का अंत शुभ माना जा रहा है। मार्शल अयूब खां की राय में, यह प्रधानमंत्री की उदारता का फल है। इसको भारत-पाकिस्तान संबंधों के मैत्रीपूर्ण होने का आधार माना जाता है। लेकिन इस बात को भूला दिया गया है कि शुभेच्छा का यह प्रवाह एकतरफा है। भारत अच्छे पड़ोसी का धर्म बराबर निभाता आ रहा है। 10,000 टन इस्पात बिलेट, कोयला पाकिस्तान ले जाने के लिए माल के डब्बे, रोलिंग स्टाक, भारी विद्युतीय साज-सामान देकर और पिछले साल से दुगना अधिक माल पाकिस्तान से खरीदकर भारत ने पाकिस्तान के प्रति मैत्री निबाही है। पाकिस्तान ने इसके बदले क्या किया? कश्मीर-घाटी में पिछले साल प्रलयंकर बाढ़ आयी थी। लगभग एक करोड़ की लकड़ी बह गई और वह पाकिस्तान के हाथ लगी। क्या पाकिस्तान ने उसे लौटा दिया? नहीं। उसने न तो लकड़ी लौटाई न उसकी कीमत ही चुकाई। पाकिस्तान की राजधानी में उसका शायद फर्नीचर बना दिया गया। इसलिए भारत-पाकिस्तान की मैत्री की आशा करने वाले यदि निराश हों तो आश्चर्य ही क्या?
पाकिस्तान चीन के समान आक्रांता है, यह पुन: स्मरण दिलाया गया है। किन्तु क्या एक भाई दूसरे भाई के घर पर हमला नहीं करता और यह होते हुए भी कुल पर आक्रमण होने पर दोनों उसका मुकाबला करते हैं, यह इसका जवाब दिया गया है। चीनी आक्रमण का प्रतिकार करने के लिए दोनों की एक सुरक्षा योजना होनी चाहिए, यह मानने वाले आग्रह करते हैं कि पाकिस्तान की मैत्री पाने के लिए और अधिक उदारतापूर्ण बर्ताव उसके प्रति करना चाहिए क्योंकि पाकिस्तान मानता है कि पूर्वी पाकिस्तान का बचाव भारत के सहयोग के बिना संभव नहीं। अत: श्री नेहरू की सदाशयता का लाभ उठाकर संभव है पाकिस्तान सैनिक पैक्टों से अपने को अलग कर ले। इस वास्ते यदि विभक्त कश्मीर को एक तथ्य मान लिया जाए, और विराम सीमा को कुछ हेर फेर के साथ मान लिया जाए, तो भारत-पाक मैत्री का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। यह जानने वाले एक बात भूल जाते हैं कि भाषा, नस्ल, इतिहास एक होते हुए भी ‘इस्लाम’ तत्व की प्रधानता  के कारण देश-विभाजन हुआ और उसके साथ भयानक खून-खच्चर हुआ। यह ‘इस्लाम तत्व’ आज भी वहां प्रधान है। यह होते हुए क्या दोनों में स्थायी मैत्री हो सकेगी? अत: ‘नेहरू-अयूब’ वार्ता से यदि राजनीतिक क्षेत्र जरा भी प्रसन्न नहीं हुए, तो विस्मय नहीं करना चाहिए। क्योंकि विश्व तनाव में इससे रंचमात्र भी अंतर नहीं आने वाला है।
चीन के मुकाबले समानांतर शक्ति-केंद्र बनना चाहिए
दक्षिण एशिया के देश, जो भारत के सांस्कृतिक सहोदर हैं, उनकी एकता के लिए प्राथमिकतापूर्वक प्रयत्न किया जाना चाहिए, जिसकी उपेक्षा हुई है। भूटान, नेपाल, बर्मा, जावा, सुमात्रा, बोर्नियो, बाली द्वीप समूह, श्रीलंका आदि को संगठित कर नेतृत्व प्रदान करना भारत की नेतृत्वाकांक्षा की संपूर्ति के लिए व्यावहारिक आधार प्रदान कर सकते हैं। पाकिस्तान के प्रति तुष्टीकरण की नीति की बजाय ‘शठे शाठ्यमं समाचरेत’ अर्थात् ‘जैसे को तैसा’ की नीति अपनानी चाहिए तथा चीन के मुकाबले समानांतर शक्ति-केंद्र बनना चाहिए। तिब्बत की स्वाधीनता की बलि चढ़ाना सैद्धांतिक दृष्टि से अन्यायपूर्ण था। कूटनीतिक दृष्टि से भी भारत का व्यवहार अनीतिपूर्ण था। परराष्टÑ नीति प्रतिरक्षा नीति का विकल्प नहीं है। भारत की सबसे बड़ी भूल रही कि उसने शांतिवादी परराष्टÑ नीति की दार्शनिकता में परराष्टÑ नीति की उपेक्षा की।  
            —पं. दीनदयाल उपाध्याय (पं. दीनदयाल उपाध्याय, कर्तृत्व एवं विचार)

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