आवरण कथा/ हिमाचल प्रदेश -यहां डेढ़ दिन रुकते हैं परशुराम
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आवरण कथा/ हिमाचल प्रदेश -यहां डेढ़ दिन रुकते हैं परशुराम

by
Nov 27, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 27 Nov 2017 12:23:11


मान्यता है कि अपनी माता से मिलने के लिए परशुराम जी हर वर्ष कार्तिक मास में रेणुका झील आते हैं और यहां डेढ़ दिन रहते हैं। उन्होंने ऐसा वचन अपनी मां को दिया था। यहां हर वर्ष मेला लगता है।

अभिनव

हिमाचल प्रदेश में नाहन से लगभग 37 किलोमीटर की दूरी पर है प्रसिद्ध रेणुका झील। परशुराम जी की माता हैं रेणुका। मान्यता है कि इस स्थान पर वे झील के रूप में निवास करती हैं। लगभग तीन किलोमीटर की परिधि में फैली है यह झील। ऊंचाई से देखने पर यह मानवाकार दिखाई पड़ती है। यहां आते ही सर्वप्रथम परशुराम सरोवर के दर्शन होते हैं। साथ ही भव्य मंदिर विराजमान है जहां दर्शन के उपरांत लोग झील की ओर बढ़ते हैं। झील के चारों ओर परिक्रमा मार्ग है। परिक्रमा के एक भाग में प्राणी विहार विकसित किया गया है। झील में स्नान के लिए एक घाट भी बनाया गया है। यहां नौकायन की भी व्यवस्था है। रेणुका जी को यहां साक्षात् देवी माना जाता है। इस कारण झील में श्रद्धापूर्वक नंगे पांव ही नाव चलाई जाती है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास में दशमी से पूर्णिमा तक यहां पांच दिवसीय मेले       का आयोजन होता है। ऐसा विश्वास है     कि हर वर्ष इन दिनों में भगवान परशुराम अपनी माता रेणुका से मिलने के लिए     यहां आते हैं। अपने वचन के अनुसार वे डेढ़ दिन तक यहां रुकते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि जमदग्नि अपनी पत्नी रेणुका तथा पुत्रों सहित निवास करते थे। एक बार राजा सहस्रबाहु का इस क्षेत्र में आगमन हुआ। उसने महर्षि से अपने भोजन के प्रबंध को कहा। कुछ ही समय में सैकड़ों सैनिकों सहित राजा को भोजन भी करा दिया गया। राजा ने पूछा ‘‘इतनी जल्दी यह सारी व्यवस्था कैसे हुई?’’ तब महर्षि ने बताया कि उनके पास कामधेनु गाय है, जो मनचाही वस्तु प्रदान करती है। सहस्रबाहु कहा कि इस प्रकार की गाय केवल राजा के पास ही होनी चाहिए। अत: कामधेनु को उसे सौंप दिया जाए। महर्षि ने राजा की इस अनुचित मांग को ठुकरा दिया। सहस्रबाहु ने क्रोध में आकर जमदग्नि और उनके चार अन्य पुत्रों की हत्या करके गाय हथिया ली। अपने पति और पुत्रों के वध को देखकर माता रेणुका विचलित हो गर्इं। वे रो-रो कर अपने पुत्र परशुराम को पुकारने लगीं। परशुराम उस समय महेंद्र पर्वत पर तप में लीन थे परन्तु माता रेणुका की करुण पुकार सुन उनका ध्यान भंग हो गया। वे तुरंत सारे घटनाक्रम को जान गए।
परशुराम ने सहस्रबाहु पर आक्रमण कर दिया और अकेले ही अपने परशु से उसे तथा उसकी सेना को यमलोक पहुंचा दिया। यही नहीं, उन्होंने अपने तपोबल के प्रभाव से पिता जमदग्नि और भाइयों को जीवित कर दिया। इसके पश्चात् वे वापस महेन्द्र पर्वत की ओर प्रस्थान करने लगे तो माता रेणुका ने उन्हें अपने पास रुकने को कहा। तब परशुराम जी ने माता को वचन दिया कि वे प्रत्येक वर्ष दीपावली के उपरांत दशमी के दिन माता से मिलने आएंगे और डेढ़ दिन यहां रह कर पुन: वापस चले जाएंगे। तभी से इन दिनों में यहां माता-पुत्र के मिलन का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। हिमाचल सरकार ने इस मेले को राज्यस्तरीय मेले का दर्जा प्रदान किया है। मेले के अवसर पर आसपास के गांवों से कई देवता डोलियों में रेणुका जी आते हैं। प्रदेश के राज्यपाल देवताओं का स्वागत करते हैं। पूरे गाजे-बाजे के साथ क्षेत्र में शोभायात्रा निकाली जाती है। पांच दिन तक यहां की रौनक देखने योग्य होती है। मेले के अंतिम दिन मुख्यमंत्री देवताओं को विदा करने के लिए आते हैं। फिर से माता रेणुका जी अकेली हो जाती हैं और तत्परता से अगले वर्ष की प्रतीक्षा में जुट जाती हैं। रेणुका जी सभी प्रमुख मार्गों से जुड़ा हुआ है। राजधानी दिल्ली की दूरी यहां से लगभग 300 किलोमीटर है।   ल्ल   

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