आवरण कथा /तमिलनाडु- सांस्कृतिक धरोहरों से परिपूर्ण
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आवरण कथा /तमिलनाडु- सांस्कृतिक धरोहरों से परिपूर्ण

by
Nov 27, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 27 Nov 2017 11:38:19


 

अनेक विशाल मंदिरों के लिए विख्यात मदुरई में पर्यटकों के लिए विशेष रूप से आकर्षित करने वाली चीजें हैं

आयुषी राजपुरोहित

दक्षिण भारत का मदुरई शहर जहां अपनी प्राकृतिक सुषमा के लिए जाना जाता है, वहीं विशाल मंदिरों के लिए भी दुनियाभर में विख्यात है। मीनाक्षी सुंदरेश्वर भगवान का विश्व प्रसिद्ध मंदिर यहां की प्रमुख पहचान है। इस मंदिर की दिव्यता से आकर्षित होकर देश-दुनिया के लोग इसके दर्शन के लिए आते हैं। लेकिन इस मंदिर के अलावा भी यहां कई ऐसे पौराणिक और दिव्य स्थल हैं, जिनका दर्शनार्थी जानकारी के अभाव में दर्शन लाभ नहीं ले पाते। इनमें अलगर कोविल, तिरुपुरम् कुंङ्मरम्, वंडियूर पप्पाकुलम् और पलैमुदिर चोलै प्रमुख हैं।
  वैसे मदुरई को त्योहारों का शहर भी कहते हैं। भगवान शिव और पार्वती(मीनाक्षी) की अधिकतर लीलाएं इसी नगरी की हैं। उन्हीं पौराणिक परंपराओं को अंगीकार करते हुए आज भी यहां के लोग चैत्र, श्रावण और पौष महीने में इसे त्योहार के रूप में मनाते हैं, जिसे देखने के लिए तमिलनाडु से ही नहीं बल्कि देश के अनेक हिस्सों से श्रद्धालु  पहुंचते हैं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण चैत्र माह में शिव-पार्वती (मीनाक्षी) भगवान का विवाहोत्सव होता है, जो एक महीने तक चलता है। इस विवाह में लाखों की संख्या में लोग  शामिल होते हैं।
अलगर मंदिर
मदुरई से 18 किमी. पूर्व की ओर पर्वत पर अतिसुंदर विष्णु मंदिर है। यहां मीनाक्षी जी के भाई विष्णु भगवान का नाम अलगर है। यह मूर्ति कांसे की बनी है। प्रतिदिन भगवान के अभिषेक के लिए 3 मील ऊपर पर्वत पर नुपूर गंगा का झरना है, जो वर्ष भर अविरल रूप से बहता है। उसी जल से भगवान का अभिषेक किया जाता है। इसके पीछे कारण है कि दूसरी जगह के जल से अभिषेक करने पर मूर्ति का रंग काला पड़ जाता है। मंदिर में विष्णु भगवान के साथ मां लक्ष्मी, दूसरी तरफ भुमादेवी विराजमान हैं। वैशाख महीने की पूर्णिमा के दिन विष्णु भगवान अपनी बहन मीनाक्षी की शादी के उपलक्ष्य में वस्त्र और उपहार लेकर यहां से मदुरई शहर की ओर चलते हैं। इस शोभा यात्रा का लाखों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालु स्वागत करते हैं। यह दृश्य इतना अद्भुत होता कि देखने वाले के ह्दय पटल पर हमेशा के लिए विद्यमान हो जाता है।
पलैमुदिर चोलै
अलगर मंदिर से 2 किमी. ऊपर पर्वत पर भगवान सुब्रह्मण्य (कार्तिक स्वामी) का मंदिर है, जिसके बार्इं ओर गणेश जी और दार्इं ओर शिवशक्ति विराजमान हैं। भगवान सुब्रह्मण्य के 6 प्रमुख पुण्य स्थलों में से यह भी एक मंदिर है। कार्तिक स्वामी के भक्तगण इस पुण्य स्थली के दर्शन के लिए आते हैं। इसी स्थान के 1 किमी. ऊपर पवित्र नूपुरगंगा का झरना है। मान्यता है कि इसका जल दिव्य औषधि के समान है और स्नान करने वाले को आरोग्यता प्रदान करता है।
वंडियूर पप्पाकुलम्
मीनाक्षी मंदिर के पूर्व में 2 किमी. दूर एक सुंदर तालाब बना हुआ है। यह 100 फुट लंबा और 950 फुट चौड़ा है। जलाशय के मध्य भाग में एक मनोहर मंडप  है, जो छोटे-छोटे चार मंडपों से घिरा हुआ है। पौष माह के पुख्य नक्षत्र में मां मीनाक्षी और भगवान सुंदरेश्वर मीनाक्षी मंदिर से यहां आते हैं। इस दिन मीनाक्षी मंदिर दिन भर बंद रहता है। इस तिथि में जलाशय को बड़े ही अनूठे तरीके से सजाया जाता है। इसके बाद मां मीनाक्षी और भगवान सुंदरेश्वर पूरे दिन इसी मंडप में विराजते हैं।       

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