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उच्चतम न्यायालय ने उज्जैन स्थित विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर की पूजा-अर्चना की विधि पर कुछ नियम बनाए हैं, ताकि शिवलिंग के लगातार हो रहे क्षरण को रोका जा सके।
महेश शर्मा, उज्जैन से
विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर की पूजा-अर्चना की विधि पर उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि शिवजी का जलाभिषेक अब ‘आरओ’ द्वारा शुद्ध जल से ही होगा। शिवलिंग को क्षरण से बचाने के लिए उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका पर दी गई इस व्यवस्था के अनुसार एक श्रद्धालु अधिकतम आधा लीटर ‘आरओ शुद्ध जल’ चढ़ा सकेगा। उज्जैन की सारिका गुुरु की याचिका पर उच्चतम न्यायालय में जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एल़ नागेश्वर राव की खंडपीठ में 27 अक्तूबर को सुनवाई हुई। मन्दिर समिति ने प्रस्ताव दिया कि दूध अथवा पंचामृत की मात्रा अधिकतम सवा लीटर ही रखी जाए जिसे न्यायालय ने स्वीकार कर लिया। हालांकि न्यायालय द्वारा दी गई व्यवस्था पर प्रख्यात ज्योतिर्विद पं़ आनन्दशंकर व्यास कहते हैं ‘‘महाकाल की पूजन विधि में परिवर्तन शास्त्रसम्मत नहीं है, मन्दिर की प्राचीन पूजन परंपरा में बदलाव शंकराचार्यों से विमर्श के उपरांत ही किया जा सकता है।’’
लम्बे समय से यह बात उठ रही थी कि दूषित जल तथा पंचामृत से शिवलिंग को नुकसान पहुंच रहा है। भस्म-आरती की भस्म से भी शिवलिंग को नुकसान होने की आशंकाएं उठ रही थीं। बारह ज्योतिर्लिंगों में सिर्फ उज्जैन में ही तड़के चार बजे भस्म-आरती होती है जिसके लिए उपले जलाकर राख तैयार की जाती है। इससे होने वाले नुकसान से बचने के लिए तय किया गया कि भस्म-आरती के दौरान शिवलिंग को सूती कपड़े से ढक दिया जाए।
सारिका गुरु की याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने के निर्देश दिए थे। भू-वैज्ञानिक और पुरातत्वविद् को शामिल कर बनाई गई समिति ने पंचामृत से क्षरण की बात मानी थी इसलिए इसकी मात्रा सीमित करने की अनुशंसा की थी। अनेक विद्वतजनों का मानना है कि अनादि काल से शिवलिंग पर पंचामृत चढ़ाकर अभिषेक किया जाता रहा है, यदि मिलावटी सामग्र्री से नुकसान की आशंका है तो मन्दिर प्रबंधन स्वयं शुद्ध दूध, शहद, शकर, दही और घी उपलब्ध कराए। मन्दिर प्रबंधन ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि पंचामृत में शक्कर के स्थान पर गुड़ से बनी खांडसारी का उपयोग किया जाएगा। यह भी तय किया गया कि शाम पांच बजे बाद किसी को जलाभिषेक नहीं करने दिया जाएगा। शिवलिंग और गर्भगृह की नमी को पंखे आदि से सुखाया जाएगा और सूखी पूजा ही की जाएगी। शिवलिंग क्षरण को लेकर पहले भी चिंता व्यक्त की जाती रही है और गर्भगृह में प्रवेश तथा शिवलिंंग के स्पर्श को प्रतिबंधित किए जाने के सुझाव दिए गए। प्रतिबंध के पक्ष में तर्क दिया गया कि श्रद्धालुओं के हाथ की गर्मी और पसीने से शिवलिंग को नुकसान पहुंचता है, लेकिन विद्वानों ने कहा कि श्रद्धालु स्पर्श से महाकाल से ऊर्जा हासिल करते हैंं, इसलिए ऐसा कोई प्रतिबंध अस्तित्व में नहीं आ सका।
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