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सरकार जिन रोहिंग्या मुसलमानों को देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बता रही है, उन्हीं को शरण देने की मांग पर कट्टरवादी तत्व दिल्ली सहित देशभर में प्रदर्शन कर रहे हैं। कुछ बड़े वकील सर्वोच्च न्यायालय में उनका मुकदमा लड़ रहे हैं। रोहिंग्याओं के मददगार आखिर कौन हैं?
नागार्जुन
इसी साल जुलाई मध्य में दिल्ली से सटे नोएडा के सेक्टर-78 स्थित महागुन मॉडर्न सोसायटी में एक अप्रत्याशित घटना घटी थी। लाठी-डंडे से लैस 500 से अधिक लोगों ने सोसायटी पर धावा बोल दिया, तोड़फोड़ और भारी पथराव हुआ। ये लोग और कोई नहीं, बांग्लादेशी थे जो सेक्टर-74 से सेक्टर-79 और उसके आसपास अवैध तरीके से झुग्गियों में बस गए। दरअसल, सोसायटी के एक फ्लैट में नौसेना से सेवानिवृत्त हर्षित सेठी के यहां जोहरा बीबी नामक बांग्लादेशी महिला काम करती थी। उन्हें शक था कि वह चोरी करती है। जब उन्होंने महिला से पूछताछ की तो वह घबरा गई। उसने 10,000 रुपये चुराने की बात स्वीकार कर ली। एक जिम्मेदार नागरिक के नाते उन्होंने सोसायटी को इस घटना के बारे में जानकारी देना मुनासिब समझा, क्योंकि महिला 12 अन्य घरों में भी काम करती थी। फिर जब हर्षित सेठी ने पुलिस को बुलाने की बात कही तो महिला अपना फोन फेंक कर भाग गई। इसके बाद जिस तरह बांग्लादेशियों ने संगठित तरीके से हमला किया, उससे साबित हो गया कि ये केवल घुसपैठिये नहीं, बल्कि देश और समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा हैं। घटना के बाद प्रशासन ने तत्काल कार्रवाई की और महागुन मॉडर्न सोसायटी के सामने सेक्टर-77 से घुसपैठियों की झुग्गियांहटवा दीं।
रोहिंग्या मुद्दे पर केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपना पक्ष रख दिया है। जो भी फैसला होगा, हमें उसका इंतजार करना चाहिए।
— राजनाथ सिंह, गृह मंत्री
सिंचाई विभाग की जमीन ओखला क्षेत्र तक है। हमारी जानकारी में यह बात आ गई है। अगर इसमें अनियमितता पकड़ी गई तो कार्रवाई की जाएगी।
— धर्मपाल सिंह, सिंचाई मंत्री, उत्तर प्रदेश
बांग्लादेश में पूर्व की घटनाओं को देखते हुए सरकार सावधान है। हम रोहिंग्याओं को अपने यहां नहीं रख सकते, क्योंकि ये देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं।
– मो. शहरियार आलम, विदेश राज्यमंत्री, बांग्लादेश
हम पूरे राज्य में शांति, स्थिरता और कानून व्यवस्था बहाल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम लोगों की दुख-तकलीफ को जल्द से जल्द समाप्त करना चाहते हैं।
— आंग सान सू ची, स्टेट काउंसलर,म्यांमार
आतंकी तार और रोहिंग्या
जिस दिन सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा देकर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और आतंकी संगठनों के साथ रोहिंग्याओं के संबंधों की बात कही, उसी दिन दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने विकास मार्ग से अलकायदा के एक आतंकी समी उन रहमान को गिरफ्तार किया। उसके पास से हथियार के अलावा भारत और बांग्लादेश के फर्जी सिम कार्ड, फर्जी पहचानपत्र आदि बरामद हुए। बांग्लादेशी मूल का यह ब्रिटिश नागरिक शकरपुर में एक जिहादी से मिलने जा रहा था। अधिकारियों के मुताबिक, आतंकी रोहिंग्या मुसलमानों को प्रशिक्षण देने के आया था, ताकि म्यांमार में ‘रोहिंग्याओं पर हो रहे अत्याचार’ का बदला लिया जा सके। वह दिल्ली, बिहार, झारखंड आदि राज्यों में मदरसों में रहा और अलकायदा के लिए जिहादियों की भर्तियां कर रहा था। आतंकी की गिरफ्तारी से सरकार की उस आशंका की भी पुष्टि हो गई कि कुछ रोहिंग्या मुसलमान आतंकी संगठनों के संपर्क में हैं। मीडिया खबरों के मुताबिक, रहमान पिछले पांच हफ्तों से दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाके में रह रहा था और यहां 20 से अधिक रोहिंग्या मुसलमानों को अलकायदा से जुड़ने के लिए प्रेरित कर चुका है। यह खबर सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ाने के लिए काफी है। इसके एक दिन बाद 19 सितंबर को सरकार ने परामर्श जारी किया, जिसमें आशंका जताई गई है कि बड़ी संख्या में रोहिंग्या समुद्र के रास्ते घुसपैठ कर सकते हैं। इनमें आतंकियों के शामिल होने की भी आशंका जताई गई है, जो मुंबई और दिल्ली में हमले कर सकते हैं।
आसानी से बन रहे नागरिक पश्चिम बंगाल में तो बाकायदा बांग्ल्
ाादेशी मुसलमानों और रोहिंग्या मुसलमानों को योजनाबद्ध तरीके से बसाया जा रहा है। राज्य के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ममता बनर्जी चाहती हैं कि बांग्लादेशी मुसलमान और रोहिंग्या यहां बसें। इसके पीछे तृणमूल सरकार की मंशा सिर्फ वोटबैंक की राजनीति है। इसलिए उन्हें राज्य कई इलाकों में न केवल बसाया जा रहा है, बल्कि उन्हें जरूरी सुविधाएं भी मुहैया कराई जा रही हैं। बशीरहाट में जो दंगे हुए उसमें भी बाहरी मुसलमान ही शामिल थे। मीडिया खबरों के मुताबिक, दमदम नगरपालिका रोहिंग्याओं को जन्म प्रमाणपत्र दिया जा रहा है। हैदराबाद में गिरफ्तार रोहिंग्या आतंकी मोहम्मद इस्माइल की गिरफ्तारी के बाद यह खुलासा हुआ। पूछताछ में उसने बताया कि 2014 में म्यांमार से वह ढाका पहुंचा और वहां से एक दलाल के जरिये बस से कोलकाता आया। यहां से वह दिल्ली पहुंचा और एक साल तक शरणार्थी शिविर में रहा। इसके बाद जनवरी 2016 में उसे संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग से शरणार्थी कार्ड भी मिल गया। फिर एक मददगार के माध्यम से वह बेलगाम (कर्नाटक) गया, जहां उसे आधार कार्ड, चुनाव पहचानपत्र बनाकर दे दिया गया।
महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत-बांग्लादेश सीमा से होने वाली घुसपैठ को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर एक सदस्यीय समिति बनी थी। समिति के अध्यक्ष उपमन्यु हजारिका ने भारत-बांग्लादेश सीमा का व्यापक दौरा किया था। 2015 में उन्होंने चार रिपोर्ट सौंपी थी। इसमें उन्होंने कहा था कि देश में बड़े पैमाने पर बांग्लादेशियों की घुसपैठ हो रही है, इसकी उच्चस्तरीय जांच की जाए। साथ ही, घुसपैठियों के मददगार कौन हैं? किन लोगों से इनके संबंध हैं? कैसे इन्हें नागरिकता और सभी अधिकार हासिल हो जाते हैं? इसकी भी किसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराई जाए। उन्होंने कहा, ‘‘रोहिंग्या मुसलमान भी तो बांग्लादेशी ही हैं। असम, पश्चिम बंगाल में घुसपैठ करने वाले बांग्लादेशी मुसलमानों में रोहिंग्या मुसलमान भी होंगे। लेकिन उनके बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं है।’’
लेकिन इससे भी कहीं बड़ा खतरा दिल्ली पर मंडरा रहा है। यह खतरा रोहिंग्याओं से है, जो म्यांमार में अपनी करतूतों से पिटने के बाद 2012 में दिल्ली के एक छोर पर कालिंदी कुंज में आकर बस गए। इन्हें रहनुमाओं से रहने के लिए जमीन और संयुक्त राष्टÑ शरणार्थी उच्चायोग से शरणार्थी कार्ड भी मिल गए। यहां रोहिंग्या मुसलमानों के 47 परिवार रहते हैं, जिनमें कुल 230 सदस्य हैं। भारत सरकार ने जब रोहिंग्या मुसलमानों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर भेजने की बात कही तो इन्हीं में से दो रोहिंग्या मोहम्मद सलीमुल्ला और मोहम्मद शाकिर ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दी। इस पर केंद्र सरकार ने 18 सितंबर को हलफनामा दायर किया, जिसमें वह अपने रुख पर कायम है। जिस जगह पर रोहिंग्या बसे हुए हैं, वहां जकात फाउंडेशन आॅफ इंडिया का बोर्ड लगा हुआ है। यह एक गैर सरकारी संस्था है, जो अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा की कई संस्थाओं से जुड़ी हुई है। इन्हें जमीन से लेकर झुग्गी झोपड़ी बसाने सहित सारी सुविधाएं इसी संस्था ने मुहैया कराईं। कहने को ये 1100 गज जमीन पर बनी झुग्गियों में रहते हैं, लेकिन दायरा इतना फैला कि यहीं इनकी मस्जिद और मदरसे भी बन गए हैं। सलीमुल्ला की अपनी दुकान है, जिसमें रोजमर्रा की सभी वस्तुएं मिलती हैं। म्यांमार में अराकान प्रांत के हिंसाग्रस्त रखाइन क्षेत्र से आया सलीमुल्ला कहता है, ‘‘म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों को कहीं भी जाने की आजादी नहीं थी। लेकिन यहां ऐसी कोई बात नहीं है। यहां हम कहीं भी आ-जा सकते हैं।’’ वहां रोहिंग्याओं को सीमित इलाके में रहना पड़ता था और बिना सरकार की इजाजत के वे विवाह भी नहीं कर सकते थे। उन्हें जो पहचानपत्र दिया गया था उस पर उनकी नागरिकता ‘बांग्लादेशी’ लिखी गई थी। लेकिन भागते समय उनसे सारे दस्तावेज भी छीन लिए गए। जाहिर है कि म्यांमार सरकार ने खतरे को पहले ही भांप लिया था, फिर भी उन्हें अपने यहां रहने दिया। सलीमुल्ला का छोटा भाई अली जौहर जामिया में पढ़ता है। बेहद सतर्क सलीमुल्ला किसी भी सवाल का अति संक्षिप्त जवाब देता है और शिविर के पास आने जाने वालों पर पैनी निगाह रखता है। सवाल यह है कि यह जमीन किसकी है? अगर यह जकात फाउंडेशन की जमीन है भी तो क्या तत्कालीन संप्रग सरकार से घुसपैठियों को बसाने की इजाजत ली गई थी? अगर इजाजत नहीं ली गई तो कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? दिल्ली और केंद्र में बैठी तत्कालीन कांग्रेस सरकार की नीयत पर सवाल नेताओं को ताजा रुख को देखते हुए भी स्वभाविक है। एक ओर कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल रोहिंग्यों के पैरोकार हैं जबकि दूसरी तरफ दिल्ली सरकार के मंत्री इस मुद्दे पर बोलना नहीं चाहते। गोपाल राय से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि हमें इसकी जानकारी नहीं है। जब आधिकारिक तौर पर उनका बयान जानना चाहा तो उन्होंने फोन काट दिया।
जकात फाउंडेशन आॅफ इंडिया के उपाध्यक्ष एस.एम. शकील से फोन पर संपर्क किया तो उन्होंने संस्था के सचिव मुमताज नाजमी का मोबाइल नंबर दिया। लेकिन जब इस संवाददाता ने सचिव को फोन किया तो उन्होंने फोन काट दिया। अलबत्ता शकील ने सिर्फ यह बताया कि शरणार्थियों के शिविर को ‘दारुल हिजरत’ कहा जाता है, जहां दुनिया के किसी भी हिस्से से आने वाले शरणार्थियों को रहने की जगह दी जाती है। कालिंदी कुंज में रोहिंग्याओं को ‘दारुल हिजरत’ के तहत ही बसाया गया है। महत्वपूर्ण सवाल यह है कि देश की सुरक्षा को खतरे में डालकर रोहिंग्या मुसलमानों की मदद करने वाले लोग कौन हैं?
चैम्बर आॅफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज, जम्मू के अध्यक्ष राकेश गुप्ता ने कहा, ‘‘हजारों की संख्या में जम्मू में बसे रोहिंग्या न केवल फैल रहे हैं, बल्कि वे यहां वैवाहिक संबंध भी बनाने लगे हैं। जम्मू-कश्मीर के संविधान के मुताबिक, यहां देश के लोग ही नहीं बस सकते तो दूसरे देश के लोग कैसे बस गए? ये शरणार्थी भी नहीं हैं, क्योंकि सरकार को भी इनके बारे में जानकारी नहीं है। सुरक्षाबलों के पास भी इनके आंकड़े नहीं हैं। अगर कोई संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी शरणार्थी कार्ड की बात करता है तो उसकी कोई मान्यता नहीं है। कई दशक पहले पाकिस्तान से आए हिन्दू शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं। उन्हें अब तक नागरिकता नहीं मिली है। हमें रोहिंग्या मुसलमानों से खतरा है। इन्हें यहां से तत्काल हटाया जाना चाहिए।
रोहिंग्याओं के पैरोकार
दो रोहिंग्या मुसलमानों की ओर से 4 सितंबर को वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। इसमें केंद्र सरकार द्वारा रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने के फैसले को संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 51(सी) का उल्लंघन करार दिया गया है। तर्क दिया गया है कि अंतरराष्ट्रीय कानून इन शरणार्थियों की सुरक्षा की गारंटी देता है और उन्हें वापस भेजना इन कानूनों का उल्लंघन है। याचिका में रोहिंग्या मुसलमानों को जबरन वापस भेजने से सरकार को रोकने के लिए न्यायालय से दिशानिर्देश देने की मांग की गई है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस पर 11 सितंबर को सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से एक हफ्ते में जवाब देने को कहा था। इसी बीच, 8 सितंबर को रोहिंग्या मुसलमानों को देश में शरण नहीं देने की मांग करते हुए प्रख्यात विचारक गोविंदाचार्य ने भी शीर्ष न्यायालय में याचिका दायर कर दी। उनका कहना है कि रोहिंग्या मुसलमान देश के संसाधनों पर बोझ तो हैं ही, देश की सुरक्षा के लिए भी खतरा हैं। दिलचस्प बात यह है कि नामचीन वकीलों की फौज रोहिंग्याओं की पैरवी कर रही है। इनमें प्रशांत भूषण के अलावा, फाली एस. नरीमन, कपिल सिब्बल, राजीव धवन, अश्वनी कुमार और कोलिन गोंजाल्विस भी शामिल हैं।
आशंका बेवजह नहीं
केंद्र सरकार ने 18 सितंबर को सर्वोच्च न्यायालय में 16 पृष्ठों का जो हलफनामा दिया है, उसमें साफ-साफ कहा गया है कि अवैध रूप से घुसपैठ करने वाले रोहिंग्या मुसलमानों से देश की सुरक्षा को गंभीर खतरा है। इन्हें किसी भी हाल में देश में रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। ये देश में हवाला, फर्जी दस्तावेजों का कारोबार तो चला ही रहे हैं, मानव तस्करी जैसी देश विरोधी गतिविधियों में भी शामिल हैं। गृह मंत्रालय द्वारा दिए गए हलफनामे के मुताबिक, सुरक्षा एजेंसियों को पता चला है कि दिल्ली, मेवात, हैदराबाद और जम्मू में बसे कुछ रोहिंग्याओं के आतंकी संगठनों के साथ सक्रिय संपर्क हैं। रोहिंग्या बिना किसी वैध दस्तावेज के दलालों के जरिये देश में घुस आए हैं। इनके कारण कुछ हिस्सों में आबादी का अनुपात बिगड़ सकता है। देश में बसे 14,000 रोहिंग्याओं के पास संयुक्त राष्टÑ शरणार्थी कार्ड हैं, जबकि करीब 40,000 अवैध तरीके से रह रहे हैं। इनके कारण पूर्वोत्तर की स्थिति और बिगड़ सकती है। साथ ही, ये देश में रहने वाले बौद्ध नागरिकों के विरुद्ध हिंसक कदम उठा सकते हैं। इसलिए इन्हें संवैधानिक दर्जा नहीं दिया जा सकता है। रोहिंग्याओं को देश में शरण दिया जाए या नहीं, इस पर सर्वोच्च न्यायालय में 3 अक्तूबर को फैसला होगा।
बांग्लादेश ने भी बंद किए दरवाजे
उधर, बांग्लादेश ने भी कह दिया है कि वह लंबे समय तक रोहिंग्या मुसलमानों को अपने यहां नहीं रख सकता, क्योंकि ये देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। दुनिया में 50 से अधिक इस्लामी देश हैं, लेकिन कोई भी रोहिंग्याओं को अपने यहां शरण नहीं देना चाहता। यहां तक कि पाकिस्तान भी नहीं। म्यांमार से अब तक करीब चार लाख रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश में शरण ले चुके हैं। ये आंकड़े संयुक्त राष्टÑ के हैं। वहीं, रोहिंग्या मुद्दे पर तीखी आलोचना के बाद म्यांमार की स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची ने भी कहा, ‘‘रोहिंग्या मुसलमान आतंकी हमलों में शामिल हैं और उन्हीं ने बौद्धों पर हमले कराए। हमारे सुरक्षाबल हर स्थिति और आतंकी खतरे से निपटने में सक्षम हैं। हम आलोचनाओं से डरने वाले नहीं हैं। म्यांमार ने रोहिंग्याओं को संरक्षण दिया, लेकिन परिणाम क्या निकला?’’
लेकिन सरकार के फैसले का देश में ही विरोध हो रहा है। कांग्रेस सहित तमाम सेकुलर दल, मुस्लिम संगठन, तथाकथित बुद्धिजीवी मानवाधिकार का हवाला देकर रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में रहने देने की पुरजोर वकालत कर रहे हैं। रोहिंग्या मुसलमानों के समर्थन में मुस्लिम संगठन, मुस्लिम राजनीतिक दल और मानवाधिकार के झंडाबरदार दिल्ली सहित देशभर में प्रदर्शन कर रहे हैं। इसी सिलसिले में 16 सितंबर को दिल्ली के जंतर मंतर पर मुस्लिम संगठनों ने रोहिंग्याओं के समर्थन में न केवल प्रदर्शन किया, बल्कि सरकार विरोधी नारे भी लगाए। इनमें दिल्ली के सीलमपुर से कांग्रेस के पूर्व विधायक मतीन अहमद भी शामिल थे। रोहिंग्याओं के लिए खासकर एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की छटपटाहट कुछ ज्यादा ही है। इसी बीच, पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर ने खुलकर रोहिंग्या मुसलमानों का समर्थन किया है। उसने कहा है, ‘‘यह म्यांमार के मुसलमानों का ही बलिदान है कि पूरी दुनिया के मुसलमान एकजुट हो गए हैं।’’ उसने म्यांमार के बौद्ध नेता विराथू की आलोचना करते हुए कहा कि वह निहत्थे लोगों पर जुल्म ढा रहा है।
दरअसल, वोटबैंक के लिए देश की सुरक्षा को ताक पर रखकर न केवल बांग्लादेशियों और रोहिंग्या मुसलमानों को बसाया गया, बल्कि उन्हें नागरिकता सहित तमाम सुविधाएं दी जा रही हैं। सरकार के कदम से खासतौर पर वोटबैंक की राजनीति करने वाले दल तिलमिलाए हुए हैं।
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