मुद्दा :बेईमान सोच और सबक
July 13, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

मुद्दा :बेईमान सोच और सबक

by
Aug 28, 2017, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 28 Aug 2017 12:47:09

 

कम्युनिस्टों ने भारत को तोड़ने और यहां के बहुसंख्यक समाज पर दबाव बनाने के लिए हर उस मौके को विपरीत दिशा में पलटने की कोशिश की है जिसमें वे खुद फंसते दिखते हों। हैदराबाद विश्वविद्यालय में किसी रोहित की आत्महत्या को भी हिन्दू विरोध का विषय बनाकर प्रस्तुत किया गया। हिन्दू समाज के चिंतकों, बुद्धिजीवियों को ऐसे पैंतरों को पहचानकर उनका सही और तर्कपूर्ण जवाब देना होगा

  प्रो. शंकर शरण
अब वह बात आधिकारिक जांच में भी प्रामाणिक रूप से कही जा चुकी है जो रोहित वेमुला की आत्महत्या के तुरंत बाद सामने थी। यानी, उन सबके सामने जो जान-बूझकर सत्य को अनदेखा कर भाजपा-विरोधी या हिंदू-विरोधी राजनीति की झक नहीं पालते। पिछले साल जनवरी में हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित ने आत्महत्या के साथ एक अंतिम नोट छोड़ा था। उसे पढ़कर साफ झलकता था कि उसने निजी निराशा में अपना अंत किया था। बल्कि, यदि उसे किन्हीं से चोट पहुंची थी तो उन्हीं से पहुंची थी जिनके साथ वह रहा था। यानी, वामपंथी, रेडिकल, हिन्दू-विरोधी गुट। साथ ही रोहित दलित नहीं, मध्य जातियों (ओ.बी.सी.) से था। मगर इन तथ्यों की सरसरी अनेदखी कर देश-विदेश में हिंदू-विरोधी और भाजपा विरोधी अभियान सफलतापूर्वक चलाया गया।
कल्पना करें कि यदि प्रथम समाचारों में गलती से रोहित वेमुला के किसी सवर्ण जाति से होने की खबर रही होती, तो क्या वैसा कोई अभियान चलता? बिलकुल नहीं। वस्तुत: आए दिन तरह-तरह के पीड़ितों के समाचार आते हैं। लेकिन यदि वे किसी विशेष मजहब या जाति के न हों, तो उनकी हत्या या दुर्दशा को कीड़े-मकोड़ों के समान उपेक्षा से लिया जाता है। यह किस प्रकार की मानसिकता इस देश में बनाने की चाल है?  लंबे समय से ऐसी हालत हो गई है मानो इस देश में कई स्तर के नागरिक हों। कुछ ऐसे जिनकी वेदना का कोई मोल नहीं। जैसे, कश्मीरी पंडित। दूसरे, ऐसे जिनके लिए विविध विशेष सुविधाओं के बाद भी उनकी शिकायतों का अंत नहीं रहता। यह राष्ट्रीय एकता के लिए खतरनाक स्थिति है। इसमें भिन्न प्रकार के नागरिकों में विभाजक, शिकायती, स्वार्थी और उदासीन मानसिकता पनपती रहती है। हमें देखना चाहिए कि किन्हीं समुदायों को स्थायी रूप से वंचित, पीड़ित और अन्य को शोषक, धूर्त आदि कहते रहने से कुछ दलों को भले लाभ हुआ हो, मगर देश की घोर हानि
हुई है।
इसका एक उदाहरण रोहित है। वस्तुत: उसका अंतिम नोट ध्यान से सोचने का विषय था, जिसे हिन्दू-विरोधी राजनीति के दबाव में भुला दिया गया। रोहित को हिन्दू-विरोधी गुटों ने अपने साथ कर लिया था, मगर उनसे उसे घोर निराशा हुई थी। जरा सोचें, आखिर उसे अपने जीवन में डॉ. आंबेडकर जितना कष्ट, अपमान तो नहीं सहना पड़ा था। फिर, वह क्यों विचार से ‘खाली’ हो गया? रोहित को कम्युनिस्ट और चर्च-मिशनरी संगठनों ने अपनी ओर खींचा था। संवेदनशील, विवेकशील रोहित ने जल्द ही उस भूल को पहचान लिया, जिसमें लोगों का ‘प्रकृति से तलाक’ हो चुका है, ‘आदमी की कीमत एक वोट’ भर हो गई है।
दुर्भाग्य से रोहित को समय रहते उचित मार्गदर्शन, ज्ञान, सुसंगति नहीं मिल सकी, और एक कमजोर क्षण उसने अपना प्राणांत कर लिया। यह उसकी सहृदयता थी कि उसने किसी को दोष नहीं दिया। लेकिन विगत साल-दो साल की उसकी फेसबुक टिप्पणियां, अन्य गतिविधियां दिखाती हैं कि वह हिन्दू-विरोधी तत्वों के सक्रिय संसर्ग में था। इसी पृष्ठभूमि में उसके अंतिम पत्र में निराशाजनक टिप्पणियों का अर्थ समझना चाहिए।
यह एक सबक है कि किसी हिन्दू को हिन्दू चेतना और हिन्दू समाज से अलग करने, तोड़ने का तार्किक परिणाम उसे निर्बल करना है, भारतीय ज्ञान-परंपरा के जीवंत स्रोत से अलग करना है। ताकि उन्हें साम्राज्यवादी मतवादों, मजहबों का शिकार बनाना आसान हो। जबकि स्वयं डॉ. आंबेडकर ने इसके विरुद्ध चेतावनी दी थी। वे धर्म और संस्कृति में विदेशी प्रेरणाओं को नितांत हानिकर मानते थे। इस प्रकार, हिन्दू धर्म के शत्रुओं के संदर्भ में उन्होंने हिन्दू-पक्षी भूमिका निभाई थी। उनकी इस विरासत को हिन्दू-विरोधियों ने अधिक समझा था। इसीलिए आज डॉ. आंबेडकर के नाम पर चलने वाले कई संगठन उनकी स्वदेशी, आत्माभिमानी सीखों को याद नहीं करते, क्योंकि उनके मिशनरी सरपरस्त उन्हें हिन्दू-विरोधी बनाना चाहते हैं।
जिस तरह से एक निजी निराशा और आत्महत्या को ‘दलित पर अन्याय’ कहकर राजनीतिक अभियान चलाया गया, उससे हमारे देश की रुग्ण बौद्धिक स्थिति पर भी ध्यान जाना चाहिए। दु:ख की बात है कि जो लोग इस पर ध्यान दे सकते थे, वे भी उतना न दे पाए। राजनीतिक, चुनावी या दलीय जीत मात्र को राष्ट्रीय उन्नति का प्रमाण नहीं समझना चहिए। हिन्दू-विरोधी ताकतें अत्यधिक अनुभवी, सतर्क, संपन्न, धैर्यवान और कटिबद्ध हैं। उन्होंने एक गैर-दलित की निजी हताशा को भी सरलता से हिन्दू-विरोधी धार कैसे दे दी?
इसीलिए, क्योंकि कई हिन्दू नेता और समाज इसके प्रति लापरवाह रहते हैं। वे विमर्श के वर्गीकरण, शब्दावली को बदलने की कोशिश नहीं करते, और हिन्दू-विरोधी तत्वों द्वारा खड़ी गई दुष्टतापूर्ण शब्दावली ही अपना लेते हैं। जरा ध्यान दीजिए कि हमारे विमर्श में किसी भी प्रसंग में ‘दलित’, ‘मुस्लिम’, ‘वामपंथी’, ‘मराठी’ आदि विशेषण नियमित प्रयोग होते हैं। इसकी तुलना में ‘राष्ट्रीय’, ‘हिन्दू’, ‘मानवीय’, ‘सामाजिक’, ‘भारतीय’, जैसे विशेषणों के साथ सहज टीका-टिप्पणी नगण्य रहती है। जब इन विशेषणों का प्रयोग होता भी है तो व्यंग्य या विद्रूप के साथ। अर्थात् कह सकते हैं, कुछ बुद्धिजीवियों में विभाजनकारी मानसिकता का प्रभाव अधिक है। वे किसी घटना, स्थिति या समस्या को राष्ट्रीय या मानवीय दृष्टि से नहीं देख पाते। जिन्हें इस प्रवृत्ति के विरुद्ध संघर्ष करना चाहिए था, वे भी कहीं न कहीं चूक गए। उलटे वे भी इसी शब्दावली को अपनाकर बात करने लगते हैं। यह एक कारण है कि जब रोहित या अश्फाक जैसा अभियान शुरू होता है तो वे बेबस हो जाते हैं।  
विमर्श की ऐसी कुटिल, विभाजक शब्दावली पहले से ही हिन्दू-विरोधी पलड़े को एक वजन दिए रखती है। उसके लिए कोई हत्या, आत्महत्या, आतंकी कांड तक मानवीय चिन्ता नहीं, बल्कि राजनीतिक उठा-पटक भर हो जाता है। यद्यपि सामान्यजन की दृष्टि भिन्न है। आम आदमी प्राय: दोषी-निर्दोष, मानवीय-अमानवीय, उचित-अनुचित जैसे वर्गीकरण को महसूस करता है। जबकि बुद्धिजीवी, टिप्पणीकार, नेता आदि हर चीज में जाति, धर्म, संप्रदाय, राजनीति आदि के विशेषण लगा कर वातावरण को विषाक्त बनाते रहते हैं।
इसके दुष्प्रभाव में जिसने जाति, संप्रदाय आदि से जोड़कर किसी घटना को न देखा हो, उसे भी विवश किया जाता है कि वह राष्ट्रीय, सामाजिक या मानवीय नहीं, बल्कि विभाजक दृष्टि से ही देखे, विचारे। हमें इस प्रवृत्ति को निर्मूल करने पर ध्यान देना चाहिए। यह हमारे विश्वविद्यालयी युवाओं को नियमित रूप से दिग्भ्रमित करती रहती है। वे विभाजक राजनीति को शोषित-वंचित पक्षधरता समझ कर भोलेपन में राष्ट्र-विरोधी, हिन्दू-विरोधी बन जाते हैं। जेएनयू का समाज विज्ञान और साहित्य विभाग मुख्यत: इसी बौद्धिकता से ग्रस्त रहा है।
किन्तु यह विभाजक बौद्धिकता देश के लिए अत्यंत घातक है। यह इस सामान्य सचाई को झुठलाती है कि कोई अपराध मात्र लोभ, निराशा आदि वैयक्तिक कमजोरियों का भी फल हो सकता है। इस तरह हर पाठक या श्रोता को एक मनुष्य या एक भारतीय के बजाए किसी-न-किसी विभाजक खाने में धकेलने, सिमटने को प्रेरित किया जाता है। भारत को सबसे अधिक अंदरूनी खतरा इस मानसिकता से है जो ऐसी बौद्धिकता को दिन-रात हमारे युवाओं में भरती रहती है।  
किसी भी दिन इस घातक प्रवृत्ति को प्रसारित होते देख सकते हैं। कुछ अरसा पहले एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के नए कुलपति की नियुक्ति का समाचार छपा। एक संवाददाता ने उनसे पहला ही प्रश्न पूछा कि ‘क्या आप आर.एस.एस. के आयोजन में शामिल हुए थे?’ वे कुलपति एक प्रसिद्ध राष्ट्रीय संस्थान के प्रोफेसर थे। मगर उनकी अकादमिक उपलब्धियों या विश्वविद्यालय शिक्षण पर चर्चा के बदले उनसे ‘आर.एस.एस.’ पर पूछा गया। पूरे समाचार में यही मुख्य बात थी। यह समाचार एजेंसी के माध्यम से इसी रूप में देशभर के अखबारों में छपी। यह कैसी मनोवृत्ति है? एक संकीर्ण, छीछालेदर प्रवृत्ति, जो हर बात का राजनीतिकरण कर राष्ट्रीय भावना को कमजोर करती है।
कृपया कोई भ्रम न पालें। क्रिकेट, धन या सिनेमा के पैमानों से राष्ट्रवाद को मापना गलत है। वह सब क्षणिक आवेश में संभव है। किन्तु सच्ची राष्ट्रीय चेतना दूसरी चीज है। उसमें देश की धरती, धर्म-संस्कृति, लोग और समस्याओं के प्रति एक नि:स्वार्थ चिन्ता होती है। उसमें देश के लिए कुछ देने, कुछ करने का भाव होता है। हमेशा अपने लिए कुछ लेने, और दूसरों की अनदेखी राष्ट्रीय भावना या देशभक्ति नहीं है। लेकिन हमारा राजनीतिक-बौद्धिक विमर्श इसी भाव से चलता है। इसी को पोषित करता है। बल्कि इसी पर अहंकार भी पालता है, कि वह अमुक वर्ग या समुदाय के लिए लड़ रहा है। उसे इसकी समझ तक नहीं है कि निरंतर इस प्रवृत्ति से देश की एकीकृत समझ ही लुप्त हो रही है!
देश से पहले किसी न किसी वर्ग या समुदाय की झक से ही ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे… इंशाअल्लाह…’ जैसे नारों को सहानुभूति देने की प्रवृत्ति बनती है। बल्कि जो ऐसा न करे, उसे ‘असहिष्णु’ बताने की जिद भी ठनती है। यही मानसिकता देश की बौद्धिकता पर हावी है, जो आइडिया आॅफ इंडिया की ऐसी अवधारणा बनाती है जिसमें ‘देश के टुकड़े’ करना भी शामिल है। इस नासमझी के दो ही मायने हो सकते हैं। एक, उसे देश की अखंडता जरूरी नहीं लगती। या वह अखंडता को ‘फॉर-ग्रांटेड’ लेती है, कि वह तो रहेगी ही।
दोनों ही बताते हैं कि हमारा आम राजनीतिक-बौद्धिक वर्ग कितना अबोध है। उसे न तो 1947 के भारत-विखंडन से उपजी भयावह, अंतहीन समस्याओं की समझ है, न दुनिया के हालात की, न देश के अंदरूनी-बाहरी शत्रुओं की शक्ति या कटिबद्धता की। इस अबोधावस्था में ही अनेक नेता और बुद्धिजीवी केवल दलीय, सामुदायिक, वर्गीय प्रचार चलाते रहते हैं और इस तरह, देश की जड़ में मट्ठा डालते रहते हैं। देश की जड़ में जल देने के बदले मट्ठा डालने को ही सेक्युलर, प्रगतिशील, आधुनिक या ‘इन्क्लूसिव’ विमर्श कहा जा रहा है। इसका खतरा समझा जाना चाहिए।  हमारा चालू विमर्श घोर पार्टी-बंदी पर आधारित है। इस स्थिति में भारत के विकास, आर्थिक-तकनीकी उन्नति की बातें आत्म-छलना हैं। हमारे अखबारों की टीका-टिप्पणियां रोज दिखाती हैं कि हमारे अनेक प्रभावशाली बुद्धिजीवी और नेता अपने मतवादी, दलगत या संकीर्ण स्वार्थ के सिवा प्राय: कोई बड़े मापदंड नहीं रखते। इसीलिए 1989 में कश्मीरी हिन्दुओं की रक्षा करने कोई नहीं आया! वरना वह एक निर्णय और चार दिन का काम था। वह प्रसंग देश-हित को पीछे रखने और बौद्धिक-राजनीतिक नासमझी का ही उदाहरण था।
वहीं विविध घटनाओं में भी देखा जाता है। किसी हिन्दू स्त्री के बलात्कार या उसकी आत्महत्या पर शोर-शराबा नहीं मचता, क्योंकि बलात्कारी दूसरे समुदाय का था। मगर किसी जाति-विशेष के छात्र की आत्महत्या, चाहे वह वैयक्तिक कारण से ही हुई हो, पर दुनियाभर में आंदोलन करवाया जाता है, क्योंकि उस के बहाने किसी दल और हिन्दू धर्म-समाज को लांछित, विखंडित किया जा सकता है। किन्तु जब पीड़ित ब्राह्मण या वणिक हो, तो किसी के कान पर जूं नहीं रेंगती। यह देश का धीरे-धीरे कमजोर होना है, हमें इसे समझना चाहिए।
ऐसे राजनीतिक-बौद्धिक चलन में देश की चिन्ता नहीं है। मानवता की परवाह नहीं है। अपनी धर्म-संस्कृति और कर्तव्य की चेतना नहीं है। ऐसे नेता, बुद्धिजीवी सत्ता, सुख-सुविधा पाने, उसे भोगने के सिवा किसी कठिन कार्य को करना तो क्या, देखने से भी मुंह चुराते हैं। यह हालत विकास है, या हृास? हम भारत के असंख्य लोग देश के अंदर ही दुष्ट, अत्याचारी, धूर्त्त और अतिक्रमणकारियों के सामने असहाय बने रहते है बंगाल से लेकर केरल तक ऐसी घटनाएं रोज हो रही हैं।
आक्रमण, अत्याचार केवल बाहरी सैनिक हमलों से ही नहीं होता। आज वह नियमित उग्र बयानबाजी, आतंकी हमले, जनसांख्यिकीय प्रहार, संगठित कन्वर्जन, जाति-धर्म देखकर पीड़ित की उपेक्षा, पुलिस व्यवस्था के लचरपन आदि कितनी तरह से हो रहा है। हमारे बुद्धिजीवी और मीडिया इन अत्याचारों पर सोचने के बजाए किसी न किसी दलीय राजनीति में लग पड़ते हैं। साफ है, इससे देश को सीधी हानि होती है।
जिस देश के अनेक नेता और बुद्धिजीवी विभाजक मानसिकता में जीते हों, उसका किसी दूरगामी, व्यवस्थित, संगठित प्रहार से बचना कठिन है। अब तक भारत की विशाल हिन्दू आबादी ही इसकी अंतिम सुरक्षा के रूप में काम आ रही है। लेकिन जिस कटिबद्धता से उसे मजहब, जाति, भाषा, आरक्षण, विचारधारा, पार्टी आदि के नाम पर निरंतर तोड़ा जा रहा है, उसी का कुफल है कि किसी भी बिन्दु पर राष्ट्रीय, मानवीय, स्वतंत्र दृष्टि से सोचने-विचारने-करने वाले कम होते जा रहे हैं। इस के संभावित दुष्परिणामों पर सोचना चाहिए। विशेषकर उन तमाम शत्रु शक्तियों, विचारधाराओं और देशी-विदेशी कुटिल संगठनों, समीकरणों की पृष्ठभूमि में, जिन्हें भारत लंबे समय से झेल रहा है।
रोहित ही नहीं, उससे पहले घर-वापसी, अख्लाक और जेएनयू में अफजल-पूजा, ये सभी मुद्दे न्याय व राष्ट्रीय एकता के मुद्दों में बदले जा सकते थे। हर मुद्दे में ऐसा कोण था जिसे साफ नजर और कटिबद्ध मनोबल राष्ट्रीय चिन्ता में बदल सकता है। मगर नासमझी से उसे राजनीतिक उठा-पटक में बदलने दिया गया, और पीड़ित ही अभियुक्त बन गया। जिस घटना, दुर्घटना में भाजपा या हिन्दू धर्म-समाज का कोई दोष नहीं, वह भी इनके माथे मढ़ दिया जाता है। यह ‘राष्ट्रवादियों’ की वैचारिक दुर्बलता के    कारण ही होता है। उन्हें समय रहते इस पर ध्यान देना चाहिए।  
(लेखक प्रख्यात स्तंभकार और राजनीति शास्त्री हैं)

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

इंटरनेट के बिना PF बैलेंस कैसे देखें

EPF नियमों में बड़ा बदलाव: घर खरीदना, इलाज या शादी अब PF से पैसा निकालना हुआ आसान

Indian army drone strike in myanmar

म्यांमार में ULFA-I और NSCN-K के ठिकानों पर भारतीय सेना का बड़ा ड्रोन ऑपरेशन

PM Kisan Yojana

PM Kisan Yojana: इस दिन आपके खाते में आएगी 20वीं किस्त

FBI Anti Khalistan operation

कैलिफोर्निया में खालिस्तानी नेटवर्क पर FBI की कार्रवाई, NIA का वांछित आतंकी पकड़ा गया

Bihar Voter Verification EC Voter list

Bihar Voter Verification: EC का खुलासा, वोटर लिस्ट में बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल के घुसपैठिए

प्रसार भारती और HAI के बीच समझौता, अब DD Sports और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर दिखेगा हैंडबॉल

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

इंटरनेट के बिना PF बैलेंस कैसे देखें

EPF नियमों में बड़ा बदलाव: घर खरीदना, इलाज या शादी अब PF से पैसा निकालना हुआ आसान

Indian army drone strike in myanmar

म्यांमार में ULFA-I और NSCN-K के ठिकानों पर भारतीय सेना का बड़ा ड्रोन ऑपरेशन

PM Kisan Yojana

PM Kisan Yojana: इस दिन आपके खाते में आएगी 20वीं किस्त

FBI Anti Khalistan operation

कैलिफोर्निया में खालिस्तानी नेटवर्क पर FBI की कार्रवाई, NIA का वांछित आतंकी पकड़ा गया

Bihar Voter Verification EC Voter list

Bihar Voter Verification: EC का खुलासा, वोटर लिस्ट में बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल के घुसपैठिए

प्रसार भारती और HAI के बीच समझौता, अब DD Sports और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर दिखेगा हैंडबॉल

वैष्णो देवी यात्रा की सुरक्षा में सेंध: बिना वैध दस्तावेजों के बांग्लादेशी नागरिक गिरफ्तार

Britain NHS Job fund

ब्रिटेन में स्वास्थ्य सेवाओं का संकट: एनएचएस पर क्यों मचा है बवाल?

कारगिल विजय यात्रा: पूर्व सैनिकों को श्रद्धांजलि और बदलते कश्मीर की तस्वीर

four appointed for Rajyasabha

उज्ज्वल निकम, हर्षवर्धन श्रृंगला समेत चार हस्तियां राज्यसभा के लिए मनोनीत

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies