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पतंजलि योग पीठ, हरिद्वार
मूलमंत्र : योग से रहो निरोग
विशेषता : प्राचीन योग विधा को फिर लोकप्रिय बनाया
योगी, राजनीतिज्ञ, आंदोलनकारी…बाबा रामदेव के अनेक आयाम हैं, लेकिन उनकी पहचान का सबसे बड़ा आधार है—योग। कहा जाता है कि जब वे ढाई साल के थे, तब उन्हें लकवा मार गया, परंतु योगाभ्यास से उन्होंने इस बाधा को भी दूर कर लिया।
हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के हजारीबाग अली सैयदपुर गांव के एक किसान परिवार में 25 दिसंबर, 1965 को बाबा रामदेव का जन्म हुआ। उनके पिता रामनिवास यादव और मां गुलाबो देवी, दोनों ही खेतीबाड़ी करते थे। माता-पिता ने प्यार से उनका नाम रामकृष्ण यादव रखा। लेकिन स्वामी शंकरदेव जी से संन्यास की दीक्षा लेने के बाद उन्होंने अपना नाम स्वामी रामदेव रख लिया। उन्होंने अनेक गुरुकुलों में योग, संस्कृत, भारतीय शास्त्रों आदि की शिक्षा ली और आखिर में वे हरिद्वार स्थित गुरुकुल कांगड़ी गए जहां उन्होंने भारत के प्राचीन ग्रंथों के अध्ययन में अनेक वर्ष लगाए।
1995 में उन्होंने दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट की स्थापना की। उनके जीवन में 2003 में तब बड़ा परिवर्तन आया जब आस्था चैनल ने सुबह उनके योग कार्यक्रमों का प्रसारण आरंभ किया। इसे देखकर उनके लाखों प्रशंसक बन गए। उन्होंने धीरे-धीरे देशभर में योग शिविरों का आयोजन आरंभ कर दिया। उनके योग शिविरों में आम आदमी ही नहीं, अनेक विभूतियां भी भाग लेने लगीं।
बाबा रामदेव ने भारत ही नहीं, विदेशों में भी योग शिविरों का आयोजन किया। इंग्लैंड, अमेरिका, जापान आदि में उन्होंने खूब धूम मचाई। 2006 में संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव कोफी अन्नान ने उन्हें गरीबी उन्मूलन पर भाषण देने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में आमंत्रित किया। बाबा रामदेव ने अन्य पंथों के विद्वानों के साथ विचार-विमर्श को भी बढ़ावा दिया और देवबंद में इस्लामिक विद्वानों को संबोधित किया। दुनिया भर में योग के प्रति जिज्ञासा और जागरूकता जगाने के बाद बाबा रामदेव ने अपने प्रयासों को संस्थागत रूप देने के लिए हरिद्वार में पतंजलि योगपीठ की स्थापना की। इसमें योग शिक्षा, अनुसंधान, चिकित्सा आदि की सुविधाएं हैं। आज इसकी शाखाएं इंग्लैंड, अमेरिका, नेपाल, कनाडा और मारिशस में भी फैल चुकी हैं।
इसके बाद बाबा रामदेव ने पतंजलि आयुर्वेद की स्थापना की। 2006 में हरिद्वार में आरंभ की गई यह कंपनी मुख्यत: डिब्बाबंद उपभोक्ता सामग्री बेचती है। 2016 के आंकड़ों के मुताबिक 10 वर्ष में ही इसका कारोबार बढ़कर 45 अरब रुपए तक पहुंच चुका था। बाबा रामदेव की सफलता ने कोलगेट, डाबर, आईटीसी, गोदरेज जैसी स्थापित कंपनियों को भी अपनी रणनीतियों के बारे में फिर से सोचने के लिए मजबूर किया।
2010 में बाबा ने भारत स्वाभिमान नाम के दल के साथ राजनीति में कदम रखा। पहले उनका विचार हर लोकसभा क्षेत्र में उम्मीदवार उतारने का था, लेकिन बाद में उन्होंने तय किया कि वे महत्वपूर्ण मसलों पर जनमत तैयार कर राजनीतिक दलों पर जनता के हित में काम करने के लिए दबाव बनाएंगे।
लोकपाल बिल में दंडात्मक प्रावधान जोड़ने, विदेशों से कालाधन वापस लाने और भ्रष्टाचार समाप्त करने की मांग को लेकर उन्होंने दिल्ली के रामलीला मैदान में 4 जून, 2011 को अनशन शुरू किया। उनके साथ करीब 65,000 लोग भी धरने पर बैठे। रात को दिल्ली पुलिस ने कहा कि अनुमति योग शिविर के लिए दी गई है, धरने के लिए नहीं। यहां सिर्फ 5,000 लोगों के आने की इजाजत है। इसके बाद पुलिस ने अभूतपूर्व दमन शुरू किया। लाठियां बरसार्इं गर्इं, आंसू गैस के गोले छोड़े गए और पंडाल में आग लगा दी गई। बाबा को गिरफ्तार करने की कोशिश की गई, लेकिन वे बच निकले।
संप्रग सरकार के दमनकारी रवैये के बावजूद बाबा रामदेव ने अदम्य साहस के साथ परिस्थितियों का जमकर सामना किया और अपने मुद्दों को लेकर देश भर का दौरा किया। भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी संप्रग सरकार का 2014 में सफाया हो गया, लेकिन बाबा रामदेव ने अब भी अपने मुद्दों को नहीं छोड़ा है। उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने इस विषय में एक के बाद एक कड़े कदम उठाए हैं जिनका बाबा ने भरपूर समर्थन किया है।
योग शिक्षा में बाबा रामदेव की उपलब्धियों और देश सेवा के प्रति उनके अटल समर्पण को देखते हुए देश-विदेश की अनेक संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया है। 2007 में ब्रिटिश हाउस आॅफ कॉमंस ने उन्हें सम्मानित किया। एसोचेम और अमेरिकी राज्य न्यू जर्सी की विधानसभा ने भी उन्हें सम्मानित किया है। ल्ल
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