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संस्था : ईशा फाऊंडेशन
मुख्यालय : कोयंबतूर
मूलमंत्र : अपने को सुधारो
विशेषता : आंतरिक बदलाव शिविर
जग्गी वासुदेव आधुनिक युग के ऐसे आध्यात्मिक गुरु हैं जिन्होंने धर्मगुरुओं की परंपरागत छवि को तोड़ा है। पहनावे से लेकर जीवन-शैली तक, सब लीक से हट कर। उन्होंने योग को अपना आधार बनाया, लेकिन साथ ही मन के परिवर्तन पर जोर दिया। मन बदलो, सब कुछ बदलेगा। पहले स्वयं को बदलो, यही उनका मुख्य उपदेश है। स्वयं के बदलाव को उन्होंने नाम दिया ‘इनर इंजीनियरिंग’। वे देश-विदेश में इसी के शिविर चलाते हैं। उनकी इस नयी सोच का ही शायद परिणाम है कि समाज का उच्च और आधुनिक तबका, धर्म-कर्म से दूर रहने वाली युवा पीढ़ी उनके साथ जुड़ गई। बहुत से युवा उनके साथ जुड़े हैं, जो अपनी हाई प्रोफाइल नौकरी छोड़कर जग्गी गुरुदेव के अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं।
उनकी लोकप्रियता, स्वीकार्यता और समाज परिवर्तन में योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें इस साल देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी महाशिवरात्रि के अवसर पर उनके कोयंबतूर आश्रम गए थे, जहां उन्होंने आदियोगी भगवान् शिव की 112 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया था। राजनीतिक गलियारों और देश के जाने-माने उद्योगपतियों में उनकी अच्छी-खासी पैठ है।
जग्गी वासुदेव का जन्म कर्नाटक के मैसूर में 3 सितंबर, 1957 को हुआ। उनके पिता डॉ. वासुदेव रेलवे में सुप्रसिद्ध नेत्र विशेषज्ञ थे। मां सुशीला सद्गृहिणी थीं। उनका नाम जगदीश रखा गया। रेलवे की नौकरी के कारण पिता का जगह-जगह स्थानांंतरण होता रहता था। बारह वर्ष की आयु में जग्गी वासुदेव स्वामी राघवेंद्र के संपर्क में आए, जिन्होंने उन्हें योगासन सिखाए। स्वामी जी ने नन्हे बालक के मन में योग के बीज बो दिए। स्कूल, कॉलेज की पढ़ाई पूरी की, लेकिन योग से नाता बनाए रखा। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में मैसूर युनिवर्सिटी से बीए किया। उन्हें घुमक्कड़ी का बहुत शौक था। दोस्तों के साथ मोटरसाईकिल पर लंबी-लंबी यात्राएं कीं। रोजी-रोटी के लिए कुछ छोटे- मोटे व्यापार किए। पोल्ट्री फार्म खोला। र्इंटों का भट्टा चलाया, भवन निर्माण का काम किया। लेकिन उनके लिए भगवान् ने कुछ और ही मार्ग चुन रखा था। सितंबर1982 में उनके जीवन में नया मोड़ आया। चामुंडा पहाड़ियों पर जब वे कुछ देर बैठे तो उन्हें आध्यात्मिक अनुभव हुए। उसके बाद उनका व्यापार में दिल नहीं लगा। लगभग डेढ़ महीने बाद अपना व्यापार अपने मित्र को सौंप कर वे आध्यात्मिक मार्ग पर चल पड़े। ज्ञान और सत्य की खोज में लगे रहे। एक साल तक अलौकिक शक्तियों की खोज, योग, ध्यान, मनन करते रहे। और जब उन्हें लगा कि अब जीवन में कुछ पा लिया है तो उन्होंने योग की निशुल्क कक्षाएं लेनी शुरू कर दीं। पहली योग कक्षा मैसूर में सात लोगों के साथ शुरू की। फिर सिलसिला बढ़ता गया।
जग्गी वासुदेव ने स्वयं को किसी एक धर्म के साथ नहीं जोड़ा। उन्होंने सब पंथों के लोगों का सम्मान और स्वागत किया। उनके कोयंबतूर आश्रम के साधना कक्ष में हर पंथ के प्रतीक चिन्ह हैं। लगभग 76 फुट ऊंचे ध्यानलिंगम् पर दुनिया के सभी मुख्य पंथों के प्रतीक उकेरे गए हैं। उनके अनुयायियों में हर पंथ, हर आयु के लोग हैं। ईशा योग फाउंडेशन की स्थापना 1993 में की गई थी। यह एक गैर धार्मिक स्वयंसेवी संस्था है जिसे स्वयंसेवी चलाते हैं। यहां आत्म जागृति और योग के विभिन्न कार्यक्रम होते हैं। ईशा फाउंडेशन संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक
और सामाजिक संस्था के साथ मिलकर काम करता है ।
ये आधुनिक धर्मगुरु आत्मचेतना, आत्मसुधार, योग, मनन के साथ-साथ बहुत-सी सामाजिक संस्थाएं भी चलाते हैं। प्रोजेक्ट ग्रीन हेंड नाम से वे तमिलनाडु में पर्यावरण बचाने की जोरदार मुहिम चला रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान के लिए 2012 में उन्हें दुनिया के 100 शक्तिशाली लोगों की सूची में शामिल किया गया था। संयुक्त राष्ट्र के मिलेनियम विश्वशांति शिखर सम्मेलन में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया और भारत की प्राचीन शांति की अवधारणा के बारे में दुनिया को बताया। हर वर्ष महाशिवरात्रि पर कोयंबतूर आश्रम में महादेव का भव्य रुद्राभिषेक किया जाता है। रात भर जागरण चलता है। वे कैलास-मानसरोवर की यात्रा पर लगभग 500 लोगों का जत्था लेकर गए थे। वे आत्म सुधार पर जोर देते हैं। उन्होंने धर्मगुरु की एक नयी अवधारणा गढ़ी है, जिसे सहज स्वीकार कर लिया गया है। ल्ल
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