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झूठी और भ्रामक खबरें परोसने में लगा मीडिया खुद अपने लिए कांटे बो रहा
अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर लाल-पीले हो रहे लोगों का रंग उतरते देरी नहीं लगी। नए-नए घोटालों में फंस रहे लालू यादव ने रिपब्लिक टीवी के रिपोर्टर से बदसलूकी की। गालियां दीं। लेकिन दिल्ली का ‘आजाद मीडिया’ मुंह सिले रहा। पिछले दिनों में शहाबुद्दीन से रिश्तों से लेकर काली कमाई को सफेद बनाने तक लालू यादव के खिलाफ कई बड़े खुलासे हुए हैं। लेकिन मीडिया का एक तबका इन पर चुप्पी साधे हुए है। पहले बिहार के मुख्यमंत्री और फिर रेल मंत्री और अब अपने बेटे-बेटियों के जरिए लालू यादव ने जैसी लूट मचाई है, उस पर दिल्ली के मीडिया की चुप्पी चिर-परिचित है। पहली बार किसी चैनल ने इस संगठित लूट से जुड़ी खबरें दिखाना शुरू किया है।
उधर, खुद ही घोटाले में फंसे एनडीटीवी चैनल की सच्चाई हर दिन सामने आती जा रही है। मीडिया की एकता के नाम पर प्रेस क्लब में जुटाए जमघट से साफ हो गया कि एनडीटीवी के साथ वही हैं, जो पेशेवर तरीके से भाजपा विरोध की रोटी खा रहे हैं। जो कभी पत्रकारों के हितों और अधिकारों के लिए खड़े नहीं हुए, वे कॉर्पोरेट घपले में शामिल एक चैनल के मालिक को बचाने के लिए एकजुट हो गए। यही कारण है कि आम पत्रकारों से जुड़ी तमाम संस्थाएं इस आयोजन से दूर रहीं।
कोई निष्पक्षता का कितना भी ढिंढोरा पीटे, सच्चाई यही है कि मीडिया का एक तबका ऐसा है जो मोदी और हिंदुत्ववादी ताकतों को सत्ता में नहीं देख सकता। उसके लिए जनता की चुनी हुई सरकारें बेमतलब हैं। इसीलिए अपने घपलों-घोटालों के खुलासे पर ये लोग आंख दिखाने लगे हैं और खुद को सताया हुआ साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। मीडिया का यह ऐसा वर्ग है जो घात करने का कोई मौका नहीं छोड़ता। चाहे इसके लिए झूठी खबरें यानी ‘फेक न्यूज’ का सहारा ही क्यों न लेना पड़े।
इसी कड़ी में एक खबर फैलाई गई कि केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने एक पुस्तिका जारी करके कहा है कि गर्भवती महिलाओं को मांसाहारी भोजन और यौन संबंध बनाने से दूर रहना चाहिए। यह खबर पूरी तरह झूठी और शरारतपूर्ण पाई गई। पुस्तिका जारी करने वाली स्वायत्तशासी संस्था ने खुद कहा कि हमारा काम योग और आयुर्वेद का प्रचार करना है और पुस्तिका में कही बातें इसी के अनुरूप हैं। लेकिन शायद योग, आयुर्वेद जैसे प्राचीन भारतीय ज्ञान के लिए कुछ लोगों में इतनी नफरत भरी पड़ी है कि उन्हें इसमें भी विवाद खड़ा करने का मौका मिल गया।
दरअसल ऐसी शरारतें आमतौर पर अंग्रेजीपरस्त मीडिया करता है और फिर भारतीय भाषाओं के अखबार और चैनल बिना कुछ सोचे-समझे उसकी नकल करने लगते हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने देश के स्वतंत्र होने के बाद कांग्रेस के अस्तित्व को लेकर महात्मा गांधी की सूझबूझ भरी राय का जिक्र किया। भारतीय भाषाओं वाले जानते हैं कि उन्होंने एक मुहावरा बोला था जो तारीफ में इस्तेमाल होता है। मुश्किल तब बढ़ती है जब अंग्रेजी पत्रकार मुहावरों का शब्दश: अनुवाद करके अर्थ का अनर्थ कर देते हैं।
सिर्फ यही नहीं, आज के मीडिया में तमाम विषयों की मूलभूत जानकारी का अभाव दिखता है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि किसानों की कर्ज माफी में केंद्र की कोई भूमिका नहीं है। इसमें कुछ गलत नहीं है, क्योंकि यह काम राज्य सरकारों के तहत है। लेकिन आजतक चैनल ने सुर्खी बनाई कि ‘किसानों की कर्जमाफी के सवाल पर केंद्र ने हाथ खड़े किए।’
जो चैनल और अखबार आएदिन नोटबंदी के औचित्य पर प्रश्न खड़े करते रहते हैं, उन्हें जब अपने सवाल का जवाब मिला तो वे समझ ही नहीं पाए। पिछले दिनों वित्त मंत्रालय ने बताया कि नोटबंदी के ही कारण इस साल 91 लाख से ज्यादा लोग पहली बार टैक्स भरेंगे। ये वो लोग हैं जो लंबी कारों में चलते हैं और बड़ी-बड़ी कोठियों में रहते हैं। लेकिन टैक्स भरने के नाम पर बच निकलते थे। एक अर्थव्यवस्था के तौर पर यह बड़ी कामयाबी है। झूठी और भ्रामक खबरों में उलझे मुख्यधारा मीडिया ने इस पहलू को करीब-करीब नजरअंदाज कर दिया। यही स्थिति जीएसटी से जुड़ी मीडिया रिपोर्टिंग में देखने को मिल रहा है। किसी नई चीज को लेकर भ्रम होना स्वाभाविक है। लेकिन इस भ्रम के आधार पर किसी बदलाव को गलत साबित करने की मीडिया की प्रवृत्ति खुद उसी की विश्वसनीयता को दिनोंदिन कम कर रही है। उधर, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के एक छुटभैये नेता ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ले कर उलटी-सीधी टिप्पणियां कीं, लेकिन यह खबर कुछ स्थानीय अखबारों से आगे नहीं बढ़ी। वैसे तो ऐसी खबरों का कोई मतलब नहीं होना चाहिए, ऐसे बयान सिर्फ रातोंरात चर्चित होने के लिए दिए जाते हैं। लेकिन मीडिया को तब यह चीज ध्यान नहीं आती जब कुछ इसी तरह की बातें ममता बनर्जी या पी. विजयन के खिलाफ कही जाती हैं। यही कारण है कि ऐसे मीडिया की निष्पक्षता को लेकर सवाल उठते रहते हैं।
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