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कन्याकुमारी में विवेकानंद शिला स्मारक और विवेकानंद केन्द्र को साकार रूप देने वाले रा.स्व. संघ के वरिष्ठ प्रचारक एकनाथ रानाडे के व्यक्त्तित्व और कृतित्व पर हाल ही में एक चलचित्र तैयार हुआ है। इस मौके पर केन्द्र की उपाध्यक्ष पद्मश्री निवेदिता भिड़े से पाञ्चजन्य के सहयोगी संपादक आलोक गोस्वामी ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश :
विवेकानंद शिला स्मारक और विवेकानंद केन्द्र के निर्माण में खुद को पूरी तरह समर्पित कर देने वाले श्री एकनाथ रानाडे के व्यक्तित्व के बारे में क्या कहेंगी?
एकनाथ जी नितांत प्रामाणिक और नितांत निष्ठावान व्यक्ति थे। वे एक बार जो ठान लेते थे उसे पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। उनके बारे में ऐसा कहा जाता था, और मैंने भी यह अनुभव किया था कि वे ऐसा कभी नहीं कहते थे कि फलां चीज नहीं हो सकती, अगर करना होता था तो वे उसे करके ही रहते थे। उनके शब्दकोश में ‘असंभव’ शब्द नहीं था।
एकनाथ जी को शिला स्मारक बनाने की जिम्मेदारी सौंपने के पीछे उस वक्त के संघ नेतृत्व का क्या विचार रहा था?
हमें एकनाथ जी ने जो बताया, उसके हिसाब से उस वक्त जो कमेटी विवेकानंद शिला स्मारक के निर्माण का बीड़ा लेकर शुरू हुई थी, उसके कुछ लोग परम पूजनीय गुरुजी के पास गए थे और उनसे कहा था कि उन्हें इस काम को संभालने के लिए एकनाथ जी जैसे व्यक्ति की जरूरत है, क्योंकि वे हर काम को संभव कर दिखाने के लिए जाने जाते हैं। स्मारक के लिए सरकार से अनुमति नहीं मिल पा रही थी। तो कमेटी का कहना था, उस अनुमति के लिए अगर कोई प्रयास कर सकता है तो वे एकनाथ जी ही हैं। पहला कारण ये कि उनका बहुत विस्तृत संपर्क है, सब लोगों से परिचय है, दूसरा कारण उनके काम करने का तरीका यानी जो काम हाथ में लिया, उसे पूर्णता तक पहुंचाना। उनके बारे में यहां तक उदाहरण दिया जाता था कि अगर कुतुब मीनार को भी एक जगह से दूसरी जगह ले जाकर रखना है तो बिना एक र्इंट हिलाए वे उस काम को भी कर सकते थे। वे हर काम को बहुत बारीकी से करते थे।
गुरुजी ने कमेटी के अनुरोध के बाद क्या किया?
यह भी एक बार बातों-बातों में एकनाथ जी से ही सुना था कि वे किसी प्रवास पर निकलने ही वाले थे, लेकिन वे निकलते, उससे पहले ही गुरूजी ने उन्हें बुलाकर कहा कि विवेकानंद शिला स्मारक कमेटी वाले आपका मार्गदर्शन चाहते हैं,आपकी क्या राय है? एकनाथ जी ने बताया कि गुरुजी का उन्हें बुलाकर उनकी राय जानना उनके आदेश जैसा ही था। तो उन्होंने गुरुजी को कहा कि, ‘‘ठीक है, पर पहले मैं वहां जाकर उसका अध्ययन करूंगा कि क्या विषय है, कहां पर अटका है, क्या करना होगा।’’ उतना सब करने के बाद एकनाथ जी ने उस कार्य को हाथ में लिया।
उस समय उस कमेटी में कौन लोग थे?
उस समय यहां संघ के प्रांत प्रचारक दत्ताराम जी थे उस कमेटी में। तब वह कमेटी जिला स्तर की थी, लेकिन धीरे-धीरे वह प्रांत, फिर राष्टÑीय स्तर की कमेटी बन गई। कमेटी जब गुरुजी के पास वह प्रार्थना लेकर गई उस वक्त उसके अध्यक्ष थे श्री मन्नतपद्मनाभन।
हमने सुना है कि एकनाथ जी ने इस शिला स्मारक के निर्माण के लिए सबसे स्वेच्छा से, भले एक रुपया, दान करने का आह्वान किया था?
उससे पहले उन्होंने शिला स्मारक बनाने की अनुमति की मांग करने वाले पत्र पर 323 सांसदों के हस्ताक्षर लिए थे। इससे हुआ यह कि सब लोगों तक यह विषय पहुंच गया। इसके बाद पहले जैसा सोचा गया था कि वहां स्वामी जी की सिर्फ प्रतिमा स्थापित करेंगे, तो ध्यान में आया कि स्मारक का स्वरूप इतना लघु नहीं, भव्य होना चाहिए जो राष्टÑ की भव्यता को प्रतिबिम्बित करे।
इसके लिए बजट भी बहुत ज्यादा रहा होगा?
हां, पहले जो सिर्फ स्वामी जी की प्रतिमा लगाने की बात थी तब बजट था 6 लाख रुपए, लेकिन भव्य स्मारक बनाने की बात आई तो बजट बढ़कर एक करोड़ 20 लाख हो गया था।
ल्ल इतना पैसा उस दौर में इकट्ठा करना कोई आसान काम नहीं रहा होगा?
बिल्कुल, देश उस वक्त संकट के दौर से गुजर रहा था, राजनीतिक और आर्थिक स्तर पर भी क्योंकि 1965 का युद्ध हो चुका था। तब सोचा गया कि क्योंकि न चंदे में आम नागरिकों से एक-एक रुपया लें और राज्य सरकारों से एक-एक लाख रुपया लिया जाए। केरल सरकार को छोड़कर शेष सभी राज्यों ने मदद की। केरल में उस वक्त कॉमरेड ई.एम.एस. नम्बूदरिपाद मुख्यमंत्री थे।
लेकिन मांग पत्र पर तो कम्युनिस्ट सांसदों के हस्ताक्षर भी थे?
हां, उसमें कम्युनिस्ट सांसदोें के भी हस्ताक्षर थे। प्रयास यही था कि सबको जोड़ा जाए, सबकी सहमति से काम हो। कुछ कम्युनिस्ट नेताओं ने तो यहां तक कहा था कि ‘‘हमें लगता था कि हमें स्वामी विवेकानंद का विरोधी मानते हुए हस्ताक्षर कराने के लिए ये हमारे पास नहीं आएंगे, लेकिन हम तो विवेकानंद जी का सम्मान करते हैं’’। इसीलिए जब एकनाथ जी उन कम्युनिस्ट नेताओं के हस्ताक्षर लेने गए तो वे बहुत खुश हुए। नम्बूदरीपाद ने शायद किसी व्यक्तिगत विरोध की वजह से पैसा नहीं दिया था। खैर, इस तरह पैसा इकट्ठा करके माननीय एकनाथ जी के अनथक प्रयास के बाद यह शिला स्मारक बनकर तैयार हुआ।
पूरा होने के बाद इसका उद्घाटन कब हुआ, किसने किया?
1970 में शिला स्मारक बनकर तैयार हुआ। क्योंकि पूरे देश के लोगों ने इसे बनाने में आर्थिक सहयोग दिया था इसलिए एकनाथ जी के लिए स्वाभाविक था कि इसके उद्घाटन पर सबको बुलाया जाए। इसीलिए उद्घाटन का कार्यक्रम दो महीने का रखा गया। ऐसा इसलिए भी किया गया क्योंकि उस वक्त कन्याकुमारी में अतिथियों को ठहराने की उचित व्यवस्था भी नहीं थी।
सबसे पहले स्वामी वीरेश्वरानंद जी ने प्रतिमा की प्रतिष्ठापना की। बाद में तत्कालीन राष्टÑपति श्री वी.वी. गिरि ने स्मारक का औपचारिक उद्घाटन किया। फिर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और देश के दूसरे विशिष्टजनों ने वहां आकर चरणबद्ध तरीके से उद्घाटन किया।
विवेकानंद केन्द्र का विचार कैसे आया? इसकी स्थापना के बारे में क्या कहेंगी?
जिन दिनों शिला स्मारक का काम चल रहा था, उन दिनों एकनाथ जी के कमेटी के लोगों से हुए पत्राचार पर नजर डालें तो पता चलता है कि देश भर के लोग स्मारक के काम से जुड़े थे और उनका कन्याकुमारी आना-जाना होता था। एक पत्र में एकनाथ जी सलाह देते हैं कि क्योंकि काफी लोगों का आना-जाना होता है तो किराए की किसी जगह पर रहने की बजाए कोई जमीन लेकर वहां पहले थोड़ा अस्थायी निर्माण करने पर विचार करना अच्छा रहेगा। क्योंकि विवेकानंद का नाम सबको जोड़ने वाला है इसलिए आगे यह ऐसे केन्द्र के रूप में काम करेगा जहां से सब कार्य संचालित होंगे। 1968 में तो उन्होंने इस विषय पर सबसे खुलकर सुझाव मांगे थे। 1970 में शिला स्मारक का काम पूरा होने के बाद एकनाथ जी का स्वास्थ्य खराब रहने लगा था, दिल का दौरा भी पड़ा था। सेहत ठीक होने के बाद 1972 में उन्होंने विवेकानंद केन्द्र के निर्माण की घोषणा की और 1973 में वहां जीवनव्रती कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण शुरू हो गया।
ऐसे कर्मठ व्यक्तित्व पर केन्द्र की ओर से एक डाक्युड्रामा-एकनाथ जी:एक जीवन एक ध्येय-बनकर तैयार है। इसे बनाने की प्रेरणा कहां से आई?
हम जब 2014-15 में एकनाथ जी की जन्म शताब्दी मना रहे थे तब सोचा कि क्यों न उनके जीवन पर एक छोटी और एक विस्तृत फिल्म बनाएं। तो छोटी फिल्म पुणे के एक मिलिंद जी हैं, उन्होंने बना भी ली है। यह फिल्म जन्मशती वर्ष के दौरान बहुत जगह दिखाई भी गई। दूसरी 2 घंटे की फिल्म है जो चेन्नै के एक कार्यकर्ता श्री सुदर्शन अरवमुधन ने तैयार की है। सुदर्शन विवेकानंद केन्द्र के जीवनव्रती कार्यकर्ता ही थे। मां-पिता की इकलौती संतान होने के कारण कुछ साल पहले माता जी की तबियत खराब होने की वजह से वे घर लौट गये। दिल्ली से जनसंचार का कोर्स करने के बाद इंजीनियरिंग कर चुके सुदर्शन को चलचित्रों का अच्छा अनुभव मिला था। तो केन्द्र के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर उन्होंने यह फिल्म बनाई है।
मानवता की सेवा ही मिशन
मैं विवेकानंद केन्द्र का एक जीवनव्रती कार्यकर्ता रहा हूं। 2008 में मैं घरेलू कारणों से घर लौटा था। मैंने जनसंचार का कोर्स किया ही था सो 7-8 साल हो गए मुझे तमाम तमिल चैनलों पर डाक्युमेंट्री और मनोरंजक कार्यक्रम करते हुए। मेरे लिए एकनाथ जी पर डॉक्युड्रामा बनाना एक तरह से फिल्म के माध्यम से संघ कार्य करने जैसा ही रहा है। शुरुआत में हमें यह स्पष्ट नहीं था कि यह चित्राधारित डॉक्युमेंट्री बनेगी या डॉक्युड्रामा, लेकिन काम आगे बढ़ता गया और निवेदिता जी के साथ इस पर चर्चा हुई तो आखिरकार यह करीब 100 मिनट का डॉक्युड्रामा बनकर तैयार हुआ। कन्याकुमारी, चेन्नै, नागपुर, इंदौर, कोलकाता और अरुणाचल प्रदेश में फिल्माए गए इस डॉक्युड्रामा पर करीब एक करोड़ रुपए का खर्च आया है। हमने इस डॉक्युड्रामा के जरिए एक सकारात्मक संदेश दिया है इसलिए यह दर्शकों को प्रभावित करेगा। लोगों को एकनाथ जी के समर्पित जीवन की झलक मिलेगी। मेरी नजर में शिला स्मारक का निर्माण तो एक बड़े मिशन की शुरुआत भर था जो था मानवता की सेवा, जो आज विवेकानंद केन्द्र के माध्यम से चल रहा है।
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