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देश के इतिहास में पहली बार खादी की बिक्री का आंकड़ा 51,000 करोड़ रुपए को पार कर गया है। नामी कपड़ा कंपनियों का उत्पादन अधिक से अधिक छह प्रतिशत है तो वहीं खादी का उत्पादन 31 प्रतिशत बढ़ा है। इसके पीछे क्या कारण हैं, यह जानने के लिए अरुण कुमार सिंह ने खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना से बातचीत की। यहां प्रस्तुत हैं उसी बातचीत के मुख्य अंश:-
खादी की जो दुकानें बंद हो गई थीं, वे अब फिर से खुलने लगी हैं। इस चमत्कार का श्रेय किसको जाता है?
प्रधानमंत्री मोदी मानते हैं कि गांव मजबूत होगा तो देश मजबूत होगा। इसलिए उन्होंने मन की बात और कुछ अन्य समारोहों में कई बार लोगों से आग्रह किया है कि वे खादी अपनाएं। उनकी इस अपील को लोगों ने हाथोंहाथ लिया है। इससे खादी की बिक्री बढ़ी। जब बिक्री बढ़ी तो खादी से जुड़े उद्योग भी सक्रिय हो गए और जो दुकानें बंद हो गई थीं, वे भी खुलने लगीं। इस समय खादी की बिक्री 51,000 करोड़ रुपए के पार पहुंच गई है। यह स्वतंत्र भारत में सबसे अधिक है।
खादी में रोजगार की कितनी संभावनाएं हैं?
खादी में ही वह शक्ति है जो सबसे कम लागत में समाज के अंतिम व्यक्ति को रोजगार दिला सकती है। एक चरखे की कीमत 13,500 रु. है। एक चरखे से एक परिवार का आराम से भरण-पोषण हो सकता है। पिछले वर्ष 4,07,000 और उससे पहले वर्ष लगभग सवा दो लाख लोगों को रोजगार मुहैया कराया गया है। यह संख्या हर वर्ष बढ़ रही है।
नई सरकार के आने के बाद खादी के कपड़ों का उत्पादन कितना बढ़ा है?
करीब 31 प्रतिशत उत्पादन बढ़ा है। इतना किसी और कंपनी का उत्पादन नहीं बढ़ा है। अन्य कंपनियों का उत्पादन ज्यादा से ज्यादा छह प्रतिशत बढ़ा है। इस समय खादी का कारोबार 2,500 करोड़ रु. का है। मेरा प्रयास है आने वाले दो वर्ष में यह कारोबार 5,000 करोड़ रुपए का आंकड़ा पार कर जाए। मुझे यकीन है कि इस आंकड़े को पूरा कर लिया जाएगा। खादी के कपड़े अन्य दुकानों में भी मिलें, इसके लिए कई नामी कंपनियों से समझौते किए जा रहे हैं। रेमंड्स के साथ समझौता हो चुका है। जल्दी ही उसके शोरूम में खादी मिलने लगेगी। बिरला, अरविंद जैसी कंपनियों से भी बात चल रही है।
जानकार कहते हैं कि खादी को बढ़ावा देने से पर्यावरण की रक्षा होगी। यह सही है?
यह बिल्कुल सही बात है। खादी समय की मांग हो गई है। इस बार आपने देखा होगा कि मार्च महीने में ही पारा 44 डिग्री को पार कर गया था। खादी कार्बन-मुक्त होती है। खादी गर्मी में ठंडक और सर्दी में गर्मी देती है। इसे ‘वातानुकूलित’ कपड़ा कहा जाता है। इसलिए लोगों को खादी अपनाना चाहिए। इससे आप तो गर्मी से बचेंगे ही, साथ ही साथ पर्यावरण को भी बचाने में अपनी भूमिका निभा पाएंगे। एक मीटर खादी का कपड़ा बनाने में तीन लीटर और अन्य कपड़ा बनाने में 56 लीटर पानी खर्च होता है। यदि लोग खादी अपनाएंगे तो पानी का संकट खत्म हो सकता है। इसलिए मैं तो कहना चाहूंगा कि केवल भारतीय ही नहीं, दुनिया के लोग भी खादी अपनाएं।
खादी में वह क्या है जो अन्य कपड़ों में नहीं है?
दुनिया में कोई ऐसी मशीन नहीं होगी, जो 200 थ्रेड काउंट्स (कपड़े की बारीकी को मापने का पैमाना) से ज्यादा का कपड़ा बना सकती है, पर भारत में खादी से जुड़े कारीगर 500 थ्रेड काउंट्स तक के कपड़े बनाते हैं। सिल्क, मलमल के कपड़े कितने बारीक होते हैं, यह आपने देखा ही होगा। ये कपड़े किसी मशीन में तैयार नहीं होते हैं। सिल्क, मलमल हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। यही खासियत तो खादी को औरों से अलग करती है।
लोगों में यह धारणा है कि खादी महंगी होती है। इस पर आपकी क्या राय है?
यह धारणा निराधार है। खादी आयोग पूरे देश में 8,160 छोटी-बड़ी दुकानें संचालित करता है। इनमें 40 रु. मीटर से लेकर 3,000 रु. मीटर तक के कपड़े मिलते हैं। आप अपनी जेब के अनुसार कुछ भी ले
सकते हैं।
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