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कुसुमलता केडिया
समाज मीडिया से क्या अपेक्षा रखता है? यही कि वह हमें बताये कि देश में क्या चल रहा है, दुनिया में क्या चल रहा है, अच्छा क्या है, खराब क्या है, करणीय क्या है, हमारे हस्तक्षेप योग्य क्या है, साहित्य में, कलाओं में, शासन में, प्रशासन में, विज्ञान में, शिल्प में, रक्षा में, उद्योग में, वाणिज्य में, राजनीति में, धर्मतंत्र में, संगीत में, सिनेमा में, चित्रकलाओं में, नृत्य कला में, व्यायाम, योग साधना, औषधि एवं चिकित्सा में, वास्तु में, प्रतिमा शास्त्र में, स्थापत्य में, कृषि में, समाज के इष्ट एवं पूर्त कर्मों के विविध क्षेत्रों में, यथा कूप वापी तड़ाग आदि के निर्माण में, धर्मशालाओं, अतिथिशालाओं, अन्नसत्रों, अन्नदान, दान, सेवा, उपकार, करुणा आदि धर्म कार्यों में, कर निर्धारण, अंश वितरण, भाग, संपत्ति का अर्जन-विभाजन, उत्तराधिकार, न्याय, पंचायतों, श्रेणियों, निगमों आदि के संचालन एवं प्रबंधन में, विविध वस्तुओं के उत्पादन, क्रय-विक्रय, लाभ-अर्जन, मूल्य निर्धारण, विवाद, विवाद निस्तारण आदि की प्रक्रियाओं में, परस्पर व्यवहार में, नीति एवं मर्यादा के पालन इत्यादि समस्त क्षेत्रों में।
वह समाज की प्रमुख प्रवृत्तियों से हमें परिचित कराता रहे। बताता रहे कि कमी क्या और कहां है, वह कैसे ठीक होगी। तो यह मीडिया का कर्मचारी, एंकर, सम्पादक, संवाददाता आदि स्वयं तो कर नहीं सकता, प्रत्येक विषय में सम्बंधित क्षेत्र के प्रमुख लोगों के विचार ही समाज के सम्मुख रखने होंगे। विश्वविद्यालयों या यूरो इंडियन संस्थाओं के अध्यापकों, अधिकारियों आदि के विचार इन विषयों में प्रस्तुत कर देना तो मीडिया द्वारा दायित्व निभाना नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वर्तमान में विश्वविद्यालय या यूरो इंडियन संस्थाएं तो यूरोप का कचरा या जूठन ही पढ़ा रही हैं, उनके विचार यूरोप का हित तो साध सकते हैं पर भारत के लिए वे व्यर्थ हैं या हानिकारक हो सकते हैं। अत: भारतीय जानकारों, मुखियाओं पंडितों, विद्वानों, राजाओं, महाजनों, वीरों, वैद्यों, धर्माचार्यों, पहलवानों, गायकों, वादकों, संगीतशास्त्रियों, नर्तकों, नाट्यकर्मियों, शास्त्रवेत्ताओं, वास्तुविदों, मूर्तिकारों,Ñ पुरोहितों, खाप प्रमुखों, वनवासी मुखियाओं, जाति प्रमुखों, शिल्पियों आदि के विचार प्रस्तुत करना ही मीडिया का कर्तव्य है। हर विषय में किसी दल या समूह विशेष के विचार ही प्रस्तुत करना प्रोपेगंडा है, समाचार नहीं। हमारे आसपास क्या चल रहा है, उसे भारतीय समाज के संस्कारी लोग कैसे देखते हैं, हमारे पड़ोसी देश क्या कर रहे हैं, विश्व की प्रमुख गतिविधियां क्या चल रही हैं, यह सब मीडिया बताये, यह अपेक्षा भी समाज की रहती है।
हमारे राजा क्या कर रहे हैं। वर्तमान में राजा तो हैं नहीं, नेता हैं, जो राजा जैसे कुछ हैं पर राजा नहीं हैं। राजाओं के जो प्रमुख कर्तव्य भारत में रहे हैं, उनमें से एक भी कार्य नेता नहीं करते, जैसे राष्ट्र रक्षा के लिए स्वयं युद्ध करने जाना, यह राजा का सर्वोपरि कर्तव्य है। रामचंद्र जी, भगवान श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर, विक्रमादित्य, शालिवाहन, पाण्ड्य नरेश गण, चोल नरेश, चालुक्य नरेश, समस्त राजपूत राजा, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराज छत्रसाल, महारानी दुर्गावती, महारानी लक्ष्मीबाई आदि सभी स्वयं युद्ध करने गए थे। वर्तमान राजा यह नहीं करता। वर्तमान राजा राजदंड धारण नहीं करते,अंग्रेजी कानून दण्ड धारण करते हैं, वह भी त्रिधा विभक्त रूप में।
धर्मशास्त्रों और परम्पराओं के अनुसार शासन एवं न्याय करना राजा का दूसरा महत्वपूर्ण कर्तव्य है। वह भी वर्तमान नेता यानी राजा नहीं करते। वे तो ईसाइयों के एंग्लो सैक्सन लॉ के अनुसाार राज करते हैं, उसमें भी जो शासन में राज्यारूढ़ है, वह राज्य नहीं करता, राज्य के एक अंग के रूप में ज्यूडिशियरी एंग्लो सैक्सन लॉ से वाद निर्णय करती है जिसका राजा को सीधे पता ही नहीं रहता, प्रशासन भी अफसर तंत्र अपने स्तर पर एंग्लो सैक्सन कायदों से चलाता है। ये तीनों परस्पर बहुत एकात्म नहीं होते अत: शासन त्रिधा विभक्त एवं परस्पर लगभग असम्बद्ध अंशों का जोड़ है। इस बेढब स्थिति की विवशता क्यों है, क्या है? यह भारत की मुख्यधारा के प्रमुखों से पूछकर समाज को बताना मीडिया का दायित्व है। यह व्यवस्था तो अंग्रेजों ने शोषण के लिए बनाई थी, उस शोषण परक तंत्र का उपयोग लोगों की रक्षा के लिए हो रहा है, ऐसा माना जाता है, पर इस बेढब दशा की विवशता क्या और क्यों है? इस टूटे-फूटे ढांचे से काम चलाने की मजबूरी क्यों है? इससे क्या-क्या टूटा-फूटा है, यह भी ज्ञानवृद्ध लोगों से पूछ कर समाज को बताना मीडिया का धर्म है।
हमारे सभी क्षेत्रों यथा शिक्षा, उद्योग, समाज व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा, कृषि, शिल्प, वाणिज्य, संगीत, नृत्य कलाएं, परिवार व्यवस्था आदि कैसे पुन: संगठित हों, जिससे सभी भारतीयों का जीवन शांत, सुन्दर, आनंदमय, श्रेयस्कर, प्रीतिपूर्ण, पुरुषार्थी बने, यह सब समाज के सम्बंधित क्षेत्रों के प्रमुख लोगों से पूछकर ही मीडिया बता सकेगा। विश्वविद्यालय या मीडिया प्रमुखों से पूछकर इन विषयों पर बताना निजी स्तर का प्रोपेगेंडा माना जायेगा, उसे समाचार एवं सूचना नहीं कहा जा सकता। उदाहरण के लिए, गायों के विषय में गोपालक-गोशाला संचालक बताएंगे, अध्यापक या एनजीओ नहीं, व्यापार के विषय में व्यापारी बताएंगे, नेता या अफसर नहीं, विद्या के विषय में शास्त्रज्ञ बताएंगे इत्यादि।
विगत कुछ समय एक विचित्र-सा काल था। हमारे घर यानी भारत देश में कुछ बदमाश घुस आये थे, हमने उन्हें बाहर फेंक दिया, पर उस बीच उन बदमाशों ने बड़ी उथल-पुथल कर डाली थी तो मीडिया का कर्तव्य है कि वह समाज को रिपोर्ट करे कि कहां क्या तोड़ा गया है, हमारी कौन-सी संस्थाएं एवं मर्यादाएं किस प्रकार बिगाड़ी गयी हैं। यह रिपोर्ट मीडिया अपने मन से नहीं कर सकता, सम्बद्ध विशेष जानकारी वालों से पूछकर ही कर सकता है।
अब कुछ बात नारद जी के विषय में। नारद जी जो कर रहे थे वह मीडिया का काम है क्या? इस पर स्पष्टता अपेक्षित है। नारद जी पाप के नाश और धर्म की संस्थापना के लिए देवों, देवाधिदेवों और महावीर राजाओं को ‘इन्फॉर्म’ कर रहे थे अर्थात् ‘पॉवर हैण्डलर्स को इन्फॉर्म’ कर रहे थे। यह तो इंटेलिजेंस का काम है, रॉ, आईबी आदि का काम है। साथ ही वे निरंतर हस्तक्षेप कर रहे थे, धर्म के पक्ष में और पाप के विरुद्ध। नारद जी की कही बात पर किसी को शंका नहीं होती थी। वे कई बार गूढ़ बातें करते थे, उन्हें समझने का प्रयास किया जाता था और सदा ही उनकी बात पर अमल होता था। अत: नारद जी से प्रेरणा लेने वालों को इन सब पर विचार कर स्वधर्म का निश्चय कर उसका पालन करना होगा।
( लेखक धर्मपाल शोध पीठ, भोपाल की निदेशक हैं)
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