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केरल में कम्युनिस्ट हिंसा चरम पर है। पिनरई विजयन के मुख्यमंत्री बनने के बाद से तो हालात और बदतर हो चले हैं। रा.स्व.संघ और भाजपा सहित तमाम हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ताओं को चुन-चुनकर निशाना बनाया जाता रहा है। इस संदर्भ में गत 15 अप्रैल को संघ के सहसरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल ने दिल्ली के हरियाणा भवन में आयोजित संगोष्ठी में जो सारगर्भित व्याख्यान दिया, उसके प्रमुख अंश यहां प्रस्तुत हैं
डॉ. कृष्णगोपाल
सहसरकार्यवाह, रा. स्व. संघ
देश में जब पहली बार लोकतांत्रिक पद्धति से चुनी गई कम्युनिस्ट सरकार केरल में आई थी, तब से अब तक एक लंबा समय गुजर चुका है। इस बीच, दूसरे दलों की भी सरकारें आर्इं। उस प्रदेश में कम्युनिस्टों की अनेक विचारधाराएं तो हैं पर उनका आपस में विरोध नहीं होता है। लेकिन विरोधी पक्ष के दूसरे सभी राजनीतिक दलों को वहां नहीं रहने दिया जाता और इसीलिए कम्युनिस्ट प्रयत्नपूर्वक अपने सभी वैचारिक विरोधियों को धीरे-धीरे समाप्त करते हैं। पिछले 60 वर्षों में केरल में हिंसक घटनाओं में राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हमारे स्वयंसेवकों की हत्याओं का क्रम जारी रहा। गत 60 वर्ष में हमारे 400 से अधिक कार्यकर्ता मारे गये हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में नई सरकार के सत्ता में आने के बाद, कुछ महीनों के अंदर ही अकेले कन्नूर जिले में 436 हिंसक घटनाएं हुई हैं, जिनमें मरने वाले राजनीतिक कार्यकर्ताओं की संख्या 19 से अधिक है। पिछले आठ-दस महीनों में केरल के अंदर संघ के 11 कार्यकर्ता मारे गये हैं। सीपीएम के चार ऐसे कार्यकर्ता मारे गए हैं, जो सीपीएम को छोड़कर अन्य दलों में जा रहे थे। स्थिति दिन-प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है। वहां के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन आज एक मुख्यमंत्री की तरह नहीं, वरन् पार्टी के कार्यकर्ता की तरह से काम कर रहे हैं। कांग्रेस कार्यकर्ता बिंदु कृष्णन ने कहा है, ‘‘पिनरई विजयन शुड स्पीक लाइक ए सीएम एण्ड नॉट लाइक ए पार्टी सेक्रेटरी।’’ पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने भी एक भाषण में कहा है, ‘‘सीपीआईएम इज अनलीशिंग टेरर आॅल ओवर केरल एण्ड समथिंग शुड बी डन अर्जेंटली टू बी नॉर्मल।’’
वहां सामान्य स्थिति बहाल हो, यह चिंता की बात है। सीपीएम का पुलिस के काम में भी हस्तक्षेप रहता है। कांग्रेस के तिरुवंचूर राधाकृष्णन का भी यही कहना है कि वहां पर सरकार में जो लोग हैं, वे पुलिस के ऊपर नियंत्रण करने का प्रयत्न करते हैं। मुख्यमंत्री महोदय को इन सारी हिंसक घटनाओं पर नियंत्रण करना चाहिए था, लेकिन उनके कार्यकर्ता ही बम बनाने के काम में लगे हैं। बम बनाना तो जैसे आज केरल में कुटीर उद्योग बन गया है। घर-घर में बम बनाए जाते हैं और अनेक बार जब बम पकड़े जाते हैं तो वहां के मंत्री महोदय बोलते हैं, ‘‘ये बम नववर्ष पर आतिशबाजी के लिए हैं।’’ लेकिन अगर मुख्यमंत्री महोदय प्रामाणिक हैं तो उनको ऐसी हिंसक घटनाओं की सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों के द्वारा अथवा अवकाश प्राप्त न्यायाधीशों के द्वारा जांच करानी चाहिए। यह भी देखने की बात है कि देश के जिन अन्य राज्यों में दूसरे दलों की सरकारें हैं, उदाहरण के लिए भाजपा की सरकारें 13 राज्यों में हैं, वहां पर ऐसी हिंसक घटनाओं का उदाहरण देखने को नहीं मिलता। यह बात तब और चिंताजनक हो जाती है, जब मुख्यमंत्री महोदय के हाथ में गृह मंत्रालय हो। केरल में श्री कलप्पा नाम के एक गांधीवादी नेता थे। उनकी हत्या हुई। हत्याकाण्ड का पर्दाफाश हुआ तो पाया गया कि हत्या के पीछे मार्क्सवादी थे। आश्चर्यजनक बात है कि 1969 में संघ के जिन कार्यकर्ता श्री रामकृष्णन की हत्या हुई थी, उसमें भी वर्तमान मुख्यमंत्री ही अभियुक्त हैं। गौर करें कि 1969 से ही लगातार हिंसक घटनाएं होती आ रही हैं। एक के बाद एक हमारे अच्छे-अच्छे कार्यकर्ता हिंसक घटनाओं के शिकार होकर मारे गए हैं।
ऐसी घटनाओं का लगातार होना उनकी कार्यशैली का एक अंग है। हम जानते हैं कि कम्युनिस्टों का शासन सारे देश में तत्कालीन सोवियत रूस से प्रारंभ होता है। 1920 में सोवियत रूस में कम्युनिस्टों का शासन आया था। रूस में कम्युनिस्टों के दो समूह बन गए थे, बोल्शेविक और मेन्शेविक। बोल्शेविक सत्ता में आए और उन्होंने मेन्शेविकों की हत्या करवा दी। लेनिन के बाद सत्ता में आए स्टालिन ने तो करोड़ों लोगों की हत्या करवा दी थी। यह उनकी कार्यशैली का एक अंग है। जब चीन में कम्युनिज्म आया तो वहां भी यही हुआ। माओ ने सत्ता प्राप्त करने के लिए और सत्ता प्राप्त करने के बाद करोड़ों लोगों की हत्या करवाई। उसे माओ ने ‘सांस्कृतिक क्रांति’ नाम दिया। वहां विरोध के नाम पर कोई दूसरा दल है ही नहीं। वहां लगातार एक ही दल सत्ता में बना रहता है। थ्येनआन मन चौक पर जो हुआ, उसे सारा विश्व जानता है। उस चौक पर 5,000 छात्रों पर टैंक चलवाए गए। आज भी चीन में कम्युनिस्टों की सरकार है। वहां बोलने की आजादी की मांग करने वालों, फ्रीडम आॅफ स्पीच की बात करने वालों का यही हाल किया जाता है। वह घटना कम्युनिस्टों की कार्यपद्धति का दूसरा उदाहरण थी। कम्युनिस्टों का सिद्धांत घृणा, हिंसा और हत्या पर आधारित है। स्टालिन कहा करता था, ‘‘कम्युनिस्ट पार्टी का सिद्धांत है इंटेंस हेटेÑड।’’ और वह कहता था, ‘‘इंटेंस हेट्रेड इज द बेसिस आॅफ आर सक्सेस।’’ वे इसी प्रकार से काम करते हैं। केरल में कम्युनिस्ट पार्टी के ही कार्यकर्ता, उसके सचिव रहे अब्दुल्ला कुट्टी बाद में कांग्रेस में चले गए। वे भारत की संसद के सम्माननीय सांसद भी थे। उन्होंने एक पुस्तक लिखी है- ‘यू टर्न्ड मी इन टु ए कांग्रेसमैन।’ यानी ‘मैं तो कम्युनिस्ट था, लेकिन आप लोगों की कार्यपद्धति, आप लोगों का विचार देखकर मुझे कम्युनिस्ट पार्टी छोड़नी पड़ी।’ उन्होंने जो आॅटोबायोग्राफी लिखी है उसमें एक घटना का उल्लेख करते हुए लिखते हैं, ‘‘एक सामान्य अनौपचारिक वार्तालाप में पिनरई विजयन ने बताया कि ‘बंगाल में हमारे कार्यकर्ता किस प्रकार अपने विरोधियों को समाप्त करते हैं और पीछे कोई प्रमाण नहीं छोड़ते।’ पिनरई विजयन, जो मुख्यमंत्री हैं, स्वयं अपने कुछ कार्यकर्ताओं को समझाते हैं- एक बार जब वे अपने विरोधियों को जीवित पकड़ लेते हैं तो उनको हाथ-पैर बांधकर बोरों में ठूंस देते हैं और इन बोरों को गहरे गड्डे में डाल देते हैं। बोरों के ऊपर नमक की मोटी परत डाल देते हैं। कुछ दिनों के बाद सारे प्रमाण और सबूत मिट जाते हैं।’’ दूसरे राजनीतिक दलों के विरोधी लोगों को समाप्त करने के ऐसे अमानवीय तरीके उन्होंने बुने हैं। उनका उद्देश्य केवल हत्या करना भर नहीं है। उद्देश्य है हत्या करके एक ऐसा वातावरण तैयार करना जिससे सारे समाज के अंदर भय और आतंक का निर्माण हो जाए।
हमारे एक कार्यकर्ता थे, अध्यापक जयकृष्णन मास्टर। वे कक्षा में बच्चों को पढ़ा रहे थे। मार्क्सवादी गुंडे आए और बच्चों के सामने जयकृष्णन मास्टर के टुकड़े-टुकड़े कर उनकी हत्या कर दी। हम कल्पना करें, उन बच्चों के दिमाग से क्या यह प्रसंग जीवन भर निकल पाएगा? इसी वर्ष कुछ मार्क्सवादी गुंडे हमारे एक कार्यकर्ता राहुल की हत्या करने उसके घर गए। उन्होंने ढूंढा, पर राहुल घर पर नहीं था। उसका छोटा बेटा कार्तिक वहां था। कार्तिक की आयु केवल सात वर्ष थी। उन हत्यारों ने सात वर्ष के उस बालक की वहीं उसकी मां के सामने हत्या कर दी। कम्युनिस्ट अपराधी तत्व भारतीय मजदूर संघ के सचिव रामचंद्रन के घर गए। घर जाकर 13 वर्ष के उनके जुड़वां बच्चों, देवदत्त और देवांगना के सामने उनके पिता रामचंद्रन की उन्होंने हत्या कर दी। इसी वर्ष वे रेमिथ के घर गए। रेमिथ के पिता की वे 2002 में हत्या कर चुके थे। रेमिथ अपनी बीमार बहन के लिए दवा लेने बाहर जाने वाले थे। कम्युनिस्ट गुंडे उनके घर गए। घर जाकर उन्होंने पीने के लिए पानी मांगा। रेमिथ की मां ने उन्हें पानी दिया। बाद में वे दरवाजे पर खड़े होकर रेमिथ का इंतजार करने लगे। जैसे ही रेमिथ दवाई लेने के लिए घर से निकले, उनकी हत्या कर दी गई। अब उस घर में कमाने वाला कोई पुरुष नहीं है। जो दो पुरुष थे, दोनों ही मार डाले गए।
1996 में पथनमथिट्टा जिले में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के तीन कार्यकर्ताओं को उन्होंने पेरुमला में पंबा नदी के किनारे घेर लिया। जान बचाने के लिए तीनों कार्यकर्ता नदी में कूद गए। जब वे नदी से निकलने लगे तो मार्क्सवादी गुंडों ने उन्हें पत्थर मार-मार कर नदी में डुबोकर मार डाला। उस वक्त ई.के. नयनार केरल के मुख्यमंत्री थे। विधानसभा में जब उनसे इस घटना के बारे में पूछा गया तो उन्होंने जो कहा, वह बेहद शर्मनाक और चिंताजनक है। उन्होंने कहा था, ‘‘व्हाय, वर दे नॉट एबीवीपी वर्क्स? व्हाट हैव यू टु डू विद इट?’’ क्या किसी मुख्यमंत्री को यह उत्तर शोभा देता है? इस तरह की घटनाओं की एक लंबी सूची है। चार सौ कार्यकर्ताओं की हत्या आंखों के सामने दिखती है।
राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ का पक्का विश्वास है कि यह देश प्रेम, दया, करुणा, श्रद्धा का देश है। राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी ने अनेक बार कहा है कि ‘‘द सेक्रेड लव इज द बेसिस आॅफ आर सक्सेस।’’ देशभर में आज जो हमारी 58,000 शाखाएं चलती हैं, उनका आधार घृणा नहीं है। उनका आधार हिंसा नहीं है। उनका आधार आत्मीयता है। प्रेम है। हो सकता है हमारी विचारधारा से हमारे विरोधी लोग असंतुष्ट होंगे। लेकिन उनके साथ भी हम प्रेम से वार्ता करते हैं। हम उनको अपने घर बुलाते हैं। हम उनके घर जाते हैं। विचारधारा भिन्न हो सकती है। इस देश में विचारधारा की भिन्नता से घृणा उत्पन्न नहीं होती। यह देश विविध विचारधाराओं का सम्मान करता है और इसलिए संघ के सरसंघचालाक बालासाहब देवरस ने 1979 में केरल में कम्युनिस्टों की चरम हिंसा के दौर में कहा था, ‘‘राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ एक अच्छी और स्वस्थ वैचारिक बहस और चर्चा में विश्वास करता है। मैं आग्रह करता हूं कि मार्क्सवादी लोग हथियार छोड़कर वैचारिक चर्चा-वार्ता के लिए आगे आएं।’’
1977 में आपातकाल समाप्त होने के बाद राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक बालासाहब देवरस ने जो वक्तव्य दिया था, वह महत्वपूर्ण है। आपातकाल में हमारे अनेक कार्यकर्ताओं को घोर यातनाएं मिली थीं। कई कार्यकर्ता मारे गए थे। हजारों जेल में थे। गुस्सा आना स्वाभाविक ही था। लेकिन सरसंघचालक श्री बालासाहब ने कहा, ‘‘हम जानते हैं कि आपातकाल में हमारे ऊपर भयंकर अत्याचार हुए हैं। हमारे लोगों को कठोर अमानवीय यातनाएं दी गई हैं। अनेक कार्यकर्ताओं की मृत्यु भी इस कारण हुई है। किंतु मैं देशभर में सभी स्वयंसेवकों से आग्रह करूंगा कि वे अब सब कुछ भूल जाएं और माफ कर दें। फॉरगेट एंड फॉरगिव आॅल एट्रोसिटीज दे वर सब्जेक्टिड टु।’’ श्री बालासाहब देवरस ने कहा कि जिन्होंने अत्याचार किये हैं वे भी अपने ही हैं, ऐसा मानकर भूल जाओ और अपने कार्य में आगे बढ़ो। इतना विरोध होने के बाद भी राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ का कार्य कर्नाटक में, केरल में बढ़ता ही चला जा रहा है। वर्तमान में केरल में शाखा की संख्या देशभर में सर्वाधिक हैं। साढ़े चार हजार से भी अधिक शाखाएं आज केरल में चल रही हंै।
केरल के संघ कार्यकर्ताओं ने बार-बार आह्वान किया है कि केरल में सब अपने हैं और सबके साथ प्रेम से काम करना है। हमारा झगड़ा कम्युनिज्म से है, कम्युनिस्टों से नहीं। हमारा झगड़ा एक विचार से हो सकता है, विचार से विरोध हो सकता है, लेकिन कम्युनिस्टों से हमारा विरोध नहीं है। वहां के संघ अधिकारियों ने कन्नूर जिले के गांव-गांव में प्रवास किया है। गांव-गांव में वे नागरिकों के साथ बैठे हैं। अपने प्रवास में उन्होंने नागरिकों से खुलकर बात की तथा स्वयंसेवकों का आह्वान किया-‘‘आवर फाइट इज अगेंस्ट कम्युनिज्म एंड नॉट कम्युनिस्ट्स। बाई किलिंग वन आवर टू कम्युनिस्ट्स, कम्युनिज्म कैन नॉट बी इरेडिकेटिड। आर फाइट शुड बी टु डिफीट इट, बोथ एट द थियोरेटिकल एंड आॅर्गेनाइजेशनल लेवल। प्रेजेन्टली कम्युनिस्ट्स आर ट्रेडिंग ए रॉन्ग पाथ। बट दे आर आवर ओन ब्रेदरन, हू, आफ्टर रीयलाइजिंग देयर मिस्टेक, आर श्योर टू ज्वाइन अस, इफ नॉट टुडे, टुमारो।’’ यही संघ का सिद्धांत है, यही हमारा व्यवहार भी है। हमारा देश चर्चा में विश्वास करता है। यह देश वार्ता में विश्वास करता है। हमारे संविधान में इसकी छूट दी गई है।
केरल में हमारे कार्यकर्ताओं का व्यवहार देखकर हजारों की संख्या में लोग सीपीआईएम को छोड़कर संघ की शाखाओं में आते हैं। भारतीय मजदूर संघ जैसे विभिन्न संगठनों को छोड़कर सीपीएम के कार्यकर्ता भारतीय जनता पार्टी, विद्यार्थी परिषद में शामिल हो रहे हैं। लेकिन दु:ख की बात यह है कि जब ये कार्यकर्ता इन संगठनों में आ जाते हैं, तब वे सीपीआईएम का निशाना बन जाते हैं। वे उनकी हत्या करने की कोशिश करते हैं, जिससे यह प्रवाह रोका जा सके। वे किसी गांव को पार्टी का गांव निश्चित करते हैं तो उसे पार्टी विलेज बुलाते हैं। उस पार्टी विलेज में अपने हिसाब से ही सब काम चलाते हैं। उन पार्टी विलेजिज में धार्मिक संस्कार करके विवाह करना, जन्मदिन मनाना भी एक बड़ा संकट है। उनके खिलाफ सीधे निर्देश जारी हो जाते हैं।
हमें एक और चीज पर गौर करना चाहिए। 1920 में दुनियाभर में कम्युनिज्म तेजी से फैला था। देखते ही देखते रूस, हंगरी, बुल्गारिया, रोमानिया, चेकोस्लोवाकिया, मंगोलिया, यमन, कंबोडिया, ईथियोपिया, सोमालिया, बोस्निया इत्यादि देश कम्युनिज्म मानने वाले हो गए। यही नहीं, अफ्रीका के बहुत सारे देश भी जैसे कांगो, इधर अफगानिस्तान से अंगोला तक कम्युनिज्म था। लेकिन पिछले 90 वर्ष के अंदर ऐसा दृश्य बना कि धीरे-धीरे सभी लोग कम्युनिज्म का चोला छोड़कर अलग हो गए। आज ये देश कम्युनिस्ट नहीं हैं। बहुत छोटी मात्रा में चीन, क्यूबा, उत्तरी कोरिया, लाओस और वियतनाम ही वे देश हैं जो अपने को कम्युनिस्ट मानते हैं। मार्क्सवादी विचारधारा के साथ लंबे समय तक बने रहना कठिन काम है।
इन कम्युनिस्ट लोगों का पूर्व इतिहास भी जानना आवश्यक है। यद्यपि भारत में ये आज केवल तीन प्रांतों में हैं। आजादी से पहले इन्होंने सारे देश में विस्तार तो किया था, पर ज्यों-ज्यों लोग इन्हें समझने लगे, त्यों-त्यों लोगों का स्वप्न भंग हो गया। जो लाल किले पर लाल निशान मांगते थे, नारे लगाते थे, आज वे कहां हैं? आज ये सांप्रदायिक दलों के साथ मिलकर कहीं एकाध जगह सरकार बनाने की कोशिश करते हैं।
कम्युनिस्टों ने भारतीय महापुरुषों को कभी स्वीकार नहीं किया। उन्होंने स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, सुभाषचंद्र बोस को कभी अपना नेता नहीं माना। सुभाषचंद्र बोस को ‘तोजो का कुत्ता’ कहते थे। उन्होंने तो अपना आदर्श सदा दूसरे देश के लोगों को माना। फिर वह चाहे स्टालिन थे, लेनिन, माओ, मार्क्स या फिदेल कास्त्रो। उनके सामने महर्षि दयानंद, विवेकानंद, डॉ. आंबेडकर, लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय, महर्षि अरविंद, रविन्द्रनाथ टैगोर, मदनमोहन मालवीय, वल्लभभाई पटेल, विपिन चंद्र पाल जैसे नेता कभी आदर्श नहीं रहे। इन नेताओं के चित्र वे कभी अपने यहां नहीं लगाते। उनके अंदर भारतीयता है ही कहां। मोपला कांड केरल में हुआ। बड़ी संख्या में वहां हिंदू मारे गए। इस कांड के बारे में उन्होंने कहा कि ‘यह तो पीजेंट्स अपराइजिंग’ है। ये भारत को एक राष्टÑ नहीं मानते। उनका मानना है कि भारत में जितनी भाषाएं हैं, उतनी ही राष्टÑीयताएं हैं।
स्टालिन ने 1925 में एक लेख में लिखा था, ‘‘नाउ ए डेज, इंडिया इज स्पोकन आॅफ एज ए सिंगल होल। येट देयर कैन बी हार्डली एनी डाउट दैट इन द केस आॅफ ए रिवोल्यूशनरी अपहीवल इन इंडिया, मेनी हिदरटू अननोन नेशनेलिटीज, इच विदिन इट्स ओन लेंग्वेज एंड इट्स ओन डिंस्टिंक्टिव कल्चर विल इमर्ज ओन द सीन।’’ स्टालिन का कहना था कि ‘इस देश में बहुत सारी भाषाएं हैं। मौका आएगा तो सब भिन्न भाषाओं वाले अलग-अलग नेशनेलिटीज के साथ खड़े हो जाएंगे।’ कम्युनिस्टों ने 1942 के आंदोलन का विरोध किया। पाकिस्तान बनाने के प्रस्ताव का मुस्लिम लीग के साथ मिलकर समर्थन किया। नम्बूदिरीपाद भी कहा करते थे, ‘जितनी भाषाएं, उतनी ही राष्टÑीयताएं’। 1962 में चीन के आक्रमण के समय उन्होंने कहा था, ‘‘माओ की लाल सेना भारत में आएगी तो हम उसका स्वागत करेंगे।’’ सेना के हथियार और सामान न पहुंचे, इसके लिए मजदूरों में कम्युनिस्टों की ट्रेड यूनियन ने उनका बहिष्कार किया। हड़ताल की। कन्याकुमारी में विवेकानंद स्मारक के लिए देश के सभी राज्यों ने सहायता दी। सिर्फ केरल के कम्युनिस्ट शासकों ने नहीं दी। पोकरण में परमाणु विस्फोट हुआ तो उन्होंने उसका विरोध किया। आतंकवादियों को जब मृत्युदंड मिलता है, तब वे उसका विरोध करते हैं। वे कश्मीर के पत्थरबाजों के साथ खड़े होते हैं। माता अमृतानंदमयी के अस्पताल को वे घृणा की दृष्टि से देखते हैं, लेकिन उनके विद्यालय में सीपीएम के कार्यकर्ता अपने बच्चों के दाखिले का प्रयत्न भी करते हैं।
कुल मिलाकर हमें एक व्यापक दृष्टि से तथ्यों को देखना होगा। कम्युनिज्म वह विचारधारा है जो धीरे-धीरे बहुत सारे देशों में फैली तो थी, लेकिन ज्यों-ज्यों उसका व्यवहार सामने आता गया, लोग उसे छोड़ने भी लगे। भारत में भी आज उनके अंतिम दिन दिख रहे हैं। लेकिन केरल में ये सत्ता में हैं और उन्होंने सत्ता का पूरा दुरुपयोग करके विरोधी लोगों को समाप्त करने का एक बड़ा षड्यंत्र रचाया है।
मेरे पति रामचंद्रन को काट डाला
रजनी
मैंने उनके पैर पकड़कर दया की भीख मांगी, लेकिन उनमें जरा भी दया नहीं थी। वे दर्जनभर से ज्यादा लोग थे। सभी हाथों में कुल्हाड़ी और तलवारें लिए हुए थे। मैं और मेरे दोनों बच्चे, बेटी देवांगना और मेरा बेटा देवदत्त हर एक के पैरों में गिरे, लेकिन किसी ने हमारी तरफ देखा भी नहीं। मैंने कहा कि ‘मेरे पति को छोड़ दो, वे आगे से कभी तुम्हारे खिलाफ कुछ नहीं बोलेंगे। जैसा तुम कहोगे वैसा ही करेंगे’ तो उनमें से एक आगे बढ़ा और मेरा मंगलसूत्र तोड़ दिया। मेरे दोनों बच्चे इतने डर गए कि उनके गले से आवाज भी नहीं निकली। सभी ने कुल्हाड़ी और तलवारों से वार कर मेरे पति रामचंद्रन को काट दिया। वह एकमात्र सहारा थे परिवार का। उनकी गलती बस ये थी कि वे भारतीय मजदूर संघ के कार्यकर्ता थे, जो उन वामपंथियों को मंजूर नहीं था।कम्युनिस्ट
गुंडों से सब डरते हैं
शिवदा
मुख्यमंत्री पिनरई विजयन हमारे ही गांव के हैं। वह हमारे रिश्तेदार भी हैं। मेरे पिता ने उनकी पार्टी के खिलाफ वोट दिया तो कम्युनिस्ट गुंडों ने हमारा पूरा घर जला दिया। सारा सामान तोड़ दिया। उनके डर के कारण हमें किसी ने अपने घर में रहने के लिए जगह भी नहीं दी। सभी उनसे डरते हैं। हमारी कोई मदद नहीं करता।
मैं हत्यारों को दिलाऊंगी सजा
विस्मया
मेरे पिता ने गांव में भाजपा के टिकट पर पंचायत का चुनाव लड़ा था। वह दूसरे नंबर पर रहे थे। वे जीते नहीं, लेकिन गांव में सभी लोग उन्हें बहुत पसंद करते थे। हमारे घर में काम चल रहा था। मैं अपनी मां के साथ नानी के घर गई हुई थी। हमें पता चला कि मेरे पिता को मार डाला गया। मेरे पिता की हत्या घर में घुसकर बड़ी निर्ममता से की गई। मेरा सपना है कि मैं बड़ी होकर आईएएस अफसर बनूं। मैं अपने पिता के हत्यारों को सजा दिलाऊंगी।
संघ का नाम लेना यानी हत्या को बुलावा देना
प्राजिल
केरल में राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ का नाम लेना गुनाह जैसा बन गया है। संघ और संघ के किसी भी आनुषंगिक संगठन से जुड़ना या फिर किसी अन्य पार्टी की बात करने का मतलब है कि आप मारे जाओगे। वे कभी भी आपको अपना निशाना बना सकते हैं, जब भी उन्हें मौका मिलेगा। वे मारने की मंशा से आप पर हमला करेंगे। मेरे पास जिले में भाजपा का दायित्व था। मैं घर लौट रहा था तभी 10-12 हथियारबंद लोगों ने मुझे घेर लिया। मैंने काफी देर तक उनके साथ संघर्ष किया, फिर नीचे गिर पड़ा। मुझे मरा समझकर वे लोग वहां से चले गए। लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहा तब जाकर जान बची। शरीर पर 30 से ज्यादा घाव के निशान हैं। पुलिस सरकार के दबाव में किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती। यदि कार्रवाई भी करती है तो जांच में इतनी हेरा-फेरी कर दी जाती है कि न्यायालय में आरोपी साफ बच जाते हैं।
हमारे पापा को हमारे सामने मारा
देवांगना
हमारे पापा को हमारी आंखों के सामने मारा गया। किसी ने मदद नहीं की। यहां तक कि डर के मारे कोई घर से भी निकलकर नहीं आया। बाद में पुलिस घर पर आई। हमें थाने भी बुलाया गया। हमने पुलिस को सारी बातें बताईं, लेकिन कुछ नहीं हुआ। गांव में सब उनसे डरते हैं, कोई उनके खिलाफ नहीं बोलता। कोई हमारी नहीं सुनता।
मेरे पति और बेटे को निर्ममता काट डाला
नारायणी
मेरे पति उत्तमन वामपंथी विचारधारा से जुड़े थे। राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के लोगों के साथ संपर्क में आने के बाद उन्होंने शाखा जाना शुरू किया। वे अपने क्षेत्र में शाखा लगाते थे। किसी से उनका कोई बैर नहीं था। अप्रैल, 2002 में जब वह घर लौट रहे थे तो रास्ते में उन्हें कुल्हाड़ियों से काट दिया गया। कोई उनकी मदद के लिए नहीं आया। तब मेरा बेटा रेमिथ मात्र बारह वर्ष का था। जैसे-तैसे मैंने अपने बेटे और बेटी को बड़ा किया। बेटी की शादी कर दी। बेटा रेमिथ भी वामपंथी विचारों से संबंध नहीं रखता था। पिछले साल नवंबर में घर लौटते समय रास्ते में मेरे कलेजे के टुकड़े को भी उसी तरह काट दिया, जैसे मेरे पति को मारा गया था। पुलिस जांच के नाम पर खानापूर्ति करती है। ऐसे में हम जाएं तो कहां जाएं?
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