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किसान झुलसते रहे, पुलिस पीटती रही

by
Apr 17, 2017, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 17 Apr 2017 14:13:13

 

चंपारण में सत्याग्रह के 100 साल पूरे होने पर जो हुआ, वह जनता को आक्रोश से भरने और प्रशासन को शर्मिंदा करने के लिए काफी है। क्या सरकार इस घटना के बाद चेतेगी?

कल से सोच रहा था कि महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह के 100 साल पूरे होने पर कुछ लिखूं। लेकिन अफसोस, जो बातें कहना चाहता था, वह अब नहीं कह पाऊंगा। सत्याग्रह के प्रति दुनिया को अन्याय से लड़ने का हथियार देने वाले बुद्घ, महावीर, गांधी की धरती चंपारण में जो कुछ हुआ, वह बेहद शर्मनाक है।

इससे प्रदेश सरकार का अन्यायी आचरण पुन: सबके सामने जाहिर हुआ। कृषि कैबिनेट का ढोंग कर खुद को किसानों-मजदूरों के हितैषी दिखने वाले नीतीश कुमार की पुलिस ने 2002 से मोतिहारी चीनी मिल से बकाया भुगतान हेतु आंदोलनरत किसानों-मजदूरों को बर्बरतापूर्वक पीटना शुरू किया तो लाचार किसानों में से दो ने आत्मदाह कर लिया। वहां उपस्थित लोगों ने तो बचाने की कोशिश की, लेकिन सुशासन बाबू की पुलिस डंडे बरसाती रही! पीडि़त किसानों में से एक 90 फीसदी और दूसरा करीब 50-55 फीसदी जल गया। कोई जरा बताए कि जिस प्रदेश की सरकार किसानों के साथ यह अन्याय कर रही हो, वह किस मुंह से गांधीजी के किसान सत्याग्रह का जश्न मनाने के लिए कार्यक्रम आयोजित करेगी? बेशर्म सरकार जितने पैसे आयोजन पर लुटाएगी उतने में इन किसानों को बकाया दे देती तो जरूर गांधीजी की आत्मा को शांति मिलती। सोचिये, गांधीजी ने क्या इसी स्वराज के लिए सत्याग्रह किया था? क्या स्वतंत्र देश में सरकार से किसानों को बकाया मांगने के लिए लाठी-डंडे और आत्मदाह की नौबत लानी पड़ेगी?

गांधी-जयप्रकाश-लोहिया के चेले जब सरकार में हैं तो क्या यही समाजवाद लाएंगे? पशुओं का चारा खा गए। मिट्टी खोदकर माल हजम कर गए, धान खरीद से लेकर गन्ना मिलों तक किसानों का करोड़ों रुपए डकार गए। क्या यही दिन देखने के लिए भारत के किसानों ने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए कुल्हाड़ी-कुदाल पिघला कर तलवारें बनाई थीं? तस्वीरें देख कर रोंगटे खड़े हो रहे हैं, लेकिन बेशर्म सत्ता अपनी क्रूरता और अन्याय पर इतरा रही है! किसानों का आत्मदाह एक दिन सत्ता का घमंड भी जलाकर राख कर देगा। इसकी आग की चिनगारी जिस दिन पूरे बिहार में फैलेगी, उस दिन का अंदाजा लगाना मुश्किल है।    

    (जयराम विप्लव की फेसबुक वॉल से)

मोमिनों के लिए काबा, अमेरिका के लिए तेल, शेख मजे में

इस्लामी देश यह मानने को तैयार नहीं हैं कि वे जिस रास्ते पर चल रहे हैं, वह आगे बंद है।

अमेरिका सीरिया में मिसाइलों का परीक्षण कर रहा है। इस्लामी राष्ट्रों की यही नियति है, लेकिन इस मजहब के आलिमों को लगता है कि उनका बीता हुआ स्वर्णिम दौर आने ही वाला है। अमेरिका तेल के लिए और दुनिया पर धाक जमाने के लिए पहले अफगानिस्तान, इराक और सीरिया का निर्माण करेगा, फिर रासायनिक बमों के खतरे से दुनिया को बचाने के लिए हवाई हमले करेगा। लेकिन इन सबके बीच शेख मजे में हैं। उन्हें कोई खतरा नहीं है। मोमिनों को नियंत्रित करने के लिए उनके पास काबा है अमेरिका की गुडविल लेने के लिए तेल के कुएं हैं। लेकिन उनकी शेखियत की कीमत दुनियाभर के मुसलमान मुल्क चुका रहे हैं। तब भी मुसलमान मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि वे जिस राह पर चल रहे हैं, उसके आगे रास्ता बंद है। लेकिन वे मुगालते में हैं और अमेरिका उनके सारे मुगालते दूर कर देगा। रूस पुतिन के नेतृत्व में हर वक्त कुछ साहसिक काम करने की फिराक में रहता है, लेकिन वह भी सोवियत संघ के विघटन की छाया से बाहर नहीं निकल पाया है। इसलिए उसकी वैश्विक उपस्थिति व महत्ता अमेरिकी कदमों पर प्रतिक्रिया देने से तय हो रही है। अगर उसे अमेरिका की चौधराहट को चुनौती देनी है, विश्व व्यवस्था को पटरी पर लाना है तो खुद पहल करनी होगी। पुतिन माचोमैन बने घूमते हैं, लेकिन रूस को वह खिताब नहीं दिलवा सके हैं। यद्यपि चीन इस परिदृश्य में कहीं नहीं है, लेकिन उसे दुकानदारी करने में मजा आता है। उसने इतना कच्चा माल इकट्ठा कर लिया है कि वह तीनों पाली में अपनी फैक्टरियां चलाना चाहता है। उसे सड़क, पुल, रेलवे, बांध, इंजीनियरिंग इतने अच्छे लगने लगे हैं कि जब अपने देश में जगह नहीं बची तो इसने पाकिस्तान में निर्माण कार्य शुरू कर दिया। जहां तक भारत का सवाल है तो उसके पास मजे लेने का ऐतिहासिक अवसर है। अरुणाचल के सीएम ही चीन को हड़काने के लिए काफी हैं कि 'हमारा राज्य तो तिब्बत से लगता है। हमें चीन से क्या लेना-देना।' इस नाते सब   बढि़या चल रहा है, देश के अंदर भी और बाहर  भी।   (अरविंद शर्मा की फेसबुक वॉल से) 

 

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