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अयोध्या विवाद के पक्षकारों का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया सुलह का सुझाव ठीक है। लेकिन इसके पहले सुलह के जितने भी प्रयास हुए हैं, वे सभी विफल रहे हैं। इसलिए उन्हें सुलह की अपेक्षा, सरकार से उम्मीद ह
अरुण कुमार सिंह
पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने श्रीराम जन्मभूमि बनाम बाबरी ढांचा मामले में सुझाव दिया कि दोनों पक्ष अदालत से बाहर मामले को सुलझा लें, तो बेहतर होगा। इसके बाद एक बार फिर से देशभर में राम मंदिर का मामला सरगर्म है। हिंदू पक्ष अदालत से बाहर मामले को सुलझाने के लिए तैयार है, तो मुसलमान पक्ष कह रहा है कि मामला अदालत ही निबटाए। इस मामले में मालिकाना हक के लिए तीन पक्षकारों ने मुकदमा किया है। ये तीन हैं- निर्मोही अखाड़ा, श्रीरामलला विराजमान और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड किसी भी सूरत में बातचीत को तैयार नहीं है।
निर्मोही अखाड़े के महंत रामदास जी कहते हैं, ''सर्वोच्च न्यायालय का सुझाव अच्छा है। हम लोग सुलह करने का प्रयास करेंगे। इसके बावजूद बात नहीं बनती है तो केंद्र सरकार से कहेंगे कि अब कानून के जरिए इस मसले का हल निकालें।'' राम मंदिर मुकदमे को वर्षों से बारीकी से देख रहे सर्वोच्च न्यायालय के वकील डॉ. वी.पी. शर्मा कहते हैं, ''सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पास अपनी बात रखने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है इसलिए वह बातचीत से दूर भाग रहा है।'' लेकिन सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड के पक्षकार इकबाल अंसारी कहते हैं, ''विवादित स्थल पर मस्जिद थी, जो तोड़ दी गई है। उस घटना को पूरी दुनिया ने देखा था। वहां मंदिर होने का कोई सबूत नहीं मिला है। यदि सबूत मिले होते तो मंदिर कब का बन गया होता।''
लेकिन विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय संयुक्त महासचिव डॉ. सुरेंद्र जैन का कहना है, ''मंदिर के बहुत सारे सबूत मिल चुके हैं। उन पर 2010 में ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय की मुहर भी लग चुकी है। वक्फ बोर्ड अपनी कमजोरी को जानता है और जान-बूझकर मामले को लंबा खींचना चाहता है।''
यानी इस मामले के सभी पक्ष अपने-अपने तर्कों के साथ अपनी-अपनी बातों पर अडिग हैं। ऐसे में बातचीत के जरिए कोई हल निकलेगा, इसकी उम्मीद दूर-दूर तक नहीं दिख रही। इससे पहले भी पांच बार सुलह की कोशिश हो चुकी है, लेकिन वे सभी विफल रही हैं। सर्वोच्च न्यायालय फिलहाल इस मामले को सुनने के लिए तैयार नहीं है। वह कब तैयार होगा, यह भी नहीं कहा जा सकता है। अनेक लोगों का मानना है कि यदि यह मामला अदालत में सुलझ सकता, तो 67 साल का समय ही नहीं लगता। तब फिर रास्ता क्या है? इस रास्ते को तलाशने के लिए पाञ्चजन्य ने इस मामले के पक्षकारों को ही टटोलने की कोशिश की। निर्मोही अखाड़े के महंत रामदास जी कहते हैं, ''निर्मोही अखाड़ा राम मंदिर निर्माण के लिए कृत संकल्प है। अखाड़ा 1950 से ही इसके लिए लड़ाई लड़ रहा है। हम चाहते हैं कि दोनों पक्षों में सुलह हो जाए। इसलिए हम लोग पहले सर्वोच्च न्यायालय नहीं गए। सर्वोच्च न्यायालय सबसे पहले सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, फिर श्रीरामलला विराजमान गए। उसके बाद हम लोग गए। इसका मतलब है कि निर्मोही अखाड़ा बातचीत के जरिए इस समस्या का समाधान चाहता है।'' उन्होंने बताया कि निमार्ेही अखाड़े की अखिल भारतीय बैठक शीघ्र ही होगी। उसमें तय किया जाएगा कि आगे क्या करना है। उन्होंने यह भी बताया कि निर्मोही अखाड़ा सर्वोच्च न्यायालय में एक सुलहनामा देने वाला है। इसके बाद अदालत से बाहर सुलह करने की कोशिश की जाएगी। यदि बात नहीं बनी तो केंद्र सरकार से मांग की जाएगी कि राम मंदिर के लिए कानून बनाया जाए। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को संसद के जरिए ही पलटा था। इसलिए अखाड़ा मानता है कि राम मंदिर के मामले में भी ऐसा हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2010 के अपने फैसले में विवादित स्थल को ही श्रीराम जन्मभूमि माना है। इसलिए उस जगह पर केवल और केवल मंदिर बनना चाहिए। मस्जिद वहां से दूर बने, ताकि यह विवाद सदा के लिए समाप्त हो जाए। रामदास जी ने कहा कि देशभर में लगभग 3,000 ऐसी मस्जिदें हैं, जिनका निर्माण मंदिरों को तोड़ कर किया गया है। लेकिन हिंदू समाज की मांग है कि उनमें से केवल तीन श्रद्धा स्थल (अयोध्या, मथुरा और काशी) हिंदुओं को वापस मिलने चाहिए। इन तीनों स्थलों पर हिंदुओं की श्रद्धा सदियों से है। यदि ये तीनों स्थल हिंदुओं को मिल जाते हैं तो देश में एक खुशनुमा माहौल तैयार होगा।
वहीं सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड के पक्षकार इकबाल अंसारी की राय रामदास जी से अलग है। वे कहते हैं, ''मंदिर और मस्जिद दोनों एक साथ बनें तभी सुलह की संभावना है। वक्फ बोर्ड यह मानने को तैयार नहीं है कि मस्जिद 14 किलोमीटर दूर या 48 कोस के बाहर बने। जो लोग मंदिर से दूर मस्जिद बनवाने की बात करते हैं, वे लोग सुलह करना ही नहीं चाहते।'' उन्होंने यह भी कहा कि सुलह तय शर्तों पर नहीं हो सकती। इकबाल ने यह भी कहा कि जब कोई मामला अदालत में होता है तो उस पर आम आदमी बाहर ज्यादा कुछ नहीं कर पाता है। इसलिए इस मामले को अदालत के ऊपर ही छोड़ देना चाहिए। अदालत जो भी फैसला सुनाएगी, उसे हर कोई मानने को बाध्य है। लेकिन विश्व हिंदू परिषद के डॉ. सुरेंद्र जैन कहते हैं कि इस मामले पर मुस्लिम पक्ष दोहरा रवैया अपना रहा है। तीन तलाक के मामले में तो वे कहते हैं कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में अदालत दखल नहीं दे सकती, लेकिन अयोध्या के मामले में कहते हैं कि अदालत ही फैसला करे। उन्होंने कहा, ''प्रधानमंत्री नरसिंहा राव के समय बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी की ओर से सैयद शहाबुद्दीन ने सरकार को एक शपथपत्र दिया था। उसमें उन्होंने लिखा था कि यदि विवादित स्थल पर मंदिर होने की बात सिद्ध हो जाए तो वे खुद उस ढांचे को तोड़ देंगे और हिंदू समाज को सौंप देंगे। अब मंदिर के बहुत सारे सबूत मिल चुके हैं। उन पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की मुहर भी लग चुकी है। इसलिए वक्फ बोर्ड वार्ता से भाग रहा है।'' उन्होंने बताया कि इससे पहले भी पांच विफल वार्ताएं हो चुकी हैं। इसलिए अब एक ही रास्ता बचा है— कानून। केंद्र सरकार कानून बनाए और राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करे। वे कहते हैं कि कुछ ऐसा ही संकेत सर्वोच्च न्यायालय भी कर चुका है। उल्लेखनीय है कि नरसिंहा राव सरकार के समय भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में एक हलफनामा देकर कहा था कि यदि यह साबित हो जाए कि विवादित स्थल मंदिर है तो सरकार पूरी जगह हिंदू समाज को दे देगी। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि विधायिका भी अपनी जिम्मेदारी निभाए। इस संकेत को समझने की जरूरत है।
डॉ. जैन कहते हैं कि राम मंदिर का निर्माण विकास के मार्ग को भी प्रशस्त करेगा। विकास की सबसे बड़ी बाधा है आतंकवाद। आतंकवाद से सुरक्षा के लिए प्रतिमाह देश के अरबों रुपए खर्च हो रहे हैं। नेताओं की सुरक्षा में हजारों जवान लगे हैं। जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा में लाखों सैनिक तैनात हैं। आतंकवाद से पीडि़त क्षेत्रों में विकास भी नहीं हो सकता है। राम मंदिर के बनने से इस मानसिकता का हौसला पस्त होगा। आतंकवाद का खात्मा होते ही देश विकास के मार्ग पर चल पड़ेगा।
अयोध्या विवाद का हल कब और कैसे होगा, इस पर कोई बाहरी व्यक्ति कुछ नहीं कह सकता। हां, इसके पक्षकार जरूर कुछ कह सकते हैं। लेकिन देश के लोग चाहते हैं कि इस विवाद का हल जल्दी निकले। ल्लै
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2010 के अपने फैसले में विवादित स्थल को ही श्रीराम जन्मभूमि माना है। इसलिए उस जगह पर केवल और केवल मंदिर बनना चाहिए।
— महंत रामदास, निर्मोही अखाड
मंदिर और मस्जिद दोनों एक साथ बनें तभी सुलह की संभावना है। वक्फ बोर्ड यह मानने को तैयार नहीं है कि मस्जिद 14 किलोमीटर दूर या 48 कोस के बाहर बने।
—इकबाल अंसारी, सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड
तीन तलाक के मामले में तो वे कहते हैं कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में अदालत दखल नहीं दे सकती है, लेकिन अयोध्या के मामले में कहते हैं कि अदालत ही फैसला करे।
— डॉ. सुरेंद्र जैन , विश्व हिन्दू परिषद़ा
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