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आदियोगी शिव की वाणी सहस्रों वर्षों से गूंज रही है विज्ञान भैरव तंत्र के सूत्रों में। आदियोगी शिव के द्वारा बताई गईं ये 112 ध्यान विधियां संसार की समस्त उपासना पद्धतियों की गंगोत्री हैं। इनमें से कोई एक विधि आपके लिए भी है। धरती पर आज तक कोई ऐसा व्यक्ति नहीं हुआ जो यह कह सके कि इनमें से एक भी विधि उसके लिए नहीं है; न भविष्य में ऐसा हो सकेगा। न यह पंथ है, न संप्रदाय। यह पूरा अस्तित्व है, पूरा आकाश है। महाशिवरात्रि पर सुनिए, शंभू आपसे कुछ कह रहे हैं
प्रशांत बाजपेई
प ध्यान सीखने और, अपनी चेतना को जानना चाहते हैं और गुरु के रूप में स्वयं आदियोगी महादेव उपस्थित हैं। यह कल्पनालोक नहीं, विज्ञान भैरव तंत्र का चमत्कारिक जगत् है। इसमें प्रवेश के मार्ग दिनभर हमारा रास्ता काटते हैं। ये इतने सहज हैं कि अक्सर हम उनकी उपेक्षा कर देते हैं। उदाहरण के लिए, एक ध्यान विधि बताते हुए शिव कहते हैं, भोजन करते हुए या पानी पीते हुए भोजन या पानी का स्वाद ही बन जाओ, उससे भर जाओ। अथवा चलते वाहन में लयबद्ध झूलने के द्वारा अनुभव को प्राप्त हो। ऐसा कहने वाले शिव हैं अन्यथा हम विश्वास भी न करें कि चेतना के जगत में प्रवेश करवाने वाले द्वार हमारे इतने निकट हैं। विज्ञान भैरव तंत्र शिव और उनकी अर्द्धांगिनी उमा का संवाद है। उमा समस्त मानवता की प्रतिनिधि बन शिव से प्रश्न पूछती जाती हैं, और शिव उत्तर देने के स्थान पर एक ध्यान विधि बताते जाते हैं। वे आपको उनके बताए उत्तर रट लेने या उन पर विश्वास कर लेने को नहीं कहते। शिव आपको स्वयं प्रयोग करके जान लेने का अवसर देते हैं। आप तैरने पर प्रश्न करते हैं तो शिव आपका हाथ पकड़कर नदी में उतर जाते हैं। आप पूछते हैं कि गुड़ क्या है तो शिव गुड़ की व्याख्या न करके आपको गुड़ की मंडी का मार्ग बताते हैं। यही तंत्र है। यही अध्यात्म का विज्ञान है। यह विज्ञान भैरव तंत्र है।
इस अद्भुत ग्रंथ में वर्णित 112 ध्यान विधियां, हम जहां हैं, वहीं पर, जिस तल पर खड़े हैं, उसी तल पर चेतना की गहराई में उतरने का मार्ग बताती हैं। ये विधियां कहती हैं कि देह का उपयोग करके देह के पार चले जाओ। कल्पना का उपयोग कर जो कल्पना से भी परे है, उसे जाने। विचारों का उपयोग करके निर्विचार हो जाओ, और मन को अपना मित्र बनाकर उसे विसर्जित कर दो। कुछ विधियां श्वास पर आधारित हैं, तो कुछ देह पर आधारित हैं। कुछ विधियां हमारी कल्पना का उपयोग करती हैं। यहां पर हमारे मन के लिए स्थान है। हमारे स्वप्नों के लिए स्थान है। हमारे सोने और जागने के लिए स्थान है। ये विधियां बताती हैं कि आंखें भी अनंत चेतना के दर्शन करा सकती हैं। कान सृष्टि में व्याप्त ओंकार के मर्म को सुन सकते हैं। जिह्वा परमज्ञान को चखने में मदद कर सकती है और नासिका भी परम सत्य तक पहुंचा सकती है। शर्त एक ही है कि इनके पीछे जुड़ा जो हमारा मन है, उसे समझ कर हम उसके पार चले जाएं।
कुछ विधियां श्रवण पर आधारित हैं, जैसे- ध्वनियों के केंद्र में स्नान करो, मानो किसी जलप्रपात की अखंड ध्वनि में स्नान कर रहे हो। अथवा, तंतु वाद्यों को सुनते हुए उनकी संयुक्त केंद्रीय ध्वनि को सुनो; इस प्रकार सर्वव्यापकता का अनुभव करो।
तंत्र हमारे अस्तित्व से जुड़ी हर चीज का उपयोग करना जानता है। कामना, भय, क्रोध, कामवासना – सबका। यह सब हमारी ही ऊर्जा है। जैसे बिजली ट्यूबलाइट में प्रकाश के रूप में प्रकट होती है, और हीटर में गर्मी के रूप में। वैसे ही ये सब हमारी ही ऊर्जा है। यही सध जाए तो शक्ति बन जाती है। एक विधि में शिव कहते हैं, ''जब छींक आने वाली हो, जब तुम डरे हुए हो, किसी खाई में झांक रहे हो, युद्ध से भाग रहे हो, बहुत गहरे कौतूहल में हो, भूख के आरम्भ में और भूख के अंत में सतत बोध को बनाए रखो।'' प्रत्येक सूत्र की रचना भी अपने आप में अद्भुत है। छींक के साथ युद्ध से भागने के अनुभव को जोड़ा है। कारण, तंत्र भय को स्वीकार करता है। भयभीत व्यक्ति का मजाक उड़ता है । तंत्र बहादुर बनने को नहीं कहता। अपने डर को दबाकर बहादुर बन गए तो आप दुनिया को प्रभावित अवश्य कर सकते हैं लेकिन आपका स्वयं कोई भला न होगा। तंत्र कहता है भय उठे तो उसे दबाओ मत, उसे स्वीकार करो, देह को कांपने दो , और उस कंपन में प्रवेश करो तो भय की गहराई में छिपी अपनी ऊर्जा तक पहुंचोगे।
तंत्र किसी भी चीज का निषेध नहीं करता। तंत्र नहीं कहता कि क्रोध मत करो। तंत्र कहता है कि क्रोध को उठने दो और उस दौरान मन और शरीर में जो कुछ घट रहा है उसे चुपचाप देखो और तुम अपनी ऊर्जा के केंद्र में पहुंच जाओगे।
श्वास हमारे तन और मन के बीच का सेतु है। ये तीनों आपस में जुड़े हैं। तन अस्वस्थ हो तो मन अस्वस्थ हो जाता है। मन खराब हो तो तन तनाव में आ जाता है। क्रोध आए तो सांस तेज हो जाती है। बुखार आए तो भी सांस की गति बढ़ जाती है। विज्ञान भैरव तंत्र की पहली ध्यान विधि श्वास पर है।
शिव कहते हैं कि जब सांस अंदर जाती है तब सेकेंड के हजारवें हिस्से के लिए रुकती है तब बाहर लौटती है, बाहर से अंदर आने के पहले फिर एक बार रुकती है। ये जो रुकने का अंतराल है, इसके प्रति सजग हो जाओ तो धीरे-धीरे अपने अस्तित्व तक पहुंच जाओगे। महात्मा बुद्ध ने इस विधि का प्रयोग किया। बौद्ध दर्शन में यह विधि विपश्यना नाम से प्रचलित है
सांस में व्याप्त प्राण पर आधारित भी ध्यान विधियां यहां पर हैं।
ऐसी ही एक विधि के बारे में कबीर बताते हैं, परंतु शुरुआत सवाल से करते हैं जब कहते हैं,
''मोको कहां ढूंढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास में।
न मैं बकरी, न मैं भेड़ी, न मैं छुरी गंडास में।
नहीं खाल में नहीं पूंछ में, न हड्डी न मास में।
ढूंढें तो तुरत ही मिलिहो पल भर की तलास में।
कहत कबीर सुनो भाई साधो सब साँसन की सांस में।''
आप देह पर बहुत केंद्रित हैं, खेल प्रेमी हैं, नर्तक हैं, तो संभवत: यह विधि आपके लिए गहरे उतरने का माध्यम बन जाए जो कहती है पूर्ण संतुलन बनाकर केवल नितंबों पर बैठो। अभ्यास करो और जिस दिन संतुलन सध जाएगा, उस दिन आप अपने कंद्र में
उतर जाओगे। तन का संतुलन मन का भी संतुलन ले आएगा।
कल्पना हमारी शक्ति है। शिव ने कुछ कल्पना पर आधारित विधियां बताई हैं। एक विधि कहती है, ''अपने शरीर, अस्थियां, मांस और रक्त को ब्रह्माण्डीय सार से भरा हुआ अनुभव करो।'' एक अन्य सूत्र में कहा गया है, ''भाव करो कि दाहिने अंगूठे से उठ रही अग्नि में तुम्हारा पूरा शरीर भस्म हो रहा है।'' एक अन्य विधि कहती है, ''कल्पना करो कि मोर की पूंछ के पंचरंगे वर्तुल नि:सीम अंतरिक्ष में तुम्हारी पांच इन्द्रियाँ हैं। अब उनके सौंदर्य को भीतर ही घुलने दो।''ओशो के अनुसार आदि शंकराचार्य ने इस विधि का प्रयोग
किया है।
हमारे जीवन का एक तिहाई समय सोते हुए गुजरता है। जब हम अचेतन में सरकते हैं और निद्रा घेर लेती है, ठीक उसी समय सजग होने की युक्ति सुझाते हुए शिव कहते हैं, ''निद्रा और जागरण के अंतराल के प्रति सजग होओ।'' शिव, दुर्गा, काली आदि के माथे पर वर्णित तृतीय नेत्र को योग ने हमारे विवेक की आंख कहा है। इस तीसरी आंख को जगाने के लिए शिव बताते हैं कि आंखों की पुतलियों को (हथेलियों से) पंख की भांति छूने से उनके बीच का हल्कापन हृदय में खुलता है।
यहां हर प्रकार के चित्त के लिए गुंजाइश है। एक विधि में शिव कहते हैं कि जागते, सोते, स्वप्न देखते हुए स्वयं को प्रकाश समझो। तो दूसरी विधि में कहते हैं कि वर्षा की अंधेरी रात में उस अंधकार में प्रवेश करो, जो रूपों का रूप है। एक विधि कहती है कि अकल्पनीय की कल्पना करो, क्योंकि मन तो एक बने हुए ढांचे का नाम है, उस ढांचे को तोड़ दो। तब तुम अपने मन के स्वामी बन जाओगे। प्रेमी चित्त के लिए शिव कहते हैं कि किसी विषय को प्रेमपूर्वक देखो, दूसरे विषय पर मत जाओ। यहीं विषय के मध्य में आनंद को प्राप्त हो जाओ।
मेरुदंड या रीढ़ की हड्डी का योग और तंत्र दोनों में महत्व रहा है। योगियों के अनुसार इसमें से तीन प्रमुख यौगिक नाडि़यां या ऊर्जा प्रवाह गुजरते हैं। शरीर शास्त्र के अनुसार मेरुदंड में से तंत्रिकाएं निकलकर पूरी देह में फैलती हैं। एक विधि कहती है कि अपने पूरे अवधान को अपने मेरुदंड के मध्य में कमलतंतु-से कोमल स्नायु में स्थित करो और इसमें रूपांतरित हो जाओ। ये विधियां हम से प्रत्येक की धरोहर हैं। ओशो के अनुसार आपको इनमें से कोई एक विधि अपने लिए चुननी है और उसका कुछ महीने अभ्यास करना है। एक दिन आप उस विधि पर पहुंचेंगे जो आपके लिए है और तब वह विधि आपको पकड़ लेगी। आप स्वयं ही जान जाएंगे कि शिव तो सदा से ही पुकार रहे हैं।
ध्यान विधि 13
कल्पना करो
कि मोर की पूंछ के पंचरंगे वर्तुल नि:सीम अंतरिक्ष में तुम्हारी पांच इन्द्रियां हैं। अब उनके सौंदर्य को भीतर
ही घुलने दो।
ध्यान विधि 14
अपने पूरे
अवधान को अपने मेरुदंड के मध्य में कमलतंतु से कोमल स्नायु में स्थित करो और इसमें रूपांतरित
हो जाओ।
ध्यान विधि 15
सिर के सात द्वारों को अपने हाथों से बंद करने पर आंखों के बीच का स्थान सर्वग्राही हो जाता है।
ध्यान विधि 1
हे देवी, यह अनुभव दो श्वासों के बीच घटित हो सकता है।
ध्यान विधि18
किसी विषय
को प्रेमपूर्वक देखो; दूसरे विषय पर मत जाओ। यहीं विषय के मध्य में
आनंद।
ध्यान विधि 20
चलते वाहन में लयबद्ध झूलने के द्वारा अनुभव को प्राप्त हो।
ध्यान विधि 22
अपने अतीत
की किसी घटना में स्वयं को देखो ; किसी अभिनेता की तरह
ध्यान विधि 27
पूरी तरह
थकने तक घूमते रहो, और तब, जमीन पर गिरकर, इस गिरने में पूर्ण हो जाओ।
ध्यान विधि 35
किसी गहरे कुंए में झांको
ध्यान विधि 41
तंतु वाद्यों को सुनते हुए उनकी संयुक्त केंद्रीय ध्वनि को सुनो; इस प्रकार सर्वव्यापकता।
ध्यान विधि 52
भोजन
करते हुए या पानी पीते हुए भोजन या पानी का स्वाद ही बन जाओ, उससे भर जाओ।
ध्यान विधि64
भय में, चिंता में, अत्यंत कौतूहल में सतत बोध बनाए रखो।
ध्यान विधि75
जागते-सोते स्वप्न देखते हुए स्वयं को प्रकाश समझो।
ध्यान विधि76
वर्षा की
अंधेरी रात में उस अंधकार
में प्रवेश करो ,
जो रूपों का रूप है।
ध्यान विधि 13
कल्पना करो
कि मोर की पूंछ के पंचरंगे वर्तुल नि:सीम अंतरिक्ष में तुम्हारी पांच इन्द्रियां हैं। अब उनके सौंदर्य को भीतर
ही घुलने दो।
ध्यान विधि 14
अपने पूरे
अवधान को अपने मेरुदंड के मध्य में कमलतंतु से कोमल स्नायु में स्थित करो और इसमें रूपांतरित
हो जाओ।
ध्यान विधि 15
सिर के सात द्वारों को अपने हाथों से बंद करने पर आंखों के बीच का स्थान सर्वग्राही हो जाता है।
ध्यान विधि 1
हे देवी, यह अनुभव दो श्वासों के बीच घटित हो सकता है।
ध्यान विधि18
किसी विषय
को प्रेमपूर्वक देखो; दूसरे विषय पर मत जाओ। यहीं विषय के मध्य में
आनंद।
ध्यान विधि 20
चलते वाहन में लयबद्ध झूलने के द्वारा अनुभव को प्राप्त हो।
ध्यान विधि 22
अपने अतीत
की किसी घटना में स्वयं को देखो ; किसी अभिनेता की तरह
ध्यान विधि 27
पूरी तरह
थकने तक घूमते रहो, और तब, जमीन पर गिरकर, इस गिरने में पूर्ण हो जाओ।
ध्यान विधि 35
किसी गहरे कुंए में झांको
ध्यान विधि 41
तंतु वाद्यों को सुनते हुए उनकी संयुक्त केंद्रीय ध्वनि को सुनो; इस प्रकार सर्वव्यापकता।
ध्यान विधि 52
भोजन
करते हुए या पानी पीते हुए भोजन या पानी का स्वाद ही बन जाओ, उससे भर जाओ।
ध्यान विधि64
भय में, चिंता में, अत्यंत कौतूहल में सतत बोध बनाए रखो।
ध्यान विधि75
जागते-सोते स्वप्न देखते हुए स्वयं को प्रकाश समझो।
ध्यान विधि76
वर्षा की
अंधेरी रात में उस अंधकार
में प्रवेश करो ,
जो रूपों का रूप है।
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