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-3 डिग्री तापमान में शरीर की क्या हालत होती है, यह वही व्यक्ति बता सकता है जिसने इसे महसूस किया हो। सामान्यत: 0 डिग्री पर पानी जम जाता है और जनजीवन पूरी तरह से अस्त-व्यस्त होने लगता है। ऐसे में बाहर निकलना तो दूर की बात, शरीर को संभालना ही मुश्किल होता है। लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसवेकों ने बर्फ के बीच अपने कार्यक्रम अनुशासित रूप से जारी रखे
अश्वनी मिश्र
सुबह के 4 बजकर 40 मिनट हुए हैं। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला का तापमान इस समय -3 डिग्री है। चारों तरफ बर्फ की श्वेत चादर बिछी हुई है। दूर-दूर तक सिर्फ बर्फ ही बर्फ दिखाई दे रहा है। चारों तरफ सन्नाटा पसरा है। इसी बीच अचानक शिविर स्थल से शंख ध्वनि होती है और सीटी बजती है। स्वयंसेवक अपने दैनिक कार्य से निवृत्त हो सामूहिक रूप से एकात्मता स्रोत के लिए एकत्र हो जाते हैं। इस बीच विभिन्न कार्यक्रम संपन्न होते हैं और 9 बजकर 45 मिनट पर सभी स्वयंसेवक शाखा स्थल पर एकत्र होने लगते हैं। एक तरफ स्वयंसेवक जहां पूरे उत्साह में दिखाई दिए तो वहीं सर्दी भी अपना रौद्र रूप धारण किए हुए थी। लेकिन फिर भी उनके चेहरों से उत्साह और उमंग का भाव बराबर झलक रहा था। उन्हें देखकर कोई कह ही नहीं सकता कि इतनी भीषण ठंड है। शाखा स्थल पर एक फुट हो रहे बर्फ जमी हुई है और आसमान से भी लगातार बर्फ पड़ती रहती है लेकिन इस सबके बावजूद शाखा में सभी कार्य सुचारू रूप से संपन्न होते रहते हैं। दरअसल इन दिनों राजधानी शिमला में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संंघ का प्रथम वर्ग का प्रशिक्षण चल रहा है। यह 20 दिवसीय वर्ग 8 जनवरी से 28 तक चलेगा। इतने कम तापमान और हाड कंपा देने वाली ठंड में विरले ही होंगे जो शिविर में आने की हिम्मत उठाएंगे। लेकिन वर्ग में 16 से 40 वर्ष तक की आयु के स्वयंसेवक भाग ले रहे हैं। 203 स्वयंसेवक हिमाचल के 150 स्थानों से आए हैं तो 3 स्वयंसेवक अन्य प्रांतों के हैं। इन्हें शारीरिक, बौद्धिक कार्यक्रमों के माध्यम से शिक्षण देने के लिए 20 से अधिक शिक्षक तथा व्यवस्था के लिए 40 से अधिक प्रबन्धक भी हैं। शिक्षण लेने वालों में विद्यार्थी, अध्यापक, अधिवक्ता तथा व्यवसायी शामिल हैं।
दरअसल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में कार्यकर्ता निर्माण के लिए वर्गों का विशेष महत्व है। ऐसे वगोंर् से ही देश और समाज के लिए देशभक्त, अनुशासित, चरित्रवान और नि:स्वार्थ भाव से काम करने वाले कार्यकर्ता तैयार होते हैं। वे समाज के प्रति संवेदनशील बनते हैं, जो संकट के समय सबसे पहले लोगों की मदद के लिए पहुंचते हैं। अपनी स्थापना के बाद से ही संघ में ऐसे वगोंर् की पद्धति रही है। ऐसे वर्ग या तो मई-जून के महीने में लगते हैं जब तापमान 45 डिग्री से अधिक रहता है या फिर हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर जैसे क्षेत्रों में सर्दियों में जब तापमान शून्य से नीचे चला जाता है। लेकिन ऐसे मौसम में भी स्वयंसेवकों का उत्साह देखते बनता है। शिविर में आए अधिकतर स्वयंसेवक यह कहते मिलते हैं कि यह वर्ग मेरे जीवन के लिए यादगार होगा।
ऐसे ही एक स्वयंसेवक नरेश कुमार, शिमला जिले की नेरवा तहसील के रहने वाले हैं। वे संस्कृत से एमए कर रहे हैं। शिमला में मौसम विभाग की अनेक भविष्यवाणियों को दरकिनार कर वे शिविर स्थल पर पहुंचे। अपने निवास स्थान से यातायात की व्यवस्था न होने की वजह से बारिश और बर्फवारी में ही पैदल ही 11-12 किमी़ की यात्रा की और नेरवा और फिर वहां से विकासनगर-पांवटा-सोलन होते हुए किसी तरह वर्ग स्थान पर पहंुचे। वे अपने अनुभव को साझा करते हुए कहते हैं, ''मैंने तय किया था कि मुझे वर्ग में आना है। तो फिर कोई आपदा-विपदा आए क्या फर्क पड़ता है। यहां जो सीखने को मिलेगा वह अन्य स्थान पर नहीं मिल सकता। ऐसे मौके बार-बार नहीं आते।'' नरेश अकेले नहीं हैं जिन्होंने इस वर्ग में ऐसी आपदा और विपदाओं को पार किया। दर्जनों कार्यकर्ता इसकी मिसाल हैं।
प्रार्थना संघ का मंत्र है। और स्वयंसेवक का ईश्वर के सामने निवेदन है। प्रार्थना में संघ का लक्ष्य और ध्येय दोनों हैं। अत: स्वयंसेवक को अपने ध्येय का स्मरण रहे व निरंतर संघ कार्य करने के लिए ऊर्जा मिलती रहे, ऐसे शिविर उनके अंदर और जोश भरने काम करते हैं।
— प्रेम कुमार, उत्तर क्षेत्र प्रचारक
वे यह भी कहते हैं,''मैं जिस स्थान से आता हूं वह भी बारिश और बर्फवारी वाला है, इसलिए यह सब मेरी आदत का एक हिस्सा ही है। यहां लेकिन जिस प्रकार बारिश और बर्फवारी हुई उससे लगता है कि यहां के कार्यकर्ताओं ने बहुत परिश्रम किया होगा, तभी सभी व्यवस्थाएं समुचित रूप से चल रही हैं जिससे हम शिक्षार्थिओं को वर्ग के दौरान किसी प्रकार की समस्या नहीं हो रही।'' वर्ग के दौरान अधिकतर स्वयंसेवक यह कहते मिल जाते हैं,''यह हाड़ कंपा देने वाली सर्दी उनके उत्साह को और बढ़ा रही है।''
दरअसल शिमला में चल रहा यह प्रशिक्षण वर्ग अनेक कारणों से विशिष्ट रहा। पहली बात शिमला में इस तरह का पहला ही शिविर लगा है। दूसरा जिस दिन यह वर्ग प्रारम्भ हुआ उससे एक दिन पूर्व हिमाचल के पर्वतीय क्षेत्रों में भारी हिमपात हुआ जिसके चलते अनेक मार्ग अवरुद्ध हो गए। शिमला में भी 2 से 3 फीट तक बर्फ गिरने के कारण आवागमन बाधित हुआ। श्ििावर स्थल पर भी लगभग डेढ़ फीट तक बर्फ जमी रही। सभी के मन में एक ही प्रश्न था कि स्वयंसेवक शिमला तक कैसे पहुंचेंगे? लेकिन जो स्वयंसेवक हरदिन साधना करता है और गीत गाता है, 'आंधी क्या तूफान मिले, चाहे जितने व्यवधान मिले, बढ़ना ही अपना काम है' वह इन सब बाधाओं को पार करता हुआ आगे बढ़ता गया और शिविर स्थल पर पहुंचा। अनेक स्वयंसेवक तो 15 से 20 किलोमीटर (6-7 घंटे) तक अपना सामान कंधे पर उठाकर पैदल आए। शायद ऐसा उत्साह अन्य कहीं और देखने को नहीं मिल सकता। -3 डिग्री का तापमान, पानी की पाइपें जमी हुईं और बिजली व्यवस्था में भी समस्याएं आईं। मुसीबत तब और बढ़ गई जब 16 जनवरी को फिर बर्फवारी हुई। लेकिन इस हाड़ कंपा देने वाली ठंड में भी स्वयंसेवक प्रात: 4:45 बजे से रात्रि 10:15 तक सभी कार्यक्रमों में उत्साह से भाग ले रहे हैं।
सुदूर किन्नौर जिले से आने वाले उदय सिंह निचार तहसील के यंग्पा गांव के रहने वांले हैं। वे एक कृषक परिवार से आते हैं। वे वर्ग में आने के अपने अनुभव के बारे में बताते हैं,''भारी बारिश व बर्फवारी में अपने गांव से आधा किमी़ पैदल चलने के बाद काफ्रनू पहुंचा। जिसके बाद 5 किमी़ पैदल चलकर जिला केन्द्र रिकांगपिओ पहंुचकर एक रात रामपुर में विश्राम किया। इसके बाद भारी बर्फवारी में अनेक संकटों को झेलते हुए वर्ग स्थान पर आ पाया। वे बताते हैं, ''मुझे अपने निवास स्थान पर तो बर्फ में काम करने का काफी अनुभव है लेकिन जीवन में कभी सोचा भी नहीं था कि बर्फ से सराबोर शिमला में 20 दिवसीय संघ शिक्षा वर्ग में शामिल होने का अवसर मिलेगा। लेकिन इसका अपना ही आनंद है जो कि जीवन में निश्चित ही अविस्मरणीय क्षण रहेगा।'' वर्ग में विभिन्न प्रांतों के शिक्षार्थी प्रशिक्षण लेने के लिए आए। लोकेन्द्र कुमार अमृतसर से हैं। वे बड़े उत्साह के साथ बताते हैं,''शीतकालीन संघ शिक्षा वर्ग शिमला में लगने वाला है तो यह जानकर बहुत ही खुशी हुई कि मैदानी क्षेत्रों तो गर्मियों में वर्ग होते हैं लेकिन इसके इतर हिमाचल में लगने वाले शीतकालीन संघ शिक्षा वर्ग की बात ही निराली है। वर्ग स्थान पूरी तरह से बर्फ से ढक चुका था लेकिन अपने प्रारंभ की अवधि 8 जनवरी दोपहर से अब तक बिना किसी व्यवधान के वर्ग समुचित व्यवस्थाओं के मय भी सुचारू रूप से चल रहा है जिसमें किसी भी शिक्षार्थी को कोई कठिनाई अनुभव नहीं हुई।''
दरअसल संघ के स्वयंसेवकों के यह कुछ अनूठे कार्य हैं जो समाज को इस संगठन के बारे में समझ विकसित करने का मौका देते हैं। ठंडक हो या फिर भीषण गर्मी, संघ के स्वयंसेवक राष्ट्र आराधना में तल्लीन रहते हैं और उनके मनों को कोई डिगा नहीं पाता है। हिमाचल का यह वर्ग उसी का हिस्सा है।
इस बार का यह वर्ग ऐतिहासिक बन गया है। प्रकृति भयंकर बर्फबारी के रूप में शिक्षार्थियों के स्वागत की तैयारी कर रही थी। मौसम ने भले ही घर से प्रस्थान एवं वर्ग स्थान में आगमन तक परीक्षा ली लेकिन इन प्रसंगों को यहां आने वाले कार्यकर्ता जीवनभर गर्व के साथ बता सकेंगे। इन्होंने विकट परिस्थिति को भी अनुकूल बनाया है।
—किश्मत कुमार , प्रांत कार्यवाह
दर्जनों स्वयंसेवक 15-20 किलोमीटर पैदल चलकर बरसात और गिरती बर्फ तक में शिविर स्थल पर पहुंचे।
शून्य डिग्री तापमान के बाद भी हिमाचल के करीब 150 स्थानों से कार्यकर्ताओं की सहभागिता रही
भीषण ठंड के चलते जहां पानी जम गया तो वहीं विद्युत व्यवस्था भी कई दिनों बाधित रही लेकिन स्वयंसेवकों का उत्साह जस का तस रहा।
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