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बड़े नोट बंद करने के बाद विपक्षी दल भले अपने समर्थकों के बीच खड़े होकर विमुद्रीकरण के केन्द्र सरकार के ऐतिहासिक फैसले का विरोध कर रहे हैं पर देश के वरिष्ठ अर्थ विश्लेषक संतुष्ट हैं। वे इसे निश्चित रूप अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा कदम बता रहे हैं। कालेधन और भ्रष्टाचार पर कड़ा अंकुश लगने की संभावनाएं जताई जा रही हैं। लोगों को कम नकदी वाले अर्थ व्यवहार की सरलता अब भाने लगी है और इसका चलन बढ़ रहा है
भगवती प्रकाश
देश को कालेधन व नकली मुद्रा से मुक्त करने हेतु बड़े नोटों के विमुद्रीकरण के 52 दिन में देश के 707 जिलों के 4,041 नगरों व 6 लाख गांवों में बसी 132 करोड़ जनसंख्या की 88 प्रतिशत रोकड़ मुद्रा का सहजता से बैंकों में जमा हो जाना एक कीर्तिमान जैसा ही है। वित्तीय समावेशीकरण के इस अभियान के पक्ष में राष्ट्रीय चेतना की समवेत सहमति इतनी प्रबल बनी कि देश के 13 विपक्षी दलों के आह्वान पर जनता ने उनके एक दिन के बन्द या सांकेतिक विरोध प्रदर्शन में भी साथ नहीं दिया, जबकि देश के केवल 27 प्रतिशत गांवों की ही 5 किमी. परिधि में कोई बैंक शाखा सुलभ है। जनता ने अपने बंद हुए नोटों को इस विजयी भाव से जमा कराया है कि मानो कर चोरी, करापवंचना, भ्रष्टाचार व आतंकवाद से मुक्ति के इस संग्राम में वे एक सशस्त्र सेनानी हैं। विगत 3 दशक से जहां जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद और 5 दशकों से अन्य प्रदेशों में फैल रही नक्सली व माओवादी हिंसा थम नहीं रही थी वह नकली नोटों के दम तोड़ते ही थम गई, और काले धन का हवाला कारोबार भी निर्मूल हो गया।
काले धन का व्याप व उसके रूप
आज अनेक लोगों द्वारा यह प्रश्न किया जा रहा है कि जब 15़5 खरब रुपयों के 1000 व 500 रुपये के नोटों में से 97 प्रतिशत अर्थात 14़ 97 खरब रु. के बंद नोट जमा हो गए तो काला धन कहां गया? लेकिन, देश व विदेश में जमा भारतीयों का काला धन मात्र 15़ 5 खरब रुपयों के बड़े रोकड़ नोटों में ही तो जमा नहीं था। कुछ विशेषज्ञ अनुमानों के अनुसार भारतवासियों द्वारा देश व विदेश में जमा काला धन 100-150 खरब रुपए तुल्य रहा है। भारत में 2015 में 60 प्रतिशत आयकर व 'पेनल्टी' के साथ विदेशों में जमा काले धन व 2016 में 45 प्रतिशत आयकर व 'पेनल्टी' के साथ देश मंे संचित काले धन की घोषणा हेतु लायी गई आय घोषणा योजनाओं में क्रमश: 4,147 व 65,250 करोड़ रुपये का ही कालाधन सामने आया है। दूसरी ओर अर्जेंटीना व इंडोनेशिया में अपेक्षाकृत न्यून कर दायित्व के साथ जो आय घोषणा योजनायें लाई गई थीं उनमें अर्जेंटीना में कुल 80 अरब डालर अर्थात् 5,36,000 करोड़ रुपये तुल्य व इंडोनेशिया में 379 अरब डालर अर्थात् 25,40,000 करोड़ रुपये तुल्य काले धन की घोषणा हुई है। इसमें लगभग 100 अरब डालर अर्थात् 6,20,000 करोड़ रुपयों जितनी विदेशों में भी जमा राशि वापस देश में आ भी गई है, जिसका 70 प्रतिशत सिंगापुर के बैंकों में था।
भारत की अर्थव्यवस्था इंडोनेशिया की तीन गुनी है। इसलिये देश में काला धन मात्र 15़44 लाख करोड़ रुपये के रोकड़ धन में ही निहित होने की कल्पना अव्यावहारिक है। कर चोरी अथवा अवैध कारोबार से अर्जित या भ्रष्टाचार की आय से संचित कालाधन जिन भी लोगों के पास है, वे इसे भूमि, भवन, सोना, कंपनियों के शेयर, पार्टिसिपेटरी नोट्स, बेनामी संपत्ति या अन्य भी कई रूपों में रखते हैं। लोगों ने काले धन या भ्रष्टाचार की आय से अर्जित धन को या इसके कालेधन को कहीं कारोबार में बताकर निर्यात आय के रूप में सफेद करने के भी कई तरीके निकाल रखे हैं। बंद हुये अपने पुराने नोटों से पिछली तिथि में बिल बनवाकर सोने से ले कर टी़वी़, फ्रिज आदि अनेक वस्तुएं खरीद लेने व बेचने वालों की भी बड़ी संख्या रही है। नोटबंदी के 48 घंटों में 1,250 करोड़ रुपये मूल्य का 4000 किलो सोना बिका है। इसके अतिरिक्त अनेक व्यवसायियों द्वारा उनके रोकड़ 500 व 1000 रुपये के नोटों में संचित काले धन को पिछले वित्तीय वर्ष के बाद की अवधि में भी 8 नवंबर से पिछली दिनांक में बिक्री बताकर नोट बैंकों में जमा कराने के समाचार भी आ रहे हैं। ऐसी राशि भी 4-5 खरब रुपए हो सकती है जिस पर सरकार को अप्रत्यक्ष कर (वेट) व प्रत्यक्ष कर (आयकर) से एक से डेढ़ खरब रु. का अतिरिक्त राजस्व मिल सकता है।
फॉरेन्सिक अंकेक्षण से पकड़ा जायेगा काला धन
बैंकों में जमा नोटों में काले धन का पता लगाने के लिये आयकर विभाग, विश्व की 4 प्रमुख अन्तरराष्ट्रीय अंकेक्षण अभिकृतियों यथा अन्र्स्ट एंड यंग, के़ पी़ एम. जी., प्राइस वाटर हाऊस कूपर्स समेत कई अन्तरराष्ट्रीय अंकेक्षकों से यह पता लगाने का प्रयास कर रहा है कि बैंकों में जमा कराई इस राशि में मनी लॉन्ड्रिंग का पैसा तो नहीं पहुंचा है। नोटबंदी के बाद जिन 60 लाख लोगों और कंपनियों ने बड़ी राशि में 7 खरब रुपयेे के बंद नोट जमा कराए हैं, उनमें चार लाख करोड़ रुपयों पर इनकम टैक्स विभाग को संदेह है, इन्हें विभाग नोटिस भी भेजेगा। अब तक 5000 नोटिस भेजे भी जा चुके हैं।
आयकर विभाग ने नोटबंदी के बाद देशभर में काले धन के विरुद्ध चलाये अभियान में भी 4,172 करोड़ रुपये की अघोषित आय का पता लगाया है और 500 करोड़ रुपयों से अधिक के नये नोट पकड़े हैं। आयकर विभाग की वित्तीय खुफिया इकाई को निष्क्रिय खातों, जनधन खातों और शहरी सहकारी बैंकों में बड़ी और संदिग्ध जमाओं की भी पर्याप्त जानकारी मिली है। सरकार ने इसके अलावा नोटबंदी के बाद ऋणों का भुगतान नकद में करने, आऱ टी. जी. एस़ हस्तांतरण और अन्य भुगतानों की जानकारी भी ली है।
नोटबंदी से पहले के महीनों में बैकिंग व्यवहारों (लेन-देन) का विश्लेषण करने के लिए भी आयकर विभाग ने बैंकों से 1 अप्रेल से 8 नवंबर 2016 के बीच बचत खातों में जमा हुई राशि की जानकारी देने को कहा है। इसके अलावा, बैंकों से उन खाता धारकों से 28 फरवरी तक पैन नंबर व फॉर्म 60 भी लेने को कहा गया है, अन्यथा उनका बैंक खाता सीज कर दिया जाएगा। सरकारी अधिसूचना के अनुसार, सभी बैक, को-ऑपरेटिव बैंक और पोस्ट ऑफिस को 1 अप्रैल से 8 नवंबर 2016 के दौरान सभी नकदी जमा की जानकारी देनी होगी।
भविष्य में कालेधन के सृजन पर अंकुश
यह बात निर्विवादित रूप से सत्य है कि अधिकांश कालेधन का सृजन रोकड़ लेन-देन से ही संभव है। सो बड़े नोटों की बंदी के साथ अब रोकड़ में लेन-देन व व्यवहार में कमी से देश में कालेधन का निर्माण बाधित होगा। चेक, कार्ड, मोबाइल बैंकिग या इंटरनेट बैंकिग के माध्यम से होने वाले भुगतान में कर चोरी, बिना हिसाब के भुगतान या रिश्वत असम्भव है। ऐसे में अल्प रोकड़ अर्थात् कैशलैस वाली व्यवस्था में कालेधन व अवैध धन पर पर्याप्त अंकुश रहने की सर्वाधिक संभावना रहती है। कहीं न कहीं ऐसे लेन-देन के पदचिन्ह पकड़ में आ ही जाते हैं।
विमुद्रीकरण के बाद जब यह तय हो ही गया है कि भारत अब अल्प-रोकड़ (लैस कैश) के दौर में प्रवेश कर रहा है, अब बिना बिल के क्रय-विक्रय आदि व्यवहार अप्रत्याशित रूप से कम हो जायेंगे। नवंबर, दिसंबर में स्वचालित वाहनों सहित अनेक वस्तुओं की बिक्री में कमी के उपरान्त भी दिसंबर 2016 मंे उत्पाद शुल्क में 31़ 6 प्रतिशत वृद्धि हुई है। आयात शुल्क में 6़ 3 प्रतिशत की कमी के बाद भी उत्पाद शुल्क में यह वृद्धि, विशेषज्ञों के अनुसार, उत्पादक उद्योगों में अब अपने आदायों को कर चुका कर, एक नंबर में खरीदने की प्रवृत्ति बढ़ने का लक्षण है। अल्प-रोकड़ के इस नवयुग में हवाला लेन-देन भी अंतिम सांसें ले रहा है जिससे बिना हिसाब के लेन-देन घटेंगे और समानान्तर अर्थव्यवस्था निष्प्राण होगी।
विकास हेतु संसाधन सृजन
इसके अतिरिक्त जो 15 लाख करोड़ रुपये के पुराने नोट जमा हुये हैं, उनमें से बड़ी राशि परिवारों में निष्क्रिय बचत, गृहणियों के पास स्त्रीधन अथवा मंदिर, मठ व अन्य प्रतिष्ठानों में निरुपयोगी जमा राशि के रूप में रखी थी। यह राशि बैंकों में जमा हो जाने से बैंकों के ऋण देने हेतु संसाधन बढ़ गये हैं, इससे ब्याज दरें भी कम हुई हंै, और कम हांेगी व कई परियोजनाओं के लिये सुलभ होने वाले ऋणों से कई नये रोजगार सृजन करने में समर्थ औद्योगिक व वाणिज्यिक गतिविधियों का सूत्रपात होगा। गृह ऋण पर ब्याज दरें आज घटकर विगत 10 वर्ष के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गयी हैं, जो और कम होंगी। इससे सस्ते गृह-ऋणों से अधिक लोगों को अपनी छत सुलभ होगी। केन्द्र व राज्यों का जो 1़ 5 से 2 खरब रुपयों का राजस्व बढ़ने की संभावना है, उससे सार्वजनिक निवेश हेतु भी संसाधन बढ़ेंगे। केन्द्रीय वित्तमंत्री के कथनानुसार अधिकांश राज्यों की वेट प्राप्तियों में वृद्धि हुई है, केन्द्रीय उत्पाद शुल्क में दिसंबर 2016 में 2015 की तुलना में 31़ 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। विगत वर्ष की तुलना में 2016 के अप्रैल-दिसंबर में प्रत्यक्ष कर आय में 12़ 01 प्रतिशत व अप्रत्यक्ष करों की आय में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इससे कई लोक कल्याण की मदों व अवसंरचनागत (इन्फ्रास्ट्रक्चर संबंधी) परियोजनाओं में निवेश हेतु संसाधन बढ़ेंगे। इस प्रकार कृषि, उद्योग व वाणिज्यिक गतिविधियों में निजी क्षेत्र व सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश से बढ़ने वाली रोजगार सृजनकारी परियोजनाओं से देश में रोजगार, आय, मांग व निवेश की वृद्धि होगी और रोजगार वृद्धि से विकास आय, मांग व निवेश वृद्धि का अनवरत क्रम गतिमान हो सकेगा।
कुछ क्षेत्रों में अल्पकालिक गतिरोध की संभावना
हालांकि इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि देश में अब तक भू-सम्पदा से लेकर अनेक उत्पाद उद्योगों में बिना हिसाब के लेन-देन से करापंवचना, बहुत बड़ी मात्रा में होती थी। भू-संपदा (अर्थात् भूखंड, मकानों व अपार्टमेंट आदि) के क्रय-विक्रय में सर्वाधिक कालेधन का सृजन होता था। अधिकतम संपतियों का पंजीयन संपति के बाजार मूल्य या वास्तविक मूल्य के आधे से कम राशि का होता था। अब रोकड़ में भुगतान असम्भव होने से कुछ समय के लिए भू-सम्पदा के लेन-देन के व्यवहारों में कमी आयेगी। इससे निर्माण कायार्ें में कुछ समय के लिये कमी आ सकती है। उसके कारण बजरी भरने वाले श्रमिक से लेकर सभी प्रकार के निर्माण श्रमिकों, कारीगर, प्लम्बर, वायरमैन, पेण्टर, फर्नीचर बनाने वाले कारीगरों, सेंटरिंग-शटरिंग कर्ताओं सहित कई श्रेणी के निर्माण में प्रयुक्त सीमेंट, लोहा (सरियों), तार-स्विच सहित फिटिंग में प्रयुक्त विद्युत साज-सामानों सेनेेटरी सामग्री व उपकरणों आदि की मांग व उत्पादन में भी कटौती और तत्सम्बन्धी रोजगार में स्वल्पकालिक कमी आ सकती है। विमुद्रीकरण का सबसे बड़ा लाभ भू-सम्पदा कारोबार में अल्प मूल्य के पंजीयन पर अंकुश लगने से होगा। भू-सम्पदा में अक्सर लोग बड़ी मात्रा में काला धन निवेश किया करते थे। अनेक उद्यमियों तक ने अपनी आय को उद्योग में पुनर्निवेश करने के स्थान पर भू-संपदा अर्थात् रियल एस्टेट में निवेश करना आरम्भ कर दिया था। अब भू-संपदा में धन के साल दो साल में ही दुगुना होने की संभावना क्षीण हो जाने से उद्यमी वर्ग पुन: रियल एस्टेट के स्थान पर रियल इकॉनोमी अर्थात् औद्योगिक व वाणिज्यिक गतिविधियों में निवेश प्रारंभ करेंगे। इससे रोजगारोत्पादक निवेश में वृद्धि होगी। अन्य क्षेत्रों में भी बिना हिसाब-किताब के कारोबार में व्यापक कमी आयेगी। यथा, नवंबर व दिसंबर में दूसरे व तीसरे दर्जे के नगरों में फुटकर कारोबार में भी 15-20 प्रतिशत की गिरावट के बाद भी दिसंबर के उत्पाद शुल्क 31़ 6 प्रतिशत की वृद्धि और वेट में भी बढ़ोत्तरी से बिना हिसाब के उत्पादन में कमी के स्पष्ट प्रमाण मिल रहे हैं।
रोजगारोत्पादक निवेश संवर्धन की आवश्यकता
भारत जैसे 132 करोड़ जनसंख्या वाले देश में विश्व के सर्वाधिक 20 प्रतिशत युवा निवासरत हैं और प्रतिमाह 10 लाख अर्थात् प्रति वर्ष 1़2 करोड़ युवा रोजगार पाने की आयु में प्रवेश करते हैं, वहां रोजगार सृजनकारी उत्पादक गतिविधियों में निवेश आज सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। आज से 2300 वर्ष पूर्व चाणक्य ने कौटिल्य अर्थशास्त्र में भी लोगों को जीवन वृत्ति अर्थात् लाभपूर्ण रोजगार दिलाने के शास्त्र को ही अर्थशास्त्र के रूप में परिभाषित किया है। आज देश के 13़ 96 लाख विद्यालयों में 31़ 5 करोड़ व 788 विश्वविद्यालयों सहित 4,5000 महाविद्यालयों में 3़3 करोड़ छात्र अध्ययनरत हैं। विद्यालयों में अध्ययनरत छात्रों की यह संख्या अमेरिका व उच्च शिक्षा में अध्ययनरत छात्रों की संख्या कनाडा की जनसंख्या के तुल्य है। अतएव विमुद्रीकरण से सृजित संसाधनों व घटी हुई ब्याज दरों के कारण कृषि, उद्योग, व्यापार व वाणिज्य के क्षेत्र में रोजगारोत्पादक निवेश का बढ़ना अपेक्षित भी है और सरकार इस हेतु विशेष पहल करेगी तो उसके यथेष्ट परिणाम भी दिखाई देंगे। देश के नाम प्रधानमंत्री के संबोधन में वरिष्ठ नागरिकों व किसानों के लिये और प्रधानमंत्री आवास योजना आदि के सम्बन्ध में जो छूटें घोषित की गयी हैं, उनसे भी अर्थव्यवस्था को पुन: गति मिलेगी।
अल्प-रोकड़ वाली अर्थव्यवस्था में पदार्पण
भारत जैसे देश में रोकड़ रहित (कैशलैस) के स्थान पर अल्प रोकड़ वाली अर्थव्यवस्था (लैस केश इकॉनामी) की बात प्रासंगिक है। हम सिंगापुर से भारत की तुलना नहीं कर सकते। भारत, जनसंख्या में सिंगापुर का 275 गुना व क्षेत्रफल में 4,500 गुना बड़ा है। तथापि देश बहुत तेजी से रोकड़-रहित (कैश लेस) लेन-देन की ओर बढ़ रहा है। इंटरनेट बैकिंग, बैंकिंग कार्ड, यू़ एस़ एस़ डी., एईपीएएल, यूपीआई, मोबाइल वॉलेट्स, बैंक प्री-पेड कार्ड, पॉइन्ट ऑफ सेल, मोबाइल बैंकिंग एवं माइक्रो ए़ टी़ एम. जैसे अनेक रोकड़ रहित भुगतान के माध्यम अत्यंत तेजी से चलन में आये हैं। केश या रोकड़ रहित भुगतान माध्यमों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा डिजिटल पेमेंट के लिए प्रवर्तित भीम एप मात्र दस दिन मंे एक करोड़ से अधिक डाउनलोड हुए हैं। भीम एप अत्यन्त सरल और द्रुत एप है जो मेक इन इंडिया का उत्कृष्ट उदाहरण है। वर्तमान में यह एप केवल अंगे्रजी भाषा में एंड्रोइड प्रचालन तंत्र (आपरेटिंग सिस्टम) के लिए उपलब्ध है। लेकिन शीघ्र ही भारतीय भाषाओं एवं आईओएस के लिए भी इसका विमोचन किया जाएगा। भविष्य में चल दूरभाष या अन्तरजाल संयोजकता (इंटरनेट कनेक्टीविटी) के बिना भी इसका उपयोग लेन-देन के लिए किया जा सकेगा जो केवल अंगूठे अंकन से काम करेगा। इस ऐप का नामकरण भीमराव अंाबेडकर के नाम पर किया गया है। आंग्ल भाषा में यह भारत इण्टरफेस फॉर मनी का संक्षिप्तीकरण है।
बैकों में ऋण आवंटन हेतु हुई संसाधनों में हुई भारी वृद्धि के साथ ही ब्याज दरों में कमी से नयी परियोजनाओं व स्टार्टअप्स में भारी वृद्धि होगी। वस्तु सेवा कर (जीएसटी) के लागू हो जाने के बाद बिना हिसाब के लेन-देन व कर चोरी तो सर्वथा असंभव हो जायेगी। इसके साथ ही जैसा कि प्रधानमंत्री व वित्तमंत्री के वक्तव्यों में प्रकट हो रहा है, रोजगार सृजन करने वाली कृषि संबंधी और औद्योगिक व वाणिज्यिक गतिविधियों में सरकारी निवेश वृद्धि के साथ ही व्यापक स्तर पर जो निजी निवेश को भी बढ़ावा दिया जाना है, उससे देश में एक द्रुत आर्थिक विकास का नया इतिहास रचा जा सकेगा।
वस्तुत: आर्थिक गतिविधियां मुद्रा की मात्रा नहीं, मुद्रा हस्तान्तरण की गति पर निर्भर करती हैं। यदि 100 रुपये के एक नोट से कोई व्यक्ति किसी रेस्तरां से खाना क्रय करता है तो वह रेस्तरां वाला उसके रेस्तरां हेतु सब्जी, तेल, मिर्च, आटा, ब्रेड आदि खरीदेगा और वह सौ रूपये का नोट उपरोक्त सामानों के किसी विक्रेता तक जायेगा। वह विक्रेता उसे इन वस्तुओं के आपूर्त्तिकर्त्ता से जब ये सभी माल अथवा अपने घरेलू उपभोग हेतु कुछ क्रय करेगा तो वह 100 रुपये का नोट उन आपूर्त्तिकर्त्ताओं को जायेगा। इस प्रकार यदि तीन दिन में वह नोट 20 लोगों के बीच घूमेगा तो उस शहर में उस 100 रुपये के एक नोट से 100 गुना 20 अर्थात् 2000 रुपये का कारोबार होगा। यदि वह नोट दस लोगों में घूमेगा तो 1000 रुपये का और इस नोट का केवल तीन पक्षकारों में अन्तरण होगा तो मात्र 300 रुपये का कारोबार होगा। इसलिये अल्प रोकड़ वाली अर्थव्यवस्था में रोकड़ रखना आवश्यक न रह जाने से देश की अर्थव्यवस्था के कुल कारोबार व उसकी मूल्य शृंखला पर व्यापक रूप से वृद्धिकारक प्रभाव होगा और देश समावेशी आर्थिक विकास से परम वैभव के लक्ष्य पर अग्रसर हो सकेगा। आज हम विश्व की सर्वाधिक द्रुत गति से विकसित होने वाली अर्थव्यवस्था हैं। इसलिये अब विमुद्रीकरण के बाद काले धन के सृजन पर अंकुश लग जाने के फलस्वरूप शीघ्र ही देश विकास में सवार्ेच्च शिखर को छू सकेगा।
(लेखक पेसिफिक विश्वविद्यालय उदयपुर, राजस्थान के कुलपति और वित्त विशेषज्ञ हैं)
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