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नई दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में 8 जनवरी को तीन पुस्तकों का लोकार्पण हुआ। ये पुस्तकें हैं- 'सामाजिक समरसता और हिन्दुत्व' एवं 'दत्तोपंत ठेंगड़ी जीवन दर्शन व एकात्म मानववाद : खंड 7 और 8'। लोकार्पणकर्ता थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल। सुरुचि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इन पुस्तकों के लोकार्पण के अवसर पर नेशनल बुक ट्रस्ट के सहयोग से एक परिचर्चा भी आयोजित हुई। परिचर्चा में डॉ. कृष्णगोपाल ने कहा कि भारत ऋषि परंपरा का देश है। वेद लिखने वाले ऋषियों में सभी जातियों के विद्वान थे। इनमें महिलाएं भी थीं और वंचित समाज के विद्वान भी थे। महिलाओं में सूर्या, सावित्री, घोषा, अंबाला आदि प्रमुख थीं, वहीं वंचित समाज से ऋषि महिदास इत्यादि थे।
ऋषि परंपरा एक स्थान था। ऋषि पद प्राप्त करने के लिए जन्म का कोई बंधन नहीं था, जाति भी कर्म आधारित होती थी। कालांतर में वह व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई। मध्यकाल में भारत पर अनेक बाहरी आक्रमण हुए, जिनमें हारने के कारण हिंदुओं में अनेक कुरीतियां घर कर गईं। पिछले 13-14 सौ वषार्ें में हिंदू समाज में अस्पृश्यता, ऊंच-नीच की भावना गहरे पैठ गई है। स्वतंत्र भारत में इस जाति भेद की कोई आवश्यकता नहीं है, जो समाज को अपने ही बंधुओं से अलग करती हो। परंतु देश में आज भी जाति का भेद बहुत गहरा है। इस भेदभाव को सामाजिक समरसता से ही समाप्त किया जा सकता है। उन्होंने भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी के बारे में बताया कि उन्होंने श्रमिकों और उद्यमियों के बीच सामंजस्य कायम करने के लिए पहल की तथा श्रमिकों को वामपंथियों के टकराव और संघर्ष वाले रास्ते से हटाकर सामंजस्य और उन्नति के पथ पर अग्रसर किया। इस अवसर पर दीनदयाल शोध संस्थान के सचिव
श्री अतुल जैन, भारतीय मजदूर संघ के उपाध्यक्ष श्री बी. सुरेन्द्रन सहित अनेक लोग उपस्थित थे।
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