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विश्व पुस्तक मेले के आयोजक राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष श्री बल्देव भाई शर्मा से वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सरदाना की बातचीत
आप पत्रकारिता और लेखन आदि से बरसों से जुड़े हैं और अब देश के प्रतिष्ठित प्रकाशन 'राष्ट्रीय पुस्तक न्यास' के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। इस डिजिटल युग में ई बुक्स का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में आप प्रकाशित पुस्तकों के महत्व और उनके भविष्य को कैसे देखते हैं?
तकनीक ने पुस्तकों के क्षेत्र का विस्तार तो किया है पर इससे पुस्तकों का महत्व कम नहीं हुआ। इसका प्रमाण यह विश्व पुस्तक मेला है। हर रोज इतनी संख्या में यहां लोग आते हैं और झोला भर भर के किताबें खरीद कर ले जाते हैं। चाहे ई बुक्स हों या मोबाइल एप बुक्स, ये तकनीक आज की जरूरत है। लेकिन अभी यह बिजली और इन्टरनेट पर आश्रित है। फिर पुस्तकों के मामले में तकनीक कुछ अलग है। किताबें असल में संवेदनशील होती हैं, इनकी पहुंच कोने-कोने तक है। छोटी पुस्तकों को तो ई बुक्स के माध्यम से पढ़ना आसान है लेकिन 400 पृष्ठ की पुस्तक आप इस माध्यम से नहीं पढ़ सकते। फिर तकनीक में कुछ शुष्कता है पर पुस्तकों में सरसता है। सही कहा जाए तो पुस्तकें सभी भेद मिटाकर दिलों को जोड़ती हैं।
इस वर्ष विश्व पुस्तक मेले का 25 वां यानी रजत जयंती आयोजन है। वहीं राष्ट्रीय पुस्तक न्यास का भी यह 60 वां अर्थात हीरक जयंती वर्ष है। इस विशेष मौके पर इस विश्व पुस्तक मेले के साथ वर्ष भर में और क्या विशेष आयोजन करने जा रहे हैं?
इस मौके पर हमने पहला प्रयास तो यह किया है कि मेले में हमने पिछलेे 60 वषार्ें की यात्रा पर एक विशेष प्रदर्शनी लगाई 'लुकिंग बैक' के नाम से। इस प्रदर्शनी का एक उद्देश्य यह भी है कि लोग इस भ्रम से बाहर आ सकें कि पुस्तकें अब पढ़ी नहीं जातीं। कुछ लोग कहते हैं कि नौजवानों की अब किताबों में दिलचस्पी नहीं है। कुछ कहते हैं कि अंग्रेजी की पुस्तकें 'बैस्ट सेलर' होती हैं। लेकिन इस प्रदर्शनी में हमने बताया कि हमारी 300 से अधिक पुस्तकें 'बैस्ट सेलर' हैं। अंग्रेजी वाले तो अपनी पुस्तक की 10 हजार प्रतियां बिकने पर भी उसे 'बैस्ट सेलर' मान लेते है। लेकिन हमारे पास तो हिंदी सहित बहुत सी भाषाओं की ऐसी 'बैस्ट सेलर' हैं जिनमंे कोई किताब एक लाख बिकी तो कोई दो और कोई तीन लाख और उससे भी अधिक। रवींद्र नाथ टैगोर की एक पुस्तक की तो लगभग 11 लाख प्रतियां बिक चुकी हैं। और यह रिकार्ड भी उन पिछले 15 वर्षों का है जबसे यह बिक्री कंप्यूटर पर अंकित हो रही है। उससे पहले की बिक्री इसमें शामिल नहीं है। इस प्रदर्शनी में हमने ऐसी कुछ 'बैस्ट सेलर्स' के आवरण को प्रदर्शित करने के साथ उनकी बिकी हुई प्रतियों की संख्या भी उनके नीचे लिखकर पूरी पारदर्शिता रखी है। इसी के साथ हम साल भर में 10 और स्थानों पर पुस्तक मेले आयोजित करते हैं। अभी 28 से 30 जनवरी को हम गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र लिटरेरी फेस्टिवल' भी आयोजित करने जा रहे हैं।
विश्व पुस्तक मेलेे को लेकर एक भ्रम हर बार बना रहता है कि अगले वर्ष यह कब आयोजित होगा। पहले यह हर दूसरे साल होता था, लेेकिन अब 2013 से यह प्रतिवर्ष तो हो गया लेकिन इसकी तारीखें अभी भी बदलती रहती हैं। पिछले वर्ष यह फरवरी में हुआ तो अब यह जनवरी में ही हो गया। यदि विश्व पुस्तक मेले की तारीखें हर साल एक रहें तो पुस्तकों के इस महाकुम्भ को देखने के लिए देश भर के पुस्तक प्रेमी पहले ही योजना बना सकते हैं?
असल में हम विश्व पुस्तक मेले के आयोजन की तारीखें इस हिसाब से तय करते हैं कि 9 दिन के आयोजन में दो रविवार और दो शनिवार आ जाएं क्योंकि अवकाश के इन दिनों में अधिक लोग आते हैं। हालांकि विश्व पुस्तक मेले के आयोजन की तिथियां हम करीब चार महीने पहलेे तय कर लेेते हैं और वे जनवरी या फरवरी के महीनों के लिए होती हैं।
इन दिनों पुस्तकों की कीमतें बहुत ज्यादा होती जा रही हैं। इससे अनेक पाठक अपनी मनपसंद पुस्तकें खरीदने से वंचित रह जाते हैं। पुस्तकों की कीमत कम करने की दिशा में भी कोई पहल हो रही है ताकि पुस्तक प्रेमी अधिक पुस्तकें खरीद सकें?
आपकी बात सही है कि यदि पुस्तकों की पहुंच बढ़ानी है और लोगों को ज्ञानवान बनाना है तो पुस्तकों के दाम कम करने होंगे। हम विश्व पुस्तक मेले के आयोजक होने के नाते निजी प्रकाशकों से पुस्तकों के मूल्य निर्धारण पर तो बात नहीं कर सकते। लेकिन हम मेले के लिए यह जरूर कहते हैं कि सभी कम से कम 10 प्रतिशत या इससे अधिक छूट अवश्य दें। हम अपने प्रकाशनों पर 20 प्रतिशत की छूट देते हैं। साथ ही हमने पुस्तकों का मूल्य काफी कम रखा हुआ है। कुछ पुस्तकों तो हम सब्सिडी पर भी दे रहे हैं। जैसे हमने अभी वीरगाथा श्रृंखला में परमवीर चक्र विजेताओं पर पांच पुस्तकों का हिंदी और अंग्रेजी, दोनों भाषाओं में एक आकर्षक सेट प्रकाशित किया है जिसका मूल्य मात्र 125 रुपये है,अच्छे विषयों के साथ कम मूल्य होने से हमारी पुस्तकें खूब बिकती हैं।
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