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11 दिसंबर, 2016
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 90 वर्ष पर प्रकाशित विशेषांक '90 बरस राष्ट्र सेवा के' अद्भुत और प्रेरक है। इस अंक से संघ को जानने में बड़ी मदद मिली। अब तक कई लोग यह सवाल उठाते रहे हैं कि देश की आजादी में संघ का क्या योगदान है? इसका बहुत ही सुदंर उत्तर इस लेख 'सहभाग किया, श्रेय नहीं लिया' में मिला। उम्मीद है, अब ऐसे सवाल नहीं उठेंगे।
—सतीश कुमार, जलालगढ़, पूर्णिया (बिहार)
इस अंक को पढ़कर हम भाव-विभोर हो गए। इसकी सामग्री सदा-सर्वदा के लिए ऐतिहासिक धरोहर बन गई। नेहरू ने यह दुष्प्रचार शुरू किया था कि देश के स्वतंत्रता आंदोलन में संघ का कोई योगदान नहीं रहा है। उसी का दुष्परिणाम है कि आज भी कुछ कांग्रेसी और वामपंथी संघ के बारे में तथ्यहीन बातें करते हैं। यह तथ्य है कि डॉ. हेडगेवार ने अनेक स्वयंसेवकों के साथ देश की आजादी के लिए संघर्ष किया था। वे कांग्रेस के एक प्रमुख नेता हुआ करते थे।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)
'विभाजन का असली इतिहास' लेख में देश विभाजन के समय संघ के स्वयंसेवकों ने हिंदुओं की रक्षा के लिए किस तरह के कार्य किए, उनका विस्तृत विवरण है। उस समय लाखों हिंदू उजड़कर भारत आ रहे थे। वे कहां रहेंगे, क्या खाएंगे-इन सबका कोई ठिकाना नहीं था। उस कठिन काल में संघ के स्वयंसेवक ही हिंदुओं के लिए आगे आए थे। इतना ही नहीं, संघ के स्वयंसेवक विभाजन के बाद भी कई महीने तक पाकिस्तान में रहे थे और उन्होंने वहां से हिंदुओं को सुरक्षित निकालने में अहम भूमिका निभाई थी।
—प्रवीण कटारिया, गुड़गांव (हरियाणा)
'स्वतंत्रता के सूर्योदय से नई स्वाधीन सुबह तक' लेख बहुत ही प्रेरक है। इस लेख की ये पंक्तियां बड़ी अच्छी लगीं,'फैक्ट्रियों से लेकर जंगलों तक की यात्रा बेहद लंबी व अविश्वसनीय है। परंतु अपनी शाखाओं को विस्तार देने को प्रतिबद्ध संस्था के लिए असंभव कुछ नहीं था। इसी दौरान 26 दिसंबर, 1952 को जंगलों में रहने वालों के हित में काम करने वानी संस्था वनवासी कल्याण आश्रम की नींव पड़ी थी।'
—विवेक शिर्के, पुणे (महाराष्ट्र)
'एक देश में दो निशान, दो विधान, दो प्रधान' को खत्म करने में प्रजा परिषद आंदोलन की बड़ी भूमिका रही है। इस आंदोलन को संघ के स्वयंसेवकों ने चलाया था। प्रजा परिषद आंदोलन किस तरह चला, उसके लिए स्वयंसेवकों ने त्याग के किस तरह के उदाहरण प्रस्तुत किए, उन सबका वर्णन 'टाला दूसरा विभाजन' लेख में किया गया है। इस आंदोलन ने नेहरू और शेख अब्दु्ला की साजिश को बेनकाब किया था। यह सफल तो रहा, लेकिन डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को अपना बलिदान देना पड़ा।
—गोपाल यादव, भोपाल (म.प्र.)
श्रीराम मंदिर आंदोलन पर आधारित लेख 'नव चेतना का वह उद्घोष' में श्री बालासाहब का एक वाक्य है, ''अच्छी तरह से सोच लो, अगर इस अभियान को हाथ में लिया तो वापस लौटने के रास्ते नहीं हैं। फिर सफलता प्राप्त होनी ही चाहिए, हिंदू समाज का सम्मान ऊंचा उठना ही चाहिए।'' संघ के स्वयंसेवक उनकी अपेक्षाओं पर खरे उतरे हैं। स्वयंसेवकों ने श्रीराम मंदिर के लिए सब कुछ त्यागा। श्री अशोक सिंहल ने भव्य श्रीराम मंदिर के लिए आजीवन साधना की। मंदिर के साक्ष्यों को भी अदालत ने मान्यता दी है। यह कोई छोटी बात नहीं है। अब हिंदू समाज की एक ही अपेक्षा है जल्दी से जल्दी श्रीराम जन्मभूमि पर एक भव्य मंदिर बने।
—आशीष सिंह, पनकी, कानपुर (उ.प्र.)
संघ की प्रेरणा से सिखों के बीच कार्य करने वाली संस्था 'राष्ट्रीय सिख संगत' के कार्यों का लेखा-जोखा 'सिंह और संघ हैं साथ' शीर्षक से प्रकाशित लेख में दिया गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सिख समाज को वृहत्तर हिंदू समाज का अभिन्न, चेतन और सुसंस्कारित अंग मानता है। यह अंग और मजबूत हो और दोनों मिलकर देश की सेवा कर सकें, इसके लिए अनेक प्रयास हुए हैं और अभी भी हो रहे हैं। गुरु साहिबान ने सिख पंथ की जो सामाजिक, पांथिक और राष्ट्रीय मर्यादाएं स्थापित की थीं, संघ ने राष्ट्र निर्माण की लगभग वैसी ही परिकल्पना की है।
—करण चुघ, संगरूर (पंजाब)
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक 90 वर्ष से सामाजिक समरसता के लिए किस तरह के कार्य कर रहे हैं और उन कार्यों का प्रभाव कितना हुआ है, इन सबका आंकलन 'बंधुता से समानता' लेख में किया गया है। यह सही बात है कि बंधुता के बिना समाज में समरसता नहीं आएगी। बंधुता मानसिक भावना है, वैसे समरसता भी एक मानसिक भावना है। यह भावना प्रत्येक हिंदू के मन में निर्मित हो, इसके लिए संघ के लाखों स्वयंसेवक दिन-रात कार्य कर रहे हैं। इसके अच्छे परिणाम निकल रहे हैं। आज समाज से अनेक कुरीतियां समाप्त हो चुकी हैं और लोगों में आपसी सद्भाव बढ़ता जा रहा है। हां, अपवाद हो सकते हैं। उम्मीद है कि उन्हें भी संघ के स्वयंसेवक अपने कार्यों से मिटा देंगे।
—अनिल झा, मधुबनी (बिहार)
1925 में डॉ. हेडगेवार द्वारा रोपा गया संघ रूपी पौधा अब विशाल वट वृक्ष बन चुका है। इसकी जड़ें अब विदेशों में भी फैल गई हैं। कुछ ऐसा ही अनुभव हुआ 'सागर पार संस्कारों की धारा' लेख पढ़कर। आज दुनिया के अनेक देशों में संघ के कार्यकर्ता अनेक संगठनों के जरिए सक्रिय हैं और वे वही कार्य कर रहे हैं, जिनका सपना डॉ. हेडगेवार ने देखा था। कहा जाता है कि आप यदि शुभ कार्य करने के लिए शुभ संकल्प लेते हैं, तो वह पूरा होकर ही रहता है। डॉ. हेडगेवार ने ऐसा ही शुभ संकल्प लिया था। उनके संकल्प को पूरा करने के लिए करोड़ों स्वयंसेवक दिन-रात कार्य कर रहे हैं।
—विकास पिंगले, थाणे (महाराष्ट्र)
'कला में संस्कार साधना' लेख के जरिए पता चला कि संस्कार भारती ने संघ के विचारों को कला जगत की नामचीन हस्तियों तक पहुंचा दिया है। वामपंथियों और विरोधियों ने ऐसा दुष्प्रचार किया था कि एक समय कला और संस्कृति से जुड़े लोग संघ विचार परिवार के समीप आने से कतराते थे। ऐसे लोगों को लगता था कि यदि वे संघ के समीप जाएंगे तो लोग उन्हें सांप्रदायिक और न जाने क्या-क्या कहेंगे। आज माहौल बदल गया है। देश के सुप्रसिद्ध कलाकार और संस्कृतिकर्मी संस्कार भारती के जरिए संघ के समीप आ रहे हैं। यह अच्छी बात है।
—सुनील अग्रवाल, रांची (झारखंड)
यह जानकर खुशी हुई कि संघ के स्वयंसेवक सेवा के क्षेत्र में भी दिन-रात कार्य कर रहे हैं। 'सेवा से समरस होता समाज' लेख बताता है कि आज देशभर में संघ के स्वयंसेवक 1,55,000 सेवा कार्य कर रहे हैं। आम धारणा यह है कि भारत में केवल ईसाई मिशनरियां ही सेवा कार्य कर रही हैं। संघ के स्वयंसेवकों ने इस धारणा को बदल दिया है। क्या यह कोई छोटी बात है कि हजारों कार्यकर्ता बिना किसी अपेक्षा के जंगलों, पहाड़ों और सेवा बस्तियों में लाखों अभावग्रस्त लोगों के जीवन को संवार रहे हैं? इन कार्यकर्ताओं की बदौलत ही आज देश के कोने-कोने में राष्ट्रीयता की भावना प्रबल हो रही है।
—मुनीश पंडित, जयपुर (राजस्थान)
'सामाजिक संतुष्टि का पंचामृत' लेख में संघ की प्रेरणा से गोआयाम से जुड़े जो कार्य हो रहे हैं, उनकी जानकारी मिली। विश्वमंगल गो-ग्राम यात्रा के बाद देशभर में 1,000 नई गोशालाएं खुली हैं। अनेक संत अब गो कथा कर रहे हैं। 400 स्थानों पर पंचगव्य उत्पाद बनते हैं और उनकी मांग तेजी से बढ़ रही है। सूरत के एक कार्यकर्ता अमोल विरानी सालभर में लगभग 25 लाख रुपए के पंचगव्य उत्पाद बेच देते हैं। इसे क्रांति कह सकते हैं। एक यात्रा का इतना जबरदस्त प्रभाव। आज से कुछ वर्ष पहले यह यात्रा निकली थी तो अनेक विरोधी इसके विरोध में उतर आए थे। आज उन सबको इस यात्रा के प्रभाव की जानकारी भेजी जानी चाहिए।
—कुमरेश त्यागी, गाजियाबाद (उ.प्र.)
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का समाज जीवन के हर क्षेत्र में प्रभाव पड़ा है और वह बढ़ता ही जा रहा है। इसका संकेत 'अप्रतिम संगठन, फिर भी मेरी शंकाएं' लेख से मिलता है। कोई भी व्यक्ति या संगठन सर्वगुण संपन्न नहीं होता है। यह ध्रुव सत्य है, लेकिन किसी संगठन या व्यक्ति का मूल्यांकन सम्यक दृष्टि से होना चाहिए। जब हम इस दृष्टि से संघ का मूल्यांकन करते हैं तो यह अप्रतिम संगठन लगता है। इसे संघ के घोर विरोधी भी स्वीकार करने लगे हैं। यही संघ की ताकत है। इसी ताकत के बल पर संघ ने 90 वर्ष की सफल यात्रा तय की है। जबकि इसके बाद बने अनेक संगठन समाप्त हो गए।
—सरिता, समयपुर बादली(दिल्ली)
उत्तर प्रदेश वालो सावधान!
दरअसल
समाजवादी पार्टी की उठापटक एक नाटक है। इसकी पटकथा में मुलायम-शिवपाल से लेकर अखिलेश तक सबकी साझेदारी है। जी हां, साझेदारी जो महज दिखावे के लिए मारामारी है। उद्देश्य है अखिलेश को एक पाक-साफ, ईमानदार, विकास-पुरुष के रूप में स्थापित करने का। एक ऐसा युवा 'आदर्शवादी' नेता जिसकी राह के रोड़े शिवपाल के नेतृत्व में पले तमाम बाहुबली खुर्राट बने हुए थे। सपा कुशासन की सारी बुराइयां शिवपाल और उनकी मंडली के खाते में डाली जानी हैं। जंगलराज हुआ तो इन्हीं के कारण, कानून-व्यवस्था बिगड़ी तो इन्हीं के कारण, प्रदेश की जीडीपी 6 से घटकर माइनस 5़3 पहुंची तो इनके कारण। इन लोगों ने 'विकास-पुरुष' अखिलेश को काम नहीं करने दिया! इस नाटक का एक सीधा फायदा यह मिला है कि लोग उत्तर प्रदेश की अराजकता, सपाइयों द्वारा जनता से लूट, अवैध कब्जे, बिजली की अनियमित और सबसे महंगी आपूर्ति, आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस हाईवे, उद्घाटन के बावजूद जिसका काफी हिस्सा बनना बाकी है, जैसी बेहद प्रचारित विकास योजनाओं की ढोल की पोल पर बात करना छोड़कर अखिलेश पर पार्टी के कथित जुल्म की चर्चा पर उतर आए हैं। यही इस प्रहसन का उद्देश्य था। अब बस बबुआ के खाते में सहानुभूति वोट झड़ जाएं, बाद में कुनबा फिर एक हो जाएगा-प्रदेश को लूटने के लिए। इसलिए उत्तर प्रदेश वालो सावधान! बचाओ खुद को इन नौटंकीबाज लुटेरों से।
-अजय मित्तल, मेरठ (उ.प्र.)
युद्ध यादवी
युद्ध यादवी हो रहा, यू़ पी. के मैदान
बाप और बेटा भिड़े, भली करे भगवान।
भली करे भगवान, अजब संकट है छाया
जिसे बनाकर राजा सिर पर था बैठाया।
कह 'प्रशांत' वह अपने ही गरूर में ऐंठा
चाचा हो या बाप, ताल ठोंक कर बैठा॥
—प्रशांत
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