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जाने-माने समाजसेवी नानाजी देशमुख आजीवन ग्रामीण क्षेत्रों के सर्वांगीण विकास के लिए कार्य करते रहे। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को स्वावलंबी बनाने के लिए दीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से अनेक विकास परियोजनाएं शुरू कीं। उन सबका परिणाम आज उत्तर प्रदेश में गोंडा तथा मध्य प्रदेश के चित्रकूट में देखने को मिल रहा है। मराठवाड़ा के जिला परभणी में हिंगोली तहसील के एक छोटे गांव कडोली में जन्मे नानाजी देशमुख भले ही जमींदार परिवार के थे, लेकिन मराठवाड़ा का यह क्षेत्र काफी पिछड़ा हुआ था। उस समय यह क्षेत्र हैदराबाद रियासत में पड़ता था। नानाजी ने गरीबी और आर्थिक पिछड़ापन की पीड़ा को समझा और अनुभव किया। इन अनुभवों से नानाजी के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ आया। उन्हीं दिनों अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ देश की आजादी के लिए युवाओं को प्रेरित करने और जगाने का काम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार कर रहे थे। इसी क्रम में डॉ. हेडगेवार के संपर्क में नानाजी आए। डॉ. हेडगेवार के सान्निध्य और मार्गदर्शन से नानाजी की जीवन दिशा बदल गई और बाद में वे संघ के स्वयंसेवक बने। देशभक्ति के साथ-साथ सामाजिक कार्य की प्रेरणा नानाजी को डॉ. हेडगेवार से मिली। समाज का कार्य करने के लिए ही वे संघ के प्रचारक बने और संघ कार्य हेतु उत्तर प्रदेश आए। संघ कार्य करने के दौरान नानाजी ने समाज के हर तबके को नजदीक से देखा, समझा और अनुभव किया। नानाजी इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि कोई देश या समाज व्यक्ति मूल्यों के बिना नहीं चल सकता। उन्होंने अपने जीवन-मूल्य निर्धारित किए और उसका उन्होंने जीवन के अंतिम क्षण तक पालन किया।
संघ कार्य के दौरान ही नानाजी का पंडित दीनदयाल उपाध्याय के साथ संपर्क हुआ। दोनों प्रचारक थे। बाद में इन दोनों को राजनीतिक क्षेत्र में कार्य करने का दायित्व मिला। ये दोनों डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ भारतीय जनसंघ में सक्रिय हो गए। इस दौरान नानाजी का संपर्क वरिष्ठ राजनेता डॉ. संपूर्णानंद, चंद्रभान गुप्ता, डॉ. राममनोहर लोहिया, चौधरी चरण सिंह, रफी अहमद किदवई, बाबू जगजीवन राम, जयप्रकाश नारायण (जे.पी.) आदि नेताओं से हुआ। उन्होंने व्यक्तिगत संबंधों के बीच कभी दलीय राजनीति को आड़े नहीं आने दिया। इस कारण उनका समकालीन राजनीतिज्ञों के साथ बहुत अच्छे संबंध थे। राजनीति से संन्यास लेने के बाद भी उनके संबंध ऐसे ही रहे। नानाजी राजनीति के अच्छे रणनीतिकार थे। जयप्रकाश के नेतृत्व में शुरू हुए संपूर्ण क्रांति आंदोलन के समय उन्होंने बढ़-चढ़कर काम किया। पटना के गांधी मैदान में आयोजित रैली के दौरान जे.पी. पर हुए लाठीचार्ज को उन्होंने अपने पर झेला और उनकी जान बचाई। तब से नानाजी जयप्रकाश के अत्यंत निकटवर्ती और विश्वस्त सहयोगी बन गए और गहरी मित्रता उनके अंतिम क्षण तक बनी रही। नानाजी ने उनसे अपनी निकटता का परिचय गोंडा जिले में जयप्रकाश और उनकी धर्मपत्नी प्रभादेवी की स्मृति में जयप्रभा ग्राम बसाकर दिया।
आपातकाल के विरोध में हुए आंदोलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित अन्य सभी गैर-कांग्रेसी राजनीतिक दलों और संगठनों ने जयप्रकाश के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया और इसके लिए जेल भी गए। बाद में आपातकाल समाप्त हुआ और राजनीतिक क्षेत्र में जनता पार्टी के नाम से एक नया राजनीतिक दल बना। इसके बाद हुए आम चुनाव में श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाले कांग्रेसी शासन का अंत हुआ और देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार सत्ता में आई। लेकिन कुछ ही दिनों के बाद नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और अहम् के कारण जनता पार्टी की सरकार गिर गई। नेताओं के इस व्यवहार से नानाजी को बहुत पीड़ा हुई। उन्होंने महसूस किया कि ऐसी राजनीति से समाज का कुछ भी भला नहीं होगा और समाज के अंतिम छोर के व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करना है तो राजनीति को अंतिम नमस्कार करना ही होगा। नानजी इस बात को भी भलिभांति समझ गए थे कि आने वाले दिनों में व्यक्तिगत राजनीति ज्यादा हावी हो जाएगी और जो वह करना चाहते हैं, वह कभी नहीं कर पाएंगे। इसलिए अक्तूबर, 1978 में उन्हांेने घोषणा की कि वह अपनी आयु के 60 वर्ष पूरे होने पर सक्रिय राजनीति छोड़ देंगे। इसके बाद नानाजी ने कभी राजनीति की ओर मुड़ कर देखा भी नहीं।
यह क्षण नानाजी के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव साबित हुआ। इन दिनों नानाजी और दीनदयाल जी, दोनांे का जन्मशताब्दी वर्ष चल रहा है। समाज कार्य करते हुए दोनांे का सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में व्यापक जनसंपर्क और संवाद था। सामाजिक जीवन में कार्य करने के दौरान दोनों को विभिन्न सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का गहराई से निरीक्षण करने और उसका अध्ययन तथा समझने का मौका मिला। इस आधार पर दीनदयाल जी ने एकात्म मानवदर्शन सभी के सम्मुख रखा। दीनदयाल जी पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार, सिद्धान्त, जीवन और कार्यशैली का गहरा असर दिखता है। उनका एकात्म मानवदर्शन आज हम सबके सम्मुख एक दिशादर्शक के रूप में मौजूद है। हरियाणा के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी कहते हैं, ''नानाजी ने दीनदयाल शोध संस्थान के तत्वावधान में गोंडा, चित्रकूट, बीड और नागपुर में जनकल्याण के अनेक प्रकल्प शुरू किए। इन प्रकल्पों के जरिए उन्होंने एकात्म मानवदर्शन को प्रत्यक्ष रूप से क्रियान्वित कर एक आदर्श प्रस्तुत किया।'' आमतौर व्यक्ति यह सोचता है कि अब आयु के 60 वर्ष पूरे कर लिए हैं तो यह बुढ़ापे की शुरुआत हो गई है। लेकिन नानाजी ने 60 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद भी जो कार्य किया वह दुनिया के सामने है। उनके कार्यों से अनेक युवा भी प्रेरणा ले रहे हैं। नानाजी प्रयोगधर्मी थे। वे परंपरागत तरीके से काम करते हुए उसमें कुछ नए-नए प्रयोग करने में ज्यादा रुचि रखते थे, फिर वह कृषि, लघु उद्योग, ़शिक्षा या स्वास्थ्य का ही क्षेत्र क्यों न हो। गोंडा जिला प्राकृतिक संसाधनों और जलस्रोत से संपन्न था। लेकिन गरीबी के कारण वहां के लोग उन संसाधनों का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे थे। वहां बांस भी काफी मात्रा में पाया जाता है। नानाजी ने कुछ विशेषज्ञों के जरिए सिंचाई के लिए चार से छह इंच चौडे़ बांस के पाइप का इस्तेमाल शुरू किया। देखते-देखते लोहे के पाइप की जगह बांस के पाइप ज्यादा प्रयोग में आने लगे। इस प्रयोग का लाभ अपेक्षा से कहीं ज्यादा मिला। तत्कालीन केन्द्र सरकार ने इस प्रयोग का अध्ययन करने के लिए एक दल भेजा और विशेष जानकारी लेकर इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। गोंडा जिले में जहां जलस्रोत भरपूर था, वहीं बीड जिले में एकदम जल का अभाव था। पूरा क्षेत्र सूखाग्रस्त था। नानाजी ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए बीड जिले के सोनदरा क्षेत्र में जल भंडारण के लिए एक पुराने तालाब की खुदाई करने की योजना बनाई। इस कार्य में जनभागीदारी सुनिश्चित करने के लिए 1988 में उन्होंने वहां धन्यता अभियान शिविर का कार्यक्रम किया, जो पूरे एक महीने तक चला। इस कार्यक्रम के जरिए उन्होंने वहां संस्थान के कार्य का श्रीगणेश किया, जो आज भी जनकल्याण का कार्य कर रहा है।
नागपुर में बच्चों को शिक्षित और संस्कारित करने के लिए भी उन्होंने कार्यक्रम शुरू किया। यहां बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ तैराकी आदि का भी प्रशिक्षण दिया जाता है। झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों पर खास ध्यान दिया जाता है।
इसी तरह चित्रकूट में नन्ही दुनिया की संकल्पना को लेकर बच्चों को वन्यजीव प्राणी तथा अपने ग्रह और नक्षत्रों की सचित्र जानकारी से अवगत कराने के साथ बच्चों में उद्यमशीलता को बढ़ावा देने का काम हो रहा है। चित्रकूट के आसपास 500 गांवों का सर्वांगीण विकास करने में सफलता मिली है।
नानाजी के इन सफल प्रकल्पों को देखने के लिए पूर्व राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसी विभूतियां पहुंच चुकी हैं। आज भले ही नानाजी इस दुनिया में नहीं हैं, पर वे इन कार्यों के जरिए जनमानस में सदैव रहेंगे।
-ज्योति मजुमदार
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