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20 नवंबर, 2016
आवरण कथा 'कहर काली कमाई पर' से एक बात स्पष्ट है कि मुद्रा परिवर्तन से काली कमाई करने वालों में अफरा-तफरी मची हुई है। प्रधानमंत्री ने देश हित में साहसिक कदम उठाया है। अधिकतर अर्थशास्त्रियों ने इस कदम की सराहना की है और इन सभी का कहना है कि इससे काले धन को रोकने में मदद मिलेगी। सरकार के इस कदम को देशभर में भरपूर समर्थन मिला है। बस कुछ लोग हैं जिन्हें हर काम में आलोचना करना आता है, जो वह कर रहे हैं। प्रारंभ में जरूर कुछ कठिनाइयां आती दिखाई दीं लेकिन इसके दूरगामी परिणाम निकलेंगे।
—कृष्ण वोहरा, सिरसा (हरियाणा)
प्रधानमंत्री के एक कदम से ही उन भ्रष्टाचारियों के स्वप्न मिट्टी में मिल गए जिन्होंने काली कमाई से करोड़ों-अरबों रुपये कमाए थे। यह पैसा और किसी का नहीं बल्कि गरीब लोगों का है, जिसे उन्होंने इनके शोषण और अत्याचार से कमाया है।
—अशोक खन्ना, रीवा (म.प्र.)
नोटबंदी के फैसले से उन नेताओं की नींद हराम हो गई है जो कालेधन के सहारे ही चुनाव लड़ते थे। वे चुनाव के समय अपने-अपने क्षेत्रों में अथाह पैसा झोंककर धनबल के जरिये चुनाव जीतते थे जिसके बाद भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते थे। इसी पैसे से बड़ी-बड़ी सभाओं से लेकर सुरा-सुंदरी तक चुनाव में परोसे जाते थे। लेकिन अब वे ऐसा नहीं कर पाएंगे।
—रीता सिंह, विकासपुरी (नई दिल्ली)
अधिकांश बैंकों ने नोटबंदी के समय बड़ी ही लगन और मेहनत से प्रधानमंत्री के प्रयास को सार्थक किया है। उन्होंने दिन-रात एक करके लोगों को पैसा कैसे जल्दी से जल्दी मिले इसकी पूरी व्यवस्था की। इस पूरे कार्य में जिन बैंककर्मियों ने सहयोग दिया, वे सभी प्रशंसा के पात्र हैं।
—दिलीप जायसवाल, मुरादाबाद (उ.प्र.)
नोटबंदी के फैसले से कालाधन रखने वालों के ऊपर कड़ा प्रहार हुआ है। इससे भ्रष्टाचारी, लुटेरे, आतंकी और नक्सली सभी विचलित हैं। ऐसा लगता है जैसे इस फैसले ने सबको कंगाल कर दिया हो। मोदी सरकार के हर फैसले की आलोचना करने वाले नीतीश ने भी इसे अच्छा कदम बताया। असल में अच्छी बात कहने में संकोच नहीं करना चाहिए। इससे नेता का कद बढ़ता ही है।
—राजेंद्र कांठेड़,नागदा (म.प्र.)
विमुद्रीकरण के फैसले से विपक्ष के नेताओं में बेचैनी है। असल में ऐसे लोगों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ईमानदार शासन पसंद नहीं है। दुर्भाग्य की बात है कि हमारा देश प्राचीनकाल से विभिन्न लुटेरों द्वारा लुुटता-पिटता रहा। स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस की सरकारों ने देश को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। संप्रग के दस साल इस बात की गवाही देते हैं। मोदी पहले प्रधानमंत्री है जिन्होंने इस तरह का कड़ा फैसला लिया और भ्रष्टाचारियों की कमर तोड़ने का काम किया।
—उमेश प्रसाद सिंह, लक्ष्मी नगर(दिल्ली)
केंद्र सरकार का पुराने नोट बंद करने का अचानक लिया गया निर्णय सराहनीय है। हां, यह जरूर है कि लोगों के पैसों के लिए दिक्कत हो रही है लेकिन सरकार की इस पहल से देश में अनाधिकृत रूप से रखे धन का भंडाफोड़ हुआ और आगे भी होगा। देशवासियों को इसका समर्थन करना जरूरी है।
—वी.एस.शांताबाई, चामराजपेट, बंगलुरू (कर्नाटक)
प्रधानमंत्री ने अपने साहसी निर्णय से भ्रष्टाचार, कालेधन और आतंकवाद पर कड़ा प्रहार किया है। कहना न होगा कि एक हजार और पांच सौ रुपये के नोट बंद होने से उन लोगों को धक्का लगा है जो देश में समानांतर अर्थव्यवस्था चला रहे थे। कुछ को छोड़ दें तो अधिकांश देशवासियों ने देश के निर्माण के लिए इसे सहर्ष स्वीकार किया है। जो इस निर्णय पर विलाप कर रहे हैं, उन्हें ये चिंता है कि अब वे चुनाव कैसे लड़ेंगे? वोटों को कैसे खरीदेंगे? इसलिए वे संसद में लामबंदी कर रहे हैं और इस निर्णय के विरोध में हैं।
—मनोहर मंजुल, पिपल्या-बुजुर्ग (म.प्र.)
अगर जनहित सच के पाले में हो तो नकारात्मक सोच रखने वालों की एक नहीं चलती। विपक्ष की कमजोर कडि़यों में यह बुराई इतनी ज्यादा पैठ गई है कि वह भ्रष्टाचार, आतंक और काली कमाई की बुराइयों को अनदेखा कर जनमन से दूर सिर्फ चुनावी दंगल लड़ने हेतु खड़ा है। देश को इस कड़वी दवाई की जरूरत थी। नोटबंदी पर हाय-तौबा मचाने वालों को यह बात पता होनी चाहिए कि जो कतार में खड़े हुए हैं उनको इस समस्या से बिल्कुल भी परेशानी न हुई और न ही आने वाले दिनों में होने वाली है। असली परेशानी तो कलाधन रखने वालों को हो रही है।
—हरिहर सिंह चौहान, मेल से
सरकार किसी की भी हो, पक्ष-विपक्ष कोई हो, लेकिन अगर कोई फैसला देशहित में लिया जाता हैं, तो राजनीतिक दलों को मिलकर उस फैसले का समर्थन करना चाहिए। राजनीति की अपनी मर्यादा होती है और एक सीमा तक ही राजनीति अच्छी लगती है। लेकिन हमारे विपक्षी नेताओं को अपने लोभ और स्वार्थ से ही मतलब है। उसके सिवाय उन्हें कुछ याद नहीं रहता। देशहित की बाते उन्हें छू तक नहीं गई है। नोटबंदी पर ऐसे ही लोग विरोध कर रहे हैं।
—गिरिजाशंकर, रांची (झारखंड)
ङ्म आठ नवंबर की रात को इतिहास के पन्नों में दर्ज किया जाएगा। नोटबंदी की चोट सीधे-सीधे भ्रष्टाचारियों की कमर तोड़ने के लिए है। तो वहीं फैसले के बाद आम जनता में खुशी की लहर देखते बन रही थी। उधर माया, ममता,मुलायम, केजरी सब इस फैसले से ऐसे बौखलाए हुए हैं जैसे इनका सब कुछ लुट गया हो। कुछ भी हो लेकिन इनका खजाना लुटा तो है, बस इनसे बोला ही नहीं जा रहा।
—जमालपुरकर गंगाधर, नीलकंठनगर (हैदराबाद)
ङ्म कालाधन रखने वालों की बोलती बिल्कुल बंद है। वे अब इस जुगाड़ में लगे हैं कि कैसे काले धन को सफेद किया जाए। कुछ लोग इसमें सफल भी हुए हैं। लेकिन अधिकतर लोगों के लिए यह निर्णय गले की फांस बनकर रह गया है। इसमें संदेह नहीं कि सरकार का यह कदम आने वाले दिनों में रंग दिखाएगा।
—आशा कुमारी, कुल्लू (हि.प्र.)
ङ्म सच तो यह है कि देश आर्थिक शुद्धीकरण के दौर में प्रवेश कर चुका है। भ्रष्ट नेताओं और शासन तंत्र में बिलबिलाहट तो है लेकिन व्यवस्था के संचालन में अब शुचिता का समावेश होने वाला है। ममता, माया, केजरी और राहुल जिस जनता की आड़ लेकर समस्या और परेशानी गिनाकर आक्रोशित हो रहे हैं असल में वह जनता की समस्या नहीं बल्कि उनकी खुद की समस्या है। क्या यह बात किसी से छिपी मायावती चुनावों में एक-एक टिकट को करोड़ों में बेचती थीं। इससे उन्होंने अकूत संपत्ति बनाई है। अब उन्हें इस निर्णय से समस्या होना लाजिमी है।
—दिनेश ठाकुर, नासिक (महा.)
अपनी जिम्मेदारी को पहचानें
रपट 'मर्यादा लांघता मीडिया' से एक बात जाहिर होती है कि मीडिया को जो काम और जिम्मेदारी सौंपी गई थी, वह उस काम को न करके कुछ और ही करने में व्यस्त है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ होने के चलते समाज में उसका सम्मान है। उसका काम समाज में जागरूकता के साथ गरीब व शोषित वर्गों की आवाज उठाना है। यानी मीडिया जनता और सरकार के मध्य सेतु का काम मीडिया करता है। हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी कमियों को सरकार के सामने रखता है। लेकिन कुछ दिन से वह इन सब बातों को भूलकर स्वार्थ के चंगुल में फंसा हुआ है। अपने लोभ के लिए वह देश की अखंडता को खंड-खंड करने में देर नहीं लगाता।
—राम प्रताप सक्सेना, खटीमा (उत्तराखंड)
ङ्म मीडिया का काम बिना किसी लोभ के जनता के सामने समाचार प्रस्तुत करना और उसमें किसी भी तरह की कोई छेड़छाड़ न करना है। लेकिन हाल के दिनों में उसने अपने काम को सही ढंग से अंजाम नहीं दिया। चाहे कश्मीर में पत्थरबाजों का मामला हो, पाक की ओर से होती घुसपैठ या फिर नोटबंदी का मामला। हर खबर में कुछ सेकुलर मीडिया घरानों द्वारा सिर्फ और सिर्फ नकारात्मकता ही जनता के सामने परोसी गई। हां, उसे किसी भी घटना के दोनों पक्ष सकारात्मक और नकारात्मक रखने चाहिए लेकिन बिना किसी पूर्वाग्रह के। पर कुछ पत्रकारों को सिर्फ मोदी विरोध ही दिखाई देता है और वे अपना काम करते हैं। हालांकि इससे मीडिया की छवि धूमिल होती है।
—श्रीकृष्ण राठौर, बहराइच (उ.प्र.)
बिलबिलाहट जायज है!
किसी को यह नहीं भूलना चाहिए देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश की जनता ने प्रचंड बहुमत से सत्ता सौंपी है। देश के लोगों में उनके प्रति पहले आस्था थी और आज भी वह बरकरार है। रपट 'कहर काली कमाई पर' से यह स्पष्ट हो चुका है कि केंद्र सरकार काली कमाई करने वालों को बिल्कुल भी छोड़ने के मूड में नहीं है। देश के विकास और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए प्रधानमंत्री ने अचानक ऐसा कदम उठाया है। इस कदम से समाज को जो समस्याएं आईं उसके लिए मोदी ने देश के सामने हाथ जोड़कर समय मांगा और इसे सफल बनाने के लिए अपील की। लेकिन इसके बाद भी कुछ लोग इस छोटी सी समस्या पर सरकार और मोदी की आलोचना कर रहे हैं। जबकि उन्हें पता होना चाहिए कि प्रधानमंत्री ने उनसे एक तय समय मांगा और उस समय तक समस्या नहीं रहने वाली। उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि एक प्रधानमंत्री ने हाथ जोड़कर देश के लोगों से अपील की है। वह भारत के उज्ज्वल भविष्य और सुख-चैन के लिए ऐसा कर रहे हैं। देश के लोगों को इन सब बातों का ध्यान रखना चाहिए। उनको इस फैसले के हर पहलू पर गौर करना चाहिए। उन्हें इस पर भी ध्यान देना चाहिए कि जब से यह फैसला लागू हुआ है कश्मीर की वादी में शंाति आ गई है। पत्थरबाज गायब हो गए हैं। नक्सली परेशान हैं। नोट बदलने और अपना काला धन सफेद करने के लिए वे तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। भ्रष्ट नेता और अधिकारी फैसले से बिलबिलाए हुए हैं। यह एक ऐतिहासिक निर्णय नहीं तो और क्या है? इस कड़े फैसले ने काला धन रखने वालों की नींद हराम कर रखी है। देश को जल्द ही विमुद्रीकरण के दूरगामी परिणाम दिखाई देंगे।
—एल.पी.गुप्ता , लाल गोडाउन के पीछे पी.एन.रोड, डिब्रूगढ़(असम)
परिवर्तन संदेश
यू़ पी और पहाड़ में, परिवर्तन संदेश
मांग रहे नेता सभी, इसका ही आदेश।
इसका ही आदेश, पसीना बहा रहे हैं
दिन हो चाहे रात, दुंदुभी बजा रहे हैं।
कह 'प्रशांत' जनता जिसके सिर हाथ धरेगी
अगले पांच साल सत्ता उसकी ही रहेगी॥
—प्रशांत
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