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श्री मोहनराव भागवत और श्री मिलिंद कांबले संघ संसार का झरोखाने किया पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर के विशेषांक का लोकार्पण
दिल्ली में गत एक दिसबंर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत और दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (डिक्की) के अध्यक्ष श्री मिलिंद कांबले ने पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर के विशेषांक का लोकार्पण किया। दोनों विशेषांक संघ की 90 वर्षीय सतत साधना को समर्पित हैं। इस अवसर पर भारत प्रकाशन (दिल्ली) लिमिटेड के प्रबंध निदेशक श्री आलोक कुमार, पाञ्चजन्य एवं आर्गेनाइजर के समूह संपादक श्री जगदीश उपासने, पाञ्चजन्य के संपादक श्री हितेश शंकर एवं ऑर्गनाइजर के संपादक श्री प्रफुल्ल केतकर भी
उपस्थित थे।
समारोह को संबोधित करते हुए श्री भागवत ने कहा कि संघ कार्य और विचार सत्य पर आधारित है, किसी के विरोध अथवा द्वेष पर नहीं। संघ को समझना आसान भी है और असंभव भी। आप श्रद्धा, भक्तिभाव और पवित्र मन से जिज्ञासा लेकर आएंगे तो संघ को समझना आसान है, लेकिन यदि मन में किसी प्रकार का पूर्वाग्रह रखकर अथवा किसी खास उद्देश्य को लेकर आएंगे तो संघ समझ में आने वाला नहीं है। संघ की शाखा में स्वयंसेवक प्रतिदिन साधना करते हैं। संघ में कोई बंधन नहीं है। संघ को समझना है तो शाखा में आइए। देखिए, समझिए। जंचे तो ठीक, नहीं जंचे तो भी ठीक। सरसंघचालक ने आगे कहा कि संघ पर समाज का भरोसा किसी प्रचार के कारण नहीं है बल्कि संघ की दैनंदिन गतिविधियों के कारण है। संघ का कार्य सत्य पर आधारित है, इसीलिए इतने वर्षों में यह निरंतर आगे बढ़ता रहा है और आज 90 वर्ष की यात्रा पूरी करके सबसे आगे है। 90 वर्ष की इस यात्रा को समर्पित पाञ्चजन्य एवं ऑर्गनाइजर के ये संग्रहणीय अंक संघ के बारे में जानकारी और जिज्ञासा बढ़ाते हैं। संघ की यह पद्धति नहीं है कि वह कहे कि भारतवासियो! तुम आश्वस्त हो जाओ, तुम्हें कुछ नहीं करना है, हम सब कुछ कर देंगे। बल्कि, संघ मिलकर कार्य करने में विश्वास रखता है। उन्होंने कहा, ''संघ की लत जब किसी को एक बार लग जाती है तो वह ताउम्र नहीं छूटती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उसके अंत:करण में देश और समाज के प्रति समर्पण की भावना पैदा हो जाती है। संघ का यह विचार नया नहीं है। अपने देश के उत्थान हेतु काम करने वाले अनेक महापुरुषों के मन में जो अलग-अलग विचार थे या हैं, संघ उन सभी के अंदर से रचनात्मक विचार को लेकर चल रहा है।''
सरसंघचालक ने हिंदू समाज का आह्वान किया कि वह अपने अंदर मौजूद बुराइयों और अहंकार को त्यागे तभी हम विश्व के सभी मत-संप्रदायों को जोड़ पाएंगे। संघ पिछले 90 वर्ष से यही कार्य करता आ रहा है। संघ का कार्य हिंदू समाज को अपने मूल से जोड़ने का है। संघ की गतिविधियों का दायरा संकुचित नहीं है, बल्कि, संपूर्ण विश्व को बंधुत्व भाव से ओत-प्रोत कर जोड़ने का है। संघ की यह सोच रही है कि दूसरों पर ध्यान देने से पहले व्यक्ति स्वयं पर ध्यान दे। स्वयं को ठीक कर जब व्यक्ति अपने अंदर एक मानव का निर्माण करेगा, तभी जाकर वह समाजहित में कुछ कर सकेगा। संघ दैनंदिन शाखा के माध्यम से ऐसे ही व्यक्तियों का निर्माण कर रहा है।
हाल ही में कानपुर के निकट हुई रेल दुर्घटना का जिक्र करते हुए श्री भागवत ने कहा कि राहत कार्य के लिए सबसे पहले संघ के स्वयंसेवक वहां पहुंचे। बाद में अन्य लोग भी पहुंचे। लेकिन उसी दौरान खबर फैली कि वहां कुछ ऐसे तत्व भी पहुंच गए हैं जो सेवा और सहायता के नाम पर दुर्घटना में हताहत लोगों के सामान की चोरी कर रहे हैं। रेलवे अधिकारियों ने प्रशासन को निर्देश दिया कि स्वयंसेवकों को छोड़कर किसी अन्य को वहां न जाने दिया जाए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सभी को स्वयंसेवकों की ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा पर पूरा भरोसा है। इससे पता चलता है कि समाज में संघ की कैसी छवि और प्रभाव है तथा स्वयंसेवकों के प्रति किस कदर विश्वास है। यह भरोसा पैदा करने में बहुत समय लगा है। 1925 में संघ स्थापना के बाद प्रथम पीढ़ी के कार्यकर्ताओं ने उपेक्षा और विरोध के बावजूद कठिन परिश्रम कर संघ का देशव्यापी स्वरूप खड़ा किया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् स्वयंसेवकों का त्याग और बलिदान समाज के सामने आया। इसी प्रकार आपातकाल के दौरान संघ की भूमिका को देखने के बाद समाज की दृष्टि बदली। आज संघ को लेकर अपेक्षाएं बढ़ी हैं। यह स्वयंसेवकों की तपस्या एवं परिश्रम का परिणाम है। दलित समाज में स्वाभिमान का भाव जाग्रत करने में लगे डिक्की के संस्थापक और उद्योगपति श्री मिलिंद कांबले ने कहा कि अब दलित समाज छात्रवृत्ति और नौकरी मांगने वाला बनने की बजाए छात्रवृत्ति और रोजगार देने वाला बनकर राष्ट्र विकास में सक्रिय भूमिका निभाने लगा है। उन्होंने कहा कि आज देश में 27 राष्ट्रीय बैंकों की 1़25 लाख शाखाएं हैं, यदि ये सभी शाखाएं साल में सिर्फ एक दलित को उद्यमी बनने में मदद करें तो सालभर में 1़25 लाख उद्यमी तैयार हो सकते हैं। इस संबंध में उन्होंेने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई पहल का स्वागत किया। श्री मोदी ने बाबा साहब आंबेडकर की 125वीं जयंती के निमित्त जिस प्रकार उनसे जुड़े पांच प्रमुख स्थानों यानी उनकी जन्मभूमि, शिक्षाभूमि, चैतन्यभूमि, दीक्षाभूमि और निर्वाणभूमि को विकसित करने हेतु प्रयास किए हैं, उस पर भी श्री कांबले ने आभार व्यक्त किया।
संघ कार्य और विचार सत्य पर आधारित है, किसी के विरोध अथवा द्वेष पर नहीं। संघ को समझना आसान भी है और असंभव भी। श्रद्धा, भक्तिभाव और पवित्र मन से जिज्ञासा लेकर आएंगे तो संघ को समझना आसान है, लेकिन यदि मन में किसी प्रकार का पूर्वाग्रह रखकर अथवा किसी खास उद्देश्य को लेकर आएंगे तो संघ समझ में आने वाला नहीं है।
—मोहनराव भागवत, सरसंघचालक, रा.स्व.संघ
अब दलित समाज छात्रवृत्ति और नौकरी मांगने वाला बनने की बजाय छात्रवृत्ति और रोजगार देने वाला बनकर राष्ट्र विकास में सक्रिय भूमिका निभाने लगा है।
—मिलिंद कांबले, प्रसिद्ध उद्योगपति एवं संस्थापक, डिक्की
भुवनेश्वर में भी हुआ लोकार्पण
पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर के विशेषांकों का लोकार्पण 5 दिसंबर को भुवनेश्वर में भी हुआ। लोकार्पणकर्ता थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री वी. भागैया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि सेकुलर मीडिया संघ को सांप्रदायिक संगठन के रूप में दुष्प्रचारित करता है, यह सही नहीं है। संघ तो सबको साथ लेकर चलने वाला संगठन है। इस अवसर पर पूरब ओडिशा प्रांत संघचालक श्री समीर मोहंती, भुवनेश्वर महानगर संघचालक डॉ. बसंत पति सहित अनेक गणमान्यजन उपस्थित थे।
-पंचानन अग्रवाल
श्री जगदीश उपासने ने कहा कि पत्र-पत्रिकाओं के जीवन में कोई विशेषांक अथवा संग्रहणीय अंक प्रकाशित करना एक सामान्य सी बात है। लेकिन पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर के इन संग्रहणीय विशेषांक का जो विषय है, वह सामान्य नहीं है। क्योंकि जिस संगठन यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी 90 वर्ष की यात्रा पर ये अंक आधारित हैं वह सामान्य नहीं, असामान्य संगठन है। लेकिन मुझे आश्चर्य होता है कि शेष मीडिया के मन में इन 90 वर्ष की यात्रा का वस्तुनिष्ठ विश्लेषण करने का विचार क्यों नहीं आया। शायद उन्हें संघ की शताब्दी होने का इंतजार होगा। ऐसे में हमने इसे अपना उत्तरदायित्व समझा कि यह पहल हम करें। संघ के ये 90 वर्ष हमें बहुत बड़ी घटना लगते हैं, लेकिन संघ के कार्यकर्ताओं के लिए यह महज एक और वर्ष बीत जाने से अधिक कुछ नहीं है। बहुत-से लोगों के मन में यह सवाल बार-बार उठता है कि इन 90 वर्ष में संघ टिका कैसे रहा है, खास तौर से दो-दो प्रतिबंध लगने के बाद और इसे समाप्त करने के कुत्सित प्रयासों के बाद भी। सवाल सिर्फ टिके रहने का ही नहीं है, बल्कि उसके अप्रत्याशित प्रसार का भी है। 90 साल से संघ की शाखा आखिर किस शक्ति के बल पर चल रही है? संघ का वैचारिक अधिष्ठान कैसे तैयार हुआ है? विविध क्षेत्रों में संघ के प्रयास को देखें तो समाज जीवन के हर क्षेत्र में संघ कार्यकर्ता पूर्ण समर्पण भाव से सकारात्मक बदलाव के लिए काम कर रहे हैं। इन सभी बातों के एक वस्तुनिष्ठ आंकलन की जरूरत है। यह आंकलन और विश्लेषण पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर से बेहतर और कौन कर सकता है। इसलिए हमने यह काम किया है।
श्री हितेश शंकर ने कहा कि ये अंक संघ के बारे में इतिहास से गायब कडि़यों को जोड़ने का प्रयास हैं और जो लोग संघ को समझने की कोशिश कर रहे हैं, उनकी शंकाओं का समाधान भी करते हैं। 1925 से लेकर अब तक संघ वटवृक्ष बन चुका है। इसलिए जो इस वटवृक्ष को समझना चाहते हैं, ये अंक उनके और संघ के बीच एक सेतु का काम करेंगे।
श्री प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि संघ एक सोच है जो समय के साथ विकसित हुई है। यह 'कलेक्टिव थिंकिंग' यानी मिलकर विचार करने का एक मॉडल भी है। उन्होंने कहा कि संघ से बढ़कर अधिक लोकतांत्रिक और उदारवादी कोई अन्य संगठन नहीं हो सकता इसीलिए समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय संघ कार्यकर्ताओं को गंभीरता से लिया जाता है। कार्यक्रम में संघ के सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी, सह सरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी, श्री वी़ भागैया एवं डॉ. कृष्ण गोपाल, दिल्ली प्रांत संघचालक श्री कुलभूषण आहूजा, दिल्ली प्रांत कार्यवाह श्री भारत भूषण, भारत सरकार में मंत्री डॉ. हर्षवर्धन एवं रविशंकर प्रसाद के साथ विभिन्न राजनीतिक दलों के अनेक सांसद भी उपस्थित थे। समारोह के अंत में श्री आलोक कुमार ने आयोजन से जुड़े सभी लोगों और उपस्थित श्रोताओं को धन्यवाद
ज्ञापित किया। -प्रमोद कुमार
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