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इतिहास के पन्नों से
पाञ्चजन्य, वर्ष: 13 अंक: 14
19 अक्तूबर ,1959
सिक्किम में विदेशियों के प्रवेश पर परमिट लागू कर बंधन लगा दिया गया है, किन्तु परमिट प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं होती। बहरहाल, कहा जाता है कि गत दो या तीन मास में किसी भी चीनी का इस सीमावर्ती राज्य में आगमन नहीं हुआ है। सभी भारतीय, बिना किसी संदेह को जन्म दिए, सीमा पर स्थित नाथूला दर्रे तक बेधड़क यात्रा कर सकते हैं।
कम्युनिस्टों का जाल
कम से कम एक बार मुझे कालिम्पोंग में एक कम्युनिस्ट नेता की ओर से यह निमंत्रण प्राप्त हुआ, कि मैं उनके साथ न केवल सिक्किम सीमा तक, बल्कि तिब्बत के अंदर भी चलूं। उन्होंने मुझे यह आश्वासन दिया कि उनका सीमा स्थित भारतीय पुलिसमैनों से अच्छा सम्पर्क है।
यह उदार निमंत्रण उन्होंने मुझे यह विश्वास दिलाने के निमित्त दिया कि आखिरकार चीनी लोग बुरे आदमी नहीं हैं और उनका भारत के विरुद्ध आक्रामक इरादा नहीं है। उन्होंने मुझे यह आश्वासन भी दिया कि जब तक वे मेरे साथ रहेंगे, चीनी मुझे रंचमात्र हानि नहीं पहुंचाएंगे।
चीनियों की गतिविधि
पिछले आठ वर्षों में चीन सरकार के अधिकृत प्रतिनिधियों को कम से कम दो बार सिक्किम में लंबे काल तक ठहरने का और अपनी इच्छानुसार चाहे जहां कैमरे लेकर घूमने का अवसर प्राप्त हो चुका है। चीनी अधिकारियों के प्रथम जत्थे की सिक्किम की राजधानी गंगटोक में 1950-51 में ठहरने का अवसर आया, जबकि चीन की अपनी तिब्बत स्थित मुक्ति सेना का पेट भरने के निमित्त अन्न की खोज में बुरी तरह परेशान थे और उन्हें सिक्किम में खाद्यान्न खरीदने के निमित्त 'क्रय कार्यालय' स्थापित करने की अनुमति प्रदान कर दी गयी थी।
उनका दूसरा जत्था गत वर्ष नेपाल से उपहारस्वरूप प्राप्त घोड़ों के एक काफिले को लेकर सिक्किम से होकर गुजरा। कालिम्पोंग में एक जानकार ने बताया कि इस जत्थे ने फोटोग्राफी का कार्य भली प्रकार पूरा किया और उस मार्ग का विस्तृत मानचित्र भी तैयार किया जिससे होकर वह गया था।
चीन का व्यापक प्रचार
भारत के सीमावर्ती जिले दार्जिलिंग, कालिम्पोंग एवं शेष स्थानों पर विदेशियों के स्वच्छंद विचरण एवं फोटो खींचने पर किसी प्रकार का कोई प्रतिबंध नहीं है। मुझे बताया गया कि लगभग एक मास पूर्व कालिम्पोंग के कुछ चीनियों ने नगर से बहुत दूर स्थित क्षेत्रों में जाकर फोटो खींचने के कार्य के लिए असामान्य उत्साह प्रकट किया।
कालिम्पोंग में चीनी व्यापारिक मिशन की ओर से सिनेमाघरों में चीनी समाचार चित्रों एवं संवाद चित्रों का मुफ्त प्रदर्शन किया जाता है। उसे उन बंधनों या बाधाओं का कतई सामना नहीं करना पड़ता, जिनका तिब्बत स्थित हमारे इसी प्रकार के मिशन को पग-पग पर करना पड़ता है। ये प्रदर्शन निश्चित ही उनके लिए लाभदायक सिद्ध हुए हैं, क्योंकि अब चीनी मिशन अपने मिशन क्षेत्र में निजी सिनेमागृृह का निर्माण करा रहा है।
'प्रेस' के विरुद्ध प्र. नेहरू की
'जिहाद' का असली रहस्य समझो
कुछ समय से उन्होंने भारतीय प्रेस की आम एवं उग्र आलोचना करना प्रारंभ कर दिया है, यद्यपि अपनी नवीनतम प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने चंडीगढ़ और बम्बई में जो कड़वी बातें कही थीं उन पर कुछ चीनी चढ़ाने की कोशिश की। यह निश्चित ही, भारतीय प्रेस द्वारा उनकी, उनके रिश्तेदारों की एवं उनके लाडलों की आम एवं बिना भेदभाव के आलोचना किए जाने की उनके अचेतन मानस पर जो प्रतिक्रिया हुई है, उसकी अभिव्यक्ति मात्र है। और यह मानवोचित भी है।
दकियानूसी कौन?
बहरहाल, प्रधानमंत्री, अपने तथा बड़े सामचार पत्रों के बीच जो शीत युद्ध छिड़ गया है, उस पर ऊंचा सैद्धांतिक आवरण चढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। उनका यह मत है कि समाचार पत्र अब निजी क्षेत्र के बड़े उद्योग बन गये हैं और इसलिए वे स्वाभाविक ही निजी क्षेत्र के बड़े व्यवसायों का पक्ष लेने की कोशिश करते हैं। इसके विपरीत वे पं. नेहरू एवं कांग्रेस जैसों की, जो सहकारी खेती एवं जोत की हदबंदी से संबंधित प्रस्ताव का समर्थन करते हैं, आलोचना करने लगे हैं। दूसरे शब्दों में, भले ही कांग्रेस हाई कमांड और बड़े समाचारपत्र स्वतंत्रता-संग्राम के काल में एक-दूसरे के सहयेागी रहे हों, किंतु अब वे आर्थिक दृष्टिकोण से जुदाई के स्थल पर पहुंच गये हैं। श्री नेहरू कम्युनिस्टों की तो दकियानूसी कहकर आलोचना करते हैं किंतु स्वयं अभी भी भारतीय इतिहास को 'वर्ग संघर्ष' के अर्थों में समझने पर डटे हुए हैं।
कथनी और करनी में भेद
मैं व्यक्तिश: अनुभव करता हूं कि श्री नेहरू जो कहते हैं, उसमें भी कुछ सार हो ्रसता है। किंतु फिर भी जो स्पष्टीकरण वे दे रहे हैं वह वास्तविकता से भिन्न है।
दिशाबोध – 'मम' अधर्म, 'न मम' धर्म
''धर्म संघर्ष में नहीं, समझदारी में होता है। धर्म की सीख है कि एक का दूसरे से नाता समान स्वार्थ का नहीं, एक ही आत्मा का होता है। महाभारत में धर्म और अधर्म की बहुत ही सरल व्याख्या की गई है। 'मम' अधर्म है, 'न मम' धर्म है। 'मेरा कुछ नहीं, सब तेरा है', यह धर्म की भावना होती है और 'सब कुछ मेरा है', यह अधर्म की धारणा होती है।
इसका परिणाम यह होता है कि मनुष्य अपने को केन्द्र मानकर सारे समाज का विचार करता है। संसार को सुखी करना हो तो 'न मम' की संकल्पना का विचार करना ही पड़ेगा। व्यक्ति की स्वतंत्रता और समाज का हित, दोनों का संकलित तालमेल बिठाना होगा। व्यक्ति स्वातंत्र्य अवश्य होना चाहिए। उस पर कोई बंधन न हो। किंतु उस स्वतंत्रता का उपयोग मनुष्य केवल अपने लिए करता हो तो वह गलत होगा। व्यक्ति को अपने लिए नहीं, समाज के लिए जीना चाहिए। तभी वह समाज की सेवा
कर सकेगा।''
—पं. दीनदयाल उपाध्याय (विचार-दर्शन, खण्ड-3, पृ. 14)
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