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आखिर कब तक, कितने और वर्षों तक, कितने और चुनावों तक हम आतंकवाद के साथ, पत्थरों और पाकिस्तानी पैसे पर पल रहे गद्दारों को सहते हुए जीते रहेंगे?
तरुण विजय
कश्मीर पर चर्चा के समय भुला दिया जाता है कि एक खून, एक नस्ल, एक पुरखे और इतिहास के बावजूद आजादी की मांग के पीछे कारण क्या है? 611 कश्मीरी अगर जम्हूरियत, इंसानियत और कश्मीरियत के लिए वोट देते हैं तो उनको सुना और माना जाए या मुट्ठी भर पत्थरबाजों को, जो पाकिस्तानी पैसे पर गिलानी जैसे गद्दारों के भड़कावे में जिहाद करते हैं? अगर जिहाद का रास्ता जन्नत तक ले जाने वाला और 'पवित्र' है तो उस पर गरीब मुसलमानों के बच्चों को ही क्यों धकेला जाता है? गिलानी और बाकी जिहाद-पसंद नेताओं के बच्चे मुम्बई, बंगलौर तथा विदेशों में पढ़ेंगे और शान की जिंदगी बिताएंगे तथा मरने के रास्ते पर जन्नत के झुनझुने थाम कर धकेले जाएंगे गरीबों के बच्चे? इन जिहादी नेताओं से ज्यादा कायर और डरपोक भला और कौन होगा? वे अपनी ही कौम के साथ गद्दारी से भी नहीं चूकते।
कश्मीर पर मोदी सरकार की आलोचना करने वाले बोलते नहीं कि आज तक कश्मीर पर राज किसने किया? मैंने हिसाब लगाया तो पाया सिर्फ अब्दुल्ला परिवार ने। शेख अब्दुल्ला, फारुक और उमर ने कुल मिलाकर 29 साल 29 दिन तक राज किया। इन 29 साल में अब्दुल्ला-शाही में कश्मीर का क्या हुआ? उनके राज के कारण ही तो पत्थरबाज पैदा हुए? दादा, बेटे और पोते की पुश्तैनी सरकारों ने कश्मीर के मुसलमानों को तरक्की, नौकरी, सड़कें, बिजली, पानी दिया या मीर वायज और गिलानी सौंपे?
अब्दुल्ला-शाही के अलावा कांग्रेस और उनके समर्थक दलों का 25 साल तक जम्मू कश्मीर पर राज रहा। इन 54 साल में केवल कांग्रेस या अब्दुल्लाओं ने जम्मू- कश्मीर के साथ ऐसा व्यवहार किया कि जम्मू और लद्दाख कश्मीर घाटी से संत्रस्त हो उठे। आबादी और इलाका ज्यादा होते हुए भी नाखून के बराबर घाटी के वहाबी-सुन्नी मुसलमानों का एक वर्ग तबाही के मातम में पूरे राज्य को डुबोए रहता है। विदेशी धन और विदेशी मन से संचालित पत्थरबाजों और उनके आकाओं से कोई क्या बात करे?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज जिस मजबूत स्थिति और राष्ट्रव्यापी समर्थन के शक्तिशाली आधार पर हैं, उसके कारण वे कश्मीर में अमन बहाल करने के लिए निर्णायक कदम उठाने की स्थिति में हैं। विशेष वर्ग वाले राज्यों में भी देश में सबसे ज्यादा वित्तीय सहायता जम्मू-कश्मीर को (2015-16 में 14.83 प्रतिशत वित्तीय मदद सिर्फ एक राज्य को), फिर भी नफरत का यह आलम कि अमरनाथ यात्रियों के लिए शरण स्थल तक को 'एक इंच जमीन' न देने का ऐलान। हर दिन जवानों की शहादत पर उनके लिए कश्मीर में सैनिक कॉलोनी बनाने का विरोध। स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाई के लिए विशेष पैकेज—राजस्थान से दिल्ली और कर्नाटक तक कश्मीरी मुस्लिम विद्यार्थियों को राज्य सरकार के वजीफे, उसके बावजूद आजादी के जो नारे लगाएं, उन मुट्ठी भर लोगों की वजह से पूरे जम्मू-कश्मीर के लाखों भारतनिष्ठ नौजवानों का भविष्य दांव पर नहीं लगाया जा सकता। निर्णय तो नरेन्द्र दामोदर दास मोदी को ही लेना होगा जिन्होंने संविधान की शपथ खाकर भारत की एकता और अखंडता बचाने का संकल्प लिया है।
कश्मीर में देशभक्त मुस्लिम नौजवानों को ऐसा वर्ग उभारने और उन्हें नेतृत्व में साझेदार बनाने का जिम्मा भाजपा-पीडीपी सरकार का है। मामला सिर्फ सड़क, पानी, बिजली का नहीं बल्कि मन बदलने और दिल जीतने का है।
यह कहने का वक्त बीत गया है कि कश्मीर में पाकिस्तान शरारत करा रहा है। हमारी पुलिस, हमारी सरकार, हमारे लोग और हमारा संविधान कश्मीर की तकदीर लिखने के लिए वहां के युवाओं को आगे ला सकता है। और कश्मीर की तकदीर वहां के हिन्दुओं की सुरक्षा तथा सम्मान के साथ वापसी के बिना नहीं लिखी जा सकती। जो अध्यापक तथा सामान्य सरकारी कर्मचारी घाटी में पुनर्वास योजना के तहत गए भी थे, वे भी नए विध्वंसक हालात में जम्मू आ गए। उन्हें चार-चार महीने से वेतन नहीं मिला, ऐसा उनके संगठन माइग्रेन्ट एम्प्लायज एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने बताया। हिन्दू विहीन घाटी प्राणविहीन है।
आखिर कब तक, कितने और वर्षों तक, कितने और चुनावों तक हम आतंकवाद के साथ, पत्थरों और पाकिस्तानी पैसे पर पल रहे गद्दारों को सहते हुए जीते रहेंगे? इस दर्द की दवा अगर दिल जीतना है तो दिल हिन्दुस्तानी ही चाहिए। लेखक पूर्व राज्यसभा सांसद हैं
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