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इस फरवरी में कन्हैया पर छाप- छापकर न थकने वाले मीडिया ने जब लगभग उसी दौरान हुई सुजित की बर्बर हत्या की अनदेखी की तो मुझसे रहा नहीं गया। मैं केरल गई, उसकी मां से मिली। उनकी कहानी सुनकर मन व्यथित हो गया। मैंने डॉक्युमंेट्री, लेखों और सोशल साइट्स के माध्यम से सुजित की कहानी सबको बताने की कोशिश की। वह मरा क्योंकि संघ का स्वयंसेवक था। विचारधार में भेद हो सकता है, पर ऐसी बर्बरता के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।
-अद्वैता काला
फिल्मकार एवं लेखिका
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