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ऊर्जा के प्राकृतिक स्रोतों के अंधाधुंध दोहन से विश्व गंभीर ऊर्जा संकट से दो-चार है। पर्यावरण संतुलन के लिए हमें तुरंत अन्य वैकल्पिक स्रोतों पर ध्यान देना होगा
सुशील चंद्र त्रिपाठी
नव सभ्यता के विकास में ऊर्जा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। पाषाणकाल में आग की खोज ने यह संभव किया कि लौह युग में भी ऊर्जा का स्वरूप बढ़ता गया। सूर्य मानव को, जीवों को और सभी वनस्पतियों को जीवन प्रदान करता है। समय बदलने के साथ नई विधियां और नई तकनीक का विकास हुआ और ऊर्जा के नए-नए स्रोतों ने मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति की, वहीं अर्थव्यवस्था को नया आयाम दिया। 19 वीं शताब्दी में कोयले का प्रभुत्व रहा तो 20वीं शताब्दी में खनिज तेलों का। उसके बाद आणविक ऊर्जा और गैस का तो 21वीं शताब्दी में नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों का । भारत में लगभग 10 से 15 फीसद गैर पारंपरिक प्राथमिक ऊर्जा लकड़ी, गोबर, और पशु ऊर्जा आदि के माध्यम से प्राप्त होती है। विश्व में तेल से लगभग 32.8 फीसद, गैस से 23.7 फीसद और कोयले से 30 फीसद ऊर्जा उपयोग होता है। अमेरिका जैसे विकसित देश में कोयले की ऊर्जा की हिस्सेदारी 20 फीसद, गैसों की 29.6 फीसद और पन बिजली की 8.3 फीसद है और नाभकीय ऊर्जा का 3.6 और नवीकरणीय ऊर्जा की 2.5 फीसद प्रयोग होता है। भारत और चीन जैसे विकासशील देश अधिकांशत: कोयले पर निर्भर हैं। चीन में यह 67.5 फीसद तो भारत में 64.5 फीसद है।
हमारा आधुनिक जीवन ऊर्जा पर व्यापक रूप से आश्रित है। यूरोप और अमेरिका ने पिछली 2 शती में प्रदूषण को बढ़ाया है और विकासशील देश अब उनको पकड़ने की कोशिश में लगे हुए हैं। वर्तमान में लगभग 35 बिलियन टन कार्बनडाइ आक्साइड अथवा इसके समान गैसें प्रतिवर्ष वातावरण में घोली जा रही हैं। यदि हम प्रति स्तर पर भी देखें तो विकसित देश विकाशील देशों की तुलना में कई गुना प्रदूषण फैला रहे हैं। आज बदलते जलवायु परिवर्तन के कारण बड़ी मात्रा में प्रयोग की गई ऊर्जा है। भारत संतुलित नीति का पक्षधर रहा है। भारत में मुख्य रूप से ऊर्जा का प्रयोग बिजली, परिवहन और उद्योगों के लिए किया जाता है। अगले 25-30 वर्ष में बढ़ने वाले संभावित ऊर्जा उपयोगों के लिए भारत ने अपनी ऊर्जा नीति क्षमता और इसकी बढ़ोतरी को अप्रदूषित माध्यमों वाले ऊर्जा स्रोतों से पूरा करने का लक्ष्य रखा है। गैस सबसे कम प्रदूषित करने वाला स्रोत है। विश्व के गैस उत्पाद का मात्र 1 फीसद रिजर्व है। भारत वर्तमान में लगभग 8 से 10 मिलियन टन (द्रव्य प्राकृतिक गैस) कतर से आयात कर रहा है। भारत ईरान और तुर्कमेमिस्तान सहित कई अन्य देशों से पाइप लाइन द्वारा इसके आयात की संभावनाएं खोज रहा है। भारत में शेल गैस का कोई बड़ा भंडार नहीं है और न ही कोई बड़ी संभावना दिखती है। इसके लिए बड़े स्तर की तकनीक और संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है। इसी प्रकार हम बड़े स्तर पर पन बिजली परियोजनाओं की शंृखला खड़ी करने में भी असमर्थ हैं क्योंकि भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पर्यावरणीय मुददें के कारण नेपाल सीमा और भारत के कई पर्वतीय राज्यों में ये योजनाएं अधर में लटकी हुई हैं। कोयला आधारित परियोजनाओं को यदि आणविक ऊर्जा के माध्यम से पूरा किया जाए तो लागत भी कम होगी और परिणाम भी अ्रच्छे रहेंगे। हमें इस क्षेत्र में तकनीक के विकास के साथ-साथ इसके लिए स्वदेशी माहौल बनाना होगा। चीन इस क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ रहा है। इसी प्रकार हमें सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में विशिष्ट काम के साथ ठोस काम करना चाहिए जिससे उत्पादन लागत कम आएगी। भारत की पवन ऊर्जा क्षमता हजार से 70 मेागवाट तक आंकी जा सकती है। निश्चित रूप से तमिलनाडु, गुजरात, राजस्थान, म.प्र., आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कई बड़ी बड़ी परियोजनाएं इसी उद्देश्य से लगाई गई हैं। हमें आवश्यकता है पहाड़ी क्षेत्रों और तटीय क्षेत्रों में ऐसे ही संभावना तलाशने की। पवन ऊर्जा अब लगात में भी ठीक है और यह केवल हवा की उपस्थिति में नहीं बल्कि सामान्य तौर पर 20 फीसद प्राप्त हो सकती है। इसी तरह सौर ऊर्जा बड़े व्यापक स्तर पर सरकार द्वारा प्रोत्साहित की जा रही है और लोगों द्वारा स्वीकार की जा रही है। अगले कुछ वर्षों में इससे एक लाख मेगावाट ऊर्जा क्षमता पाने का लक्ष्य रखा गया है। बड़े स्तर पर राज्यों में सौर ऊर्जा के विकास हेतु स्थल और विशेष क्षेत्र विकसित किये जा रहे हैं। सरकार की ओर से छोटे पैमाने पर भी छतों के ऊपर ईकाइयां स्थापित करने के आकर्षिक प्रस्ताव दिये जा रहे हैं। इसलिए ज्यादातर राज्यों में लाभदायक कम घाटी वाली वनीकरणीय ऊर्जा लगातार लोकप्रिय हो रही है। गैस और कोयले की तुलना में इसकी प्रक्रिया जटिल नहीं होती और रख-रखाव का भी ज्यादा तनाव नहीं रहता। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि भारत को अगर विश्व में अपने नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों विशेषकर पवन और सौर ऊर्जा को बड़ी मात्रा में बढ़ाना है तो हमारी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में ये विशेष योगदान देंगे।
(लेखक ऊर्जा, तेल और
प्राकृतिक गैस मंत्रालय के सचिव रहे हैं )
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